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किसान अगर गेहूं की अगेती बुवाई (Early cultivation of wheat) कर रहे हैं उनके लिए सही किस्मों का चयन बहुत जरूरी हो जाता है. सही किस्मों के चयन से ज्यादा उपज के साथ-साथ बढ़िया मुनाफा भी हो सकता है.गेहूं की बुवाई के लिए सही किस्मों का चुनाव बेहद जरूरी है. अक्टूबर महीने से गेहूं की बुवाई (Wheat farming) शुरू हो जाती है. इसे गेहूं की अगेती बुवाई (Early cultivation of wheat) भी कहा जाता है. इस समय किसान अगर सही किस्मों (Wheat early variety) की बुवाई करें तो किसान ज्यादा उत्पादन के साथ-साथ बढ़िया मुनाफा भी कमा सकते हैं. वैज्ञानिक कहते हैं कि गेहूं की अगेती बुवाई 15 नवंबर तक कर देना चाहिए. आइए जानते हैं गेहूं की प्रमुख अगेती किस्मों के बारे में, साथ ही उनकी खासियत के बारे में भी जानेंगे. एचडी- 2967इस किस्म को सबसे पहले वर्ष 2011 में अधिसूचित किया गया था. हरियाणा सरकार तो गेहूं की इस किस्म पर अनुदान भी दे रही है. पंजाब, हरियाणा, राजस्थान के अलावा पूर्वी उत्तर प्रदेश सहित मैदानी क्षेत्रों में इस किस्म की बुवाई होती है. लगभग 150 दिनों में पककर तैयारी होनी ये किस्म झुलसा प्रतिरोधी है और प्रति हेक्टेयर उत्पादन 66.1 क्विंटल तक हो सकता है. डब्ल्यूएच- 1105गेहूं की ये किस्म अगेती बुवाई के लिए जानी जाती है. लगभग 157 दिनों में पकने वाली इस किस्म से एक एकड़ में लगभग 23 से 24 क्विंटल की पैदावार होती है. इसकीखायस बात यह भी है कि इसमें रतुआ रोग लोग लगने की आशंका कम रहती है. हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान और बिहार में इस किस्म की बुवाई खूब होती है. रोटी और ब्रेड के लिए अच्छी किस्म. एचडीसीएसडब्ल्यू- 18भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने 2015 में किस्म इजाद की थी. एक एकड़ में लगभग 28 क्विंटल की पैदावार वाली ये किस्म लगभग 150 दिनों में पक जाती है. उत्तर प्रदेश, हरियाणा और मध्य प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों में इसकी खेती होती है. एचडी- 3086गेहूं की किस्म एचडी 3086 की सबसे खास बात यह होती है कि इस पर गर्म हवाओं का असर नहीं पड़ता. इसमें पीला रतुआ रोग लगने की आशंका कम रहती है. लगभग 156 दिनों में पककर तैयार होने वाली ये किस्म पैदावार के मामले में भी अच्छी होती है. प्रति एकड़ उत्पादन लगभग 23 क्विंटल तक होता है. पीबीडब्ल्यू- 677गेहूं की ये किस्म लगभग 157 दिनों में तैयार हो जाती है. इसकी बुवाई हरियाणा, पंजाब, गुजरात, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में होती है. प्रति एकड़ पैदावार लगभग 23 क्विंटल तक होती है. पीबीडब्ल्यू- 725हरियाणा, पंजाब, गुजरात और मध्य प्रदेश के मैदानी इलाकों में बोई जाने वाली किस्म लगभग 154 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. प्रति