दिन जल्दी जल्दी ढलता है कविता में दिन का पति कौन है? - din jaldee jaldee dhalata hai kavita mein din ka pati kaun hai?

‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ कविता डॉक्टर हरिवंश राय बच्चन द्वारा लिखित एक कविता है, जो उनके ही काव्य संग्रह ‘एक गीत’ से संग्रहित की गई है। जब डॉक्टर बच्चन की पहली पत्नी श्यामा की अकाल मृत्यु हो गई थी तो मृत्यु के बाद उपजे अवसाद के बाद एक लंबे अंतराल के बाद उन्होंने काव्य सृजन करना प्रारंभ किया था और अपनी कविताओं में अपनी पत्नी के बिछोह और दर्द उकेरा है। अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद उनके मन में जो दुख, वेदना और पीड़ा उत्पन्न हो रही थी, उनके जीवन में जो एकाकीपन आ गया था, वह उन्होंने ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ कविता के माध्यम से प्रकट किया है।

इस कविता में कवि को ऐसा लगता है कि उनकी पत्नी पारलौकिक जगत से उन्हें बुला रही है और उन्हें दिशा देने का प्रयत्न कर रही है। उनकी पत्नी उन्हें कर्तव्य पथ पर निरंतर आगे बढ़ते रहने के लिए प्रेरणा दे रही है। कवि के अनुसार काल की गति बड़ी ही विलक्षण है। समय का पता ही नहीं चलता कि कब वह बीत गया यानी दिन कब ढल गया यह पता नहीं चल पाता।

कविता में यात्री के मन में अपने घर पहुंचने की जल्दी है इसीलिए वो तेजी तेजी से कदम बढ़ा रहा है। लेकिन रात बहुत ही गहरी और लंबी है और कवि को यह डर है कि कहीं जीवन पथ में कालरात्रि ना आ जाए और वह अपनी मंजिल तक ना पहुंच पाए। इसीलिए दिन भर का थका मांदा यात्री रात के गहराने से पहले ही अपनी मंजिल यानी घर यानी मंजिल तक पहुंच जाना चाहता है।
कवि ये देखता है कि पक्षी भी अपने घोषणा तक पहुंचने की जल्दी में हैं और ताकि घोंसलों में प्रतीक्षा कर रहे उनके बच्चे उनसे मिल सकें। इसी कारण उन पक्षियों के पंखों में ताजगी और स्फूर्ति की उड़ान है। यही बात कवि को भी जल्दी-जल्दी अपने मंजिल तक पहुंचने के लिए प्रेरित करती है।
अचानक से कवि निराश हो जाता है क्योंकि उसके घर में तो उसकी प्रतीक्षा करने वाला कोई नहीं है फिर वह किसके लिए जल्दी-जल्दी घर पहुंचे। इसीलिए फिर उसके कदमों में शिथिलता आ जाती है। उसका मन कुंठा से भर उठता है। उसके मन में ह्रदय उसके हृदय में वेदना उत्पन्न होती है और उसे अपनी दिवंगत पत्नी की स्मृति होने लगती है।
कवि ने यात्री और पक्षियों को प्रतीक बनाकर अपने एकाकी मन की व्यथा को इस कविता के माध्यम से प्रकट किया है।

पाठ के बारे में…

इस पाठ में हरिवंश राय बच्चन द्वारा रचित दो कविताएं ‘आत्म परिचय’ एवं ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है।’ प्रस्तुत की गई हैं।
‘आत्म परिचय’ कविता के माध्यम से कवि स्वयं को जानने की प्रक्रिया करता है। कवि के अनुसार स्वयं को जानना इस संसार को जानने से अधिक कठिन है। कवि के अनुसार समाज से व्यक्ति का नाता खट्टे मीठे अनुभव वाला होता है, लेकिन इस जगजीवन से पूरी तरह निरपेक्ष रहना संभव नहीं होता। संसार वाले चाहे मनुष्य को कितना भी ताने उलहाने व्यंग बाण दें, लेकिन वह इस संसार से पूरी तरह कट नहीं सकता। उसकी अपनी अस्मिता, अपनी पहचान और उसका परिवेश ही ये जग-संसार है। यही मनुष्य का आत्मपरिचय होता है।
दूसरी कविता ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है।’ कवि के ‘निशा-निमंत्रण’ नामक संग्रह से ली गई है। इस कविता में उन्होंने प्रकृति की दैनिक परिवर्तनशीलता और प्राणी वर्ग विशेषकर मनुष्य के धड़कते हृदय को सुनने का प्रयास किया है। उन्होंने पक्षी की क्रियायों को आधार बनाकर मनुष्य के हृदय के उद्गारों को व्यक्त करने का प्रयत्न किया है।

