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Question Field Hindi - By Khilawanएक ब्लॉग जो की हिंदी साहित्य से जुड़ी जानकारियाँ आपके साथ शेयर करता है जो की आपके प्रतियोगिता परीक्षा में पूछे जाते हैं, इस ब्लॉग पर एम्. ए. हिंदी साहित्य का पूरा कोर्स लॉन्च करने का प्लान है. अगर आपका सहयोग अच्छा रहा हमारे ब्लॉग में पूरा कोर्स उपलब्ध करा दिया जाएगा. इसमें जो प्रश्न लिखे जा रहे हैं वह न केवल एम्. ए. के लिए उपयोगी है बल्कि यह विभिन्न प्रकार के प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए भी हिंदी साहित्य के प्रश्न विभिन्न फोर्मेट में हमारा ब्लॉग आपके लिए कंटेंट बनाते रहेगा अपना सहयोग बनाये रखें. शंकुक भरत नाट्यशास्त्र के व्याख्याता। इनकी व्याख्या प्राप्त नहीं है पर अभिनवभारती में उसका उल्लेख है। भरत के रससूत्र की इन्होंने जो व्याख्या की है वह "अनुमितिवाद" नाम से प्रसिद्ध है। भट्ट लोल्लट के उत्पत्तिवाद का तथा सहृदयों में रसानुभव न माननेवाले सिद्धांत का इन्होंने सर्वप्रथम खंडन किया है। ये नैयायिक थे। इन्होंने विभाव आदि साधनों और रसरूप साध्य में अनुमाप्यअनुमापक भाव की कल्पना की है और रस का आस्वाद अनुमान द्वारा अनुमेय या अनुमितिगम्य बताया है। इन्होंने रस की स्थिति सहृदयों या सामाजिकों में मानी है। "चित्रतुरगादि न्याय" की इनकी विवेचना के अनुसार नट सच्चे राम नहीं हैं, वे चित्र में लिखे अश्व की तरह हैं। जैसे अश्व के चित्र को देखकर उसका अनुभव होता है, वैसे ही नट के अभिनयात्मक रूप को देखकर सहृदयों को अनुभव होता है। इस प्रकार शंकुक ने रस की स्थिति सहृदयों या सामाजिकों में मानी है। राजतरंगिणी के उल्लेख के अनुसार शंकुक कश्मीरी विद्वान् थे और अजितापीड़ के शासनकाल में विद्यमान थे। इन्होंने "भुवनाभ्युदय" नामक महाकाव्य में मम्म और उत्पल के भयंकर युद्ध का वर्णन किया है जिसें मारे गए वीरों के शव से वितस्ता नदी का प्रवाह रुक गया था। राजतरंगिणीकार ने इन्हें "कवि बुधमन: सिंधुशशांक:" कहा है। शंकुक का समय ई. 850 के लगभग मान्य है। शार्ंगधरपद्धति तथा जल्हण की सूक्तिमुक्तावली में शंकुक को मयूर का पुत्र कहा गया है। विक्रमादित्य की सभा के नवरत्नों में भी एक शंकु या शंकुक नाम आया है। ये दोनों भरत नाट्यशास्त्र के व्याख्याता, रसनिरूपण में अनुमितिवाद के प्रतिष्ठापक एवं भुवनाभ्युदय महाकाव्य के रचयिता शंकुक से संभवत: भिन्न थे।
Bharat Muni Ka Ras Sutra | भरतमुनि का रससूत्र : आचार्य भरतमुनि रस संप्रदाय के मूल प्रवर्तक हैं। उन्होंने नाट्य शास्त्र की रचना की औरउसमें नाटक के मूल तत्वों का विवेचन करते हुए रस का भी विवेचन किया है। वह रस को नाटक का प्राण मानते हैं। भरतमुनि ने नाट्यशास्त्र में जो रस सूत्र दिया वह इस प्रकार है :
अर्थात विभाव, अनुभव और व्यभिचारी भावों के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है। भरतमुनि के अनुसार :
भरतमुनि के अनुसार :
मुनिजी रस को आस्वाद्य मानते हैं , आस्वाद नहीं I रस विषयीगत भी नहीं होता है, वह विषयगत होता है। विभावादी के संयोग से स्थाई भाव ही रस रूप में परिणत होता है। Bharat Muni Ka Ras Sutra | भरतमुनि का रससूत्र का व्याख्याकारBharat Muni Ka Ras Sutra | भरतमुनि का रससूत्र का व्याख्याकार : रससूत्र के प्रमुख व्याख्याकार चार हैं, जिनके नाम है –
