संकलित पदों को ध्यान में रखते हुए सूर के भ्रमरगीत की मुख्य विशेषताएँ बताइए? Show
भ्रमरगीत की निम्नलिखित विशेषताएँ इस प्रकार हैं -
Concept: पद्य (Poetry) (Class 10 A) Is there an error in this question or solution? सूरदास के भ्रमर गीत के पद – Surdas Bhramar Geet Book/Pustak Pdf Free Downloadभ्रमर गीत विशेषतासन्दर्भ इस पद में गोपियों ने उद्धव के प्रति अपना दैन्य भाव व्यक्त किया है और वे उन्हें निश्चय रूपेण श्रीकृष्ण का भक्त समझती हैं। उन्हें आश्चर्य है कि फिर भी वे कृष्ण से अधिक महत्व योग को क्यों दे रहे हैं ? व्याख्या (उद्धव-प्रति गोपियों का कथन) हे उद्धव, हमारी बातों को बुरा मत मानना, क्योंकि हमने अमल में तुमसे बहुत-सी कठोर बातें कह दी हैं। अब तो तुमसे कुछ भी कठोर बातें कहते डरती हैं क्योंकि बिना सोचे-समझे (बुद्धिहीन) बातें करने से मर्यादा भंग हो जाती है (जैसे गोपियों से बिना सिर-पैर की बातें करने से तुम्हारी मर्यादा भंग हो गयी हैं) सत्य तो यह है यदि कोई अपना जी जलने पर दूसरों के प्रति अनुचिद या कठोर वाणी का प्रयोग करता है तो अन्ततः उसे पछताना पड़ता है (आवेग जनित कथन बहुत भयावह होता है) । हे उद्धव, हमें पूर्ण विश्वास है कि तुम्हें जो कुछ भी मिल जाता है, उसे भगवान का प्रसाद समझकर तुम उनका स्मरण करते हुए उसे पहण करते हो। अर्थात् तुम्हें जो भी प्रतिष्ठा मिलती है उसका श्रेय तुम श्रीकृष्ण को देते हो (अतः स्पष्ट है कि तुम भगवान श्रीकृष्ण के प्रति आस्थावान हो और उन्हीं के नाते तुम सम्मानित भी होते हो)। तुम्हारा मन भी श्रीकृष्ण के चरणों में सदैव लगा रहता है तुम भगवान श्रीकृष्ण के चरणों के भक्त हो) । सूर के शब्दों में का कथन है कि फिर भी आश्चर्य है कि श्याम से बढ़कर तुम योग की की चर्चा करते हो, भला, से किस मूर्ख को योग की बातों पर होगा किसे ऐसी बातें कहते बनेगी ?
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सूरदास और भ्रमर गीत – Surdas Aur Bhramar Geet Sar Book/Pustak Pdf Free Download Surdas Bhramar geet Surdas Bhramargeet/ सूरदास का भ्रमरगीत/ Surdas Bhramar geet summary/ Surdas bhramar geet question answer in hindi सूरदास का जन्म सन् 1478 में माना जाता है। एक मान्यता के अनुसार उनका जन्म मथुरा के निकट रुनकता या रेणुका क्षेत्र में हुआ था जबकि दूसरी मान्यता के अनुसार उनका जन्म-स्थान दिल्ली के पास सीही नामक स्थान माना जाता है। महाप्रभु वल्लभाचार्य के शिष्य सूरदास अष्टछाप के कवियों में सर्वाधिक प्रसिद्द हैं। वे मथुरा और वृंदावन के बीच गउघाट पर रहते थे और श्रीनाथ जी के मंदिर में भजन-कीर्तन करते थे। सन् 1583 में पारसौली में उनका निधन हुआ। उनके तीन ग्रंथों सूरसागर, साहित्य लहरी और सूर सारावली में सूरसागर ही सर्वाधिक लोकप्रिय हुआ। Surdas Bhramargeet यहाँ पढ़ें: सूरदास का सम्पूर्ण जीवन परिचयभ्रमरगीत ( Surdas Bhramargeet )यहाँ सूरसागर के भ्रमरगीत से चार पद लिए गए हैं। कृष्ण ने मथुरा जाने के बाद स्वयं न लौटकर उद्धव के जरिए गोपियों के पास संदेश भेजा था। उद्धव ने निर्गुण ब्रह्म एवं योग का उपदेश