पेट में बच्चा उल्टा हो तो क्या करना चाहिए? - pet mein bachcha ulta ho to kya karana chaahie?

कुछप्राइवेट अस्पतालोंमें सीजेरियन डिलीवरी के नाम पर बड़ा खेल हो रहा है। बच्चा उल्टा होने। बच्चे के गले में कॉर्ड फंस जाने या फिर बच्चे के मुंह में गंदा पानी चला जाने का रिस्क दिखाकर ही गर्भवती महिलाओं को सीजेरियन डिलीवरी करवाने की सलाह दी जाती है। बच्चे के रिस्क में ये सलाह माननी ही पड़ती है।

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नॉर्मल डिलीवरी की अपेक्षा सीजेरियन में कमाई भी मोटी होती है। इसी वजह से सिविल की अपेक्षा प्राइवेट अस्पतालों में सीजेरियन केसों की संख्या डबल है। स्वास्थ्य महकमे के अफसर भी यह बात स्वीकार करते हैं। पर काफी हद तक इसके लिए गर्भवती महिला उनके परिजन ही जिम्मेदार होते हैं।

20से 40 हजार में हो रही है डिलीवरी : प्राइवेटअस्पतालों में सीजेरियन डिलीवरी की एवज में 20 से 40 हजार रुपए वसूले जा रहे हैं। कुछेक अस्पताल तो 50 हजार रुपए तक ले रहे हैं। जबकि सिविल अस्पताल में ऐसी डिलीवरी पर खर्च काफी कम आता है। सरकारी अस्पताल में 60 से 70 फीसदी नॉर्मल डिलीवरी हो रही है जबकि प्राइवेट अस्पताल में यह संख्या 20 से 30 प्रतिशत ही है। आंकड़ों से साफ जाहिर है कि प्राइवेट अस्पताल सीजेरियन डिलीवरी को ज्यादा प्राथमिकता दे रहे हैं। हालांकि इसके पीछे असल वजह किसी को मालूम ही नहीं है।

कमाईबढ़ाने का जरिया है सीजेरियन डिलीवरी : निजीचिकित्सकों के लिए कमाई बढ़ाने का जरिया है सीजेरियन डिलीवरी। दरअसल नॉर्मल डिलीवरी से प्राइवेट अस्पतालों को इतनी कमाई नहीं होती। मोटी कमाई के लिए ही सीजेरियन को तवज्जो दी जा रही है। दूसरी ओर सिविल अस्पताल में चिकित्सक नॉर्मल डिलीवरी को ही बढ़ावा दे रहे हैं। जरूरी केसों में ही सीजेरियन डिलीवरी का निर्णय लिया जाता है। इसी वजह से सरकारी अस्पताल में ऐसे केसों की संख्या बेहद कम है।

तीनमहीने में 335 सीजेरियन डिलीवरी : सिविलअस्पताल यमुनानगर में तीन महीने के भीतर महज 335 सीजेरियन डिलीवरी हुई है। प्राइवेट अस्पतालों की अपेक्षा यह संख्या काफी कम है। सिविल अस्पताल में जनवरी महीने में कुल 346 नॉर्मल 129 सीजेरियन डिलीवरी हुई। जबकि फरवरी में नॉर्मल डिलीवरी 259 सीजेरियन डिलीवरी 105 हुई। इसी तरह मार्च में 256 नॉर्मल 101 सीजेरियन डिलीवरी हुई हैं।

प्राइवेटमें हर दूसरी डिलीवरी सिजेरियन से : भास्करने शहर के एक दर्जन से ज्यादा अस्पतालों का सर्वे किया। वहां के रिकार्ड के मुताबिक हर दूसरी डिलीवरी सिजेरियन की जाती है। मरीज के परिजनों को जच्चा-बच्चा की सुरक्षा की दुहाई दी जाती है। जिससे मरीज के परिजन डर के मारे सिजेरियन के लिए सहमति दे देते हैं।

^ ये बात बिल्कुल सही है कि प्राइवेट अस्पतालों में सबसे ज्यादा सीजेरियन डिलीवरी हो रही हैं। इसकी वजह से सब वाकिफ हैं। इसके लिए महिलाएं उनके परिजन भी काफी हद तक जिम्मेदार हैं। मगर सिविल अस्पताल में सबसे ज्यादा नॉर्मल डिलीवरी ही होती है। जरूरत पड़ने पर ही महिला को सीजेरियन की सलाह दी जाती है। डॉक्टरशिवेंद्र सिंह, डिप्टी सीएमओ, स्वास्थ्य विभाग, यमुनानगर

