हाइलाइट्स Show धनतेरस पर पंचोपचार विधि से करनी चाहिए कुबेर देव की पूजाकुबेर देव को कहा जाता है धन का देवता धनतेरस पर जरूर करें पूजाकुबेर देव की पूजा में जरूर पढ़ें कुबेर मंत्र इसके बिना अधूरी है पूजाDhanteras 2022: हिंदू धर्म में दीपावली का त्योहार बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है. इस दिन मां लक्ष्मी और गणपति की पूजा की जाती है. दीपावली को पांच पर्वों का समूह वाला त्योहार कहा गया है. क्योंकि इसमें धनतेरस, नरक चतुर्थी, दीपावली, गोवर्धन पूजा समेत यमद्वितीया जैसे पूजन सम्मिलित होते हैं. दीपावली से दो दिन पहले धनतेरस का पर्व मनाया जाता है. कहा जाए तो धनतेरस के दिन से ही दीपावली के पंचमहोत्सव की शुरुआत मानी जाती है. इस साल दीवापली 24 अक्टूबर 2022 और धनतेरस 23 अक्टूबर 2022 को पड़ेगी। धनतेरस के दिन धन के देवता धनपति कुबेर देव की पूजा की जाती है. इन्हें धन-वैभव की देवी मां लक्ष्मी का भाई माना जाता है. धनलाभ की कामना रखने वाले लोगों को मां लक्ष्मी के साथ ही कुबेर देव की पूजा भी जरूर करनी चाहिए. कुबेर देव को देवताओं के धन संपत्ति का खजांची कहा गया है. इन्हें देवताओं द्वारा धन की रक्षा करने की जिम्मेदारी प्राप्त होती है. इसलिए धनतेरस पर पूरे विधि-विधान के साथ कुबेर देव की पूजा जरूर करें. इससे धन वैभव की प्राप्ति होती है. आचार्य गुरमीत सिंह जी से जानते हैं धनतेरस पर कुबेर देव की पूजा करने की सही विधि के बारे में. यह भी पढ़ें: हनुमान जी के ये उपाय बनाएंगे आपको बलवान, दूर होंगी सभी बाधाएं ये भी पढ़ें: भगवान सूर्य को अर्घ्य देते समय करें इस मंत्र का जाप, दोगुना होगा लाभ पंचोपचार पूजन विधि से करें कुबेर देव की पूजा कुबेर मंत्र ‘यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय
धन-धान्य अधिपतये ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी| Tags: Dhanteras, Dharma Aastha FIRST PUBLISHED : October 19, 2022, 11:30 IST
कार्तिक माह (पूर्णिमान्त) की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन समुद्र-मंन्थन के समय भगवान धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिए इस तिथि को धनतेरस या धनत्रयोदशी के नाम से जाना जाता है। भारत सरकार ने धनतेरस को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया है।[1] जैन आगम में धनतेरस को 'धन्य तेरस' या 'ध्यान तेरस' भी कहते हैं। भगवान महावीर इस दिन तीसरे और चौथे ध्यान में जाने के लिये योग निरोध के लिये चले गये थे। तीन दिन के ध्यान के बाद योग निरोध करते हुये दीपावली के दिन निर्वाण को प्राप्त हुये। तभी से यह दिन धन्य तेरस के नाम से प्रसिद्ध हुआ। प्रथा[संपादित करें]धन्वन्तरि जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वन्तरि चूँकि कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है। कहीं कहीं लोकमान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें तेरह गुणा वृद्धि होती है। इस अवसर पर लोग धनियाँ के बीज खरीद कर भी घर में रखते हैं। दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं।[2] धनतेरस के दिन चाँदी खरीदने की भी प्रथा है; जिसके सम्भव न हो पाने पर लोग चाँदी के बने बर्तन खरीदते हैं। इसके पीछे यह कारण माना जाता है कि यह चन्द्रमा का प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है और मन में सन्तोष रूपी धन का वास होता है। सन्तोष को सबसे बड़ा धन कहा गया है। जिसके पास सन्तोष है वह स्वस्थ है, सुखी है, और वही सबसे धनवान है। भगवान धन्वन्तरि जो चिकित्सा के देवता भी हैं। उनसे स्वास्थ्य और सेहत की कामना के लिए संतोष रूपी धन से बड़ा कोई धन नहीं है। लोग इस दिन ही दीपावली की रात लक्ष्मी, गणेश की पूजा हेतु मूर्ति भी खरीदते हैं। web|url=https://news.jagatgururampalji.org/dhanteras-2020-hindi/%7Ctitle=Dhanteras[मृत कड़ियाँ] 2020 Hindi: जानिए धनतेरस से जुड़ी आमधारणा व अंधविश्वास के बारे में|date=2020-11-12|website=S A NEWS|language=en-US|access-date=2020-11-12}}</ref> धनतेरस की शाम घर के बाहर मुख्य द्वार पर और आंगन में दीप जलाने की प्रथा भी है। इस प्रथा के पीछे एक लोककथा है। कथा के अनुसार किसी समय में एक राजा थे जिनका नाम हेम था। दैव कृपा से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। ज्योंतिषियों ने जब बालक की कुण्डली बनाई तो पता चला कि बालक का विवाह जिस दिन होगा उसके ठीक चार दिन के बाद वह मृत्यु को प्राप्त होगा। राजा इस बात को जानकर बहुत दुखी हुआ और राजकुमार को ऐसी जगह पर