1. आचार्य भट्ट लोल्लट | Acharya Bhatt Lollatभरतमुनि के रस सूत्र की व्याख्या करने वाले पहले आचार्य हैं। इनके दर्शन को मीमांसा दर्शन कहते हैं। इनकी व्याख्या आचार्य भरतमुनि की व्याख्या के सर्वाधिक निकट की है। भट्ट लोल्लट सिद्धांत को उत्पत्तिवाद, आरोपवाद, प्रतीतिवाद या उपचयवाद कहा जाता है। आचार्य भट्ट लोल्लट कहते हैं कि सहृदय अनुकर्ता नट को देखकर आनंद की प्राप्ति नहीं करता बल्कि वह अनुकर्ता में अनुकार्य का आरोप करके आनंद की प्राप्ति करता है। आचार्य भट्ट लोल्लट ने रस की मूल स्थिति को अनुकार्य में और गौणत: अनुकर्ता में स्वीकार किया है। इनके अनुसार सामाजिक या सहृदय में केवल स्थाई भाव होता है, रस नहीं। इनके सिद्धांत में सामाजिक कोई महत्व नहीं दिया गया है । इन्होंने निष्पत्ति से अर्थ लिया है – उत्पत्ति। संयोग से अर्थ लिया है – उत्पाद्य उत्पादक भाव संबंध। 2. आचार्य शंकुक | Acharya Shankukआचार्य शंकुक का अनुमितिवाद : रस सूत्र के दूसरे व्याख्याता आचार्य शंकुक है। यह अनुमितिवादी आचार्य हैं। आचार्य महिम भट्ट ने अपने ग्रंथ “व्यक्ति विवेक” में शंकुक के अनुमिति वाद का समर्थन किया है। आचार्य शंकक के अनुसार प्रेक्षक अनुकर्ता को देखकर आनंद की प्राप्ति नहीं करता बल्कि अनुकर्ता में अनुकार्य की अनुमानिक कल्पना करके आनंद की प्राप्ति करता है। इस संदर्भ में आचार्य शंकुक ने अपने चित्र-तुरंग न्याय की परिकल्पना करके अपने सिद्धांत की पुष्टि की है। जैसे दीवार पर चित्रित घोड़े को देखकर उन्हें वास्तविक समझ लिया जाता है। आचार्य शंकुक पहले आचार्य हैं जिन्होंने पहली बार गौण मात्रा में ही सही लेकिन सामाजिक को महत्व प्रदान किया है। इन्होंने रस की मूल स्थिति को अनुकार्य में और गौणत: सामाजिक में मानी है। इन्होंने अनुकर्ता में केवल स्थाई भाव माना है रस नहीं। आचार्य शंकुक ने काव्य प्रतीति को लौकिक प्रतीति से विलक्षण बताकर रस की अलौकिकता सिद्ध की है। इन्होने कल्पना तत्व को सर्वाधिक महत्व दिया है। इन्होने अपने सिद्धांत में अभिनेयत्व को प्रधानता दी है, काव्यत्व को गौणता। शंकुक के अनुसार संयोग का अर्थ है – अनुमान और निष्पत्ति का अर्थ है – अनुमिति। आचार्य शंकुक ने अपने सिद्धांत में अभिनेयत्व को प्रमुखता दी है। ऐसी स्थिति में श्रव्य काव्य में रसानुमिति कैसे संभव होगी? वास्तव में रस तो काव्य में ही होता है। अभिनेय तो उसका पोषक मात्र है। 3. आचार्य भट्ट नायक | Acharya Bhatt Nayakआचार्य भट्ट नायक रस सूत्र के तीसरे व्याख्याता है। इन्होंने सांख्य दर्शन के आधार पर भरतमुनि के रस सूत्र को विश्लेषित किया है। इनका सिद्धांत भुक्तिवाद कहलाता है। इनके अनुसार रस की न तो उत्पत्ति होती है और न अनुमिति होती है अपितु रस की भुक्ति होती है। रस निष्पत्ति में भट्ट नायक को सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि साधारणीकरण व्यापार की कल्पना है। इससे सामाजिक में रसानुभूति का प्रतिपादन सरलता से हो जाता है। साधारणीकरण व्यापार की परिकल्पना करके आचार्य भट्ट नायक ने रस को सार्वभौमिक, सार्वजनीन एवं सर्वव्यापक बना दिया। आचार्य भट्ट नायक पहले आचार्य हैं जिन्होंने सामाजिक सहृदय को सर्वाधिक महत्व देते हुए सामाजिक की समस्या का पूर्ण समाधान प्रस्तुत किया। भट्टनायक के अनुसार सत्वगुण के उद्रेक में रस की स्थिति होती है। भट्ट नायक काव्य में तीन व्यापारो की बात करते हैं :-