एकड़ उत्पादन लगभग 23 क्विंटल. ये भी पढ़ें: गया के किसान ने बदल दी कई परिवारों की जिंदगी, अब मशरूम की खेती से सभी कर रहे नियमित और अच्छी कमाई ये भी पढ़ें: उत्तर प्रदेश के 11 जिलों में ऑर्गेनिक फार्मिंग को बढ़ावा देगी योगी सरकार, 21 हजार से अधिक किसानों के साथ शुरू होगा अभियान गेहूं की बिजाई का उचित समय नवंबरजागरण संवाद केंद्र, नूंह : नवंबर शुरू होते ही किसानों की नजर अब गेहूं की बुआई पर है, जिसके लिए तेजी से खेतों की तैयारी की जा रहा है। कुछ रकबे में किसान बिजाई कर भी चुके है। फसलों को रोग मुक्त रखने के लिए किसान अगेती फसल बोने की कोशिश करते है, जिसके लिए कृषि विभाग द्वारा कई उच्च उपजी किस्में किसानों के लिए उपलब्ध कराई जा रही हैं। कृषि विभाग द्वारा किसानों को सी-306, पीबीडब्ल्यू- 343, डब्ल्यूएच- 711, पीबीडब्ल्यू- 502, पीबीडब्ल्यू- 550, 3750 आदि अगेती किस्में तथा पीबीडब्ल्यू-373 देरी वाली किस्म उपलब्ध कराई जा रही है। जिला कृषि उपनिदेशक डा. परमजीत सिंह ने कहा कि भूमि से अधिक उत्पादन लेने के लिए नियम के मुताबिक कृषि करनी चाहिए। गेहूं के उत्पादन को बढ़ाने के लिए किसान पाच नियमों का पालन करे। कृषि विभाग के मुताबिक फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए उनका सही समय पर बोना आवश्यक है। गेहूं की फसल बोने के लिए 1 से 20 नवंबर तक श्रेष्ठ समय है। हालाकि पछेती किस्मों को 25 दिसंबर तक बोया जा सकता है। बीज का उपचार जरूरी बीज को बोने से पहले उसे उपचारित करना चाहिए, ताकि दीमक से फसल को बचाया जा सके। भूमि का मृदा परीक्षण करवाया है तो उसकी आवश्यकता मुताबिक ही डीएपी तथा यूरिया आदि खाद का प्रयोग करे। भूमि की जुताई के समय 10 किलोग्राम जिंक सल्फेट डालना आवश्यक है। इसके अलावा उर्वरकों का प्रयोग एक साथ न करके निर्धारित अंतराल के बाद करना सही रहता है। अच्छी फसल लेने के लिए समय पर सिंचाई जरूरी है। गेहूं बोने के 21 दिन बाद सिंचाई अति आवश्यक है। इसके बाद 45 दिन तथा मिल्किंग स्टेज पर सिंचाई आवश्यक है। मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर
1 दिसम्बर 2021, गेहूं की पछेती बुवाई की उन्नत तकनीक – गेहूं की खेती के लिए समशीतोषण जलवायु की आवश्यकता होती है, इसकी खेती के लिए अनुकूल तापमान बुवाई के समय 20-25 डिग्री सेंटीग्रेड उपयुक्त माना जाता है, गेहूं की खेती मुख्यत सिंचाई पर आधारित होती है गेहूं की खेती के लिए दोमट भूमि सर्वोत्तम मानी जाती है, लेकिन इसकी खेती बलुई दोमट, भारी दोमट, मटियार तथा मार एवं कावर भूमि में की जा सकती है। साधनों की उपलब्धता के आधार पर हर तरह की भूमि में गेहूं की खेती की जा सकती है। खेत की तैयारीगेहूं की फसल को अच्छे और समान बीज अंकुरण के लिए एक अच्छी तरह से चूर्णित लेकिन कॉम्पैक्ट बीज-बिस्तर की आवश्यकता होती है। सिंचित