संदर्भ पाठ :

हरिवंशराय बच्चन, आत्मपरिचय/दिन जल्दी-जल्दी ढलता है। (कक्षा – 12, पाठ -1, हिंदी, आरोह)

 

 

हमारे अन्य प्रश्न उत्तर :

दिए गए काव्यांश की सप्रसंग व्याख्या करें। मैं और, और जग और, कहाँ का नाता, मैं बना-बना कितने जग रोज़ मिटाता; जग जिस पृथ्‍वी पर जोड़ा करता वैभव, मैं प्रति पग से उस पृथ्‍वी को ठुकराता! मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ, शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ, हों जिसपर भूपों के प्रसाद निछावर, मैं उस खंडर का भाग लिए फिरता हूँ!

अ+ अ-


हो जाय न पथ में रात कहीं,
मंजिल भी तो है दूर नहीं -
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
नीड़ों से झाँक रहे होंगे -
यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

मुझसे मिलने को कौन विकल?
मैं होऊँ किसके हित चंचल? -
यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!


कविता एक ओर जग-जीवन का भार लिए घूमने की बात करती है और दूसरी ओर मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ-विपरीत से लगते इन कथनों का क्या आशय है?


यह सही है कि ये दोनों भाव विपरीत प्रतीत होते हैं, पर कवि स्वयं को जग से जोड़कर भी और जग से अलग भी महसूस करता है। उसे यह बात भली प्रकार ज्ञात है कि वह पूरी तरह से जग-जीवन से निरपेक्ष नहीं रह सकता। दुनिया उसे चाहे कितने भी कष्ट क्यों न दे फिर भी वह दुनिया से कटकर नहीं रह सकता। वह भी इसी दुनिया का एक अंग है।

इसके बावजूद कवि जग की ज्यादा परवाह नहीं करता। वह संसार के बताए इशारों पर नहीं चलता। उसका अपना पृथक् व्यक्तित्व है। वह अपने मन के भावों को निर्भीकता के साथ प्रकट करता है और वह इस बात का ध्यान नहीं रखता कि यह जग क्या कहेगा। उसकी स्थिति तो ऐसी है-’मैं दुनिया में हूँ, पर दुनिया का तलबगार नहीं हूँ।’

दिन जल्दी जल्दी ढलता है ( सप्रसंग व्याख्या ) ( आरोह- Aroh ) Class 12th Din jaldi jaldi dhalta Hai - Easy Explained

  आरोह   Jul 19, 2021   1   24125  Add to Reading List

दिन जल्दी जल्दी ढलता है कविता में दिन का पति कौन है? - din jaldee jaldee dhalata hai kavita mein din ka pati kaun hai?

सन्दर्भ :-

प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह-भाग -2’ में संकलित कवि हरिवंश राय बच्चन द्वारा रचित कृति ‘निशा निमंत्रण’ से लिया गया है |

प्रसंग :-

हो जाए न पथ में रात कहीं,
मंजिल भी तो है दूर नहीं-
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है !