देकर गोपियों की विरह वेदना को शांत करने का प्रयास किया। गोपियाँ ज्ञान मार्ग की बजाय प्रेम मार्ग को पसंद करती थीं। इस कारण उन्हें उद्धव का शुष्क संदेश पसंद नहीं आया। तभी वहाँ एक भौंरा आ पहुँचा। यहीं से भ्रमरगीत का प्रारंभ होता है। गोपियों ने भ्रमर के बहाने उद्धव पर व्यंग्य बाण छोड़े। पहले पद में गोपियों की यह शिकायत वाज़िब लगती है कि यदि उद्धव कभी स्नेह के धागे से बँधे होते तो वे विरह की वेदना को अनुभूत अवश्य कर पाते। दूसरे पद में गोपियों की यह स्वीकारोक्ति कि उनके मन की अभिलाषाएँ मन में ही रह गईं, कृष्ण के प्रति उनके प्रेम की गहराई को अभिव्यक्त करती है। तीसरे पद में वे उद्धव की योग साधना को कड़वी ककड़ी जैसा बताकर अपने एकनिष्ठ प्रेम में दृढ़ विश्वास प्रकट करती हैं। चौथे पद में वे उद्धव को ताना मारती हैं कि कृष्ण ने अब राजनीति पढ़ ली है। अंत में गोपियों द्वारा उद्धव को राजधर्म (प्रजा का हित) याद दिलाया जाना सूरदास की लोकधर्मिता को दर्शाता है। भ्रमरगीत ( Surdas Bhramargeet ) के पद1) ऊधौ, तुम हौ अति बड़भागी। 2) मन की मन ही माँझ रही। 3) हमारैं हरि हारिल की लकरी। 4) हरि हैं राजनीति
पढ़ि आए। सूरदास के भ्रमरगीत (Surdas Bhramargeet) के प्रमुख प्रश्न और उनके उत्तरप्रश्न 1: गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में क्या व्यंग्य निहित है? उत्तर: सूरदास जी इस कविता के माध्यम से उद्धव और गोपियों का संवाद प्रस्तुत कर रहे हैं। गोपियाँ किस तरह से भगवान श्री कृष्ण के प्रेम में पागल है। गोपियाँ उद्धव से कहती हैं कि तुम उस कमल के पत्ते के समान हो जो रहता तो जल में है लेकिन जल में डूबता नहीं है। गोपियाँ कहती हैं कि जिस प्रकार तेल की गगरी को पानी में कितना भी डालो लेकिन उस पर पानी की एक भी बूँद रूकती नहीं ठीक उसी प्रकार तुम भी श्री कृष्ण रुपी प्रेम की नदी में होकर भी कैसे श्री कृष्ण के प्रेम से वंचित हो। गोपियाँ उद्धव पर व्यंग्य करते हुए कहती हैं कि तुम भाग्यवान हो जो श्री कृष्ण रुपी प्रेम की नदी में होते हुए भी तुम्हारे ऊपर उस प्रेम का जरा भी असर नहीं है। तुम प्रेम बंधन में बंधने और उससे होने वाले सुखद अनुभूति से पूर्णतया अपरिचित हो। गोपियाँ उद्धव को भाग्यवान बोलकर व्यंग करती है कि तुमसे बड़ा दुर्भाग्य और किसका हो सकता है। Surdas Bhramargeet प्रश्न 2: उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किस से की गई है? उत्तर: गोपियाँ, उद्धव के व्यवहार की तुलना कमल के पत्ते और तेल की गगरी से करती हैं।
प्रश्न 3: गोपियों ने किन-किन उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं? उत्तर: गोपियाँ उद्धव को निम्नलिखित उलाहने देकर उनको आहत करती हैं-
