शांतिनिकेतन छोड़कर गुरुदेव कहाँ रहने लगे? - shaantiniketan chhodakar gurudev kahaan rahane lage?

Find below NCERT solutions of chapter 8 Hazari Prasad Dwivedi, Hindi created by experts of Physics Wallah. You can download solution of all chapters from Physics Wallah NCERT solutions for class 9 Hindi.

1. गुरुदेव ने शांतिनिकेतन को छोड़ कहीं ओर रहने का मन क्यों बनाया ?

उत्तर:- गुरुदेव ने निम्नलिखित कारणों से शांतिनिकेतन को छोड़कर अन्यत्र रहने का मन बनाया –
1. उनका स्वास्थ्य अच्छा नहीं था ।
2. उन्हें आराम और शांति चाहिए थी, मिलने वाले लोगो की वजह से जो सम्भव नहीं हो रहा था।

2. मूक प्राणी भी मनुष्य से कम संवेदनशील नहीं होते पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:- मूक प्राणी भी कम संवेदनशील नहीं होते हैं, उन्हें भी स्नेह की अनुभूति होती है। पाठ में रविन्द्रनाथ जी के कुत्ते के कुछ प्रसंगों से यह बात स्पष्ट हो जाती है –
1. गुरुदेव के स्पर्श को कुत्ता आँखें बंद करके अनुभव करता है, तब ऐसा लगता है मानों उसके अतृप्त मन को उस स्पर्श ने तृप्ति मिल गई हो।
2. गुरुदेव की मृत्यु के उपरांत कुत्ता अस्थिकलश के पास कुछ देर तक उदास बैठा रहता है। वह भी अन्य लोगों की तरह शोक प्रकट करता है ।

3. गुरुदेव द्वारा मैना को लक्ष्य करके लिखी कविता के मर्म को लेखक कब समझ पाया ?

उत्तर:- गुरुदेव द्वारा मैना को लक्ष्य करके लिखी कविता के मर्म को लेखक तब समझ पाए जब रविन्द्रनाथ के कहने पर लेखक ने मैना को ध्यानपूर्वक देखा।

4. प्रस्तुत पाठ एक निबंध है। निबंध गद्य-साहित्य की उत्कृष्ट विधा है, जिसमें लेखक अपने भावों और विचारों को कलात्मक और लालित्यपूर्ण शैली में अभिव्यक्त करता है। इस निबंध में उपर्युक्त विशेषताएँ कहाँ झलकती हैं ? किन्हीं चार का उल्लेख कीजिए।

उत्तर:- लेखक ने अपने भाव और विचारों को कलात्मक एवं लालित्यपूर्ण शैली में अभिव्यक्त किया है। इस विशेषता को निम्नलिखित स्थानों पर देखा जा सकता है –
1. आश्रम के अधिकांश लोग बाहर चले गए, एक दिन हमने सपरिवार उनके ‘दर्शन’ की ठानी।
2. यहाँ दुख के साथ सुख देना चाहता हूँ कि दर्शनार्थियों में कितने ही इतने प्रगल्भ थे कि समय-असमय, स्थान-अस्थान, अवस्था-अनवस्था की एकदम परवा नहीं करते और रोकते रहने पर भी आ ही जाते थे। ऐसे दर्शनार्थियों से गुरुदेव भीत-भीत रहते थे। अस्तु, मैं मय बाल-बच्चों के एक दिन श्री निकेतन जा पहुँचा।
3. उस समय लँगड़ी मैना फुदक रही थी। गुरुदेव ने कहा ”देखते हो, यह यूथभ्रष्ट है। रोज फुदकती है, ठीक यही आकर मुझे इसकी चाल में एक करुण भाव दिखाई देता है।”
4. पक्षियों की भाषा तो मैं नहीं जानता, पर मेरा निश्चित विश्वास है कि उनमेँ कुछ इस तरह कि बातें हो जाया जरती हैं –
पत्नी – ये लोग यहाँ कैसे आ गए जी ?
पति – ऊँह बेचारे आ गए हैं, तो रह जाने दो। क्या कर लेंगे।
पत्नी – लेकिन फिर इनको इतना तो ख्याल होनाचाहिए कि यह हमारा प्राइवेट घर है।
पति – आदमी जो हैं, इतनी अक्ल कहाँ।
5. प्रतिदिन प्रातः काल यह भक्त कुत्ता स्तब्ध होकर आसन के पास तब तक बैठा रहता है, जब तक अपने हाथों के स्पर्श से मैं इसका संग स्वीकार नहीं करता। इतनी सी स्वीकृति पाकर ही उसके अंग-अंग में आनंद का प्रवाह बह उठता है।

