राजस्थानी भाषा दिवस कब मनाया जाता है? rajasthani bhasha divas kab manaya jata hai Day & Date GK Hindi kya kise kab kaha kaun kisko kiska kaise hota kahte bolte h kyo what why which where gk hindi english Answer of this question rajasthani bhasha divas kab manaya jata hai - 21 farvari Show Jaipur: अफसोस, Google Samachar की दुनिया में आज मातृभाषा दिवस पर हमें अपनी मायड़ भाषा राजस्थानी के इतिहास, राजस्थानी भाषा की स्थिति और राजस्थानी भाषा की मान्यता को लेकर बात भी हिंदी में लिखनी पड़ रही है. एक ऐसी भाषा जो आजादी से पहले राजस्थान, मालवा और उमरकोट (आज पाकिस्तान में ) की राजभाषा थी. साहित्यिक तौर पर जिस डिंगल ने दुनिया में डंका बजाया. वो अपने ही मुल्क, अपने ही सूबे में पहचान की मोहताज है. आभलिया तूं रूप सरूप, बादळ बिन बरसे नहीं मतलब ये कि आसमान कितना भी खूबसूरत हो, बादल के बिना बारिश नहीं होती और साले कितने भी सपूत हो लेकिन घर में भीड़, घर भरा और खुशहाल तभी लगेगा जब आंगन में अपने भाई खड़े हो. ठीक उसी तरह, व्यवसायिक नजरिए से अंग्रेजी समेत तमाम भाषाएं कितनी भी समृद्ध नजर आती हो लेकिन अपनत्व और आनंद की परम अनुभूति तभी होती है. जब हम राजस्थानी भाषा में किसी से बात करें. राजस्थानी भाषा आजादी से पहले राजस्थान, मालवा और उमरकोट की राजभाषा थी. राजस्थानी भाषा की करीब दर्जनभर बोलियां है. मारवाड़ी, मेवाड़ी, मेवाती, ढ़ूंढ़ाड़ी, वागड़ी, हाड़ौती, ब्रज, माळवी, भीली, पहाड़ी और खानाबदोषी बोलियां है. जबकि राजस्थान की साहित्यिक लेखनी डिंगली और पिंगल. दो भाषाओं में होता है डिंगल और पिंगल में अंतर जब हम पूर्वी राजस्थान की ओर आते है. और जहां राजस्थानी भाषा और ब्रज भाषा आपस में मिल जाती है. उस क्षेत्र की साहित्यिक रचनाएं जिस भाषा में हुई उसे “पिंगल” कहा गया. इसमें सबसे ज्यादा लेखन भाटों ने किया है. मां और मायड़ भाषा को बराबर दर्जा दिया जाता है. लेकिन जब मायड़ भाषा अपने अस्तित्व की जंग लड़ रही हो. सिसक रही हो, बेदम हो रही हो. उस दौर में यदि भाषा रुपी मां के सपूत अपनी आवाज को मजबूत न करें, उसका सहारा न बने, तो “कपूतों” के लक्षण है. आजादी से पहले हमारे यहां जागीदारी से लेकर रियासत तक, हर स्तर पर लेखक और कवियों का सम्मान होता था. जागीरदार, सामंत या उस रियासत का राजा. किसी कवि या लेखक को सम्मान/भेंट देने में अपनी शान समझता था. लिहाजा हमारी भाषा बहुत से लोगों के लिए रोजगार का जरिया भी थी. लेकिन आजाद भारत में रियासतें और रजवाड़े खत्म हो गए. और जब हमारी संस्कृति और भाषाओं को संवैधानिक दर्जे से दूर रखा. तो वो भी तिल तिल खत्म होने लगी. जिन नेताओं पर राजस्थानी भाषा को संवैधानिक सम्मान दिलाने की जिम्मेदारी थी. उन्हौने न तो इसे खाने-कमाने की भाषा बनने दिया. और न ही ये कभी सियासत और सत्ता की भाषा बन पाई. ऐसे में अगर अब नहीं जागे, तो हम इस भाषा को आने वाली पीढ़ी तक भी नहीं पहुंचा पाएंगे. हमारी पीढ़ी में ही ये भाषा पूरी तरह से खत्म हो जाएगी. फिलहाल तो इसी उम्मीद के सहारे कि - मायड़ भाषा लाड़ली, जन-जन कण्ठा हार विश्वविद्यालयों में मान्यता राजस्थानी भाषा को मान्यता का संघर्ष एसएस महापात्रा कमेटी ने मान्यता के लायक बताया. तो साल 2006 में उस वक्त के देश के गृह राज्यमंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने इस पर सैद्धांतिक सहमति भी दी. बताया जाता है कि केंद्र सरकार ने राजस्थानी भाषा को मान्यता देने के लिए बिल भी बनाया लेकिन आज तक वो संसद में पेश नहीं हो पाया. 