Surdas Bhramargeet प्रश्न 4: उद्धव द्वारा दिए गए योग के संदेश ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम कैसे किया? उत्तर: गोपियाँ श्रीकृष्ण के चल जाने पर, उनसे अपने मन की प्रेम-भावना प्रकट न कर पाने के कारण विरहाग्नि में पहले से ही तड़प रही थीं। वे श्री कृष्ण के आगमन में दिन गिनती जा रही थी। उन्हें आशा थी कि श्रीकृष्ण लौटकर आएँगे, किंतु वे नहीं आए और उद्धव को योग-सन्देश देने के लिए भेज दिया। विरह की अग्नि में जलती हुयी गोपियों को जब उद्धव ने योग-साधना करने और श्री कृष्ण को भूल जाने का उपदेश देना शुरू किया तब गोपियों की वेदना और भी बढ़ गयी। इस तरह योग-संदेश ने विरहाग्नि में घी का काम किया। Surdas Bhramargeet प्रश्न 5: ‘मरजादा न लही’के माध्यम से कौन-सी मर्यादा न रहने की बात की जा रही है? उत्तर: ‘मरजादा न लही’ के माध्यम से प्रेम की मर्यादा न रहने की बात की जा रही है। श्री कृष्ण गोपियों को छोड़कर मथुरा चले जाते हैं और वापस लौट कर नहीं आते। गोपियाँ कहती हैं कि श्रीकृष्ण के प्रति उनका प्रेम था और उन्हें पूर्ण विश्वास था कि उनके प्रेम की मर्यादा का निर्वहन श्रीकृष्ण की ओर से भी वैसा ही होगा जैसा उनका है। परन्तु इसके विपरीत कृष्ण ने उद्धव के द्वारा योग-संदेश भेजकर प्रेम की मर्यादा नहीं रखी| श्री कृष्ण ने प्रेम के बदले गोपियों को योग का सन्देश भेज दिया| इस प्रकार हम कह सकते हैं कि श्रीकृष्ण ने प्रेम की मर्यादा नहीं रखी| वे वापस लौटने का वचन देकर भी वापस लौटकर नहीं आये| प्रश्न 6: कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को गोपियों ने किस प्रकार अभिव्यक्त किया है? उत्तर: गोपियों ने श्रीकृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को प्रकट करते हुए कहा कि-
प्रश्न 7: गोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा कैसे लोगों को देने की बात कही है? उत्तर: गोपियों ने योग-शिक्षा के बारे में उद्धव को परामर्श देते हुए कहा कि योग-शिक्षा उन लोगों को देना उचित है, जिनका मन चंचल है, इधर-उधर भटकता है। हम गोपियों का मन तो पहले से ही श्री कृष्ण प्रेम में एकाग्र है। योग की आवश्यकता तो उन लोगों को हैं, जिनके चित्त में चंचलता है और जिनके हृदय में श्री कृष्ण के प्रति स्नेह-बंधन अटूट नहीं है। इसीलिए आप कृपा करके हम लोगों को योग-शिक्षा न दें। प्रश्न 8: प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियों का योग-साधना के प्रति दृष्टिकोण स्पष्ट करें। उत्तर: जिस प्रकार किसी प्रेमी को सिर्फ और सिर्फ उसकी प्रेमिका ही दिखती है ठीक उसी प्रकार गोपियों को श्री कृष्ण दिखते हैं। गोपियाँ श्री कृष्ण के प्रेम में पागल हैं। गोपियों को योग साधना की बात बेकार लगती है। उनकी मनोस्थिति उस बच्चे के समान है जिसे मनपसंद खिलौने की जगह कोई झुनझुना पकड़ा दिया गया हो। गोपियों के लिए योग साधना सिर्फ कृष्ण प्रेम ही है। सूरदास जी गोपियों के माध्यम से कहते हैं कि प्रेम एक ऐसी बीमारी है जिसे उन्होंने न कभी सुना है और न ही देखा है। गोपियों का दृष्टिकोण एकदम स्पष्ट है कि प्रेम-बंधन में बंधे हृदय पर किसी उपदेश का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। चाहे वे उपदेश अपने ही प्रिय के द्वारा क्यों न दिए गए हों। यही कारण है कि अपने ही प्रिय श्रीकृष्ण के द्वारा भेजा गया योग-संदेश उनको प्रभावित नहीं कर सका। Surdas Bhramargeet प्रश्न 9: गोपियों के अनुसार राजा का धर्म क्या होना चाहिए? उत्तर: गोपियाँ अपनी राजनैतिक प्रबुद्धता का