5. आशय स्पष्ट कीजिए- इस प्रकार कवि की मर्मभेदी दृष्टि ने इस भाषाहीन प्राणी की करूण दृष्टि के भीतर उस विशाल मानव-सत्य को देखा है, जो मनुष्य के अंदर भी नहीं देख पता।

उत्तर:- आशय –
कवि कहते है – गुरुदेव के स्पर्श को कुत्ता आँखें बंद करके अनुभव करता है, तब ऐसा लगता है मानों उसके अतृप्त मन को उस स्पर्श ने तृप्ति मिल गई हो। आज मनुष्य पहले कि अपेक्षा अधिक आत्मकेंद्रित हो गया है। आज मनुष्य, मनुष्य के भाव को नहीं समझ पाता है। ऐसे में कवि ने एक मूक पशु की भावनाओं का अनुभव कर लिया।

6. पशु-पक्षियों से प्रेम इस पाठ की मूल संवेदना है। अपने अनुभव के आधार ऐसे किसी प्रसंग से जुड़ी रोचक घटना को कलात्मक शैली में लिखिए।

उत्तर:- एक गाँव में एक किसान रहता था। उसके पास दो बैल थे। वह अपने बैलों को बच्चों की तरह स्नेह करता था। वह उन्हें अपनी आँखों से दूर नहीं करना चाहता था। उन्हें खाना खिलाकर ही खुद खाता था। एक बार एक बैल बीमार हो गया उसने खाना पीना छोड़ दिया। इस वजह से किसान ने भी खाना -पीना छोड़ दिया। किसान का प्यार देखकर बैल की आँखों से आँसू बहने लगे। इससे पता चलता है कि किसान अपने पशुओं से मानवीय व्यवहार करते हैं। किसान पशुओं को घर के सदस्य की भांति प्रेम करते रहे हैं और पशु अपने स्वामी के लिए जी-जान देने को तैयार रहते हैं।

   Jharkhand Board Class 9TH Hindi Notes | एक कुत्ता और एक मैना ― हजारीप्रसाद द्विवेदी  

   JAC Board Solution For Class 9TH Hindi Prose Chapter 8

           8. एक कुत्ता और एक मैना ― हजारीप्रसाद द्विवेदी


1. आज से कई वर्ष पहले गुरुदेव के मन में आया कि शान्ति-निकेतन

कहीं अन्यत्र जाएँ। स्वास्थ्य बहुत अच्छा नहीं था। शायद इसलिए, या

पता नहीं क्यों, तै पाया कि वे श्रीनिकेतन के पुराने तिमंजिले मकान

में कुछ दिन रहें। शायद मौज में आकर ही उन्होंने यह निर्णय किया

हो। वे सबसे ऊपर के तल्ले में रहने लगे। उन दिनों ऊपर तक पहुँचने

के लिए लोहे की चक्करदार सीढ़ियाँ थीं, और वृद्ध और क्षीणवपु

रवीन्द्रनाथ के लिए उस पर चढ़ सकना असंभव था। फिर भी बड़ी

कठिनाई से उन्हें वहाँ ले जाया जा सकता।


(क) गुरुदेव शांति-निकेतन क्यों छोड़ना चाहते थे?

उत्तर― गुरुदेव दर्शनार्थियों से बड़े परेशान थे। शांति-निकेतन में बहुत से दर्शनार्थी

आते थे। अंत: वे शांति-निकेतन छोड़ना चाहते थे।


(ख) शांति-निकेतन छोड़कर गुरुदेव कहाँ जाकर रहने लगे?

