रीतिकाल की प्रमुख रचनाएं कौन कौन सी हैं? - reetikaal kee pramukh rachanaen kaun kaun see hain?

विषयसूची

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  • 1 रीतिकाल की प्रमुख विशेषता क्या है?
  • 2 रीतिकाल का क्या अर्थ है?
  • 3 रीतिकाल की दो प्रवृतियां कौन सी है?
  • 4 रीतिकाल की रचना क्या है?
  • 5 रीतिकाल को श्रृंगार काल क्यों कहा जाता है रीतिकाल की दो प्रवृतियाँ भी लिखिए?
  • 6 रीति काव्य का प्रमुख प्रतिपाद्य रस कौन सा है?

रीतिकाल की प्रमुख विशेषता क्या है?

इसे सुनेंरोकेंरीतिकाल की प्रमुख विशेषता रीतिप्रधान रचनाएँ हैं। तत्कालीन कवियों ने भामह, दण्डी, मम्मट, विश्वनाथ आदि काव्याचार्यों के ग्रंथों का गहन अध्ययन करके हिंदी साहित्य को रीति ग्रंथ प्रदान किए। इन ग्रंथों में रस, अलंकरम ध्वनि आदि का विवेचन, लक्षण और उदाहरण शैली में किया गया है।

रीतिकाल का क्या अर्थ है?

इसे सुनेंरोकेंहिंदी साहित्य में सम्वत् 1700 से 1900 (वर्ष 1643ई. से 1843 ई. तक) का समय रीतिकाल के नाम से जाना जाता है । रस, अलंकार, गुण, ध्वनि और नायिका भेद आदि काव्यांगों के विवेचन करते हुए, इनके लक्षण बताते हुए रचे गए काव्य की प्रधानता के कारण इस काल को रीतिकाल कहा गया ।

रीति काव्य को दरबार काव्य क्यों कहा जाता है?

इसे सुनेंरोकेंAnswer:रीतिकालीन काव्य को इसी दरबारी संस्कृति का काव्य बताया जाता है। रीतिकाव्य की श्रृंगारिकता में प्रेम की एकनिष्ठता न होकर विलास की रसिकता ही प्राय: मिलती है। और उसमें भी सूक्ष्म आंतरिकता की अपेक्षा स्थूल शारीरिकता का प्राधान्य है। रीतिकाल के प्रतिनिधि कवि बिहारी,मतिराम, पदमाकर रसिक ही थे, प्रेमी नहीं।

रीति काव्य धारा को कितने वर्गों में विभाजित किया गया है स्पष्ट कीजिए?

इसे सुनेंरोकेंआचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने ‘ हिंदी साहित्य का अतीत में रीतिकाल का विभाजन इस प्रकार किया है। 1. रीतिबद्ध धारा 2. रीतिमुक्त या स्वच्छंद काव्यधारा 1.

रीतिकाल की दो प्रवृतियां कौन सी है?

इसे सुनेंरोकेंRitikal Ki Do Pramukh Pravritiyan Kaun Si Hain.

रीतिकाल की रचना क्या है?

इसे सुनेंरोकेंरीतिकाल के अधिकांश कवि दरबारी थे। रीतिकाव्य रचना का आरंभ एक संस्कृतज्ञ ने किया। ये थे आचार्य केशवदास, जिनकी सर्वप्रसिद्ध रचनाएँ कविप्रिया, रसिकप्रिया और रामचंद्रिका हैं। कविप्रिया में अलंकार और रसिकप्रिया में रस का सोदाहरण निरूपण है।

रीतिकाल के प्रथम कवि कौन थे?

इसे सुनेंरोकेंइसी कारण आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने चिंतामणि को रीतिकाल का प्रवर्तक माना है तथा केशव को रीतिकाल का प्रथम कवि।

रीतिकाल के प्रमुख कवि कौन हैं?

इसे सुनेंरोकेंरीतिकाल के कवियों में केशवदास और चिंतामणि का नाम प्रमुख रूप से लिया जाता है । लेकिन सर्वामान्य रूप से केशवदास को ही रीतिकाल का प्रवर्त्तक कवि माना गया है । रीतिकाल के प्रमुख कवि केशवदास, चिंतामणि,भिखारीदास हैं इस काल के और भी कवि हैं बिहारी, मतिराम, भूषण आदि ।

रीतिकाल को श्रृंगार काल क्यों कहा जाता है रीतिकाल की दो प्रवृतियाँ भी लिखिए?