भेज दिया जहाँ किसी स्त्री की परछाई भी न पड़े। दैवयोग से एक दिन एक राजकुमारी उधर से गुजरी और दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित हो गये और उन्होंने गन्धर्व विवाह कर लिया। विवाह के पश्चात विधि का विधान सामने आया और विवाह के चार दिन बाद यमदूत उस राजकुमार के प्राण लेने आ पहुँचे। जब यमदूत राजकुमार प्राण ले जा रहे थे उस वक्त नवविवाहिता उसकी पत्नी का विलाप सुनकर उनका हृदय भी द्रवित हो उठा। परन्तु विधि के अनुसार उन्हें अपना कार्य करना पड़ा। यमराज को जब यमदूत यह कह रहे थे, उसी समय उनमें से एक ने यम देवता से विनती की- हे यमराज! क्या कोई ऐसा उपाय नहीं है जिससे मनुष्य अकाल मृत्यु से मुक्त हो जाए। दूत के इस प्रकार अनुरोध करने से यम देवता बोले, हे दूत! अकाल मृत्यु तो कर्म की गति है, इससे मुक्ति का एक आसान तरीका मैं तुम्हें बताता हूं, सो सुनो। कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी रात जो प्राणी मेरे नाम से पूजन करके दीपमाला दक्षिण दिशा की ओर भेट करता है, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। यही कारण है कि लोग इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाकर रखते हैं। धन्वन्तरि[संपादित करें]धन्वन्तरि देवताओं के चिकित्सक हैं और चिकित्सा के देवता हैं, इसलिए चिकित्सकों के लिए धनतेरस का दिन बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। धनतेरस के सन्दर्भ में एक लोक कथा प्रचलित है कि एक बार यमराज ने यमदूतों से पूछा कि प्राणियों को मृत्यु की गोद में सुलाते समय तुम्हारे मन में कभी दया का भाव नहीं आता क्या। दूतों ने यमदेवता के भय से पहले तो कहा कि वह अपना कर्तव्य निभाते है और उनकी आज्ञा का पालन करते हें परन्तु जब यमदेवता ने दूतों के मन का भय दूर कर दिया तो उन्होंने कहा कि एक बार राजा हेमा के ब्रह्मचारी पुत्र का प्राण लेते समय उसकी नवविवाहिता पत्नी का विलाप सुनकर हमारा हृदय भी पसीज गया पर विधि के विधान के अनुसार हम चाह कर भी कुछ न कर सके। एक दूत ने बातों ही बातों में तब यमराज से प्रश्न किया कि अकाल मृत्यु से बचने का कोई उपाय है क्या। इस प्रश्न का उत्तर देते हुए यम देवता ने कहा कि जो प्राणी धनतेरस की संध्या यम के नाम पर दक्षिण दिशा में दीया जलाकर रखता है उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती है। इस मान्यता के अनुसार धनतेरस की संध्या लोग आँगन में यम देवता के नाम पर दीप जलाकर रखते हैं। इस दिन लोग यम देवता के नाम पर व्रत भी रखते हैं। धनतेरस के दिन दीप जलाकर भगवान धन्वन्तरि की पूजा करें। भगवान धन्वन्तरि से स्वास्थ बनाये रखने हेतु प्रार्थना करें। चाँदी का कोई पात्र व लक्ष्मी गणेश अंकित सोने-चाँदी का सिक्का कीना जाता है। दीपावली की रात भगवान श्री गणेश व देवी लक्ष्मी के लिए भोग चढ़ाया जाता है। कहा जाता है कि समुद्र मन्थन के समय भगवान धन्वन्तरि और माँ लक्ष्मी का जन्म हुआ था, यही कारण है कि धनतेरस को भगवान धन्वन्तरि और माँ लक्ष्मी की पूजा की जाती है । धनतेरस दिवाली के दो दिन पहले मनाया जाता है।[3] A सन्दर्भ[संपादित करें]
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
धनतेरस के दिन कौन से देवता की पूजा की जाती है?इस दिन धन के देवता कुबेर की भी पूजा की जाती है। धनतेरस हर साल कार्तिक मास की त्रयोदशी को मनाया जाता है। धनतेरस से कई किवदंतियां जुड़ी हुई हैं। मान्यता है कि धनत्रयोदशी के दिन ही समुद्र मंथन से माता लक्ष्मी और कुबेर के साथ स्वास्थ्य के देवता धन्वंतरि भी प्रकट हुए थे।
धनतेरस के दिन कितने दीपक जलाए जाते हैं?वहां अकाल मृत्यु नहीं होती है. धनतेरस की शाम को मुख्य द्वार पर 13 और 13 ही दीप घर के अंदर जलाने चाहिए. इस दिन मुख्य दीपक रात को सोते समय जलाया जाता है. इस दीपक को जलाने के लिए पुराने दीपक का उपयोग किया जाता है.
धनतेरस पर क्या पूजा करनी चाहिए?धनतेरस पर भगवान कुबेर और माता लक्ष्मी की भी पूजा की जाती है. इस दिन सोना, चांदी या पीतल की चीजें खरीदना बहुत शुभ माना जाता है. दीपावली के लिए गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां और अन्य पूजन सामग्री भी इसी दिन खरीद लेनी चाहिए.
धनतेरस की पूजा घर पर कैसे करें?धनतेरस की पूजा विधि -
भगवान धन्वंतरि की मूर्ति या चित्र साफ स्थान पर स्थापित करें तथा स्वयं पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएं। उसके बाद भगवान धन्वंतरि का आह्वान इस मंत्र से करें। अन्वेषित च सविधिं आरोग्यमस्य। गूढं निगूढं औषध्यरूपम्, धन्वन्तरिं च सततं प्रणमामि नित्यं।।
|