उत्तर― गुरुदेव शांति-नितन छोड़कर श्री निकेतन में जाकर रहने लगे।


(ग) गुरुदेव कौन थे? उनके मन में क्या बात आई?

उत्तर― गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर थें एक बार उनके मन में आया कि कुछ महीनों

के लिए शांति-निकेतन को छोड़कर और कहीं रहने चला जाए।


2. शुरू-शुरू में मैं उनसे ऐसी बाँग्ला में बात करता था, जो वस्तुतः

हिंदी-मुहावरों का अनुवाद हुआ करती थी। किसी बाहर के अतिथि

को जब मैं उनके पास ले जाता था तो कहा करता था, “एक भद्र लोक

आपनार दर्शनेर जन्य ऐसे छेन।' यह बात हिंदी में जितनी प्रचलित है,

उतनी बाँग्ला में नहीं। इसलिए गुरुदेव जरा मुस्करा देते थे। बाद में मुझे

मालूम हुआ कि मेरी यह भाषा बहुत अधिक पुस्तकीय है और गुरुदेव

ने उस 'दर्शन' शब्द को पकड़ लिया था। इसलिए जब कभी मैं

असमय में पहुँच जाता था तो वे हँसकर पूछते थे 'दर्शनार्थी लेकर आए

हो क्या?' यहाँ यह दुख के साथ कह देना चाहता हूँ कि अपने देश

के दर्शनार्थियों में कितने ही इतने प्रगल्भ होते थे कि समय-असमय,

स्थान-अस्थान, अवस्थाय-अनवस्था की एकदम परवाह नहीं करते थे

और रोकते रहने पर भी आ ही जाते थे। ऐसे 'दर्शनार्थियों से गुरुदेव

कुछ भीत-भीत से रहते थे।


(क) गुरुदेव लेखक के वचन सुनकर क्यों मुस्कुरा पड़ते थे?

उत्तर― गुरुदेव रवींद्रनाथ को लेखक के मुँह से 'दर्शनार्थी' शब्द बहुत हास्यास्पद

लगता था। 'दर्शन करने आना' जैसा प्रयोग बैंग्ला भाषा में प्रचलित नहीं

था। इसलिए इस प्रयोग पर गुरुदेव को हँसी आती थी।


(ख) गुरुदेव दर्शनार्थियों से डरे-डरे क्यों रहते थे?

उत्तर― रवींद्रनाथ टैगोर केवल दर्शन पाने की इच्छा वाले लोगों से दो कारणों से

डरे-डरे रहते थे-

(i) वे प्रायः असयम आते थे जिसके कारण रवींद्रनाथ को परेशानी होती

थी।

(ii) वे स्वयं को दर्शन की वस्तु नहीं बनाना चाहते थे, परन्तु लेख की

प्रशंसा की भी नहीं खोना चाहते थे।


(ग) गुरुदेव ने 'दर्शन' शब्द पकड़ लिया था-कथन से लेखक का क्या

अभिप्राय है?

उत्तर― गुरुदेव के पास उनकी वृद्धावस्था में बहुत से लोग उनके दर्शन हेतु आते

थे। जिनसे गुरुदेव बचना चाहते थे। अत: जब भी कोई उनसे उनका परिचित

भी मिलने आता तो वे घबराकर यही कह उठते थे कि क्या 'दर्शनार्थी'

