Samajik anusandhan arth paribhasha visheshta;सामाजिक अनुसंधान शब्द दो शब्दों सामाजिक+अनुसंधान से बना है। सामाजिक अनुसंधान का अर्थ जानने से पहले हमें अनुसंधान शब्द का अर्थ समझना आवश्यक है। Show अनुसंधान शब्द की उत्पत्ति एक ऐसे शब्द से हुई है जिसका अर्थ "दिशाओं मे जाना" अथवा खोज करना होता हैं। अनुसंधान वह व्यवस्थित वैज्ञानिक पद्धति है जिसमें वैज्ञानिक उपकरणों के प्रयोग द्वारा वर्तमान ज्ञान का परिमार्जन, उसका विकास अथवा किसी नये तथ्य की खोज द्वारा ज्ञान कोष मे वृद्धि की जाती है। स्पष्ट है की सामाजिक तथ्यों,घटनाओं एवं सिद्धांतों के सम्बन्ध मे नवीन ज्ञान की प्राप्ति हेतु प्रयोग मे लायी गयी वैज्ञानिक पद्धति ही सामाजिक अनुसंधान हैं। दुसरे शब्दों मे, सामाजिक अनुसंधान का अर्थ सामाजिक अनुसंधान या सामाजिक शोध जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है- सामाजिक जीवन के बारे मे नवीन तथ्यों की जानकारी प्राप्त करने से सम्बंधित हैं। यह भी पढ़े; सामाजिक अनुसंधान का क्षेत्र सामाजिक अनुसंधान की परिभाषा (samajik anusandhan ki paribhasha)मोजर के शब्दों में, "व्यवस्थित जानकारी, जो
सामाजिक घटनाओं और समस्याओं के सम्बन्ध में की जाती है, सामाजिक शोध कही जाती हैं।" सामाजिक अनुसंधान की विशेषताएं (samajik anusandhan ki visheshta)सामाजिक अनुसंधान की निम्नलिखित विशेषताएं हैं-- 1. सामाजिक जीवन से सम्बंधित सामाजिक अनुसंधान के प्रेरक तत्वसामाजिक अनुसंधान कोई सरल कार्य नहीं, बल्कि इसमें अनुसंधानकर्ता को समय, धन एवं परिश्रम तथा जिज्ञासा की आवश्यकता पड़ती हैं। सामाजिक अनुसंधान मे अनेक प्रेरक तत्व होते हैं, जो निम्नलिखित हैं-- 1. अज्ञात के प्रति जिज्ञासा श्रीमती पी.वी.यंग के अनुसार," जिज्ञासा मानव मस्तिष्क का मौलिक गुण हैं तथा मनुष्य पर्यावरण की खोज के लिए बहुत बड़ी चालक शक्ति हैं।" एक छोटा बालक भी शुरू से अनेक बातों को जानने का इच्छुक रहता हैं। व्यक्ति का भी यही स्वभाव है वह जानना चाहता है कि घटना कैसी घटी या घटनाओं के घटित होने का क्या कारण हैं। जिज्ञासा का वास्तविक अर्थ हैं नवीन तथ्य को जानने की प्रबल इच्छा। यही जिज्ञासा की प्रवृत्ति विज्ञान का आधारभूत लक्षण है जो सामाजिक अनुसंधान का प्रथम प्रेरक तत्व हैं। 2. अप्रत्याशित परिस्थिति पैदा होना समाज में कभी-कभी ऐसी अप्रत्याशित परिस्थितियां पैदा होती हैं जो अनेक घटनाओं को जन्म देती हैं। हालांकि व्यक्ति उन घटनाओं के विषय में नही जानता, लेकिन ये घटनाएं उनके मन मस्तिष्क पर अत्यधिक दबाव डालती हैं। ये नवीन असाधारण परिस्थितियां सामाजिक अनुसंधान करने के लिए प्रेरक तत्व की भूमिका निभाती हैं। 3. नवीन पद्धतियों की खोज सामाजिक घटनाओं का अध्ययन करने हेतु कई पद्धतियों को अपनाना पड़ता हैं। इन पद्धतियों में सबसे अधिक उपयोगी पद्धति कौन-सी होगी, यह अनुसंधान के द्वारा ही स्पष्ट होता हैं। अतः नवीन पद्धतियों की खोज अनुसंधान की प्रेरक शक्ति का कार्य करती हैं। अनुसंधान की कुछ प्राचीन पद्धतियां भी होती हैं। क्या ये पद्धतियां अब भी उतनी ही उपयुक्त हैं जितनी पहले थी। यह अनुसंधान का महत्वपूर्ण विषय हैं। 