दुष्यंत की पहली पत्नी कौन थी? - dushyant kee pahalee patnee kaun thee?

संस्कृत साहित्य के महाकवि कालिदास की प्रसिद्ध रचना अभिज्ञान शकुंतलम् के नायक दुष्यंत पुरुवंशी राजा थे। एक बार मृगया का शिकार करते हुए संयोगवश वे महर्षि कण्व के आश्रम में पहुँचे। वहाँ उनका परिचय कण्व ऋषि की पोष्य दुहिता शकुंतला से हुआ। उन्होंने शकुंतला पर आसक्त होकर गंधर्व विवाह कर लिया। ऋषिकी कुछ काल तक प्रतिक्षा कर वे अपने नगर लौट गए। उन्होंने शकुंतला को निसानी स्वरूप अपनी मुद्रिका दे दी। दुष्यंत के जाने के पश्चात शकुंतला के गर्भ से एक पुत्र पैदा हुआ। वह पुत्र को लेकर दुष्यंत के पास आई। मार्ग में असावधानीवश स्नानादि के समय अंगूठी किसी सरोवर में गिर गई। दुष्यंत ने शकुंतला को स्वीकार नहीं किया। किंतु जब आकाशवाणी हुई कि तुम इसे स्वीकार करो तो दुष्यंत ने दोनो को स्वीकार कर लिया। एक दूसरे मत से एक बार दुष्यंत की स्मृति में बेसुध शकुंतला द्वारा अपनी अवहेलना से क्रुद्ध ऋषि दुर्वासा ने उसे शाप दे दिया। शापवश राजा को सब विस्मरण हो गया था। अतः शकुंतला निराश होकर लौट आई। कुछ दिनों बाद एक मछुहारे को मछली के पेट में वह अंगूठी मिली। जब वह अंगूठी राजा के पास पहुँची तो उसे समस्त घटनाओं का स्मरण हुआ। और तब शकुंतला बुलवाई गई। उसके पुत्र का नाम भरत रखा गया जो बाद में चलकर भारतवर्ष, या भारत नाम का जनक हुआ।

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हिंदी साहित्य कोष- भाग- ढजड

यह प्रसिद्ध कथा महाभारत में मिलती है। पुरुवंश के राजा दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र भरत की गणना 'महाभारत' में वर्णित 16 सर्वश्रेष्ठ राजाओं में होती है। कालिदास कृत महान संस्कृत ग्रंथ 'अभिज्ञान शाकुंतलम' के एक वृत्तांत अनुसार राजा दुष्यंत और उनकी पत्नी शकुंतला के पुत्र भरत के नाम से भारतवर्ष का नामकरण हुआ। मरुद्गणों की कृपा से ही भरत को भारद्वाज नामक पुत्र मिला। भारद्वाज महान ऋषि थे। चक्रवर्ती राजा भरत के चरित का उल्लेख महाभारत के आदिपर्व में भी है।


एक दिन राजा दुष्यंत ने वन में कण्व ऋषि के आश्रम में शकुंतला को देखा और वे उस पर मोहित हो गए। शकुंतला विश्वामित्र और मेनका की संतान थीं। दोनों ने गंधर्व विवाह किया और वन में ही रहने लगे। शकुंतला के साथ अच्छे दिन बताने के बाद राजा पुन: अपने राज्य जाने लगे और उन्होंने शकुंतला से वापस लौटकर उन्हें ले जाने का वादा किया। वे अपनी निशानी के रूप में अंगुठी देकर चले गए। एक दिन शकुंतला के आश्रम में ऋषि दुर्वासा आए। शकुंतला ने उनका उचित सत्कार नहीं किया तो उन्होंने शाप दे दिया कि जा तु जिसे भी याद कर रही है वह तुझे भूल जाएगा। गर्भवती शकुंतला ने ऋषि से अपने किए की माफी मांगी। ऋषि का दिल पिघल गया। उन्होंने कहा कि कोई निशानी तुम उसे बताओगी तो उसे याद आ जाएगा।

शकुंतला राजा से मिलने के लिए निकल गई। रास्ते में वह अंगुठी एक तालाब में गिर गई। जिसे मछली ने निकल लिया। शकुंतला राजभवन पहुंची लेकिन राजा दुष्यंत ने उन्हें पहचानने से इनकार कर दिया। राजा दुष्यंत द्वार शकुंतला के अपमान के कारण आकाश में बिजली चमकी और शकुंतला की मां मेनका उन्हें ले गयी।

