विभवमापी की सुग्राहिता कैसे बनाई जाती है? - vibhavamaapee kee sugraahita kaise banaee jaatee hai?

विषय सूची

  • विभवमापी
  • विभवमापी का सिद्धान्त
  • विभवमापी की कार्यविधि
  • विभवमापी की सुग्राहीता
  • विभवमापी तथा वोल्टमीटर में अंतर

विभवमापी

किसी सेल का विद्युत वाहक बल अथवा किसी विद्युत परिपथ के किन्हीं दो बिंदुओं के बीच विभवान्तर के नापन के लिए प्रयुक्त उपकरण को विभवमापी (potentiometer in hindi) कहते हैं।

विभवमापी का सिद्धान्त

विभवमापी की सुग्राहिता कैसे बनाई जाती है? - vibhavamaapee kee sugraahita kaise banaee jaatee hai?

इस vibhav mapi ka Siddhant में एक लम्बा तथा एकसमान व्यास का प्रतिरोध तार XY होता है। जिसका एक सिरा संचायक बैटरी B के धन ध्रुव से जुड़ा होता है। तथा दूसरा सिरा एक धारा नियंत्रक (Rh) से जुड़ा होता है। बैटरी का ऋण ध्रुव प्लग कुंजी (K) तथा धारा नियंत्रक से जुड़ा होता है। जिस सेल E का विद्युत वाहक बल ज्ञात करना होता है उस सेल के धन ध्रुव को तार के बिंदु X से जोड़ देते है। तथा सेल के ऋण ध्रुव को धारामापी G के द्वारा जोकी J से जोड़ देते हैं। जिसको तार पर खिसकाकर कहीं भी स्पर्श कराया जा सकता है।

विभवमापी की कार्यविधि

बैटरी B से विद्युत धारा तार XY में सिरे X से Y की ओर प्रवाहित होती है। जिसके कारण तार के सिरे A से B की ओर विद्युत विभव गिरता जाता है।
तार की प्रति एकांक लंबाई में विभव पतन को विभव प्रवणता कहते हैं। विभव प्रवणता को Φ से दर्शाया जाता हैं।
माना यदि तार XY के भाग XJ की लंबाई ℓ सेमी है तथा बिंदु X व J के बीच कुल विभवान्तर V है तो
V = विभव प्रवणता × लंबाई
V = Φ × ℓ
चूंकि शून्य विक्षेप स्थिति में, विभवान्तर V सेल के विद्युत वाहक बल E के बराबर होता है। अतः
E = V
या \footnotesize \boxed { E = Φℓ }

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विभवमापी की सुग्राहीता

विभवमापी की सुग्रहीता विभव प्रवणता के मान पर निर्भर करती है। अतः विभव प्रवणता का मान जितना कम होगा विभवमापी उतना ही अधिक सुग्राही होगा।
विभव प्रवणता के सूत्र से
V = Φℓ
या Φ = \large \frac{V}{ℓ}
अतः सूत्र द्वारा स्पष्ट होता है कि विभवमापी के तार की लंबाई बढ़ाने पर विभव प्रवणता का मान कम हो जाता है अतः विभव प्रवणता के कम होने पर विभवमापी की सुग्राहीता बढ़ जाती है।

विभवमापी तथा वोल्टमीटर में अंतर

  • विभवमापी अनंत प्रतिरोध के आदर्श वोल्टमीटर के समतुल्य है।
  • वोल्टमीटर के द्वारा विद्युत वाहक बल के मापन में वोल्टमीटर में विक्षेप को पढ़ने में त्रुटि की संभावना होती है। जबकि विभवमापी के द्वारा शून्य विक्षेप स्थिति को पढ़ने में त्रुटि की संभावना न के बराबर या होती ही नहीं है।

विभवमापी (potentiometer) एक विद्युत उपकरण है जो किसी परिपथ के दो बिन्दुओं के बीच विभवान्तर मापने के काम आता है। जब तक चल कुण्डली वोल्टमापी या आंकिक वोल्टमापी का विकास नहीं हुआ था, तब तक विभवमापी से ही विभवान्तर मापा जाता था। इसी लिए इसके नाम में 'मीटर' या 'मापी' आया हुआ है। विभवान्तर मापन की यह विधि सन् १८४१ में जोनन क्रिश्चियन पोगेनड्रॉफ द्वारा बतायी गयी थी। विभवमापी एक आदर्श वोल्टमीटर का कार्य करता हैं।

दिष्ट धारा विभवमापी (Direct current Potentiometer)[संपादित करें]

विभवमापी की सुग्राहिता कैसे बनाई जाती है? - vibhavamaapee kee sugraahita kaise banaee jaatee hai?

विभवमापी द्वारा विभवान्तर का मापन

यह यंत्र विभवांतर नापने के प्रयोग में तो लाया ही जाता है किंतु साथ ही साथ इससे धारामान एवं प्रतिरोध भी ज्ञात किया जा सकता है। यदि एक स्थिर धारा एक लंबे और समान तार से प्रवाहित हो और उस तार की एक एक लंबाई का प्रतिरोध प हो, तो तार की एक लंबाई का विभवांतर व = ध x प (ओम के नियम से) तार के एक समान रहने के कारण उस तार की लंबाई ल का विभवांतर = ध x प x ल। अब यदि हम किसी सेल (Cell) को, जिसका विद्युत् वाहक बल ब है, किसी गैलवैनोमीटर से श्रेणीबद्ध करके विभवमापी के बिंदु क और ख के बीच जोड़ दें तो उस धारामापी में कुछ धरा बहेगी और विक्षेप होगा। यह धारा विभवमापी के बिंदुओं के विभवांतर और सल के विभवांतर के अंतर की समानुपाती होगी, क्योंकि दोनों विभव एक दूसरे विपरीत दिशा में धारा भेजने का काम कर रहे हैं। यदि बिंदु ख को तार पर खिसकाया जाए, तो बिंदुओं क और ख के बीच का विभवांतर बद लेगा। इस प्रकार तार की एक ऐसी लंबाई होगी जब विंदुओं क और ख के बीच विभवांतर ठीक सेल के विद्युत वाहक बल क बराबर होगा और उस समय धारामापी में कोई विक्षेप नहीं होगा। यदि उस तार की लंबाई ल१ हो, तो व१ = ध x प x ल१। इसी प्रकार यदि किसी प्रामाणिक सेल से, जिसका विद्युतवाक बल व२ है, प्रयोग किया जाए और गैलवैनोमापी में शून्य विक्षेप के लिए आवश्यक तार की लंबाई ल२ हो तो व२ = ध x प x ल२ अस्तु, यदि धारा दोनों प्रयोगों में स्थिर रहे तो

