Solution : शिल्प-सदस्य-(i) यहाँ कवि ने बनारस में हर काम के धीमी गति से होने को चित्रित किया है। <br> (ii) कवि यह विचार प्रकट करता है कि धीरे-धीरे होने की सामूहिक गति के कारण ही यहाँ की संस्कृति, परम्पराएँ, आस्था, विश्वास श्रद्धा आदि सब कुछ दृढ़तापूर्वक इस शहर में रचा-बसा हुआ है। <br> (iii) शब्दों का चयन सटीक एवं आकर्षक है। <br> (iv) धीरे-धीरे में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है। <br> (v) बिंब-योजना सराहनीय है। <br> (vi) वर्णन में चित्रात्मकता का गुण है। Show बनारस कविता प्रश्न-अभ्यास- Banaras Poem Questions and Answers प्रश्न 1.बनारस में वसंत का आगमन कैसे होता है और उसका क्या प्रभाव इस शहर पर पड़ता है? उत्तर- बनारस शहर में वसंत का आगमन धीरे-धीरे होता है और जब बनारस शहर में वसंत का आगमन होता है, तो संपूर्ण शहर में एक बवंडर सा छा जाता है। जिसकी धूल संपूर्ण शहर को किरकिरा कर देती है। प्रश्न 2.’खाली कटोरों में वसंत का उतरना’ से क्या आशय है? उत्तर-‘खाली कटोरों में बसंत का उतरना’ यह इस बात का प्रतीक है कि जब वसंत आता है, तो संपूर्ण बनारस शहर में एक चमक सी छा जाती है और उस चमक के कारण लोगों की भीड़ बनारस के घाट में पहुंच जाती है और घाट में बैठे भिखारी के खाली कटोरे भी पैसों से भर जाते हैं। प्रश्न 3. बनारस की पूर्णता और रिक्तता को कवि ने किस प्रकार दिखाया है? उत्तर- बनारस शहर की पूर्णता खुशी से भरे दिन को दर्शाता है कि किस तरीके से यह शहर प्रसन्नता में परिवर्तित हो जाता है, जब बसंत आता है। रिक्तता मृत शरीरों को दर्शाता है जिनका सदियों से गंगा के घाट पर ले जाकर अंतिम संस्कार किया जाता है और यह मिथकता है कि मृत व्यक्ति को गंगा के घाट में जलाने से उसके जीवन मरण की समस्या हमेशा के लिए समाप्त हो जाती है। प्रश्न 4. बनारस में धीरे-धीरे क्या होता है? ‘धीरे-धीरे’ से कवि इस शहर के बारे में क्या कहना चाहता है? उत्तर-बनारस कविता के अनुसार बनारस में सब कुछ धीमी गति से होता है। शाम धीरे-धीरे होती है, मंदिर में घंटा धीरे-धीरे बजता हैं, इस शहर के लोग धीरे धीरे चलते हैं। धीरे-धीरे से कवि इस शहर के बारे में यह बताना चाहते हैं कि इस शहर में इतनी एकता है कि सभी लोग एक सूत्र में बंधकर सभी कार्य को धैर्य के साथ धीमी गति से करते हैं। जिस कारण आज बनारस की संस्कृति, बनारस की धरोहर, सब कुछ एक स्थान पर स्थिर है। चाहे वह तुलसीदास के खड़ाऊ हो, गंगा नदी हो या नाव हो सभी धीमी गति के कारण स्थिर है। प्रश्न 5. धीरे-धीरे होने की सामूहिक लय में क्या-क्या बँधा है? उत्तर-धीरे-धीरे होने की सामूहिक लय में संपूर्ण बनारस शहर बंधा हुआ है। बंधे होने के कारण इस शहर में मजबूती है। पूजा-पाठ, रीति- रिवाज, सब कुछ वैसा का वैसा ही है, जैसे सदियों से चलता आ रहा है। इसकी वजह धीमी गति और एकता है। प्रश्न 6. सई साँझ’ में घुसने पर बनारस की किन-किन विशेषताओं का पता चलता है? उत्तर- ‘सई साँझ’ में घुसने पर बनारस की निम्नलिखित विशेषताओं का पता चलता है-
प्रश्न 7. बनारस शहर के लिए जो मानवीय क्रियाएँ इस कविता में आई हैं, उनका व्यंजनार्थ स्पष्ट कीजिए। उत्तर- बनारस शहर के लिए जो मानवीय क्रियाएँ इस कविता में आई हैं वह हैं-
प्रश्न 8. शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए- (क) ‘यह धीरे-धीरे होना …………. समूचे शहर को’ उत्तर-यहां पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का प्रयोग किया गया है। बनारस में धीमी गति से बदलाव हो रहा है, इस बात का वर्णन है। (ख) ‘अगर ध्यान से देखो ………….. और आधा नहीं है’ उत्तर- बनारस शहर अपने आप में पूर्ण नहीं है, ऐसा कवि ने यहां पर बताया है। अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है। (ग) ‘अपनी एक टाँग पर ……………. बेखबर’ उत्तर- ‘एक टांग पर’ यह मुहावरा है। अनुप्रास अलंकार का प्रयोग किया गया है। Tags: धीरे धीरे होने की सामूहिक लय में क्या क्या बंधा है?धीरे-धीरे की इस सामूहिक लय में पूरा बनारस बंधा हुआ है। यह लय इस शहर को मजबूती प्रदान करती है। धीरे-धीरे की सामूहिक लय में यहाँ बदलाव नहीं हुए हैं और चीज़ें प्राचीनकाल से जहाँ विद्यमान थीं, वहीं पर स्थित हैं। गंगा के घाटों पर बंधी नाव आज भी वहीं बँधी रहती है, जहाँ सदियों से बँधी चली आ रही हैं।
बनारस में धीरे धीरे क्या क्या होता है धीरे धीरे से कवि इस शहर के बारे में क्या कहना चाहता है?कवि के अनुसार बनारस शहर में धूल धीरे-धीरे उड़ती है, यहाँ लोग धीरे-धीरे चलते हैं, धीरे-धीरे ही यहाँ मंदिरों में घंटे बजते हैं तथा शाम भी यहाँ धीरे-धीरे होती है। कवि के अनुसार यहाँ सभी कार्य धीरे-धीरे होना इस शहर की विशेषता है। यह शहर को सामूहिक लय प्रदान करता है।
मैं स्वीकार करूं मैंने पहली बार जाना हिमालय किधर है प्रस्तुत पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए?प्रस्तुत पंक्तियों का भाव है कि मैं पहले समझता था कि मैं जानता हूँ हिमालय कहाँ है। अर्थात मुझे मालूम था कि हिमालय उत्तर दिशा में स्थित है। परन्तु बच्चे से इसके बारे में विपरीत दिशा जानकर मालूम हुआ कि जो मुझे पता है, वह तो गलत है। हर मनुष्य का सोचने-समझने का नजरिया तथा उसका यथार्थ अलग-अलग होता है।
|