क्षेत्रों में पिछली फसल की कटाई के बाद डिस्क या मोल्ड बोर्ड हल से खेत की जुताई कर दें। जहां ट्रैक्टर उपलब्ध हो, वहां एक गहरी जुताई के बाद डिस्क के साथ दो से तीन हैरोइंग करें। लेकिन जहां बैल स्रोत हो , वहां गहरी जुताई के बाद दो से तीन हैरोइंग या स्थानीय के साथ चार से पांच इंटरक्रॉस जुताई के हल चलाने के बाद पौध रोपण करें। वर्षा सिंचित क्षेत्रों में खेत की तैयारी सावधानी से की जाए क्योंकि इस पर नमी संरक्षण निर्भर करता है। खेतों को आमतौर पर एक गहरी जुताई के बाद हल और फिर तख्ती से दो से तीन बार जुताई करके स्थानीय के साथ तैयार किया जाता है। इन क्षेत्रों में शाम के समय जुताई कर दें जिससे ओस की नमी को सोखने के लिए पूरी रात का समय मिल जाता है। इसके बाद सुबह जल्दी ही प्लैंकिंग कर लें। 10-30 मीटर चौड़ाई का मध्यवर्ती क्षेत्र को अजैविक क्षेत्र से बचने के लिए रखी जाए। उन्नत किस्मेंसिंचित अवस्था में समय से बुवाई एच डी- 2967, 4713, 2851, 2894, 2687, डी बी डब्ल्यू- 17, पी बी डब्ल्यू- 550, 502, डब्ल्यू एच- 542, 896 और यू पी- 2338 आदि प्रमुख है, इनका बुवाई का उपयुक्त समय 10 नवम्बर से 25 नवम्बर माना जाता है। सिंचित अवस्था में देरी से बुवाई एच डी- 2985, डब्ल्यू आर- 544, राज- 3765, पी बी डब्ल्यू- 373, डी बी डब्ल्यू- 16, डब्ल्यू एच- 1021, पी बी डब्ल्यू- 590 और यू पी- 2425 आदि प्रमुख है, इनका बुवाई का उपयुक्त समय 25 नवम्बर से 25 दिसम्बर माना जाता है। असिंचित अवस्था में समय से बुवाई एच डी- 2888, पी बी डब्ल्यू- 396, पी बी डब्ल्यू- 299, डब्ल्यू एच- 533, पी बी डब्ल्यू- 175 और कुन्दन आदि प्रमुख है। बीज और बुवाईगेहूं की बुवाई का इष्टतम समय बढ़ते क्षेत्रों में व्यापक रूप से भिन्न होता है। यह निम्न बातों पर निर्भर करता है किस्म, मौसम की स्थिति, मिट्टी का तापमान, सिंचाई की सुविधा और भूमि की तैयारी। बारानी गेहूं की बुवाई सामान्यत: अक्टूबर के दूसरे पखवाड़े से नवम्बर की शुरुआत तक की जाती है। विशेष परिस्थितियों में दिसंबर के महीने में भी गेहूं की बुवाई की जाती है। देर से बोए गए गेहूं में, केवल कम अवधि किस्मों का प्रयोग करें। बीज दर और दूरीउपयोग की जाने वाली किस्म के साथ बीज दर भिन्न होती है। जो की बीज के आकार, अंकुरण प्रतिशत, जुताई, बुवाई का समय, मिट्टी में नमी की मात्रा और बुवाई की विधि पर भी निर्भर करता है। आमतौर पर, बीज दर 40 किलो प्रति एकड़ पर्याप्त है। सामान्य बुवाई के लिए देर से बोई जाने वाली परिस्थितियों में सोनालिका जैसी मोटे अनाज वाली किस्मों के लिए, बीज की दर बढ़ाकर 50 किलो प्रति एकड़ की जाए। यदि डिबलर द्वारा गेहूं की बुवाई करनी हो तो बीज दर 10 से 12 किलो प्रति एकड़ पर्याप्त है। सामान्य बोई गई फसल के लिए दो पंक्तियों के बीच 20 से 22.5 सेमी की दूरी रखी जाती है। बुवाई में देरी होने पर 15 से 