लाए हो। अत: वे 'दर्शन' शब्द को ही पकड़कर बैठ गए।


3. मैं जब यह कविता पढ़ता हूँ तब मेरे सामने श्रीनिकेतन के तितल्ले पर

की यह घटना प्रत्यक्ष-सी हो जाती हैं । वह आँख मूंदकर अपरिसीम

आनंद, वह 'मूक हृदय का प्राणपण आत्मनिवेदन' मूर्तिमान हो जाता

है। उस दिन मेरे लिए वह एक छोटी-सी घटना थी, आज वह विश्व

की अनेक महिमाशाली घटनाओं की श्रेणी में बैठ गई है। एक आश्चर्य

की बात और इस प्रसंग में उल्लेख की जा सकती है। जब गुरुदेव की

चिताभस्म कलकत्ते (कोलकाता) से आश्रम में लाया गया, उस समय

भी न जाने किस सहज बोध के बल पर वह कुत्ता आश्रम के द्वार तक

आया और चिताभस्म के साथ अन्यान्य आश्रमवासियों के साथ शांत

गंभीर भाव से उत्तरायण तक गया। आचार्य क्षितिमोहन सेन सबके आगे

थे। उन्होंने मुझे बताया कि वह चिताभस्म के कलश के पास थोड़ी देर

चुपचाप बैठा भी रहा।


(क) लेखक ने किस घटना को आश्चर्यजनक कहा है और क्यों ?

उत्तर― लेखक ने देखा कि गुरूदेव की चिताभस्म को कोलकाता से उनके आश्रम

में लाया गया तो गुरूदेव का भक्त कुत्ता भस्म के साथ-साथ चल रहा

था। वह भी अन्य लोगों के साथ-साथ उत्तरायण दिशा तक गया। यहाँ

तक कि वह कुछ देर तक चिताभस्म के कलश के पास बैठा रहा। कुत्ते

के नम में ऐसी गहरी मानवीय सहानुभूति आश्चर्यजनक थी।


(ख) कौन-सी घटना विश्वद की महिमाशाली घटनाओं की श्रेणी में आ गई

और क्यों?

उत्तर― जब लेखक गुरुदेव द्वारा रचित कुत्ते के आत्मनिवेदन से संबंधित कविता

पढ़ता है तो उसकी आँखों के सामने एक घटना आ जाती हैं उसे याद आता

है कि कैसे गुरुदेव का भक्त कुत्ता उन्हें दो मौल की दूरी से ढूँढता-ढूँढता

तीन मंजिले मकान पर आ पहुंचा था। तब गुरुदेव ने उसकी पीठ पर स्नेह

से हाथ फेरा तो कुत्ते का रोम-रोम आनंद से पुलकित हो उठा था।


(ग) तितल्ले की कौन-सी घटना लेखक के सामने प्रत्यक्ष हो जाती है और

किस अवसर पर?

उत्तर― गुरुदेव का कुत्ता उन्हें ढूँढता-ढूँढता दो मील की दूरी पार करके उनके तीन

मंजिले मकान के तितल्ले पर आ पहुँचा था। तब गुरुदेव ने बड़े प्यार से

उसकी पीठ पर हाथ फेरा था और कुत्ते ने उसमें असीम आनंद का अनुभव

किया था। यह कुते का 'प्राणपण आत्मनिवेदन था' था। इसी पटना को

लेखक ने विश्व की महिमाशाली पटना कहा है।


4. गुरुदेव ने बातचीत के सिलसिले में एक बार कहा, "अच्छा साहय

आश्रम के कौए क्या हो गए? उनकी आवाज सुनाई ही नहीं देती?"

न तो मेरे साथी उन अध्यापक महाशय को यह खबर थी और न मुझे

ही। बाद में मैंने लक्ष्य किया कि सचमुच कई दिनों तक अश्रम में कौए

नहीं दीख रहे हैं। मैंने तब तक कौओं को सर्वव्यापक पक्षी ही समझ

रखा था। अचानक उस दिन मालूम हुआ कि ये भले आदमी भी

कभी-कभी प्रवास को चले जाते हैं या चले जाने को बाध्य होते हैं।

एक लेखक ने कौओं की आधुनिक साहित्यिकों से उपमा दी है,

क्योंकि उनका मोटो है 'मिसचीफ फार मिसचीफ सेक' (शरारत के

लिए ही शरारत) तो क्या कौओं का प्रवास भी किसी शरारत के उद्देश्य

से ही था? प्रायः एक सप्ताह के बाद बहुत कौए दिखाई दिए।


(क) कौओं के बारे में लेखक की क्या धारणा थी?