व्याख्या

इस काव्यांश में कवि ने यह बताना चाहा है की लक्ष्य को पाने के लिए बेचैन यात्री अपनी ललक में तेजी से चलता है और उसे ऐसा लगता है की मानो दिन अपनी स्वाभाविक गति से बहुत तेज़ चल रहा है |  
कवि कहता है दिन भर चलकर अपनी मंजिल पर पहुँचने वाला यात्री देखता है की अब मंजिल पास आने वाली है | 
वह अपने प्रिय के पास पहुँचने वाला है, उसे डर लगता है की कहीं चलते चलते रास्ते में रात न हो जाए | इसलिए वह प्रिय मिलन की कामना में जल्दी जल्दी कदम रखता है | इसलिए उसे ऐसा प्रतीत हो रहा है की दिन जल्दी जल्दी ढल रहा है |

प्रसंग :-

बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
नीड़ों से झाँक रहे होंगे-
यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है !

व्याख्या

इस काव्यांश में कवि अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए चिड़िया का उदाहरण देता है | चिड़ियों के माध्यम से कवि ने मानव ममता का चित्रण किया है |
कवि कहता है एक चिड़िया जब आकाश में उड़कर अपने घोंसले की ओर वापस लौट रही होती है तो उसके मन में यह ख्याल आता है की मेरे बच्चे मेरी राह देख रहे होंगे | वे घोंसले में बैठे बैठे बाहर झाँख रहे होंगे | उन्हें मेरी प्रतीक्षा होगी, जैसे ही चिड़िया को यह चिंता सताती है , उसके पंखों की गति बहुत तेज़ हो जाती है |  
वह तेज़ी से घोंसले की तरफ बढ़ती है | तब उसे लगता है मानो दिन बहुत तेज़ गति से ढलने लगा है और वह और तेज़ हो जाती है |

प्रसंग :-

मुझसे मिलने को कौन विकल?
मैं होऊँ किसके हित चंचल?
यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है !

व्याख्या

इस काव्यांश में कवि ने अपने जीवन में प्रेम की कमी के कारण विद्यमान शिथिलता और ह्रदय की व्याकुलता का वर्णन किया है |
कवि कहता है की इस दुनिया में मेरा कोई अपना नहीं है जो मुझसे मिलने के लिए व्याकुल हो | फिर मेरा चित्त किसके लिए चंचल हो ?
मेरे मन में किसके प्रति प्रेम तरंग जागे | यह प्रश्न मेरे कदमों को शिथिल कर देता है | प्रेम अभाव की बात सोचकर मैं ढीला पड़ जाता हूँ |  
मेरे ह्रदय में निराशा और उदासी की भावना आने लगती है | 
वह पुनः दोहराता है की दिन शीघ्रता से व्यतीत होता जा रहा है, ऐसे में उसमे भी अपनी मंजिल, अपने लक्ष्य तक पहुँचने की आतुरता होनी चाहिए |

दिन जल्दी जल्दी ढलता है कविता में दिन का पंथी कौन है?

अन्य शब्दों पर कार्य जारी है। दिन जल्दी-जल्दी ढलता है! यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है!

पति का जल्दी जल्दी क्यों चलता है?

पंथी जल्दी-जल्दी क्यों चलता है? पंथी इसलिए जल्दी- जल्दी चलता है कि दिन ढलने से पूर्व ही वह अपनी मंजिल पर पहुँच जाए। वह दिन ढलने से पूर्व मंजिल पर पहुँच जाना चाहता है।

दिन जल्दी जल्दी ढलता है कविता में कवि ने क्या संदेश दिया है?

व्याख्या:- कवि जीवन की व्याख्या करता है कि शाम होते देखकर यात्री तेजी से चलता है कि कहीं रास्ते में रात ना हो जाए। उसकी मंजिल समीप ही होती है इस कारण यह थकान होने के बावजूद जल्दी-जल्दी चलता है। लक्ष्य प्राप्ति के लिए उसे दिन जल्दी ढ़लता प्रतीत होता है।

दिन जल्दी जल्दी ढलता है कविता से क्या आशय है?

यह पंक्ति हमें सूचित करती है कि जीवन की घड़ियाँ भी इसी पंक्ति के समान है। हमें चाहिए कि समय का सदुपयोग करें और अपने उद्देश्य को समय के बीतने से पहले पा लें। समय निरंतर गति से चलता रहता है। यह किसी के लिए नहीं ठहरता है।