परिचय देते हुए राजा का धर्म बताती हैं कि राजा का कर्तव्य है कि वह किसी भी स्थिति में अपनी प्रजा पर कोई आँच न आने दे और हरसंभव स्थिति में प्रजा की भलाई के लिए सोचे तथा नीति से राजधर्म का पालन करे। एक राजा को प्रजा के सुख-दुख का साथी होना चाहिए। प्रजा की हर परेशानी में उसके साथ होना चाहिए। सिर्फ अपना सुख-दुख देखने वाला व्यक्ति कभी भी अच्छा राजा नहीं हो सकता। प्रश्न 10: गोपियों को कृष्ण में ऐसे कौन से परिवर्तन दिखाई दिए जिनके कारण वे अपना मन वापस पा लेने की बात कहती हैं? उत्तर: श्रीकृष्ण के मथुरा जाने तथा उद्धव द्वारा योग-सन्देश भेजने के बाद गोपियों को लगता है कि वो वृन्दावन को भूल गए हैं। उन्हें वृन्दावन के लोगो की याद नहीं आती। उन्होंने अब राजनीति सीख ली है और उनकी बुद्धि पहले से अधिक चतुर हो गयी है। श्री कृष्ण पहले प्रेम का बदला प्रेम से चुकाते थे लेकिन अब उद्धव द्वारा योग-सन्देश भेज रहे हैं। उनमे इतनी भी मर्यादा नही बची कि वो स्वयं गोपियों से बात करें। इन्ही सब परिवर्तनों को देखकर गोपियाँ अपना मन वापस पाने की बात कहती हैं। प्रश्न 11: गोपियों ने अपने वाक्चातुर्य के आधार पर ज्ञानी उद्धव को परास्त कर दिया, उनके वाक्चातुर्य की विशेषताएँ लिखिए? उत्तर: उद्धव जैसे ज्ञानी व्यक्ति को गोपियाँ की वाक्पटुता चुप रहने के लिए विवश कर देती है और वे गोपियों के वाक्चातुर्य से प्रभावित हुए बिना नहीं रहते। उनके वाक्चातुर्य की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं- स्पष्टीकरण- गोपियाँ अपनी बात को बिना किसी लाग-लपेट के स्पष्ट कह देती हैं। उद्धव के द्वारा बताए गए योग-संदेश को बिना संकोच के कड़वी ककड़ी बता देती हैं। गोपियाँ कहती है कि जब भी वो किसी और की बात सुनती है तो वह बात उन्हें कड़वी ककड़ी की तरह लगती है। नीचे लिखी पंक्तियों में आप खुद ही देख सकते हैं। Surdas Bhramargeet “जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जक री। व्यंग्यात्मकता- गोपियाँ व्यंग्य करने में प्रवीण हैं। वे उद्धव की भाग्यहीनता को भाग्यवान कहकर व्यंग्य करती हैं कि तुमसे बढ़कर और कौन भाग्यवान होगा जो कृष्ण के समीप रहकर उनके अनुराग से वंचित रहे। गोपियाँ कहती हैं कि, हे उद्धव! तुम उस कमल के पत्ते के समान हो जो नदी के जल में रहते हुए भी पानी की ऊपरी सतह पर ही रहता है। जल का प्रभाव कमल के पत्ते पर बिलकुल नहीं पड़ता। अर्थात श्री कृष्ण के इतने समीप होकर भी तुम उनके प्रेम से वंचित हो। तुमसे बड़ा भाग्यवान और कौन होगा। नीचे लिखी गयी इसी लाइन के माधयम से गोपियाँ उद्धव पर व्यंग करती है। “पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।” गोपियाँ उद्धव पर व्यंग करते हुए कहती हैं कि तुम उस तेल के मटके के समान हो जो जल में होने के बाद भी अपने ऊपर एक भी बूँद पानी नहीं रुकने देता। अर्थात उद्धव पर श्री कृष्ण का प्रेम प्रभाव नहीं छोड़ पाया। सहृदयता- गोपियों की सहृदयता उनकी बातों में स्पष्ट झलकती है। वे कितनी भावुक हैं, इसका ज्ञान तब होता जब वे गद्गद होकर उद्धव से कहती हैं कि वे अपनी प्रेम-भावना को श्री कृष्ण के सामने