शिक्षा की प्रकृति क्या होती है? - shiksha kee prakrti kya hotee hai?

सर्वप्रथम शिक्षा को आत्म-ज्ञान एवं आत्म-प्रकाश के साधन के रूप में जाना जाता था। आवश्यकतानुसार धीरे धीरे शिक्षा का अर्थ एवं स्वरूप बदलता गया। सर्वप्रथम यूनान में मनुष्य को राजनैतिक, मानसिक, शारीरिक तथा नैतिक सौन्दर्य हेतु शिक्षा प्रदान की जाती थी। प्राचीन काल में रोम में शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ वीर सैनिक पैदा करना था। आधुनिक समय में शिक्षा ने गतिशील रूप धारण कर लिया है एवं शिक्षा को जीवनपर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया बताया गया है, जो कि शिक्षा का व्यापक अर्थ प्रकट करता है।

आधुनिक काल में शिक्षा शब्द का प्रयोग तीन रूपों में किया जाता है -

(1) ज्ञान हेतु,

(2) मानव के शरीर तथा मानसिक व्यवहार में परिवर्तन के लिए प्रक्रिया हेतु,

(3) पाठ्यचर्या के एक विषय हेतु।

शिक्षा को जब एक विषय के रूप में रखा जाता है शिक्षा-शास्त्र कहलाता है। इसके अन्तर्गत शिक्षा की प्रक्रिया के विभिन्न अंगों यथा-शिक्षक शिक्षार्थी, सामाजिक परिवेश तथा पाठ्यचर्या का विस्तृत अध्ययन किया जाता है।

शिक्षा का शाब्दिक अर्थ- शिक्षा को अंग्रेजी भाषा में एजूकेशन नाम से पुकारा जाता है, जिसकी उत्पत्ति लेटिन भाषा के तीन शब्दों ‘एडूकेटम' (Educatum), ‘एडूसियर' (Educere) एवं ‘एडूकेयर' (Educare) से हई है। 'एड्केटम' शब्द दो शब्दों 'ए' (E) तथा डूको (Duco) से मिलकर बना है। इसमें 'ए' (E) का अर्थ 'अन्दर से' एवं डूको' (Duco)

का अर्थ अग्रसर करने अथवा आगे बढ़ने से है। इस तरह एडूकेटम का अर्थ व्यक्ति का भीतर से विकास करना है। बालक की अन्तर्निहित शक्तियों को विकसित करना ही शिक्षा है। इसका अर्थ यह नहीं कि अध्यापक ज्ञान को बालक के मस्तिष्क में ठूँसकर भरे। बालक की जन्मजात शक्तियों का विकास करना ही शिक्षा है। लेटिन भाषा के ‘एडूकेयर' (Educare) का अर्थ सत करना या बाहर निकालना। ‘एडूशियर (Educere) शब्द का अर्थ है- बाहर निकालना। इन दोनों शब्दों के अर्थ क्रिया के द्योतक हैं। शिक्षा-शास्त्रियों के अनुसार 'एजूकेशन' शब्द की उत्पत्ति उपरोक्त दोनों शब्दों से मानी जाती है, इसलिए शिक्षा कोई वस्तु न होकर विकास संबंधी प्रक्रिया है।

दूसरे शब्दों में, 'शिक्षा' की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के 'शिक्ष' धातु से हुई है। 'शिक्ष' धातु में (आ) प्रत्यय लगाने से 'शिक्षा' शब्द की उत्पत्ति हुई। 'शिक्षा' शब्द से तात्पर्य 'सीखना तथा सिखाना' है। इस आधार पर शिक्षा एक प्रक्रिया है, इसमें सीखने तथा सिखाने की प्रक्रिया मानव जीवन के किसी विशेष स्तर तक ही सीमित नहीं रहती बल्कि चलती रहती है।

शिक्षा का संकुचित अर्थ- संकुचित अर्थ में शिक्षा से तात्पर्य स्कूली शिक्षा से है, जिसमें नियन्त्रित वातावरण में बालक को बिठाकर पूर्व निर्धारित अनुभवों का ज्ञान कराया जाता है। जो निश्चित अवधि में सम्पन्न होती है एवं प्रौढ़ों द्वारा निश्चित पाठ्यक्रम बनाया जाता है। शिक्षा के अर्थ में बालक का स्थान गौण एवं शिक्षक का स्थान मुख्य होता है। व्यक्ति का विद्यालयी जीवन ही शिक्षा काल होता है।"

शिक्षा के संकुचित अर्थ तथा महत्व को स्वीकार करते हुए जी.एच. थॉमसन ने कहा है "शिक्षा एक तरह का वातावरण है, जिसका प्रभाव व्यक्ति के व्यवहार में आदतों, चिन्तन तथा दृष्टिकोण पर स्थायी रूप में परिवर्तन के लिए पड़ता है।"