उत्तर― लेखक के अनुसार कौए सर्वव्यापक पक्षी होते हैं, लेकिन बाद में उसे ज्ञान

हुआ कि ये तो प्रवास को कभी-कभी चले जाते हैं या चले जाने को बाध्य

हो जाते हैं।


(ख) एक अन्य लेखक ने कौओं की क्या आधुनिक साहित्यिक उपमा दी

है?

उत्तर― एक अन्य लेखक ने कौओं की आधुनिक साहित्यिक उपमा देते हुए

कहा-'मिसचिफ फॉर मिसचिफ् सेक' अर्थात् शरारत के लिए शरारत।


(ग) कौए के संबंध में लेखक की कौन-सी धारणा गलत निकली?

उत्तर― कौए के बारे में लेखक ने सोचा था कि ये शायद 'सर्वव्यापक' होते हैं,

अर्थात् सब जगह हमेशा पाए जाते हैं। किंतु जब उन्हें पता चला कि कौए

भी प्रवासी पक्षी हैं तो उनकी धारणा गलत सिद्ध हो गई।


5. सो, इस प्रकार की मैना कभी करुण हो सकती है, यह मेरा विश्वास

ही नहीं था। गुरुदेव की बात पर मैंने ध्यान से देखा तो मालूम हुआ

कि सचमुच ही उसके मुख पर एक करुण भाव है। शायद यह विध

र पति था, जो पिछली स्वयंवर-सभा के युद्ध में आहत और परास्त

हो गया था। या विधवा पत्नी है, जो पिछले बिड़ाल के आक्रमण के

समय पति को खोकर युद्ध में ईषत् चोट खाकर एकांत विहार कर रही

हैं हाय, क्यों इसकी ऐसी दशा है!


(क) लेखक ने मैना को विधुर पति या आहत पत्नी क्यों माना?

उत्तर― लेखक ने देखा कि मैना घायल है। वह अकेले विहार कर रही है। उसके

मुख पर करुणा और स्वाभिमान दोनों हैं। न आँखों में धोखा खाने का क्रोध

है और न वैराग्य। इसलिए उसकी कल्पना ठीक ही है कि वह अवश्य

घायल विधवा पली है या विधुर पति है।


(ख) मैना के बारे में लेखक ने क्या-क्या कल्पनाएँ की?

उत्तर― लेखक ने लँगड़ी मैना के बारे में दो कल्पनाएँ की-

(i) पहली कल्पना यह की कि शायद यह कोई विधुर पति है जो पिछली

स्वयंवर-सभा के युद्ध में घायल और पराजित हो गया था।


(ii) दूसरी कल्पना यह की यह कोई विधवा पत्नी है, जिसका पति बिडाल

से लड़ते-लड़ते शहीद हो चुका है और वह भी थोड़ी-सी घायल होकर

अकेले दिन काट रही है।


(ग) मैना के बारे में लेखक की क्या राय थी? उन्हें किस बात पर विश्वास

नहीं हो सका?

उत्तर― मैना के बारे में लेखक की यही राय थी कि उसमें कृपा-भाव होता है।

उसके मुख पर अनुकंपा का भाव होता है। परन्तु गुरुदेव ने अकेली मैना

को लँगड़ाते हुए देखा उसके चेहरे पर करुण भव लिखा प्रतीत हुआ।

लेखक कभी यह सोच ही नहीं सकता था कि मैना में कभी करुण भाव

हो सकता है।


6. "उस मैना को क्या हो गया है, यही सोचता हूँ। क्यों वह दल से अलग

होकर अकेली रहती है? पहले दिन देखा था सेमर के पेड़ के नीचे मेरे

बगीचे में। जान पड़ा जैसे एक पैर से लँगड़ा रही हो। इसके बाद उसे

रोज सवेरे देखता हूँ-संगीहीन होकर कीड़ों का शिकार करती फिरती है।

चढ़ जाती है बरामदे में। नाच-नाचकर चहलकदमी किया करती है, मुझसे

जरा भी नहीं डरती। क्यों है ऐसी दशा इसकी ? समाज के किस दण्ड पर

उसे निार्वसन मिला है, दल के किस अविचार पर उसका मान किया है ?