4. कार्य-कारण संबंधों को जानने की इच्छा श्रीमती पी. वी. यंग के अनुसार," कार्य-कारण संबंध को जानने की इच्छा किसी भी अन्य वैज्ञानिक प्रयास, जिन पर कि मानव शक्तियों का उपयोग हुआ हो, से अधिक शक्तिशाली हैं।" प्रत्येक समाज में कई प्रकार की समस्याएं विद्यमान होती हैं जिनसे व्यक्ति संबंधित रहता हैं। इन समस्याओं को हल करने के लिए व्यक्ति इन समस्याओं के कारणों, उनकी प्रकृति को जानना चाहता हैं। यही कारण हैं कि यह अनुसंधान का प्रेरक तत्व हैं। सामाजिक अनुसंधान की मान्यताएंसामाजिक अनुसंधान की निम्नलिखित आधारभूत मान्यताएं हैं-- 1. प्रतिनिधित्व की संभावना यदि समाज में से कुछ इकाइयों को चुना जाये तो वे संपूर्ण समाज का प्रतिनिधित्व कर सकती हैं। इस प्रकार चुने हुए निर्देशन का अध्ययन संपूर्ण समाज पर लागू हो सकता हैं। यदि सामाजिक अनुसंधान की यह मान्यता नहीं हो तो अनुसंधान असंभव ही हैं। 2. तटस्थता की संभावना सामाजिक अनुसंधान में अनुसन्धानकर्ता सामाजिक घटना का एक महत्वपूर्ण अंग होता हैं। उनकी भावनाएं, इच्छाएं, दृष्टिकोण आदि अनुसंधानकर्ता को निरन्तर प्रभावित करते हैं जो वैज्ञानिक अध्ययन में बाधा उत्पन्न करती हैं। अतः अनुसंधानकर्ता हमेशा तटस्थ होकर अनुसंधान करता हैं, जो सामाजिक अनुसंधान की आधारभूत मान्यता हैं। 3. घटनाओं का निश्चित क्रम सामाजिक अनुसंधान की सर्वप्रथम मान्यता यह है कि सामाजिक घटनाएं अचानक घटित नहीं होती, बल्कि उनका एक निश्चित क्रम होता हैं। कोई भी सामाजिक घटना स्वतंत्र नहीं होती, वह किसी अन्य घटना पर आश्रित तथा संबंधित होती हैं। भविष्य के बारे में अनुमान लगाने हेतु घटनाओं के क्रम का ज्ञान अत्यंत आवश्यक हैं। 4. घटनाओं में कार्य-कारण संबंध सामाजिक घटनाओं में हमेशा कार्य-कारण का संबंध होता हैं। सामाजिक अनुसन्धानकर्ता यह मानकर चलता हैं कि सामाजिक घटनाओं के कुछ कारण होते हैं। यदि हम चाहते हैं कि एक विशेष सामाजिक घटना घटित न हो तो हमें सबसे पहले उस कारण का पता लगाकर उसी का निराकरण करना चाहिए। 5. समान वर्गीकरण सामाजिक अनुसंधान की यह मान्यता है कि सामाजिक घटनाओं के विभिन्न तथ्य निःसंदेह अलग नहीं होते। अनेक तथ्यों में समानता होती हैं, इस समानता के आधार पर ही उनका वर्गीकरण होता हैं। यह वर्गीकरण घटना के समान तत्वों के आधार पर होते हैं। संबंधित पोस्ट सामाजिक शोध से आप क्या समझते हैं?सामाजिक शोध का अर्थ सामाजिक घटनाओं या तथ्यों के बारे में नवीन जानकारी प्राप्त करना, प्राप्त ज्ञान में वृद्धि करना अथवा जिन सिद्धान्तों एवं नियमों का निर्माण किया गया है उनमें किसी प्रकार का संशोधन करना है ।
सामाजिक शोध से आप क्या समझते हैं सामाजिक शोध के महत्व को समझाइए?किसी क्षेत्र में नए ज्ञान की खोज या पुराने ज्ञान का दुबारा परीक्षण या दूसरे तरीके से विश्लेषण कर नए तथ्यों का उद्घाटन करना शोध कहलाता है। यह एक निरन्तर प्रक्रिया है, जिसमें तार्किकता, योजनाबद्धता एवं क्रमबद्धता पायी जाती है। जब यह शोध सामाजिक क्षेत्र में होता है तो उसे सामाजिक शोध कहा जाता है।
सामाजिक शोध का क्या महत्व है?सामाजिक अनुसंधान का महत्व | importance of social research
इससे बुद्धि भी विकसित होती है। वर्तमान जटिल समाज को समझने के लिए ज्ञान में निरंतर वृद्धि अनिवार्य है। 2. ज्ञान और अंधविश्वास के निवारण में सहायक- सामाजिक अनुसंधान नवीन ज्ञान द्वारा अज्ञानता एवं अंधविश्वास का निवारण करने में सहायता देता है।
शोध से आप क्या समझते हैं?नवीन वस्तुओं की खोज और पुरानी वस्तुओं एवं सिद्धान्तों का पुनः परीक्षण करना, जिससे कि नए तथ्य प्राप्त हो सकें, उसे शोध कहते हैं।
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