इसे सुनेंरोकेंहिंदी के रीति ग्रंथों में प्रायः तीन प्रकार की निरूपण शैली दिखाई पड़ती है – 1. काव्य प्रकाश की निरूपण शैली-जिसमें सभी काव्यांगों पर विचार किया गया। आचार्य राम चंद्र शुक्ल ने रीतिकाल का समय संवत 1700 से 1900 निर्धारित करते हुए यह भी कहा कि रस की दृष्टि से विचार करते हुए कोई चाहे तो उसे ‘श्रृंगार काल’ कह सकता है।

रीति काव्य का प्रमुख प्रतिपाद्य रस कौन सा है?

इसे सुनेंरोकेंमुक्तक काव्य रूप रीति काव्य में प्रमुखता से उभरा है। नायिका भेद और श्रृंगार रस विवेचन रीतिकाल का प्रमुख प्रतिपाद्य रहा है।

रीतिकाल की कितनी धाराएं हैं समझाइए?

इसे सुनेंरोकेंRitiKal | रीतिकाल : हिंदी साहित्य के विकास क्रम में रीतिकाल एक महत्वपूर्ण काल है। इस काल में काव्य के कला पक्ष पर अधिक सूक्ष्मता और व्यापकता के साथ कार्य किया गया है। इस काल में श्रृंगार रस की प्रधानता है। रीति काल का समय 1643 ई.

रीतिकाल के कितने प्रकार हैं?

रीतिकाल का विभाजन

  • रीतिबद्ध:
  • रीतिसिद्ध:
  • रीतिमुक्त:
  • रामचंद्र शुक्ल का विभाजन
  • विश्वनाथ प्रसाद मिश्र का विभाजन
  • बच्चन सिंह का विभाजन
  • नगेन्द्र का विभाजन

रीतिकाल की पूरी जानकारी

इस आलेख में रीतिकाल की पूरी जानकारी एवं कवि तथा रचनाएं, प्रमुख काव्य धाराएं, रीतिकाल का वर्गीकरण तथा विशेषताएं पढेंगे।

रीतिकाल का नामकरण : रीतिकाल की पूरी जानकारी

रीतिकाल को रीतिकाल क्यों कहा जाता है?

हिंदी साहित्य का उत्तर मध्यकाल (1643 ई. – 1842ई. तक लगभग) जिसमें सामान्य रूप से श्रृंगार परक लक्षण ग्रंथों की रचना हुई है रीतिकाल कहलाता है।

नामकरण की दृष्टि से रीतिकाल के संबंध में विद्वानों में पर्याप्त मतभेद है–

अलंकृत काल— मिश्र बंधु

रीतिकाल— आचार्य शुक्ल

कलाकाल— डॉ रामकुमार वर्मा

कलाकाल— डॉ रमाशंकर शुक्ल प्रसाद

श्रृंगारकाल— पं. विश्वनाथ प्रसाद मिश्र

रीतिकाल की प्रमुख रचनाएं कौन कौन सी हैं? - reetikaal kee pramukh rachanaen kaun kaun see hain?
रीतिकाल की पूरी जानकारी

सर्वमान्य मान्यता के अनुसार रीतिकाल नाम उपयुक्त है।

सामान्य के संस्कृत के लक्षण ग्रंथों का अनुसरण करके हिंदी में भी रस, छंद, अलंकार, शब्द शक्ति, रीति, गुण, दोष, ध्वनि, वक्रोक्ति आदि का वर्णन किया गया इसे ही रीतिकाल कहा जाता है।

रीतिकाल के प्रवर्तक कवि एवं काव्य धाराएं

रीतिकाल का वर्गीकरण

रीतिकाल को कितने भागों में बांटा गया है?

रीतिकाल कितने प्रकार के होते हैं?

रीतिकाल के उदय के कारण

अपने आश्रय दाताओं की रुचि के कारण रीतिकालीन साहित्य का उदय हुआ— आचार्य शुक्ल

संस्कृत साहित्य के लक्षण ग्रंथों से प्रेरित होकर विधि साहित्य लिखा गया था— आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी

दरबारी संस्कृति होने के कारण कभी हताश और निराश हो गए थे अतः अपनी निराशा को दूर करने के लिए रीति साहित्य का उदय हुआ— डॉ. नगेंद्र