कुछ ही दूरी पर और मैनाएँ बक-झक कर रही हैं, घास पर उछल-कूद

रही हैं, उड़ती फिरती हैं शिरीषवृक्ष की शाखाओं पर। इस बेचारी को ऐसा

कुछ भी शौक नहीं है। इसके जीवन में कहाँ गाँठ पड़ी है, यही सोच रहा

हूँ। सवेरे की धूप में मानो सहज मन से आहार चुगती हुई झड़े हुए पत्तों

पर कूदती फिरती है सारा दिन। किसी के ऊपर इसका कुछ अभियोग है,

यह बात बिल्कुल नहीं जान पड़ती। इसकी चाल में वैराग्य का गर्व भी तो

नहीं है, दो आग-सी जलती आँखें भी तो नहीं दिखती।" इत्यादि।


(क) मैना को देखकर लेखक के मन में क्या विचार आता है?

उत्तर― मैना को देखकर लेखक के मन में विचार आया कि वह दल से अलग

होकर अकेली क्यों है। समाज के किस दण्ड पर उसे निर्वासन मिला है

उसकी ऐसी दशा क्यों है। उसके जीवन में कहाँ गाँठ पड़ी है।


(ख) मैना दिन भर क्या करती रहती थी?

उत्तर― मैना कीड़ों का शिकार करती फिरती थी। कभी बरामदें में चढ़ जाती थी।

नाच-नाचकर चहलकदमी करती थी।


(ग) कवि को यह क्यों लगा कि मैना के जीवन में कोई गाँठ पड़ी है?

उत्तर― यह मैना सबसे अलग रहती थी अन्य मैनाएँ घास पर उछल-कूद करती,

बकझक करती, उड़ती-फिरती, शाखाओं पर बैठती पर इस बेचारी को

ऐसा कुछ भी शौक नहीं है।


                                  लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर


1. गुरुदेव ने शांति-निकेदन को छोड़ कहीं और रहने का मन क्यों

बनाया?

उत्तर― गुरुदेव के शांति-निकेतन को छोड़कर कहीं और जाने का मन संभवत:

अपने खराब स्वास्थ्य के कारण बनाया होगा या फिर किसी भवा के

वशीभूत होकर उन्होंने ऐसा किया होगा।


2. मूक प्राणी मनुष्य से कम संवेदनाशल नहीं होते। पाठ के आधार पर

स्पष्ट करें।

उत्तर― मूक प्राणी मनुष्य से कम संवेदनशील नहीं होते। यह कथन उस समय स्पष्ट

हुआ जब गुरुदेव रवींद्रनाथ शांति-निकेतन को छोड़कर श्रीनिकेतन में

आकर रहने लगे थे तब उनका कुत्ता बिना किसी के कुछ बताये

अपने-आप ही दो मील दूर अपने स्नेह-दाता के पास पहुँच गया। जब

गुरुदेव की चिताभस्म कोलकाता के आश्रम में लाई गई तब भी पता नहीं

किस सहज बोध के बल पर वह कुत्ता आश्रम के द्वार तक आया

आश्रमवासियों के साथ उनके निवास स्थान तक आया। वह थोड़ी देर

चुपचाप उन कलश के पास बैठा जिसमें गुरुदेव की चिताभस्म थी। इस

प्रकार तथ्यों से ज्ञात होता है कि मूक प्राणी भी मनुष्य से कम संवेदनशील

नहीं है।


3. गुरुदेव द्वारा मैना को लक्ष्य करके लिखी कविता के मर्म को लेखक

कब समझ पाया?

उत्तर― सर्वप्रथम लेखक ने जब उस करुण मैना को फुदकते देखा तो उसे दुख

व विषाद को वे न समझ सके किंतु रवींद्रनाथ जी उस मैना के आंतरिक

विषाद तथा दुख मर्म को जानते थे और इसीलिए उन्होंने उस मैना के मौन

दुख को अपनी कविता द्वारा वाणी प्रदान की। इस कविता को बाद में जब

लेखक ने पढ़ा तो उस मैना की करुण मूर्ति अत्यंत स्पष्ट होकर लेख के

सामने उपस्थित हुई। तब लेखक को यह एहसास हुआ कि शायद उसने

उस मैना को देखकर भी नहीं देखा। परन्तु आज कविता-पाठ के उपरांत

और मैना के अपार दुख व करुणा को देखकर लेखक गुरुदेव की मैना

संबंधी कविता के मर्म को समझ सके।


4. रवींद्रनाथ टैगोर दर्शनार्थियों से भयभीत क्यों रहते थे?