18 सेमी की दूरी रखें। बुवाई की विधिगेहूं की बुवाई समय से एवं पर्याप्त नमी पर करें अन्यथा उपज में कमी हो जाती है। जैसे-जैसे बुवाई में बिलम्ब होता है वैसे-वैसे पैदावार में गिरावट आती जाती है, गेहूँ की बुवाई सीडड्रिल से करें तथा गेहंू की बुवाई हमेशा लाइन में करें। सयुंक्त प्रजातियों की बुवाई अक्टूबर के प्रथम पक्ष से द्वितीय पक्ष तक उपयुक्त नमी में बुवाई करें, अब आता है सिंचित दशा इसमे की चार पानी देने वाली हैं समय से अर्थात् 15-25 नवम्बर, सिंचित दशा में ही तीन पानी वाली प्रजातियों के लिए 15 नवंबर से 10 दिसंबर तक उचित नमी में बुवाई करें और सिंचित दशा में जो देर से बुवाई करने वाली प्रजातियाँ हैं वो 15-25 दिसम्बर तक उचित नमी में बुवाई करें, उसरीली भूमि में जिन प्रजातियों की बुवाई की जाती है वे 15 अक्टूबर के आस पास उचित नमी में बुवाई अवश्य कर दें, अब आता है किस विधि से बुवाई करें गेहूं की बुवाई देशी हल के पीछे लाइनों में करें या फर्टीसीडड्रिल से भूमि में उचित नमी पर करना लाभदायक है, पंतनगर सीडड्रिल बीज व खाद सीडड्रिल से बुवाई करना अत्यंत लाभदायक है। श्री विधि से बुवाईश्री विधि से गेहूं की बुवाई के लिये सबसे पहले यह ध्यान दिया जाता है कि बुवाई के समय जमीन में नमी हो क्योंकि इस विधि से बुवाई के लिए अंकुरित बीज का प्रयोग होता है। खेत में पलेवा देकर ही बुवाई करें। देसी हल या कुदाल से 20 सेमी. की दूरी पर 3 से 4 सेमी. गहरी नाली बनाते हैं और इसमें 20 सेमी. की दूरी पर एक स्थान पर 2 बीज डालते हैं, बुवाई के बाद बीज को हल्की मिट्टी से ढक देते हैं तत्पश्चात बुवाई के 2-3 दिन में पौधे निकल आते हैं। उर्वरककिसान भाइयों उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करें, गेहूं की अच्छी उपज के लिए खरीफ की फसल के बाद भूमि में 150 कि.ग्रा. नत्रजन, 60 कि.ग्रा. फास्फोरस तथा 40 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हेक्टर तथा देर से बुवाई करने पर 80 कि.ग्रा. नत्रजन, 60 कि.ग्रा. फास्फोरस, तथा 40 कि.ग्रा. पोटाश, अच्छी उपज के लिए 60 क्ंिवटल प्रति हेक्टर सड़ी गोबर की खाद का प्रयोग करें। सिंचाईगेहंू में लगभग 4 – 6 पानी लगाना पड़ता है यदि भूमि रेतीली है तो 6 – 8 पानी लगाना पड़ सकता है। उपजअसिंचित दशा में 35-40 क्विंटल प्रति हेक्टर होती है, सिंचित दशा में समय से बुवाई करने पर 55-60 क्विंटल प्रति हेक्टर पैदावार मिलती है, तथा सिंचित देर से बुवाई करने पर 40-45 क्विंटल प्रति हेक्टर तथा उसरीली भूमि में 30-40 क्विंटल प्रति हेक्टर पैदावार प्राप्त होती है। भंडारणमौसम का बिना इंतजार किये हुए उपज को बखारी या बोरो में भर कर साफ सुथरे स्थान पर सुरक्षित कर सूखी नीम कि पत्ती का बिछावन डालकर करना चहिए या रसायन का भी प्रयोग करना चाहिए।
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