प्राइवेट में हर महीने 250 डिलीवरी

प्राइवेटअस्पताल में सीजेरियन डिलीवरी की संख्या सरकारी की अपेक्षा डबल है। मगर आईएमए इन आरोपों का कड़ा विरोध कर रही है। आईएमए के प्रधान डॉक्टर अनिल अग्रवाल ने बताया कि यमुनानगर में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन से 54 प्राइवेट अस्पतालों के चिकित्सक जुड़े हैं। इनमें से 47 अस्पतालों में सीजेरियन दूसरे ऑप्रेशन होते हैं। इन अस्पतालों में हर महीने करीब 1200 डिलीवरी होती है। जिसमें से 250 के आसपास ही सीजेरियन डिलीवरी होती है। गर्भवती महिलाएं उनके परिजन ही बच्चे का रिस्क नहीं लेना चाहते। उनकी सहमति से ही ज्यादातर सीजेरियन डिलीवरी होती हैं। रही बात फीस की वो सुविधाओं के लिहाज से निर्धारित है। किसी महिला का पहला बच्चा अगर सीजेरियन डिलीवरी से पैदा होता है तो उसके दूसरे बच्चे की डिलीवरी भी 99 फीसदी सीजेरियन से ही होगी। हां अगर गर्भ में पल रहा शिशु ज्यादा ही कमजोर हो तो चांस नॉर्मल डिलीवरी के बन जाते हैं। दूसरे बच्चे की डिलीवरी से पहले महिला को यह बताना होता है कि पहला बच्चा सीजेरियन डिलीवरी से पैदा हुआ था। उसी आधार पर ही चिकित्सक महिला की दोबारा डिलीवरी होती है।

जब आप माँ बनना चाहती हैं और आपको यह खबर मिलती है कि आप गर्भवती हैं, तो आप खुशी से फूली नहीं समाती हैं। इस दौरान जब आपकी 9 महीने तक देखभाल की जाती है और हर फरमाइश पूरी होती है तो आपको बहुत अच्छा महसूस होता है। लेकिन हर गर्भावस्था सामान्य नहीं होती है, अगर आपके डॉक्टर आपको बताते हैं कि आपका ब्रीच बेबी है यानी गर्भ में आपके बच्चे की स्थिति ऐसी है कि उसका सिर ऊपर की तरफ है, तो यह सुनकर आप घबरा सकती हैं।

गर्भावस्था की शुरुआत में बच्चों का ब्रीच पोजीशन में होना सामान्य बात है और जैसे जैसे डिलीवरी का समय पास आने लगता है, वे अपनी पोजीशन में आने लगते हैं। लेकिन अगर ऐसा नहीं होता है, तो आप गर्भ में बच्चे को सही पोजीशन में आने के लिए कुछ तकनीकों और एक्सरसाइज का उपयोग कर सकती हैं। ये कैसे करें, यह जानने के लिए लेख को आगे पढ़ना जारी रखें।

ब्रीच बेबी को सही पोजीशन में लाने की तकनीक

जब आप अपनी प्रेगनेंसी की अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट देखती हैं तो अपने बच्चे को ब्रीच पोजीशन में देख कर परेशान होना जायज है। लेकिन अच्छी बात यह है कि आपके बच्चे का सिर स्वाभाविक रूप नीचे करने की कई तकनीकें मौजूद हैं। यदि आप जानना चाहती हैं कि अपने ब्रीच बेबी को सामान्य तरीके से कैसे सीधा करें, तो निम्नलिखित प्रभावी तकनीकें अपनाएं:

1. लाइट 

लाइट कई तरह के चमत्कार कर सकती है। जब आपको अपनी गर्भावस्था के आखिरी चरण में पता चलता है कि बच्चे का सिर नीचे की ओर नहीं है, तो हो सकता है कि आपको समझ नहीं आए कि आगे क्या करना है। लेकिन केवल नीचे के पेल्विक एरिया पर फ्लैश लाइट लगाने से आप जादू होते हुए देख सकती हैं।

यह आपको जरूर पता होना चाहिए कि दूसरी तिमाही के अंत तक, भ्रूण बाहर से प्रकाश को पहचान जाता है। जब आप अपने पेल्विक अंगों पर लाइट फ्लैश करती हैं, तो इस बात की बहुत अच्छी संभावना है कि बच्चा उस प्रकाश को फॉलो करेगा और अपना सिर नीचे की ओर ले जाएगा। हालांकि इससे जुड़ी कोई स्टडी नहीं हुई है, लेकिन इस सरल तकनीक को आजमाने में कोई नुकसान नहीं है।