उधर वो मछली एक मछुवारे के जाल में आ गयी जिसके पेट से वो अंगूठी निकली। मछुवारे ने वो उस अंगूठी को कीमती समझकर राजा दुष्यंत को भेंट दे दी। राजा दुष्यंत ने जब वह अंगुठी देखी तो उन्हें सबकुछ याद आ गया। महाराज दुष्यंत बहुत पछताए। कुछ समय बाद इंद्रदेव के निमन्त्रण पर देवो के साथ युद्ध करने के लिए राजा दुष्यंत इंद्र नगरी अमरावती गए। युद्ध के बाद वे आकाश मार्ग से वापस लौट रहे थे तभी उन्हें रास्ते में कश्यप ऋषि के आश्रम में एक सुंदर बालक को खेलते देखा। मेनका ने शकुंतला को कश्यप ऋषि के आश्रम में छोड़ा हुआ था। वो बालक शकुंतला का पुत्र ही था।

जब उस बालक को राजा दुष्यंत ने देखा तो उसे देखकर उनके मन में प्रेम उमड़ आया वो जैसे ही उस बालक को गोद में उठाने के लिए खड़े हुए तो शकुंतला की सखियों ने चेताया कि राजन आप इस बालक को छुएंगे तो इसके भुजा में बंधा काला डोरा सांप बनकर आपको डंस लेगा। राजा ने इस चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया और उस बालक को गोद में उठा लिया। लेकिन बालक को उठाते ही उसकी भुजा में बंधा काला डोरा टूट गया जो उसके पिता की निशानी थी। शकुंतला की सहेली ने सारी बात शकुंतला को बताई तो वो दौड़ती हुई राजा दुष्यंत के पास आयी। राजा दुष्यंत ने ने भी शकुंतला को पहचान लिया और अपने किए की क्षमा मांगी और उन दोनों को अपने राज्य ले गए। महाराज दुष्यंत और शकुंतला ने उस बालक का नाम भरत रखा जो आगर चलकर एक महान प्रतापी सम्राट बना।

दुष्यंत पुत्र भरत-हमारे देश में अनेक महापुरुष हुए हैं इन महापुरुषों ने अपने पर बचपन में ही ऐसे कार्य किए जिन्हें देखकर उनके महान होने का आभास होने लगा था ऐसे ही एक वीर प्रताप साहसी बालक भरत थे।

दुष्यंत की पहली पत्नी कौन थी? - dushyant kee pahalee patnee kaun thee?

होनहार बिरवान के होत चिकने पात

इस कहावत का आशय यह है कि वीर ज्ञानी और गुड़ी व्यक्ति की झलक उसके बचपन से ही दिखाई देने लगती है।

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दुष्यंत पुत्र भरत की कहानी

भरत हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत के पुत्र थे। राजा दुष्यंत एक बार शिकार खेलते हुए कण्व ऋषि के आश्रम पहुंचे वहां शकुंतला को देखकर वह उस पर मोहित हो गए और शकुंतला से आश्रम में ही गंधर्व विवाह कर लिया। आश्रम में रिसीव करने के ना होने के कारण राजा दुष्यंत शकुंतला को अपने साथ नहीं ले जा सके। उन्होंने शकुंतला को एक अंगूठी दे दी जो उनके विवाह की निशानी थी।

एक दिन शकुंतला अपनी सहेलियों के साथ बैठी दुष्यंत के बारे में सोच रही थी। उसी समय दुर्वासा ऋषि आश्रम में आए शकुंतला दुष्यंत की याद में इतनी अधिक खोई हुई थी कि उसे दुर्वासा ऋषि के आने का पता ही नहीं चला। शकुंतला ने उनका आदर सत्कार नहीं किया जिससे क्रोधित होकर दुर्वासा ऋषि ने शकुंतला को श्राप दिया कि जिसकी याद में खोए रहने के कारण तूने मेरा सम्मान नहीं किया वह तुझको भूल जाएगा।

शकुंतला की सखियों ने क्रोधित ऋषि से अनजाने में उससे हुई अपराध को छमा मांगने के लिए निवेदन किया ऋषि ने कहा मेरे श्राप का प्रभाव समाप्त तो नहीं हो सकता किंतु दुष्यंत द्वारा दी गई अंगूठी को दिखाने से उन्हें अपने विवाह का स्मरण हो जाएगा।

कण्व ऋषि जब आश्रम वापस आए तो उन्हें शकुंतला के गंधर्व विवाह का समाचार मिला उन्होंने एक गृहस्थ की हाथी अपनी पुत्री को पति के पास जाने के लिए विदा किया शकुंतला के पास राजा द्वारा दी गई हूं ठीक हो गई थी शराब के प्रभाव से राजा दुष्यंत अपने विवाह की घटना भूल चुके थे वह शकुंतला को पहचान नहीं सके निराश शकुंतला को उसकी मां मेनका के कश्यप ऋषि के आश्रम में रखा उस समय वह गर्भवती थी उसी आश्रम में दुष्यंत पुत्र भरत का जन्म हुआ।