उत्तर― रवींद्रनाथ टैगोर दर्शनार्थियों की श्रद्धा को समझते थे। वह उनके मन को

ठेस नहीं पहुँचाना चाहते थे। परंतु दर्शनार्थी समय-असमय पहुँच जाया करते

थे। गुरुदेव को उनके सामने न चाहते हुए भी बैठना पड़ता था। इसलिए

वे भयभीत रहने लगे।


5. कुत्ते के 'प्राणपण आत्मनिवेदन' को गुरुदेव ने किस रूप में लिया?

उत्तर― गुरुदेव ने कुत्ते के 'प्राणपण आत्मनिवेदन' को स्वामिभक्ति के रूप में:

लेकर, आध्यात्मिक महिमा के रूप में लिया। उनके अनुसार, कुना

भक्त-हृदय है। वह मनुष्य के भीतर बसी चैतन्य शक्ति को, अलौकिक

मिहिमा को अनुभव कर सकता है। इसलिए वह चुपचाप अपने अहैतुक

प्रेम को उस पर समर्पित कर सकता है। यह आत्मा का आत्मा के प्रति

समर्पण है। इतना समर्पण तो मनुष्य के जीवन में भी कठिनाई से उतरता

है।


6. गुरुदेव ने मैना के प्रति अपनी कविता में क्या भाव व्यक्त किए?

उत्तर― गुरुदेव ने कविता में कहा कि न जाने यह मैना अपने समूह से अलग क्यों

रहती है? यह दिनभर अकेले कीड़ों का शिकार करती फिरती है और

निडरता से मेरे बरामदे में चहलकदमी किया करती है। न जाने यह समाज

से क्यो कटी हुई है? किस कारण यह सबसे रूठी हुई है? यह अन्य मैनाओं

के साथ मिलकर उछल-कूद या बक-झक नहीं करती। इसके हृदय में

कोई-न-कोई गाँठ है। परंतु न तो इसकी आँखों में किसी के प्रति शिकायत

है, न क्रोध और वैराग्य। लगता है, यह अभागी अपने यूथ से भ्रष्ट होकर

समय काट रही है।


7. "इस प्रकार कवि की मर्मभेदी दृष्टि ने इस भाषाहीन प्राणी की करुण

दृष्टि के भतीर उस विशाल मानव-सत्य को देखा है, जो मनुष्य, मनुष्य

के अंदर भी नहीं देख पाता।" आशय स्पष्ट करें।

उत्तर― प्रस्तुत पंक्ति का आशय यह है कि एक सामान्य व्यक्ति ऊपरी आवरा को

ही देख पाता है जबकि कवि अपनी दिल की गहराई को देखने वाली आँखों

से मूक-प्राणी के करुणा को पहचान और समझ लेता है। बुद्धिमान होते

हुए भी मनुष्य दूसरे मनुष्य के विषय में कुछ भी नहीं जान पाता है। कवि

मानव में पाए जाने वाले गुणों को भाषाहीन जंतुओं में ढूँढ लेता है। कहा

भी गया है कि जहाँ पहुँचे रवि, वहाँ पहुँचे कवि।


8. रवींद्रनाथ टैगोर 'दर्शनार्थी' शब्द सुनकर क्यों मुसकुराते थे?