रीतिकाल के पतन के कारण

मंगल की भावना का भाव।

चमत्कार की अतिशयता।

श्रृंगार की अतिशयता।

रीतिकालीन काव्य की प्रवृत्तियां : रीतिकाल की पूरी जानकारी

रीति निरूपण की प्रवृत्ति

काव्य में साहित्य के विविध अंगों पर (रस, छंद, अलंकार, शब्द शक्ति, गुण, दोष, रीति, ध्वनि, वक्रोक्ति, काव्य लक्षण, काव्य हेतु, काव्य प्रयोजन प्रकाश डाला जाता है वह रीति निरूपण प्रवृत्ति होती है। इसके दो प्रकार हैं—

सर्वांग निरूपण प्रवृत्ति– उपर्युक्त सभी अंगों की विवेचना करना।

विशिष्टांग निरूपण प्रवृत्ति― रस, छंद, अलंकार इन तीनों अथवा किसी एक अंग की विवेचना करना।

श्रृंगार निरुपण― श्रृंगारिक रीतिकाव्य का प्राण है

वीर काव्य तथा राज प्रशस्ति

भक्ति की प्रवृत्ति

नीति

लक्षण ग्रंथों की प्रधानता

कवि तथा आचार्य बनाने की प्रवृत्ति

आलंकारिकता

नारी के प्रति भोगवती दृष्टिकोण

आश्रय दाताओं की प्रशंसा

ब्रजभाषा की प्रधानता

मुक्तक काव्य शैली का प्रधान्य

रीतिकालीन कवियों का वर्गीकरण : रीतिकाल की पूरी जानकारी

रीतिकाल के प्रमुख लक्षण : रीतिकाल की पूरी जानकारी

आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र द्वारा रीतिकालीन कवियों को तीन श्रेणियों में विभक्त किया गया है―

रीतिबद्ध कवि।

रीतिसिद्ध कवि।

रीतिमुक्त कवि।

रीतिबद्ध कवि

इस वर्ग में वे कवि आते हैं जो रीति के बंधन में बंधे हुए थे और जिन्होंने रीति परंपरा का अनुसरण कर लक्षण ग्रंथों की रचना की।

इस वर्ग के प्रमुख कवियों में चिंतामणि त्रिपाठी, केशवदास, देव, मंडन मिश्र, मतिराम, सुरति मिश्र, कुलपति मिश्र, पद्माकर, भिखारी दास ग्वाल आदि कवि आते हैं।

डॉ नगेंद्र ने इन्हें रीतिकार या आचार्य कवि कहा है।

रीतिबद्ध काव्य की प्रमुख विशेषताएं

रस, छंद, अलंकार आदि तीन आधारों पर लक्षण ग्रंथों की रचना।

कवियों में कवित्व और आचार्यत्व दोनों गुण।

शास्त्र प्रधान काव्य।

पांडित्य के पूर्ण काव्य।

श्रृंगार रस की प्रधानता मांसल श्रृंगार वर्णन।

ब्रजभाषा का प्राधान्य।

मुक्तक शैली।

अलंकारों की प्रधानता।

अंगीरस― श्रृंगार।

रीतिसिद्ध कवि

इस वर्ग में भी कभी आते हैं जिन्होंने रीति ग्रंथों की रचना न करके उसके अनुसार उत्कृष्ट काव्य की रचना की है।

इस वर्ग के प्रमुख कवियों में बिहारी हैं, अन्य कवि पजनेश, रसनिधि, बेनी प्रवीण, निवाज, हटी जी, कृष्ण कवि आदि हैं।

डॉ. नगेंद्र ने इन्हें रीतिबद्ध कवि कहा है

रीतिसिद्ध काव्य की प्रमुख विशेषताएं

श्रृंगार रस की प्रधानता।

भक्ति एवं नीति।

प्रकृति वर्णन।

ब्रजभाषा का माधुर्य।

मुक्तक शैली।

अलंकारों की प्रधानता।

अंगीरस― श्रृंगार।

रीतिमुक्त कवि : रीतिकाल की पूरी जानकारी

वे कवि जिन्होंने न ही तो लक्षण ग्रंथ रखें और न ही उनके नियमों के अनुसार काव्य रचना की, अपितु वे अपनी स्वतंत्र मनोवृति के अनुसार काव्य सृजन करते थे, रीतिमुक्त कवि कहलाए। घनानंद, आलम, बोधा, ठाकुर, द्विज देव आदि प्रमुख रीतिमुक्त कवि है।

रीतिमुक्त काव्य की प्रमुख विशेषताएं

रीतिमुक्त काव्य अनुभूतिप्रवण आत्मप्रधान एवं व्यक्तिपरक काव्य है।

इन कवियों का प्रेम एकांतिक, अनन्यता, तन्मयता आदि संपूर्ण भावों से ओतप्रोत है।

इस काव्य की मूल संवेदना प्रेम है जो वासनात्मक, मांसल और पंकिल न होकर हृदय की अनुभूति और उदात्त भावना पर आधारित है।