प्रकट नहीं कर पाती बल्कि उसे मन में ही दबाये रखती हैं। “मन की मन ही माँझ रही। गोपियों की स्थिति ठीक उसी प्रेमिका की तरह है जो अपने प्रेमी को प्रेम तो करती है लेकिन उसका इजहार नहीं कर पाती इस तरह उनका वाक्चातुर्य अनुपम था। प्रश्न 12: संकलित पदों को ध्यान में रखते हुए सूर के भ्रमरगीत की मुख्य विशेषताएँ बताइए? उत्तर: सूरदास मधुर भावनाओ का चित्रण करने वाले कवि थे। उनका भ्रमरगीत जिन विशेषताओं के आधार पर अप्रतिम बन पड़ा है। वे इस प्रकार हैं-
प्रश्न 13: गोपियों ने उद्धव के सामने तरह-तरह के तर्क दिए हैं, आप अपनी कल्पना से और तर्क दीजिए। उत्तर: गोपियाँ अपने तर्क में कई और भी बातें शामिल कर सकती थीं। वे कह सकती थीं कि यदि योग इतना ही महत्वपूर्ण था तो श्रीकृष्ण ने उनसे पहले प्रेम ही क्यों किया था? क्या मथुरा जाने के बाद योग इतना महत्वपूर्ण हो गया या फिर उन्हें भूलने के लिए योग का सहारा लिया जा रहा है। यदि ऐसा ज्ञात होता कि कृष्ण का प्रेम नाटकीय है तो हम अपना मन समर्पित कर आज इतने व्यथित क्यों होते? हम भी श्री कृष्ण की तरह अपना हृदय कठोर बना लेते। गोपियाँ यह भी कह सकती थी कि, उद्धव के साथ रहते-रहते ज्ञान की बाते सुनते-सुनते कृष्ण भी कुछ ज्यादा ज्ञानी बन गए। जो हर बात में ज्ञान देने लगे और प्रेम की तुलना में उन्हें योग ज्यादा अच्छा लगने लगा। कृष्ण पहले प्रेम के बदले प्रेम देते थे लेकिन अब प्रेम के बदले ज्ञान और योग क्यों? गोपियाँ उद्धव से कहती है कि हमारे पास एक ही मन था और उसे हमने उसे कृष्ण को समर्पित कर दिया है। अब हम किसी और के बारें में सोच ही नहीं सकते फिर चाहे वो योग-साधना ही क्यों ना हो। हे उद्धव! हमारे लिए यह संभव नहीं है कि हम प्रेम को छोड़कर योग को अपनाएँ। आप परम ज्ञानी हो सकते हैं लेकिन हम लोग तो भोले-भाले है और अपना सब कुछ कृष्ण को समर्पित कर चुके हैं। इसलिए आपकी ये बाते हमे बिलकुल भी अच्छी नहीं लग रही। प्रश्न 14: उद्धव ज्ञानी थे, नीति की बातें जानते थे; गोपियों के पास ऐसी कौन-सी शक्ति थी जो उनके वाक्चातुर्य में मुखरित हो उठी? उत्तर: उद्धव ज्ञानी थे, परन्तु शायद व्यवहारिक ज्ञान उनके पास उतना नहीं था जितना कि गोपियों के पास था। उद्धव प्रेम की ताकत को भी नहीं जानते थे। उद्धव प्रेम से पूर्णतः अनभिज्ञ थे। जबकि गोपियों के पास श्री कृष्ण से सच्चे प्रेम की शक्ति एवम भक्ति की भी शक्ति थी, जिस कारण उन्होंने उद्धव जैसे ज्ञानी और नीतिज्ञ व्यक्ति को भी अपनी वाक्चातुर्य से परास्त कर दिया। सूरदास जी ने गोपियों के माध्यम से कहा है कि- “प्रीति नदी मैं पाउँ न बोरयौ, दृष्टि न रूप परागी। अर्थात ऊधव तो प्रेम की नदी के पास होकर भी उसमें डुबकी नहीं लगाते हैं और उनका मन पराग को देखकर भी मोहित नहीं होता है। हम गोपियाँ तो अबला और भोली हैं। हम कृष्ण के प्रेम में इस तरह से लिपट गये हैं जैसे गुड़ में चींटियाँ लिपट जाती हैं। Surdas Bhramargeet इसके अलावा गोपियों के पास श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम, असीम लगाव और समर्पण की शक्ति थी। वे अपने प्रेम के प्रति दृढ़ विश्वास रखती थीं। यह सब उनके