अत: यह सामान्यत: कहा जा सकता है कि राज्य सरकार ओर स्थानीय शासन अपने पारस्परिक सम्बन्धों में एक दूसरे के ऊपर निभ्रर प्राप्त अधिकारों के सीमा के अन्दर रहते हुए बहुत कुछ स्वतंत्र हे। Show
स्थानीय स्वशासन की परिभाषास्थानीय स्वशासन की परिभाषा अनेक विद्वानों द्वारा विभिन्न रूप से दिया गया हे :-डी0एच0 कोल स्थानीय स्वशासन को प्रत्यायोजित अधिकारों का प्रयोगार्थ मानते हुए कहते हैं कि ‘‘स्थानीय स्वशासन से तात्पर्य ऐसे शासन से हैं जो एक सीमित होने के लिए कार्य करता है तथा हस्तान्तरित अधिकारों का प्रयोग करता है।’’ ग्रामीण स्थानीय स्वशासनभारत में प्राचीन काल से ही भिन्न-भिन्न नामों से पंचायती राज व्यवस्था अस्तित्व में रही है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद गांधी जी के प्रभाव से पंचायती राज व्यवस्था पर ज्यादा जोर दिया गया। 1993 में 73 वां संविधान संशोधन करके पंचायती राज व्यवस्था को संवैधानिक मान्यता देवी गई है।
1. ग्राम पंचायत -पंचायती व्यवस्था में ग्रामीण स्तर के सबसे निचले स्तर पर ग्राम पंचायत होती है। इसमें एक या एक से अधिक गाँव शमिल किये जा सकते है। ‘पंचायत’ का शब्दिक अर्थ पाँच पंचो की समिति से है। प्राचीन काल में गाँव के झगड़ों का निपटारा पाँच पंचो की समिति द्वारा किया जाता था। इसी व्यवस्था से पंचायत शब्द का जन्म हुआ। ग्राम पंचायतो का मुख्य उद्देश्य गाँवो की उन्नति करना और ग्राम वासियों का आत्म-निर्भर बनाना है। प्राय: अधिकांश राज्यो के गाँवो में एक ग्राम सभा, ग्राम पंचायत और न्याय पंचायत होती है।
2. जनपद पंचायत -ग्राम पंचायत तथा जिला परिषद् के मध्य में स्थानीय निकाय के सगंठन को ‘जनपंचायत’ कहते है। इसे विभिन्न राज्यों में विभिन्न नामों से जाना जाता है। जनपद पंचायत में उससे सम्बधित ग्राम पंचायतों के सरपंच उसके सदस्य होते है। तथा सह सदस्य केरूप में उस क्षेत्र के संसद सदस्यों तथा विधान मंडल सदस्य तथा विधान मंडल के सदस्य भी होते है। इसमें कुछ सदस्य महिलाओं, अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जन जातियों में से मनोनीत भी किये जा सकते है। जनपद पंचायत की एक प्रशासनिक इकाई होती है जिसका प्रमुख मुख्य कार्यपालन अधिकारी कहलाता है।
3. जिला-पंचायत या जिला परिषद्पंचायती राज व्यवस्था के शीर्ष पर ‘जिला-पंचायत’ होती है। यह जनपद पंचायत और ग्राम पंचायतो तथा राज्य सरकार के मध्य तालमेल बिठाने का कार्य करती है ।
नगरीय स्थानीय स्वशासननगरीय (शहरी) स्वशासन व्यवस्था के सम्बन्ध में मूल संविधान में कोई प्रावधान नहीं किया गया है। लेकिन सातवीं अनुसूची की राज्य सूची में शामिल करके यह स्पष्ट कर दिया था कि इस सम्बन्ध में कानून केवल राज्य द्वारा ही बनाया जा सकता है ।74 वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम द्वारा नगरीय स्व-शासन के सम्बन्ध में प्रावधान-संसद 74 वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम सन् 1993 द्वारा, स्थानीय नगरीय शासन को, संवैधानिक दर्जा प्रदान करने किया गया है-
