सेक्स के लिए लड़की की सही उम्र क्या है? - seks ke lie ladakee kee sahee umr kya hai?

कहा जा रहा है कि भारत सरकार ने सहमति से सेक्स की आयु सीमा घटाकर 16 साल करने पर सहमति दे दी है. दिल्ली गैंगरेप के बाद जारी बलात्कार विरोधी अध्यादेश में इसे बढ़ाकर 18 साल कर दिया गया था.

सहमति से सेक्स की आयु बढ़ाकर 18 साल किए जाने ने भारत को पुरातनपंथी देशों की जमात में खड़ा कर दिया था क्योंकि दुनिया का औसत करीब 16 साल है.

कई लोगों को मानना है कि सहमति की उम्र 18 किया जाना खतरों से खाली नहीं था.

भारत विभिन्न वर्गों और समुदायों वाला समाज है और अलग जाति, वर्ग, धर्म के लड़के-लड़की के बीच संबंध से यहां हिंसा भड़क सकती है.

शादी से पहले सेक्स को अब भी हौवा माना जाता है.

इसके बावजूद भारतीय युवा यौन मामलों को लेकर जितने सक्रिय अब हैं पहले कभी नहीं रहे. इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज और द पॉपुलेशन काउंसिल ने 2007 में इस विषय पर एक अध्ययन किया है.

इस अध्ययन के अनुसार 15 से 24 साल के प्यार करने वाले लड़के-लड़कियों में से 42% लड़कों और 26% लड़कियों ने अपने साथी के साथ सेक्स किया है.

कई लोगों को लगता है कि सहमति से सेक्स की आयु बढ़ाने से लड़की के नाराज़ मां-बाप की शिकायत पर सुधार गृह लड़कों से भर जाएंगे.

पिछले साल दिल्ली में एक जज ने अंदेशा जताया था कि ऐसे किसी कदम से, “लड़की की सहमति होने के बाद भी उसके परिवार की शिकायत पर लड़कों के खिलाफ़ मामलों की बाढ़ आ सकती है.”

वकील और महिला अधिकारों की प्रमुख प्रवक्ता फ़्लाविया एग्नेस कहती हैं कि भारत में एक तिहाई बलात्कार के मामले लड़की के परिजनों द्वारा ऐसे लड़कों के खिलाफ़ दर्ज करवाए जाते हैं जिनके साथ उनकी लड़की ने सहमति से सेक्स किया है.

वकील वृंदा ग्रोवर कहती हैं, “सहमति से सेक्स की उम्र 18 साल करने से समाज को ऐसे लड़कों की ज़िंदगी पर ज़्यादा नियंत्रण मिल जाता है जो किसी लड़की के साथ सहमति से संबंध बनाते हैं.”

सेक्स के लिए सहमति की उम्र बढ़ाने के अन्य दुर्भाग्यपूर्ण परिणाम भी हो सकते हैं.

कई युवा जोड़े घर से भागते हैं तो तुरंत शादी करने की कोशिश करते हैं क्योंकि माना जाता है कि इससे उन्हें कानूनी रूप से सेक्स की इजाज़त मिल जाती है. इनमें से ज़्यादातर शादियां जल्द ही टूट जाती हैं क्योंकि वो इसके लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं होते.

15 से 18 साल की लड़कियों का बड़े पैमाने पर शादी के लिए अपहरण भी होता है.

सहमति से सेक्स के लिए बड़ी उम्र की वकालत करने वाले कहते हैं कि 18 साल से कम उम्र के बच्चे यौन संबंधों को संभालने के काबिल नहीं होते.

वो ये भी कहते हैं कि सहमति से सेक्स की उम्र बढ़ाने से व्यापक बाल यौन शोषण, किशोरावस्था में मां बनने, मानव तस्करी, बलात्कार और विवादास्पद “पश्चिमी देशों के भ्रष्ट प्रभाव” पर नियंत्रण किया जा सकता है.

भारत के 122 साल से भी पुराने सहमति से सेक्स की उम्र वाले कानूनों में उम्र को 10 साल से बढ़ाकर 18 साल किया गया है. पहले बाल विवाह और बाद में बलात्कार और किशोरावस्था में मां बनने पर नियंत्रण करना इसका उद्देश्य रहा.

लेकिन राष्ट्रीय जनसंख्या नीति के अनुसार आज भी 50% से ज़्यादा लड़कियों की शादी 18 साल से कम उम्र में हो जाती है.

शोधकर्ता पल्लवी गुप्ता कहती हैं कि शादी और सहमति से सेक्स की आयु एक ही कर देना “इस उम्र से छोटी लड़कियों को किसी भी तरह की यौन आज़ादी से महरूम करना है.”

साफ़ है कि भारत को अपनी बच्चों के सरंक्षण के लिए सहमति के लिए सेक्स की उम्र बढ़ाने के बजाय बाल विवाह को रोकने की ज़रूरत ज़्यादा है

केंद्र सरकार ने देश में समाज सुधार से जुड़ा बड़ा कदम उठाया है. केंद्रीय कैबिनेट ने लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 21 वर्ष करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. यानी अब लड़कों की तरह ही लड़िकयों की शादी की आधिकारिक उम्र 21 साल होने जा रही है.