2. फ्रॉस्ट का मैजिकल टच 

अपने बच्चे के सिर को नीचे की दिशा में घुमाने का यह एक और आसान तरीका है। आइस पैक या फ्रोजन मटर पैक रखने से काम चल जाएगा। आपको बस अपने पेट पर एक तौलिया रखना है, खासकर जहां बच्चे का सिर है और फिर धीरे से उस पर आइस पैक रखें। यह संभावना है कि बच्चे को ठंड लगेगी और वह इससे दूर जाने की कोशिश करेगा और आपको भी यही चाहिए। 

3. मेडिकल तरीके अपनाएं 

मेडिकल तकनीक पर तब विचार किया जाना चाहिए जब कुछ और तरीका काम नहीं करता है। बच्चे को हाथों से घुमाने के लिए उपयोग की जाने वाली प्रक्रिया को ईसीवी या एक्सटर्नल सेफेलिक वर्जन (ईसीवी) कहा जाता है।

सबसे पहले डॉक्टर आपको एपिड्यूरल देकर आपके गर्भाशय को आराम देने में मदद करेंगे। एक बार यह हो जाने के बाद, डॉक्टर शारीरिक रूप से बच्चे को हिलाने या झुकाने की कोशिश करेंगे। इस प्रक्रिया में दर्द होता है और यह खतरनाक भी है। लेकिन सही तकनीक और विशेषज्ञता का इस्तेमाल करके बिना ज्यादा मेहनत किए इसे सही तरीके से किया जा सकता है। लेकिन किसी को भी इस प्रक्रिया से जुड़े जोखिमों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए जिससे सिजेरियन सेक्शन सर्जरी हो सकती है।

4. करवट बदलने की कोशिश करें

करवट पर मुड़ने से आपके ब्रीच बेबी को सही पोजीशन में लाने में मदद मिलती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि बार-बार दोनों तरफ मुड़ने से आप अपने पेल्विक को लचीला बनाती हैं और यह बच्चे को मुड़ने या नीचे की ओर आने के लिए रास्ता देने में मदद करता है। यह एक नेचुरल प्रक्रिया है और आपको नींद में पता भी नहीं चलेगा कि बच्चा कब सिर के बल नीचे की ओर आ गया है। ब्लड सर्कुलेशन बढ़ाने के लिए दाहिनी ओर की बजाय बाई करवट पर सोएं। साथ ही अपने पैरों और घुटनों को मोड़ लें और पैरों के बीच एक तकिया रख लें।

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5. मोक्सीबस्टन एक्यूपंक्चर का प्रयोग 

ब्रीच बेबी को घुमाने के लिए एक्यूपंक्चर एक शानदार तरीका है। इस तकनीक में, एक फिजिशियन आपके दोनों पैर की उंगलियों पर पतली सुइयों को चुभाएगा। फिर मोक्सीबस्टन नाम की धूप में मगवॉर्ट नाम की एक हर्ब होती है। इस धूप को जलाया जाता है, और इसका धुआं पंजों के चारों ओर दिया जाता है। यह गर्मी, सुई के दबाव और धुएं का मिक्सचर है, जिसकी वजह से बच्चा नीचे की दिशा में मुड़ जाता है।

6. पानी से होने वाले फायदे

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि गर्भवती महिला पानी में आराम और हल्का महसूस करती है। यदि आप तैराकी में माहिर हैं, तो आप पानी में आगे और पीछे फ्लिप कर सकती हैं या ब्रेस्टस्ट्रोक भी आजमा सकती हैं। यह बच्चे के सिर को नीचे की तरफ लाने में बहुत मदद करता है। एक और चीज जो आप आजमा सकती हैं वह है पानी में रहते हुए शीर्षासन करना। यह सुनने में अजीब लगता है, लेकिन यह एक उपयोगी और प्रभावी तकनीक है। हालांकि, पानी में जाते समय सावधान रहने की जरूरत है और डाइविंग से पहले हमेशा अपने डॉक्टर से सलाह जरूर लें। पानी में शीर्षासन करने से पहले किसी ऐसे व्यक्ति की मदद लें जो आपके दोनों पैरों को पोजीशन में रख सके।

7. बच्चे के लिए थोड़ा शोर मचाएं 

आपको जानकर हैरानी होगी कि जब आप तीसरी तिमाही में पहुंचती हैं तो बच्चा बाहर से आने वाली आवाजों पर अपनी प्रतिक्रिया देना शुरू कर देता है। इसलिए यह तरीका भी सकारात्मक रूप से काम करता है। आपको बस कुछ सूदिंग यानी शांत करने वाला संगीत बजाना है और हेडफोन को पेल्विस के हिस्से पर रखना है। बच्चा इस संगीत को सुनेगा और स्वाभाविक रूप से नीचे चला जाएगा जहां से आवाज आ रही होगी। 