1. नगर-निगम -बडें नगरों में स्थानीय स्व-शासन संस्थाओं को नगर-निगम कहते । नगर-निगम की स्थापना राज्य शासन विशेष अधिनियम द्वारा करती है। छत्तीसगढ में 08 नगर-निगम (रायपुर, दुर्ग, भिलाई, बिलासपुर, राजनांदगांव, कोरबा रायगढ़ जगदलपुर) है। सामान्यत: नगर-निगम की संरचना निर्वाचित पार्षदों राज्य सरकार द्वारा मनोनीत, क्षेत्रीय ससंद व विधायको से होती है। किन्तु निर्वाचित पार्षदों के निर्वाचित पार्षदों के अतिरिक्त अन्य सदस्यों का सामान्य परिषद् मे मत देने का अधिकार नहीं होता है। निगम का कार्य संचालन तीन प्रधिकरणों के अधीन होता है -
पार्षद पद हेतु योग्यता-
2. नगर पालिकाछोटे शहरी स्थानीय स्वशासन सस्थायें नगर पालिका कहलाती है। नगर पालिका गठन एवं उसकी कार्य शक्ति के लिए राज्य सरकार अधिनियम बनाती है ।
3. नगर-पंचायत -नगर-पंचायत नगरीय क्षेत्र की पहली स्वायत्त संस्था है। ‘नगर-पंचायत’ की व्यवस्था वहाँ की जाती है। जो संक्रमणशील क्षेत्र हों, अर्थात् ऐसे क्षेत्र जो ग्रामीण क्षेत्र से नगरीय क्षेत्र की ओर बढ रहे है। इस प्रकार ग्रामीण क्षेत्र और नगरीय के बीच की श्रेणी वाले क्षेत्र के लिए नगर पंचायतों की व्यवस्था की गई है। विभिन्न राज्यों में इनके भिन्न-भिन्न नाम दिए गये है जैसे, बिहार मे इसे ‘अधिसुचित क्षेत्र समिति’ कहा जाता है। परन्तु छत्तीसगढ में इसे ‘नगर पंचायत’ कहा जाता है। छत्तीसगढ राज्य मे कुल नगर पंचायतों की संख्या 72 है । नगर पंचायत के सदस्यों का पार्षद कहा जाता है। नगर पंचायत के प्रधान को अध्यक्ष कहा जाता है। पार्षद व अध्यक्ष का निर्वाचन, उस नगर की जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से होता है। पाषर्द अपने में से एक को उपाध्यक्ष चुनते है। नगर पंचायत का कार्यकाल पाचँ वर्ष होता है पांच वर्ष होता है पाँच वर्ष के पूर्व भी यह भगं हो सकती है किन्तु 6 माह के अंदर पनु : निर्वाचन होना आवश्यक है।
भारत में ग्रामीण स्थानीय स्वशासन का इतिहासभारत में प्राचीन काल से ही गाँव का अपना विशेष महत्व रहा है। भारतीय इतिहास के प्रत्येक खण्ड में इस तरह की प्रशासनिक व्यवस्था किसी न किसी रूप में अवश्य विद्यमान रही है। प्राचीन भारतीय शासन पद्धति के सर्वमान्य अन्वेशक प्रो0 ए0एस0 अलटेकर का यह कथन भारत में ग्राम सभा की ऐतिहासिकता को एक नवीन आयाम प्रदान करता है। ‘‘अति प्राचीन काल से ही भारत के ग्राम, शासन के घुरी रहे हैं। इनका महत्व ऐसे युग में और अधिक था जब यातायात के साधन, कारखानों तथा यंत्रों का नाम भी न था। इसमें कोई संदेह नहीं कि ग्राम ही देश के महत्वपूर्ण सामाजिक जीवन के केन्द्र थे। राष्ट्र की संस्कृति एवं समृद्धि और शासन इन्हीं पर निर्भर करते थे।’’प्राचीन कालीन ग्राम पंचायतों के बारे में स्व0 प्रधानमंत्री पं0 जवाहर लाल नेहरू ने कहा था ‘‘इन पंचायतों के पास विशाल शक्तियाँ थीं, इनके अधिकार न्यायिक और प्रशासकीय दोनों प्रकार के थे, इनके सदस्यों को दरबार में बहुत सम्मान मिलता था। पंचायतों के द्वारा ही पैदा की गयी वस्तुओं पर कर लगाया जाता था उनमें से पंचायतें ही केन्द्र सरकार को धन देती थीं। भूमि का वितरण भी पंचायतों द्वारा ही किया जाता था। इस प्रकार गाँव ही शासनतंत्र की धुरी थे। सन ् 1830 में चाल्र्स मेटकाफ ने ग्रामीण शासन के संदर्भ में लिखा था कि ‘‘जहाँ कुछ भी नहीं टिकता वहाँ वे टिके रहते हैं, राजवंश एक के पश्चात् एक नष्ट होते रहते हें। एक क्रांति के बाद दूसरी क्रांति आती हे। हिन्दू, पठान, मुगल, मराठा, सिक्ख और अंग्रेज बारी-बारी अपना शासन स्थापित करते रहे हें। किन्तु ग्राम समाज ज्यों का त्यों बने रहते हैं। संकट काल में वे स्वंय को शस्त्र सज्जित तथा अपनी-अपनी किलेबन्दी करते थे।’’ 