भरत बचपन से ही वीर और साहसी थे वह उनके हिंसक पशुओं के साथ खेलते और सिंह के बच्चों को पकड़कर उनके दांत गिनते थे उनके इन निर्भीक कार्यों से आश्रम वशी उन्हें सर्वदमन कह कर पुकारते थे।

समय का चक्र ऐसा चला कि राजा को अंगूठी मिल गई जो उन्होंने शकुंतला को विवाह के प्रतीक के रूप में दी थी अंगूठी देखते ही उनको विवाह की याद ताजा हो गई।

शकुंतला की खोज में भटकते हुए एक दिन वह कश्यप ऋषि के आश्रम में पहुंच गए जहां शकुंतला रहती थी उन्होंने बालक भरत को शेर के बच्चों के साथ खेलते देखा।

राजा दुष्यंत ने ऐसे साहसी बालक को पहले कभी नहीं देखा था बालक के चेहरे पर अद्भुत तेज था दुष्यंत ने बालक भारत को उसका परिचय पहुंचा भारत ने अपना और अपनी मां का नाम बता दिय।

दुष्यंत ने भारत का परिचय जानकर उसे गले से लगा लिया और शकुंतला के पास गए अपने पुत्र एवं पत्नी को लेकर वह हसनापुर वापस लौट आए हस्तिनापुर में भारत की शिक्षा दीक्षा हुई दुष्यंत के बाद भरत राजा हुए उन्होंने अपने राज्य की सीमा का विस्तार संपूर्ण आर्यावर्त उत्तरी और मध्य भारत में कर लिया अश्वमेध यज्ञ कर उन्होंने चक्रवर्ती सम्राट की उपाधि प्राप्त की चक्रवर्ती सम्राट भरत ने राज्य में सुदृढ़ न्याय व्यवस्था और सामाजिक एकता स्थापित की।

उन्होंने सुविधा के लिए अपने शासन को विभिन्न विभागों में बैठकर प्रशासन में नियंत्रण स्थापित किया भारत की शासन प्रणाली से उनकी कीर्ति सारे संसार में फैल गई।

सिंधु के साथ खेलने वाले इस भरत के नाम पर ही हमारे देश का नाम भारत पड़ा।

भरत किसके पुत्र थे

भरत हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत के पुत्र थे।

राजा दुष्यंत के पुत्र का क्या नाम था

राजा दुष्यंत के पुत्र का नाम भरत था

राजा दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र का क्या नाम था

राजा दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र का नाम भरत था

हमारे देश का नाम भारत किसके नाम पर पड़ा

सिंधु के साथ खेलने वाले इस भारत के नाम पर ही भारत देश का नाम पड़ा

शकुंतला को दुष्यंत क्यों नहीं पहचान सके

क्योंकि दुर्वासा ऋषि ने शकुंतला को श्राप दिया था कि जिसकी याद में तुम खोई हो वह तुम्हें भूल जाएगा।

दुष्यंत पुत्र भरत के कितने पुत्र थे

भरत का विवाह 3 कन्याओं से हुआ जिन से 9 पुत्रों की प्राप्ति हुई।

दुष्यंत की कितनी पत्नी थी?

इनके तीन पत्नी कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी थी.

राजा दुष्यंत किसका बेटा था?

दुष्यंत संज्ञा पुं॰ [ सं॰ दुष्यन्त] पुरुवंशी एक राजा जो ऐति नामक राजा के पुत्र थे ।

राजा दुष्यंत की पत्नी का क्या नाम था?

संस्कृत साहित्य के महाकवि कालिदास की प्रसिद्ध रचना अभिज्ञान शकुंतलम् के नायक दुष्यंत पुरुवंशी राजा थे। एक बार मृगया का शिकार करते हुए संयोगवश वे महर्षि कण्व के आश्रम में पहुँचे। वहाँ उनका परिचय कण्व ऋषि की पोष्य दुहिता शकुंतला से हुआ। उन्होंने शकुंतला पर आसक्त होकर गंधर्व विवाह कर लिया।

राजा दुष्यंत के पुत्र का नाम क्या था?

भरत प्राचीन भारत के एक चक्रवर्ती सम्राट थे जो कि राजा दुष्यन्त तथा रानी शकुंतला के पुत्र थे अतः एक चन्द्रवंशी राजा थे।