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8. सम्मोहन या हिप्नोटिज्म

यह बाकी सब तरीकों से थोड़ा अजीब लगता है सुनने में, लेकिन हाँ यह एक ऐसी तकनीक है जिसके कारण पहले कई सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। इसके पीछे के विज्ञान में यह तथ्य शामिल है कि हमारा व्याकुल मन शांत हो जाता है जबकि कम व्याकुल मन हमारे विचारों पर हावी होता है। एक हिप्नोटिस्ट होने वाली माँ को सम्मोहित कर लेता है और उसे आराम करने और उसकी सारी चिंताओं को भूल जाने के लिए कहता है। एक बार जब शरीर शिथिल हो जाता है, तो उसे अपने सही पोजीशन वाले बच्चे की मानसिक छवि बनाने के लिए कहा जाता है। यह प्रक्रिया को वास्तविक रूप से करने में मदद करता है।

9. मसाज करें

प्रीनेटल मसाज पुराने समय से ही काफी लोकप्रिय रही है। मालिश हर उस समस्या का एकमात्र समाधान है जिसका एक गर्भवती महिला को सामना करना पड़ता है। मालिश आराम करने और गर्भावस्था के तनाव और दर्द से बहुत जरूरी ब्रेक पाने में मदद करती है। 

मालिश बच्चे को सही पोजीशन में लाने में काफी मदद करती है। आपको पता होना चाहिए कि जब आप गर्भवती होती हैं, तो लिगामेंट्स, टेंडन और यहां तक ​​कि पेल्विक के आसपास की मांसपेशियां सख्त हो जाती हैं। लेकिन सही तरह की मालिश से आपके शरीर और दिमाग को आराम मिलेगा और इस तरह बच्चे के नीचे की ओर मुड़ने का रास्ता बन जाएगा।

10. वेबस्टर के तरीके को अपनाना 

यह तकनीक एक विशेषज्ञ काइरोप्रैक्टर द्वारा संचालित की जाती है। यह प्रक्रिया आपकी पेल्विक हड्डियों को फिर से जगह पर लाने और आपके लिगामेंट्स को आराम देने के उद्देश्य से की जाती है ताकि बच्चे के लिए अपने सिर को नीचे की दिशा में ले जाने के लिए एक प्राकृतिक मार्ग बनाया जा सके। आपको एक दिन में मनचाहा परिणाम नहीं मिलेगा और इसलिए आपको धैर्य रखना पड़ेगा। जब आप अपनी डिलीवरी की तारीख के करीब हों तो आपको सप्ताह में कम से कम 3 बार इस सेशन में भाग लेना होगा। इसके अलावा, ध्यान रखें कि आपका काइरोप्रैक्टर जानामाना हो और जिसका पहले सफल ट्रैक रिकॉर्ड रहा हो।

11. पल्सेटिला हर्ब 

इसमें बच्चे को पलटने के लिए होम्योपैथी पर निर्भर होना पड़ता है। पल्सेटिला एक हर्ब है जो विंडफ्लावर से प्राप्त होती है और महिलाओं को डॉक्टर द्वारा तब लेने की सलाह दी जाती है जब प्रेगनेंसी में उनका बच्चा एक ब्रीच बेबी होता है। यदि प्लेसेंटा की पोजीशन या गर्भाशय का विचलन आपके बच्चे के ब्रीच पोजीशन में होने का कारण है, तो यह जड़ी बूटी आपके काम की नहीं है। लेकिन अगर आपके बच्चे के खुद से पलटने को मना करने के अलावा सब कुछ सामान्य है, तो पल्सेटिला एक वरदान साबित होता है। यह उस जड़ी बूटी की खुराक है जो आपके गर्भाशय को फैलने होने में सहायता करती है, इस प्रकार आपके बच्चे को पलटने के लिए जगह मिलती है।

ब्रीच बेबी को सही पोजीशन में लाने के लिए एक्सरसाइज

हालांकि ऊपर बताई गई तकनीकें जरूरत वाला सारा काम करेंगी, लेकिन व्यायाम भी आपके ब्रीच बेबी को सामान्य पोजीशन में लाने में मदद करता है। साथ ही, व्यायाम करने से आप फिट रहती हैं और मूड भी अच्छा रहता है, तो क्यों न कुछ कोशिश करें कि आपके बच्चे को हिलने-डुलने के लिए कुछ जगह मिले। इन व्यायामों की मदद से बच्चे को गर्भावस्था के 37 हफ्ते से पहले सही पोजीशन में आने के लिए घूमने में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए। हालांकि, 37 हफ्ते या उसके बाद ब्रीच बेबी को केवल डॉक्टर की मदद से ही घुमाना चाहिए।