उत्तर― जब भी कोई अपरिचित व्यक्ति लेखक के साथ रवींद्रनाथ टैगोर से मिलने

आता था, लेखक रवींद्रनाथ को यही कहता था-"एक सज्जन आपके

दर्शन के लिए आए हैं।' हिंदी में 'दर्शन' करने का आशय है 'मिलने के

लिए'। परंतु बँगला भाषा में यह शब्द अटपटा लगता था। इसका अर्थ

निकलता था-'दर्शन करने के लिए' यह सोचकर गुरुदवे को अपने पर तथा

दर्शनार्थी पर हँसी आती थी। इसलिए वे मुस्करा पड़ते थे।


9. कुत्ता दो मील की दूरी पार करके किस प्रकार गुरुदेव के तिमंजिले

मकन में पहुँच गया?

उत्तर― गुरुदेव का कुत्ता गुरुदेव के प्रति अपार भक्ति रखता था। यह भक्ति भावना

ही उसे गुरुदेव के तिमजिले मकान की ओर खींच लाई। प्रश्न यह है कि

वह बिना रास्ता जाने कैसे पहुँच गया। लेखक के अनुसार, वह अपने सहज

बोध के बल पर गुरुदेव के मकान तक पहुँच गया।


10. गुरुदेगव द्वारा कुत्ते के लिए रची गई कविता में क्या भाव थे?

उत्तर― गुरुदेव द्वारा कुत्ते के प्रति लिखी गई कविता में निम्नांकित भाव थे-

यह भक्त कुत्ता प्रतिदिन प्रात: मेरे स्नेह-स्पर्श की प्रतीक्षा में आसन के पास

बैठा रहता है। मेरा स्पर्श पाकर इसका अंग-अंग आनंदित हो जाता हैं मूक

प्राणियों के संसार में केवल यही प्राणी मनुष्यता को पहचान सकता है तथा

पूरे प्राणपण से उसके प्रति समर्पित हो सकता है। यही मनुष्यता के प्रति

निस्वार्थ प्रेम कर सकता है और अपनी दीनता को व्यक्त करता रहता है।

इसकी भाषाहीन करुण व्याकुलता जो कुछ समझ पाती है, उसे समझा नहीं

पाती।

                                                ◆◆◆

  FLIPKART

गुरुदेव ने शांतिनिकेतन को छोड़ कहाँ और रहने का मन क्यों बनाया?

गुरुदेव ने शांतिनिकेतन को छोड़ कहीं ओर रहने का मन इसलिए बनाया क्योंकि उनका स्वास्थ्य अच्छा न था। वे स्वास्थय लाभ लेने के लिए श्रीनिकेतन चले गए। उन्हें आराम और शांति चाहिए थी, मिलने वाले लोगो की वजह से जो सम्भव नहीं हो रहा था।

कुत्ता कब तक गुरुदेव के आसन के पास बैठा रहता था?

5. प्रतिदिन प्रातः काल यह भक्त कुत्ता स्तब्ध होकर आसन के पास तब तक बैठा रहता है, जब तक अपने हाथों के स्पर्श से मैं इसका संग स्वीकार नहीं करता। इतनी सी स्वीकृति पाकर ही उसके अंग-अंग में आनंद का प्रवाह बह उठता है।

कुत्ता गुरुदेव के पास कैसे पहुँच गया?

Explanation: एक कुत्ता और एक मैना' निबंध में कुत्ते का संस्मरण पढ़ने से ज्ञात होता है कि मूक प्राणी भी बहुत संवेदनशील होते हैं। वह स्वामिभक्त कुत्ता गुरुदेव का सान्निध्य पाने के लिए दो मील का अनजान रास्ता तय करके गुरुदेव के पास श्री निकेतन आ गया और गुरुदेव का प्यार भर स्पर्श पाकर आनंदित हो उठा।

रवींद्रनाथ शांतिनिकेतन से और कहीं क्यों नहीं जाना चाहते थे?

गुरुदेव ने शांतिनिकेतन को छोड़कर श्रीनिकेतन में रहने का निर्णय इसलिए लिया क्योंकि उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं था और शांतिनिकेतन में छुट्टियां भी चल रही थी। श्रीनिकेतन शांतिनिकेतन से 2 मील दूर था। इसके अतिरिक्त वे एकांत एवं आराम की आवश्यकता महसूस कर रहे थे जो मिलने वालों की लंबी कतार के कारण शांतिनिकेतन में संभव नहीं थी।