वाक्चातुर्च में मुखरित हो उठा। प्रश्न 15: गोपियों ने यह क्यों कहा कि हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं? क्या आपको गोपियों के इस कथन का विस्तार समकालीन राजनीति में नजर आता है, स्पष्ट कीजिए। उत्तर: राजनीति छल, प्रपंच के पर्याय के रूप में हमेशा से जानी जाती रही है। फिर चाहे वो आजकल की आधुनिक राजनीति हो या मामा शकुनी वाली राजनीति। राजनीति में लोग अपनी बातों को घुमा फिरा कर कहते हैं। राजनीति में धर्म, कर्तव्य, विश्वास, अपनत्व, सुविचार आदि का कोई महत्व और स्थान नहीं है। फिलहाल आजकल की राजनीति में तो बिलकुल भी नहीं। राजनीति इतनी बुरी चीज है कि इसमें बाप, बेटे का नहीं होता। Surdas Bhramargeet जिस प्रकार श्री कृष्ण अपनी बात को सीधे और सरल तरीके से न कहकर उद्धव को भेजकर घुमा फिरा कर बाते कर रहे हैं उससे यह लाइन ‘‘हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं” बिलकुल ही चरितार्थ होती है। गोपियों द्वारा बोली गयी यह लाइन आजकल की राजनीति में भी नजर आती है। लोग झूठ, फरेब का सहारा लेते हैं। दूसरों के कंधे पर बन्दूक रखकर चलाते हैं। खुद को लोगों की नजरों में अच्छा बनाये रखना चाहते हैं। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार श्री कृष्ण ने उद्धव को भेजकर किया था। उद्धव को आगे करके श्री कृष्ण ने घुमा फिरा कर बातें की। हर हाल में अपना स्वार्थ पूरा करना, अवसरवादिता, अन्याय, कमजोरों को सताना अधिकाधिक धन कमाना आज की राजनीति का अंग बन गया है। गोपियों ने राजनीति शब्द को व्यंग के रूप में प्रयोग किया है। आज के समय में भी राजनीति शब्द का अर्थ व्यंग के रूप में लिया जाता है। Surdas Bhramargeet भ्रमरगीत की क्या विशेषता है?भ्रमरगीत की निम्नलिखित विशेषताएँ इस प्रकार हैं -
भ्रमरगीत में उद्धव व गोपियों के माध्यम से ज्ञान को प्रेम के आगे नतमस्तक होते हुए बताया गया है, ज्ञान के स्थान पर प्रेम को सर्वोपरि कहा गया है। भ्रमरगीत में गोपियों द्वारा व्यंग्यात्मक भाषा का प्रयोग किया गया है। भ्रमरगीत में उपालंभ की प्रधानता है।
सूरदास के पदों के आधार पर भ्रमरगीत की क्या विशेषताएँ हैं?Solution : सूरदास के पदों के आधार पर भ्रमरगीत की कुछ विशेषताएँ निम्नलिखित हैं - <br> (क) पदों में गेयता और संगीतात्मकता का गुण है। <br> (ख) इस गीत में सगुण ब्रह्म की सराहना है। <br> (ग) इसमें गोपियों के माध्यम से उपालंभ, वाक्पटुता, व्यंग्यात्मकता का भाव मुखरित हुआ है।
भ्रमर गीत का उद्देश्य क्या है?सुख-संदेश सुनाय हमारो गोपिन को दुख मेटियो। सूर सगुण लीला पद गावै।'' उद्धव गोपियों के लिए कृष्ण का संदेश लाए हैं - निर्गुण का ध्यान धरने एवं सामाधि लगाने का संदेश।
भ्रमरगीत क्या है स्पष्ट करें?'भ्रमरगीत' शब्द 'भ्रमर' और 'गीत' दो शब्दों के मेल से बना है। 'भ्रमर' छ: पैरवाला एक कीट है जिस का रंग काला होता है। इसे भँवरा भी कहते हैं। 'गीत' गाने का पर्याय है इसलिए 'भ्रमर गीत' का शाब्दिक अर्थ है- भँवरे का गान, भ्रमर संबंधी गान या भ्रमर को लक्ष्य करके लिखा गया गान।
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