भारत में किसी को बालिग कहे जाने की उम्र 18 साल है लेकिन शादी के मामले में लड़कों की न्यूनतम उम्र 21 साल और लड़कियों की उम्र 18 साल ही रखी गई थी. अब केंद्रीय कैबिनेट ने विवाह के लिए लड़कियों की उम्र भी 21 वर्ष किए जाने के विधेयक को मंजूरी दे दी है. मौजूदा सत्र में ही सरकार इस विधेयक को पेश करेगी. 

विवाह की उम्र में 43 साल बाद बदलाव

देश में विवाह की उम्र में ये बदलाव 43 साल बाद किया जा रहा है. इससे पहले 1978 में ये बदलाव किया गया था. तब 1929 के शारदा एक्ट में संशोधन किया गया और शादी की उम्र 15 से बढ़ाकर 18 वर्ष की गई थी.

लड़कियों के विवाह की उम्र 21 वर्ष किए जाने की घोषणा प्रधानमंत्री मोदी ने वर्ष 2020 में लालकिले से की थी. उसी घोषणा पर सरकार अब आगे बढ़ी है. लड़कियों के विवाह की न्यूनतम उम्र क्या होनी चाहिए, इस पर जया जेटली की अध्यक्षता में एक टास्क फोर्स का गठन किया गया था. 

महिला प्रतिनिधियों से भी बातचीत

10 सदस्यों की टास्क फोर्स ने जाने-माने स्कॉलर्स, कानूनी विशेषज्ञों और नागरिक संगठनों के नेताओं से सलाह ली थी. वेबिनार के जरिए देश की महिला प्रतिनिधियों से भी बातचीत की थी. इसी टास्क फोर्स ने दिसंबर 2020 में अपनी रिपोर्ट नीति आयोग को दी थी. टास्क फोर्स का ही सुझाव था कि लड़कियों की शादी की उम्र 21 वर्ष होनी चाहिए.

सरकार के इस कदम का फायदा देश की करीब साढ़े 4 करोड़ से ज्यादा लड़कियों को होगा. 2011 में हुई जनगणना के हिसाब से देश में 18 वर्ष के उम्र की करीब 1 करोड़ 29 लाख लड़कियां हैं.

करीब 1 करोड़ लड़कियों की उम्र 19 साल है जबकि करीब 1 करोड़ 39 लाख लड़कियों की उम्र 20 साल है. देश में 21 वर्ष की करीब 1 करोड़ 94 लाख से ज्यादा लड़कियां हैं.

कुल मिलाकर देखें तो देश में 18 से 21 वर्ष की लड़कियों की संख्या 4 करोड़ 64 लाख है. लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाने की मांग पिछले काफी समय से की जा रही थी. 

क्या बोले समाजशास्त्री?

समाजशास्त्रियों का मानना है कि शादी की उम्र कम होने से, कम उम्र में लड़कियां मां बनती हैं, जिससे मां और बच्चे की सेहत पर काफी बुरा असर पड़ता है. कम उम्र में शादी होने से मातृ मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर बढ़ जाती है. कम उम्र में शादी होने से लड़कियों की शिक्षा और जीवन स्तर पर भी बुरा असर पड़ता है.

The Registrar General And Census Commissioner of India की 2018 की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश की 2.3 प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 वर्ष तक पहुंचने से पहले ही कर दी जाती है. इस मामले में देश के गांवों की स्थिति शहरों के मुकाबले ज्यादा खराब है.  

गांवों की 2.6 प्रतिशत लड़कयों की शादी 18 वर्ष से पहले कर दी जाती है. वहीं शहरों की 1.6 प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 वर्ष तक पहुंचने से पहले हो जाती है.

इस मामले में सबसे खराब रिकॉर्ड पश्चिम बंगाल का है जहां पर 3.7 प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 वर्ष तक पहुंचने से पहले हो जाती है. 33.2 प्रतिशत लड़कियां ऐसी भी हैं जिनकी शादी 18 से 20 की उम्र में होती है.

बाल विवाह के लगातार बढ़ रहे हैं आंकड़े

देश में लड़कियों की शादी की उम्र भले ही 21 वर्ष करने की तैयारी हो रही है लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत में बाल विवाह के मामले 50 प्रतिशत तक बढ़े हैं. बाल विवाह यानी 18 वर्ष से कम उम्र में शादी हो जाना है. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक साल 2020 में बाल विवाह के 785 मामले दर्ज किए गए थे.  ये आंकड़ा वर्ष 2019 के मुकाबले 50 प्रतिशत अधिक था. 

साल 2019 में बाल विवाह की 523 शिकायतें आई थीं. बाल विवाह के सबसे ज्यादा केस कर्नाटक में दर्ज किए गए हैं, पिछले 5 सालों की रिकॉर्ड देखें तो 2015 से 2020 तक बाल विवाह की शिकायतों में बढ़ोतरी हुई है.

2015 में बाल विवाह के 293, 2016 में 326, 2017 में 395, 2018 में 501, 2019 में 523 और 2020 में 785 केस दर्ज हुए हैं. ये आंकड़े एक नजरिए से अच्छी खबर हैं क्योंकि इससे पता चलता है कि लोग जागरुक हुए हैं और बाल विवाह की शिकायतें कर रहे हैं, लेकिन चिंताजनक  बात ये है कि बाल विवाह की ये कुप्रथा बंद नहीं हुई है.