हिंदू धर्म में पितृपक्ष यानी श्राद्ध का बड़ा महत्व है। पितृपक्ष को लेकर तरह-तरह की मान्यताएं प्रचलित हैं। शास्त्रों के अनुसार, पितृपक्ष में कोई भी मांगलिक कार्य या अनुष्ठान नहीं किया जाता है। ये समय पितरों की आत्मा की शांति के लिए समर्पित होता है। मान्यताओं के अनुसार श्राद्ध के 16 दिनों तक कोई भी नए सामान खरीदने की मनाही होती है। ऐसा करने से हमारे पुरखे नाराज हो सकते हैं।खरीददारी के अलावा बहुत से लोगों के मन में यह सवाल भी उठता है कि पितृपक्ष के दौरान भगवान की पूजा करना चाहिए या नहीं, आइए जानें- Show शास्त्रों के अनुसार पितृपक्ष के दौरान पितर पृथ्वी पर वास करते हैं। ऐसे में इस दौरान पितरों की पूजा करना बेहद कल्याणकारी माना गया है। लेकिन क्या पितृपक्ष के दौरान देवी-देवता की पूजा करनी चाहिए या नहीं? शास्त्रों के अनुसार पितर पक्ष में प्रतिदिन की तरह ही पूजा करनी चाहिए। हालांकि इस दौरान पितर हमारे पूजनीय अवश्य हैं लेकिन ईश्वर से उच्च नहीं है। इसीलिए इस दौरान हमें देवी-देवता की पूजा करनी चाहिए। यह भी पढ़ें
वास्तु-शास्त्र के मुताबिक, घर के मंदिर में कभी भी देवी-देवताओं की तस्वीर के साथ पूर्वजों या दिवगंत परिजनों की तस्वीर न लगाएं। यदि आप ऐसा करते हैं तो आपके घर में नकारात्मक ऊर्जा का वास होता है। वास्तु-शास्त्र के अनुसार पितरों की तस्वीर का मुख हमेशा घर में दक्षिण दिशा की तरफ रखें। इसके अलावा, घर में पितरों की एक से अधिक तस्वीर नहीं होनी चाहिए। पितृपक्ष के दौरान पूजा करने की कोई विशेष विधि या कोई शुभ मुहूर्त नहीं होता। आप अन्य दिनों की तरह ही श्राद्ध में भी नियमित रूप से सुबह-शाम देवी-देवताओं की पूजा कर सकते है।मान्यता है कि इस दौरान पूजा-पाठ बंद करने से पितरों के निमित्त किए गए श्राद्ध का पूर्ण फल नहीं मिलता। इसलिए पितृ पक्ष में पूजा-पाठ करते रहें। Pitra Paksha Me Puja Karna Chahiye Ki Nahi: आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन से पितृपक्ष की शुरुआता हो गई है, जो कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को समाप्त होती है. इस दौरान पितरों की आत्मा की शांति के लिए उनका तर्पण और पिंडदान किया जाता है. धार्मिक मान्यता अनुसार पितृपक्ष में सभी प्रकार के मांगलिक व शुभ कार्य वर्जित होते हैं. शास्त्रों में देवी-देवताओं की पूजा के साथ पूर्वजों की पूजा वर्जित है. ऐसे में अब सवाल उठता है कि पितृपक्ष में देवी-देवताओं की पूजा करनी चाहिए या नहीं, आइए जानते हैं इसके बारे में... देवी-देवता की पूजा करनी चाहिए कि नहीं इन बातों का रखें ख्याल
पितृपक्ष में कैसे करें पितरों का श्राद्ध ये भी पढ़ेंः Pitru Paksha: पितृदोष से मुक्ति के लिए करें ये पाठ, जानिए पितरों को प्रसन्न करने के उपाय (disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और विभिन्न जानकारियों पर आधारित है. zee media इसकी पुष्टि नहीं करता है.) उत्तर : पूजा और आरती शब्द से पहले संध्यावंदन और संध्योपासना शब्द प्रचलन में था। संधिकाल में ही संध्यावंदन करने का विधान है। वैसे संधि 8 वक्त की होती है जिसे 8 प्रहर कहते हैं। 