रीतिमुक्त कवियों का प्रेम व्यथा प्रधान है, संयोग में भी वियोग की कसक है।

प्रेम की पीर और विरहानुभूति रीतिमुक्त काव्यधारा की आत्मा है।

रीतिमुक्त कवियों ने नारी सौंदर्य का चित्रण स्वस्थ मानसिकता और परिष्कृत रुचि के साथ किया है।

ब्रजभाषा का प्रयोग ।

आत्मपरक मुक्तक शैली।

लोकोक्ति-मुहावरों का प्रयोग।

कवित्त, सवैया, दोहा आदि छंद।

श्रृंगार रस की प्रधानता― श्रृंगार का उदात्त रूप।

प्रेम की पीर का चित्रण।

कृष्ण लीला का प्रभाव।

अलंकारों की प्रधानता।

रीति काव्य का प्रवर्तक : रीतिकाल की पूरी जानकारी

इस संबंध में दो मत प्रचलित है―

डॉ श्याम सुंदर दास और डॉ नगेंद्र केशवदास को रीतिकाल का प्रवर्तक मानते हैं।

आचार्य रामचंद्र शुक्ला चिंतामणि त्रिपाठी को रीतिकाल का प्रवर्तक कवि स्वीकार करते हैं।

“इसमें संदेह नहीं है कि रीति काव्य का सम्यक समावेश पहले पहल आचार्य केशव ने ही किया………….. पर केशव के 50 वर्षों के पश्चात रीति ग्रंथों की अखंड परंपरा चिंतामणि त्रिपाठी से चली और वह भी एक भिन्न आदर्श के साथ अतः रीतिकाल का आरंभ चिंतामणि त्रिपाठी से मारना चाहिए।” आ. शुक्ल

सर्वमान्य मत के अनुसार केशव ही रीतिकाल के प्रवर्तक कवि हैं।

“हिंदी रीति निरूपण परंपरा का आरंभ कृपाराम की ‘हित तरंगिणी’ से ही माना जाना चाहिए।”― डॉ नगेंद्र

पर्यायवाची शब्द (महा भण्डार)

रीतिकाल के राष्ट्रकवि भूषण का जीवन परिचय एवं साहित्य परिचय

अरस्तु और अनुकरण

कल्पना अर्थ एवं स्वरूप

राघवयादवीयम् ग्रन्थ

भाषायी दक्षता

हालावाद विशेष

संस्मरण और रेखाचित्र

कामायनी के विषय में कथन

कामायनी महाकाव्य की जानकारी

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रीतिकाल की रचनाएं कौन कौन सी हैं?

रीतिकाल के कवि और उनकी रचनाएँ.
चिंतामणि कविकुल कल्पतरु, रस विलास, काव्य विवेक, शृंगार मंजरी, छंद विचार.
मतिराम रसराज, ललित ललाम, अलंकार पंचाशिका, वृत्तकौमुदी.
राजा जसवंत सिंह भाषा भूषण.
भिखारी दास काव्य निर्णय, श्रृंगार निर्णय.
याकूब खाँ रस भूषण.
रसिक सुमति अलंकार चन्द्रोदय.
दूलह। कवि कुल कण्ठाभरण.

रीतिकाल के रचनाकार कौन है?

इस समय अनेक कवि हुए— केशव, चिंतामणि, देव, बिहारी, मतिराम, भूषण, घनानंद, पद्माकर आदि। इनमें से केशव, बिहारी और भूषण को इस युग का प्रतिनिधि कवि माना जा सकता है। बिहारी ने दोहों की संभावनाओं को पूर्ण रूप से विकसित कर दिया। आपको रीति-काल का प्रतिनिधि कवि माना जा सकता है।

रीतिकाल के जनक कौन है?

वस्तुतः रीतिग्रंथों की अविरल परम्परा केशव के पचास वर्षों बाद चिंतामणि से प्रारम्भ हुई । इसी कारण आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने चिंतामणि को रीतिकाल का प्रवर्तक माना है तथा केशव को रीतिकाल का प्रथम कवि।

रीतिकाल के सर्वश्रेष्ठ कवि कौन है?

रीतिकाल के कवियों में केशवदास और चिंतामणि का नाम प्रमुख रूप से लिया जाता है । लेकिन सर्वामान्य रूप से केशवदास को ही रीतिकाल का प्रवर्त्तक कवि माना गया है ।