2009 में देश में जब लोकसभा के चुनाव हुए. तो बीकानेर से बीजेपी के अर्जुनराम मेघवाल सांसद बने. उन्हौने लोकसभा में शपथ राजस्थानी भाषा में लेनी चाही. लेकिन उन्हैं ऐसा करने से रोका गया. तब अर्जुनराम मेघवाल विपक्ष में थे. लिहाजा करीब एक दर्जन बार ये मुद्दा उन्हौने संसद में उठाया. वर्तमान में वो सत्ता में है. खुद भी कई बार ठेठ राजस्थानी भजन गाते दिख जाते है. लेकिन मायड़ भाषा का असली अपनत्व तो तब दिखे जब वो अपनी ही सरकार में इसे सम्मान दिला पाएं. चौपालों पर मारवाड़ री हथाई अब आगे क्या रास्ता ? देश और दुनिया में राजस्थान की पहचान मीरा की धरती के रुप में है. लेकिन मीरा ने कृष्ण की भक्ति में जिस भाषा में भजन किए. जिस भाषा की वजह से मीरा का यश और सम्मान बढ़ा. वो भाषा अपने सम्मान की बाट जोह रही है. वीरो की धरती राजस्थान के महाराणा प्रताप का नाम और उनके शौर्य के बारे में पूरी दुनिया जानती है. लेकिन उसी राणा प्रताप के शौर्य का सदियों तक जिस भाषा में बखान हुआ. वो भाषा अपने अस्तित्व संघर्ष कर रही है. ऐसे में अगर राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलानी है. तो इसे जन आंदोलन बनाना होगा. अकादमियों में पद और पुरुस्कार की लालसा में जो लोग इसे मान्यता दिलाने के झंडाबरदार बने हुए है. अब उनके भरोसे रहने का वक्त नहीं बचा है. अगर अब भी उनके भरोसे रहे. तो ये भाषा हम अगली पीढ़ी को नहीं सौंप पाएंगे. राजस्थान दिवस 30 मार्च को क्यों मनाते हैं?राजस्थान दिवस, इसे राजस्थान का स्थापना दिवस भी कहा जाता है। हर वर्ष के तीसरे महीने (मार्च) की दिनाङ्क 30 को राजस्थान दिवस मनाया जाता है। 30 मार्च, 1949 में जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर रियासतों का विलय होकर 'वृहत्तर राजस्थान सङ्घ' बना था।
मारवाड़ी भाषा दिवस कब मनाया जाता है?अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति के प्रदेश उप पाटवी चंदन सिंह भाटी ने बताया कि 21 फरवरी को पूरे प्रदेश में राजस्थानी भाषा दिवस मनाया जाएगा।
राजस्थानी भाषा की उत्पत्ति कैसे हुई?राजस्थानी भाषा की उत्पति शौरसेनी गुर्जर अपभ्रंश से मानी जाती है। उपभ्रंश के मुख्यतः तीन रूप नागर, ब्राचड़ और उपनागर माने जाते हैं। नागर के अपभ्रंश से सन् 1000 ई. के लगभग राजस्थानी भाषा की उत्पति हुई।
राजस्थानी भाषा किसकी है?राजस्थानी भाषा मुख्य रूप से राजस्थान राज्य में बोली जाती हैं, लेकिन गुजरात, हरियाणा और पंजाब में भी बोली जाती हैं। राजस्थानी भाषा पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के बहावलपुर और मुल्तान क्षेत्रों और सिंध के थारपारकर जिले में भी बोली जाती हैं।
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