8 प्रहर के नाम : दिन के 4 प्रहर- पूर्वाह्न, मध्याह्न, अपराह्न और सायंकाल। रात के 4 प्रहर- प्रदोष, निशिथ, त्रियामा एवं उषा। उषाकाल और सायंकाल में संध्यावंदन की जाती है। संध्यावंदन के समय मंदिर या एकांत में शौच, आचमन, प्राणायामादि कर गायत्री छंद से निराकार ईश्वर की प्रार्थना की जाती है। वेदज्ञ और ईश्वरपरायण लोग इस समय प्रार्थना करते हैं। ज्ञानीजन इस समय ध्यान करते हैं। भक्तजन कीर्तन करते हैं। पुराणिक लोग देवमूर्ति के समक्ष इस समय पूजा या आरती करते हैं। तब सिद्ध हुआ कि संध्योपासना या हिन्दू प्रार्थना के 4 प्रकार हो गए हैं- 1. प्रार्थना-स्तुति, 2. ध्यान-साधना, 3. कीर्तन-भजन और 4. पूजा-आरती। व्यक्ति की जिसमें जैसी श्रद्धा है, वह वैसा ही करता है। घर में पूजा का प्रचलन : कुछ विद्वान मानते हैं कि घर में पूजा का प्रचलन मध्यकाल में शुरू हुआ, जबकि हिन्दुओं को मंदिरों में जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। कई मंदिरों को तोड़ दिया गया था। हालांकि घर में पूजा करने से किसी भी प्रकार का कोई दोष नहीं। घर में पूजा नित्य-प्रतिदिन की जाती है और मंदिर में पूजा या आरती में शामिल होने के विशेष दिन नियुक्त हैं, उसमें भी प्रति गुरुवार को मंदिर की पूजा में शामिल होना चाहिए। घर में पूजा करते वक्त कोई पुजारी नहीं होता जबकि मंदिर में पुजारी होता है। मंदिर में पूजा के सभी विधान और नियमों का पालन किया जाता है, जबकि घर में व्यक्ति अपनी भक्ति को प्रकट करने के लिए और अपनी आत्मसंतुष्टि के लिए पूजा करता है। लाल किताब के अनुसार घर में मंदिर बनाना आपके लिए अहितकारी भी हो सकता है। घर में यदि पूजा का स्थान है तो सिर्फ किसी एक ही देवी या देवता की पूजा करें जिसे आप अपना ईष्ट मानते हैं। गृहे लिंगद्वयं नाच्यं गणेशत्रितयं तथा। शंखद्वयं तथा सूर्यो नार्च्यो शक्तित्रयं तथा।। द्वे चक्रे द्वारकायास्तु शालग्राम शिलाद्वयम्। तेषां तु पुजनेनैव उद्वेगं प्राप्नुयाद् गृही।। अर्थ- घर में 2 शिवलिंग, 3 गणेश, 2 शंख, 2 सूर्य, 3 दुर्गा मूर्ति, 2 गोमती चक्र और 2 शालिग्राम की पूजा करने से गृहस्थ मनुष्य को अशांति होती है। क्या पितृ पक्ष में भगवान की पूजा करनी चाहिए?शास्त्रों के अनुसार पितर पक्ष में प्रतिदिन की तरह ही पूजा करनी चाहिए। हालांकि इस दौरान पितर हमारे पूजनीय अवश्य हैं लेकिन ईश्वर से उच्च नहीं है। इसीलिए इस दौरान हमें देवी-देवता की पूजा करनी चाहिए।
क्या पितृ पक्ष में भगवान की पूजा नहीं की जाती है?घर के पूर्वजों की पूजा भगवान के साथ नहीं करना चाहिए। हमारे हिन्दू धर्म में मृत पूर्वजों को पितृ माना जाता है। पितृ को पूजनीय अवश्य माना जाता है और इसमें कोई संशय भी नहीं है, लेकिन भगवान के साथ पितरों की पूजा का विधान नहीं है। हिन्दू धार्मिक ग्रन्थ क्र अनुसार प्रतिदिन भगवान की पूजा अर्चना करना चाहिए।
पित्र पक्ष में क्या क्या नहीं करना चाहिए?पितर पक्ष में क्या क्या नहीं करना चाहिए. पितृ पक्ष में मांस, मदिरा, अंडा, शराब बीड़ी, सिगरेट आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।. पितृ पक्ष के दौरान चना या फिर चने से बनी चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।. पितृ पक्ष में पितरों को भी श्राद्ध में चने की दाल, चने और चने से बना सत्तू आदि का उपयोग अशुभ माना जाता है।. पितृपक्ष में कौन कौन से काम वर्जित रहते हैं?न करें लहसुन-प्याज का सेवन. मांस-मदिरा से रहें दूर पितृपक्ष में मांसाहारी भोजन और शराब का भी सेवन नहीं करना चाहिए. ... . जमीन से उगने वाली सब्जियां न खाएं पितृपक्ष के दौरान जमीन से उगने वाली सब्जियां जैसे कि मूली, अरबी आलू आदि का सेवन निषेध होता है. ... . न करें चने का सेवन ... . नहीं करना चाहिए मसूर की दाल का सेवन. |