शिक्षा का व्यापक अर्थ- व्यापक दृष्टि से शिक्षा का अर्थ उन सभी अनुभवों से है, जिन्हें बालक विभिन्न परिस्थितियों में अर्जित करता है। इस तरह 'शिक्षा' जीवनपर्यन्त चलने की प्रक्रिया है। बालक प्राकृतिक वातावरण के साथ अनुकूलन करता है। उम्र बढ़ने के साथ ही साथ वह बालक सामाजिक तथा आध्यात्मिक वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करते समय कई अर्जित अनुभव प्राप्त करता है। इस तरह के अर्जित अनुभव शिक्षा कहलाते हैं। सीखने तथा सिखाने की प्रक्रिया लगातार चलती रहती है। व्यापक दृष्टि में व्यक्ति शिक्षक तथा शिष्य दोनों ही हैं। इस शिक्षा प्रक्रिया में व्यक्ति पर किसी तरह का अंकुश नहीं होता है। शिक्षा यापक अर्थ को स्पष्ट करते हुए प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री टी. रेमण्ट ने लिखा है, “शिक्षा विकास का वह क्रम है जो बाल्यावस्था से परिपक्वावस्था तक चलता है एवं उसमें मनुष्य अपने आपको आवश्यकतानुसार धीरे-धीरे भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक वातावरण के अनुकूल बना लेता है|" इस तरह अर्जित अनुभवों के आधार पर अपने को विभिन्न वातावरण के साथ अनुकूलन करने की क्षमता का विकास करना ही शिक्षा है।

शिक्षा के व्यापक अर्थ में शिक्षा आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है।

डम्बिल के अनुसार, “शिक्षा के व्यापक अर्थ में वे सभी प्रभाव आते हैं, जो मानव को बाल्यावस्था से लेकर मृत्युपर्यन्त तक प्रभावित करते हैं।

मैकेन्जी के अनुसार, "व्यापक अर्थ में शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है, जो जीवनपर्यन्त चलती है तथा जीवन के हर अनुभव से उसमें वृद्धि होती है।” शिक्षाशास्त्रियों के कथन से स्पष्ट है कि शिक्षा सिर्फ घर अथवा विद्यालय तक ही सीमित नहीं है, शिक्षा का क्षेत्र बहुत विस्तृत है।

लॉक का कथन भी इसी विचार की पुष्टि करता है, “जीवन ही शिक्षा है तथा शिक्षा ही जीवन है।”

शिक्षा का वास्तविक अर्थ- शिक्षा के शाब्दिक, संकुचित तथा व्यापक अर्थ से शिक्षा की वास्तविक अवधारणा स्पष्ट नहीं होती। अब प्रश्न उठता है कि हमें शिक्षा का कौन सा रूप ग्रहण करना चाहिए या नहीं। शिक्षा का शाब्दिक अर्थ स्वीकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह जरूरी नहीं कि शाब्दिक अर्थ वास्तविक अर्थ भी हो। व्यापक अर्थ में शिक्षा बहुत उदार हो जाती है, पर उससे निश्चित उद्देश्य की पूर्ति नहीं होती है। अतः शिक्षा के सही अर्थ के लिए जरूरी है कि हम सभी तरह के अर्थों को एक समवेत रूप में लेकर चलें। शिक्षा के वास्तविक अर्थ को समन्वित रूप से निम्न तरह व्यक्त किया जा सकता है-

“शिक्षा एक ऐसी सामाजिक तथा गतिशील प्रक्रिया है, जो व्यक्ति के जन्मजात गुणों का विकास करके, उसके व्यक्तित्व को निखारती है एवं सामाजिक वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करने के योग्य बनाती है। यह प्रक्रिया व्यक्ति को उसके कर्तव्यों का ज्ञान कराते हुए उसके विचार तथा व्यवहार में समाज हेतु कल्याणकारी परिवर्तन लाती है।"

शिक्षा की प्रकृति :

शिक्षा मानव विकास की पूर्ण अभिव्यक्ति है। शिक्षा के माध्यम से मानव इच्छा शक्ति की धारा पर सार्थक नियन्त्रण पाया जा सकता है। शिक्षा शब्द संग्रह या शब्द समूह की स्मृति न होकर कई शक्तियों के विकासात्मक रूप में होना चाहिए। शिक्षा से ही व्यक्ति सही रूप में न देखकर विभिन्न शक्तियों के विकास के रूप में देखा जाना चाहिए। शिक्षा द्वारा मानव सही रूप से चिन्तन करना सीखता है। तथ्यों का संग्रह करना शिक्षा नहीं है, बल्कि मन में एकाग्रता उत्पन्न करना ही शिक्षा है। शिक्षा श्रेष्ठ मानव का निर्माण करती है, चरित्र को श्रेष्ठ बनाती है, व्यक्ति को संस्कारयुक्त करती है, जो आदमी को आदमी बनाती है, सही अर्थ में वही शिक्षा है। शिक्षा के द्वारा स्वयं को पहचानने, अपनी शक्तियों को पहचानने की क्षमता का विकास होता है। शिक्षा एक साधन है, जो मानव के आन्तरिक गुणों को प्रखर करती है, उसमें जो अन्तर्निहित शक्तियाँ हैं, उनको विकसित करती है। इस बात को दूसरे शब्दों में इस तरह प्रकट किया जा सकता है कि शिक्षा बालक अथवा व्यक्ति के नैतिक,शारीरिक, संवेगात्मक मानसिक तथा अन्तर्निहित ज्ञान को बाहर लाने में अहम भूमिका अदा करने वाली एक क्रिया है। इस तरह कहा जा सकता है कि व्यक्ति के जीवन में शिक्षा ऐसा परिवर्तन लाती है, जिससे वह निरंतर उत्कृष्टता की तरफ अग्रसर हो सकता है। शिक्षा जीवनपर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है।