भावकत्व की स्थिति रस व साधारणीकरण के निकट की है। भट्टनायक के अनुसार विभाव, अनुभाव एवं संचारी भावो के द्वारा भोज्य-भोजक भाव संबंध से रस की भुक्ती हो जाती है। भावकत्व व्यापार के द्वारा भाव्यमान स्थायी भाव ही रस के रूप में परिणत हो जाता है। अभिनव गुप्त के अनुसार भट्ट नायक के दो नए व्यापार (भावकत्व-भोजकत्व) ना तो अनुभव सिद्ध है और ना ही इनका कोई शास्त्रीय प्रमाण है लेकिन अभिनव गुप्त ने भट्टनायक के साधारणीकरण व्यापार को स्वीकार किया है। भट्टनायक ने रस को विद्यान्तर स्पर्श शुन्य एवं ब्रह्मानंद सहोदर कहा है। 4. आचार्य अभिनव गुप्त | Acharya Abhinav Guptरस सूत्र के चौथे व्याख्याता आचार्य अभिनव गुप्त हैं। उनके अनुसार रस की न तो उत्पत्ति होती है और न अनुमिति होती है और न ही भुक्ति होती है अपितु रस की अभिव्यक्ति होती है। इसलिए उनका मत अभिव्यक्तिवाद कहलाता है। इनका दर्शन वेदांत दर्शन है और इनके सिद्धांत को अभिव्यक्तिवाद कहा जाता है। इन्होंने निष्पत्ति से अर्थ लिया है – अभिव्यक्ति। संयोग से अर्थ लिया है – व्यंग्य -व्यंजक भाव संबंध । अभिनव गुप्त के सिद्धांत में रस ध्वनि का सुंदर समन्वय हुआ है। आचार्य अभिनव गुप्त के अनुसार रस व्यंग्य है और विभावादी व्यंजक है। ध्वनि वादियों की व्यंजना शब्द शक्ति ही रस की अभिव्यक्ति करती है। अभिनव गुप्त का रस सिद्धांत शैव मत पर आधारित है। जिस प्रकार यह जगत शिव की इच्छा की अभिव्यक्ति है उसी प्रकार प्रेक्षक के मन में वासना रूप से अवस्थित स्थाई भाव की निर्विघ्नं अभिव्यक्ति रस है। इन्होंने रस की सत्ता को आत्मगत माना है। रस सामाजिक के हृदय में व्याप्त रहता है। आचार्य अभिनव गुप्त के अनुसार –
चर्वणा दशा में रस पूर्णत: आत्मविश्रान्तिक रुप होता है। मनोवैज्ञानिक और दार्शनिक आधार भूमि पर स्थापित होने के कारण अभिनव गुप्त का सिद्धांत सर्वमान्य बन गया है। ये भी अच्छे से जाने :
एक गुजारिश :दोस्तों ! आशा करते है कि आपको “Bharat Muni Ka Ras Sutra | भरतमुनि का रससूत्र“ के बारे में हमारे द्वारा दी गयी जानकारी पसंद आयी होगी I यदि आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेंट करके अवश्य बतायें I हम आपकी सहायता करने की पूरी कोशिश करेंगे I नोट्स अच्छे लगे हो तो अपने दोस्तों को सोशल मीडिया पर शेयर करना न भूले I नोट्स पढ़ने और हमारी वेबसाइट पर बने रहने के लिए आपका धन्यवाद..! रस सिद्धांत के प्रथम प्रतिपादक आचार्य कौन हैं?रस-सम्प्रदाय (ras siddhant)
भरतमुनि (200 ई. पू.) को रस सम्प्रदाय का प्रवर्तक माना जाता है। उन्होंने ही रस का सबसे पहले निरूपण 'नाट्यशास्त्र' में किया, इसीलिए उन्हें रस निरूपण का प्रथम व्याख्याता एवं उनके ग्रंथ 'नाट्यशास्त्र' को रस निरूपण का प्रथम ग्रंथ माना जाता है।
रस के संस्थापक आचार्य कौन है?सही उत्तर 'भरत मुनि' है। रस सिद्धांत के मूल प्रवर्तक आचार्य भरतमुनि (200 ई. पू.) माने जाने हैं।
रस के संबंध में भुक्तिवाद के प्रतिपादक आचार्य कौन है?आचार्य भट्ट नायक | Acharya Bhatt Nayak
इन्होंने सांख्य दर्शन के आधार पर भरतमुनि के रस सूत्र को विश्लेषित किया है। इनका सिद्धांत भुक्तिवाद कहलाता है। इनके अनुसार रस की न तो उत्पत्ति होती है और न अनुमिति होती है अपितु रस की भुक्ति होती है। रस निष्पत्ति में भट्ट नायक को सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि साधारणीकरण व्यापार की कल्पना है।
भरतमुनि के अनुसार रस क्या है?भरतमुनि के अनुसार रस की परिभाषा, “विभाव, अनुभाव और व्यभिचारी भाव के संयोग से रस की उत्पत्ति होती है।” इनके अतिरिक्त काव्यप्रकाश के रचयिता मम्मट भट्ट के अनुसार, “आलम्बन विभाव से उद्बुद्ध, उद्दीपन से उद्दीपित, व्यभिचारी भावों से परिपुष्ट तथा अनुभाव द्वारा व्यक्त ह्रदय का स्थाई भाव ही रस दशा को प्राप्त होता है।”
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