1. आदिकाल या वैदिक काल में पंचायत -आदिकाल या वैदिक काल में पंचायत : वेदों में इसे विश: कहा गया है। यह एक समिति थी जो राजा तक का चुनाव करती थी। इसी समिति के माध्यम से प्रत्येक गाँव में एक नेता चुना जाता था जिसे ग्रामणी कहा जाता है। वेदिक साहित्य में सभा व समिति शब्द अनेक बार आया हे। यह विशेशकर सामान्य जनजीवन के नियमन की व्यवस्था को लेकर है जो एक तरह से पंचायत के ही गुण-धर्म से जुड़ा हुआ है। राजा की दृश्टि में सभा व समितियों का दर्जा पुत्री के समान था। राजा उसी भाँति उनका पोशण करें तथा उनसे अपेक्षा थी कि ये दोनों मिलकर राजा की रक्षा करें। वेदिक काल में भारत का प्रत्येक गाँव एक छोटा सा स्वायत्त राज्य था। महाभारत काल में पंचायतों का और भी स्पश्ट उल्लेख प्राप्त होता है। महाभारत के सभा पव्र में एक जगह देवर्शि नारद युधिश्ठिर से पूछते हैं कि क्या आप के गाँव के पंच लोग कर वसूलने में राजा का सहयेाग कर रहे हें।2. ब्रिटिश काल से पहले या मध्यकाल में पंचायत -यूरोपीय विद्वान इ्र0वी0 हैबल ने लिखा है कि आर्य प्रजातांत्रिक पद्धति से अपना शासन चलाते थे। प्रजातंत्र की आधार शिला ग्राम थे। प्रदेश की रक्षा और जीवनोपयोगी वस्तुओं की उपलब्धि सुगमता से हो सके, इसके लिए एक या कइ्र ग्रामों को मिलाकर एक संघ बना दिया जाता था। सारा प्रदेश राजा के अधीन होता था। जनता के प्रतिनिधियों की एक बहुत बड़ी सभा हर साल अपनी एक बैठक करती थी जिससे ग्राम परिषद के लिए पॉच सदस्य चुने जाते थे जो पृथक-पृथक रूप से समाज के पाँच आवश्यक तत्वों का प्रतिनिधित्व करते थे, ताकि ग्राम का शासन पूण्रत: आर्य पद्धति के अनुसार चलाया जा सके।कौटिल्य के अर्थशास्त्र से यह जानकारी मिलती है कि मौर्य कालीन व्यवस्था में ग्राम जीवन की महत्वपूर्ण भूमिका थी। बौद्धकाल में संघों की कार्य पद्धति का जो वर्णन मिलता है उस पर ग्राम राज की प्रथाओं की स्पष्ट छाप हे। इस काल की व्यवस्था के बारे में मैगस्थनीज का अध्ययन महत्वपूर्ण हे। उसने नगर शासन को ग्राम शासन की तर्ज का विकसित हुआ बताया है। मैगस्थनीज के अनुसार, ‘‘उस समय पंचायतें बड़े महत्व के कार्य करती थीं और पंचायतें गाँव जीवन का ही नहीं अपितु समस्त भारतीय जीवन का अंग बन चुकी थी।2 (प्राण, 2008) चाणक्य की आदर्श ग्राम संगठन की परिकल्पना गुप्त काल में फलीभूत हुइ्र जो कि भारतीय इतिहास का स्वर्ण काल माना जाता है। इस व्यवस्था में ग्राम सभाओं की भूमिका बड़ी महत्वपूर्ण थी जिसका वण्रन चीनी यात्री ºवेन सांग औरुाºयान के यात्रा वृतान्तों में मिलता है। भारत के गाँव जीवन की चर्चा करते हुए प्रसिद्ध पर्यटक ट्रैवनियर ने 17वीं सदी की भारत यात्रा में लिखा है, ‘‘प्रत्येक गाँव अपने में एक छोटा सा संसार हे। बाहर की घटनाओं का ग्राम्य जीवन पर कोइ्र प्रभाव नहीं पड़ता है। भारत का गाँव एक बड़े परिवार के समान हे जिनका हर एक सदस्य अपने कर्त्तव्यों से भली प्रकार परिचित है।’’ इतिहासकार वेवेल का मानना है कि मुस्लिम सुल्तानों ने भारत की परम्परागत ग्राम संस्थाओं का उपयोग करना ही उचित समझा। न कि उसके मूल को बदलने की कोइ्र चेश्टा की। आइने अकबरी जो मुगलकाल का महत्वपूर्ण ग्रन्थ है, उसमें भी पंचायतों के बारे में काफी जानकारी मिलती है। शेरशाह सूरी के शासन काल में भी यह विवरण मिलता हे कि गाँव सम्बन्धी सारा कार्य पंचायतें ही करती थीं और राजा उनके महत्व को बराबर स्वीकार करता था। 3. ब्रिटिश काल में पंचायत -इ्रस्ट इण्डिया कम्पनी ने पहले कलकत्ता में पैर जमाया। इसके बाद वह धीरे-धीरे पूरे भारत में अपना जालुैलाने लगी। अंग्रेजी शासकों ने छोटे-छोटे रियासतदारों को उकसाया। उन्हें कर वसूलने का अधिकार दिया। वे रियासतदार बाकायदा राज दरबार लगाते थे। इनके दरबार में भी पंच थे। कुछ रियासतों की ओर से हर गाँव में पंच मनोनीत कर दिया गया था। किसी भी प्रकार का संघर्श होने पर ये पंच ही मामले को रफा-दफा करवाते थे। पंचायतों को नियंत्रित करने के लिए अंग्रेजी शासकों ने 1860 में सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट बनाया। सन् 1870 में गव्रनर जनरल लार्ड मेयो ने स्थानीय स्वशासन के नाम पर पंचायतों को नये सिरे से विकसित करने का प्रस्ताव रखा। वश्र 1882 में लार्ड रिपन ने इन प्रस्तावों का अध्ययन करने के बाद ‘लोकल सेल्फ गव्रनमेण्ट’ को मंजूरी तो दी, लेकिन यह गवर्नमेन्ट प्रभावी नहीं हो पायी।सन्दर्भ-
स्थानीय शासन का महत्व क्या है?स्थानीय शासन जनता को सुविधाएं पहुँचाने का एक साधन है। स्थानीय शासन सफाई, सडकों, स्वास्थ्य, जल, बिजली आदि की समस्याएं हल करके जनता को सुविधाएं पहुँचाता है। जनता के लिए भी यह अधिक सुविधाजनक होता है कि उसकी समस्याएं केन्द्रीय शासन के प्रतिनिधि द्वारा हल न करके स्थानीय शासन द्वारा हल की जाए।
स्थानीय शासन का क्या अर्थ है स्थानीय शासन की आवश्यकता एवं महत्व बताइए?स्थानीय स्वशासन का अर्थ है नागरिकों का अपने ऊपर स्वयं का शासन अर्थात लोगों की अपनी शासन व्यवस्था। प्राचीन काल में स्थानीय स्वशासन विद्यमान था तथा ग्रामीण शासन प्रबन्ध न के लिए लोगों के अपने कायदे कानून होते थे। इन नियमों के पालन में प्रत्येक व्यक्ति स्वैच्छिक भूमिका निभाता था।
स्थानीय स्वशासन से क्या लाभ है?मजबूत स्थानीय स्वशासन से किसी भी प्रकार के विवादों का निपटारा गांव स्तर पर ही किया जा सकता है। स्थानीय समुदाय की नियोजन व निर्णय प्रक्रिया में भागीदारी से विकास जनसमुदाय व गांव के हित में होगा। इससे लोगों की समस्याओं का समाधान भी स्थानीय स्तर पर सबके निर्णय द्वारा होगा।
स्थानीय प्रशासन से क्या समझते हैं?स्थानीय सरकार (local government) जन प्रशासन का एक रूप है जो अधिकांश जगहों पर किसी राज्य या राष्ट्र की सबसे निचली श्रेणी की प्रशासनिक ईकाई होती है। इसके ऊपर ज़िले, प्रान्त, राज्य या राष्ट्र का प्रशासन होता है जिसे राजकीय सरकार, राष्ट्रीय सरकार, संघीय सरकार, इत्यादि नामों से जाना जाता है।
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