व१ / व२ = ल१ / ल२(V1 / V2 = l1 / l2)

और अज्ञात विद्युत् वाहक बल का विभवांतर,

व१ = व२ (ल१ / ल२)

किसी विभवमापी से जितना न्यूनतम विभवांतर नप सकता है उस यंत्र की 'सुग्राहिता' कहलाता है और जो उच्चतम विभवांतर नपता है उसे परास (Range) कहते हैं। यदि किसी विभवमापी के १०० सेमी. तार का प्रतिरोध १० ओम हो और उसमें ०.०१ ऐंपियर की धारा प्रवाहित हो तो सार के दोनों सिरों के बीच की वोल्टता ०.१ वोल्ट होगी। उस में तार को नापने योग्य न्यूनतम लंबाई (मान लें एक मिमी.) के सिरों के बीच का विभवांतर ०.०००१ वोल्ट होगा, जिसे विभवमापी की सुग्राहिता कहेंगे। सन् १८८५ में फ्लेमिंग ने एक अत्यंत यथार्थ और सुग्राही विभवमापी का सिद्धांत बताया। उसी सिद्धांत पर क्रांपटन ने एक विभवमापी बनाया जो क्रांपटन विभवमापी के नाम से प्रसिद्ध है। यह अत्यंत यथार्थ और सुग्राही होता है।

प्रत्यावर्ती धारा विभव मापी (Alternting Current Potentiometer)[संपादित करें]

दिष्ट धारा विभवमापी की भांति ही प्रत्यावर्त्ती धारा विभवमापी भी विभवांतर नापता है। दोनों प्रकार के यंत्रों में, अज्ञात विभावंतर को विभवमापी के मुख्य परिपथ के आंशिक विभवांतर से पूर्णतया संतुलित कर लिया जाता है, किंतु प्रत्यावर्ती धारा का विभवमापी में संतुलन से लाया हुआ विभव केवल परिमाण में ही बराबर नहीं होना चाहिए वरन् प्रावस्था (phase) में विपरीत दिशा में भी होना चाहिए और इसके लिए दो स्वतंत्र समंजन आवश्यक हैं। प्रत्यावर्ती धारा विभवमापी दो वर्गों में विभाजित किए जा सकते हैं जिन्हें हम ध्रुवीय (Polar) और निर्देंशांकी (Coordinate) कहते हैं।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • विभवमापी - जो परिवर्ती प्रतिरोध प्रदान करने वाला एक एलेक्ट्रानिक अवयव है।

विभवमापी की सुग्राहिता कैसे बनाई जा सकती है?

विभवमापी की सुग्राहिता विभव-प्रवणता के व्युत्क्रमानुपाती होती है। परन्तु विभव-प्रवणता K = (जहाँ V = विभवमापी के तार के सिरों का विभवान्तर), अत: K ∝ 1/L अर्थात् विभवमापी के तार की लम्बाई L बढ़ाने से K का मान कम हो जाएगा; अर्थात् सुग्राहिता बढ़ जाएगी।

विभवमापी की सुविधा कैसे बढ़ाई जा सकती है?

इस प्रकार, निम्नलिखित पद्धतियों से इसे बढ़ाया जा सकता है। 1) विभवमापी की तार की लंबाई बढाने से क्योंकि तार की लंबाई प्रतिरोध के समानुपाती होती है। 2) यदि विभवमापी की तार एक निश्चित लंबाई की है, तो नियामक को परिवर्तित करके परिपथ में धारा को निम्न करने से विभव प्रवणता को निम्न किया जा सकता है।

विभवमापी की सुग्राहिता कब बढ़ जाती है?

विभव प्रवणता x का मान कम होने पर, विभवमापी की सुग्राहिता अधिक होती है। <br> `:' x = ( E )/( L)` <br> तार पर आरोपित विभवांतर E के नियत मान के लिए, विभव प्रवणता x का मान तार की लम्बाई L अधिक होने पर कम होता है। x का मान कम होने पर विभवमापी के तार पर संतुलन लम्बाई बढ़ जाती है, जिसे अधिक यथार्थता से मापा जा सकता है।

विभवमापी वोल्टमीटर से अधिक सुग्राही होता है क्यों?

Solution : विभवमापी की वोल्टमीटर पर श्रेष्ठता - `(i)` विभवमापी अनन्त प्रतिरोध के आदर्श वोल्टमीटर के समतुल्य है। `(ii)` वोल्टमीटर द्वारा विभवान्तर मापने के लिए वोल्टमीटर के संकेतक का विक्षेप पढ़ने में त्रुटि की सम्भावना बनी रहती है, जबकि विभवमापी द्वारा शून्य विक्षेप की स्थिति पढ़ने में त्रुटि की सम्भावना नहीं होती