शिक्षा की जरूरत :

व्यक्ति को जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त तक शिक्षा की जरूरत बनी रहती है। हर क्षण उसका प्रभाव किसी न किसी रूप में अवश्य उपलब्ध रहता है। व्यक्ति का अस्तित्व बिना शिक्षा के इस तरह मालूम होता है, जैसे बगैर पतवार के नाव। हर व्यक्ति को हर क्षण तथा हर स्थान पर शिक्षा की जरूरत अनुभव होती है।

इस तरह निम्नलिखित बिन्दुओं के द्वारा शिक्षा की जरूरत को मानव जीवन से जोड़ा गया है -

(1) अन्तर्निहित शक्तियों के समुचित विकास हेत्।

(2) प्रत्येक प्राणी की अन्तर्निहित शक्तियों को समझने हेतु।

(3) मानवीय गुणों के संचार के लिए।

(4) प्राचीन संस्कृति एवं सभ्यता को समझने के लिए।

(5) राष्ट्रीय एकता एवं अन्तर्राष्ट्रीय भावना के विकास के लिए।

(6) व्यक्ति में सहयोग, प्रेम, सहानुभूति, करुणा, बलिदान, न्यायप्रियता एवं समाजसेवा आदि की भावना के विकास हेतु शिक्षा अत्यधिक आवश्यक है।

(7) व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक विकास के लिए।

(8) आधुनिक समाज की प्रकृति, आवश्यकताओं तथा कर्तव्यों के ज्ञान के लिए।

(9) अपनी विभिन्न आवश्यकताओं की समुचित सन्तुष्टि के लिए।

इस तरह मानव जीवन के हर क्षेत्र में शिक्षा का अत्यन्त महत्वपूर्ण योगदान है। अपितु शिक्षा की तरफ ध्यान आकर्षित करने में ही हमारा कार्य पूर्ण नहीं हो जाता, हमें शिक्षा के स्वरूप को परिष्कृत करके लागू करना चाहिए।

शिक्षा की प्रकृति का क्या अर्थ है?

शिक्षा की प्रकृति (Shiksha ki Prakriti) के अध्ययन से पता चलता है कि शिक्षा मनुष्य के जीवन का एक मुख्य अंग है। मनुष्य को अपने इतिहास को संभाल कर रखने के लिए शिक्षित होना आवश्यक है। शिक्षा मनुष्य का सर्वांगीड़ विकास करती है। शिक्षा के माध्यम से ही मनुष्य अपनी संस्कृति से जुड़ा हुआ है।

शिक्षा की परिभाषा क्या है?

शिक्षा किसी समाज में सदैव चलने वाली वह सोद्देश्य सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा मनुष्य की जन्मजात शक्तियों का विकास, उसके ज्ञान, एवं कला - कौशल में वृद्धि तथा व्यवहार में परिवर्तन किया जाता है और इस प्रकार उसे सभ्य, सुसंस्कृत एवं योग्य नागरिक बनाया जाता है। इसके द्वारा व्यक्ति एवं समाज दोनों निरन्तर विकास करते है।

शिक्षा का उद्देश्य क्या है?

शिक्षा मनुष्य के भीतर अच्छे विचारों का निर्माण करती है, मनुष्य के जीवन का मार्ग प्रशस्त करती है। बेहतर समाज के निर्माण में सुशिक्षित नागरिक की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। इंसानों में सोचने की शक्ति होती है इसलिए वो सभी प्राणियों में श्रेष्ठ है लेकिन अशिक्षित मनुष्य की सोच पशु के समान होती है।

शिक्षा का क्या महत्व है?

शिक्षा हम सभी के उज्ज्वल भविष्य के लिए एक बहुत ही आवश्यक साधन है। हम अपने जीवन में शिक्षा के इस साधन का उपयोग करके कुछ भी अच्छा प्राप्त कर सकते हैं। शिक्षा का उच्च स्तर लोगों की सामाजिक और पारिवारिक सम्मान तथा एक अलग पहचान बनाने में मदद करता है। इन्हीं सब कारणों की वजह से शिक्षा हमारे जीवन में इतना महत्व रखती है।