1. अपने शरीर को टेढ़ा करें 

इस तरीके को टिल्ट मेथड भी कहा जाता है, इस एक्सरसाइज को आयरन बोर्ड की मदद से आसानी से किया जा सकता है। सोफे जैसी कोई स्थिर सतह ढूंढे और आयरन बोर्ड के एक सिरे को ढलान की पोजीशन में सोफे पर और दूसरे सिरे को फर्श पर रखें।

अपने सिर को फर्श की ओर और अपने पैरों को सोफे की ओर करके बोर्ड पर लेट जाएं। लेकिन किसी अपने को साथ रखें क्योंकि संतुलन कभी भी बिगड़ सकता है। यह झुकाव बच्चे के सिर पर थोड़ा दबाव डालेगा, और वह शायद अपनी ठुड्डी को टक कर लेगा, इस प्रकार उसके पलटने की संभावना अधिक है। इस एक्सरसाइज को दिन में कम से कम 3 बार करें और बाद में बेहतर परिणाम हासिल करने के लिए प्रत्येक सत्र को 10-15 मिनट तक करें। 

2. घुटने से छाती तक

यह एक्सरसाइज गुरुत्वाकर्षण पर आधारित है। यह एक साधारण व्यायाम है जिसमें आप एक चटाई पर अपने घुटनों के बल लेट जाती हैं। इसके बाद, अपने हाथों को जमीन पर रखें, अपनी ठुड्डी को इन पर टिकाएं और अपने बट को हवा में ऊपर उठाएं। इस पोजीशन में लगभग 5-10 मिनट तक रहें। यह व्यायाम आपके गर्भाशय के निचले हिस्से को फैलने में मदद करता है, इस तरह बच्चे को सही दिशा में मुड़ने के लिए अधिक जगह मिलती है।

दिन में कम से कम 2 बार इस व्यायाम को करने की सलाह दी जाती है। इसके अलावा, इसे खाली पेट करने की कोशिश करें, वरना यह बाद में बेचैनी या मतली को बढ़ा देता है। यदि आपको लगता है कि इस व्यायाम को करते समय आपका बच्चा मुड़ रहा है, तो अपने एक हाथ का उपयोग करके बच्चे के पीछे के हिस्से पर हल्का दबाव डालें जो कि प्यूबिक बोन के ठीक ऊपर होता है।

3. कैट-काऊ पोजीशन 

इसे हैंड एंड नी पोजीशन भी कहा जाता है, एक माँ होने के नाते आप इस एक्सरसाइज पर अपने बच्चे के घूमने के लिए भरोसा कर सकती है। यह पोजीशन शरीर को लचीला बनाने में मदद करती है ताकि बच्चे को आसानी से पलटा जा सके। अपने लिए एक योगा मैट या एक साधारण मैट लें। अब अपने घुटनों और हाथों के बल पर चटाई पर झुकें और पेट को नीचे करें। यह पोजीशन गाय के पोस्चर के समान होती है। इसके बाद अपनी पीठ को कर्व पोजीशन में उठाएं और वहीं रहें। यह बिल्ली की पोजीशन के समान है। इसे दिन में 3-4 बार दोहराएं और देखते ही देखते बच्चा अपनी सही पोजीशन में आ जाएगा।

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4. उल्टा होकर आगे की ओर झुकना

यह व्यायाम घुटने से छाती तक के व्यायाम के समान होता है, लेकिन इसमें थोड़ा अधिक प्रयास किया जाता है। घुटने से छाती तक के व्यायाम के समान पैटर्न का पालन करें। हालांकि, इस बार अपने निचले शरीर को सोफे या बिस्तर पर और अपने ऊपरी शरीर के हिस्सों, यानी सिर और कोहनी को जमीन पर रखें।

अपनी ठुड्डी को मोड़ना न भूलें क्योंकि यह कदम पेल्विक की मांसपेशियों को आराम देने में मदद करेगा। इस एक्सरसाइज को करते समय किसी को अपने पास रखें। लगभग 30 सेकंड तक इसी पोजीशन में रहें और इसे दिन में 3-4 बार दोहराएं।

5. अपने पोस्चर पर ध्यान दें

व्यायाम करना अहम है, लेकिन जो अधिक जरूरी है वह है अपना पोस्चर सीधा खना। एक सही पोस्चर आपके बच्चे को पलटने के लिए पर्याप्त जगह प्रदान करेगा। अच्छा पोस्चर बनाए रखने का सही तरीका यह है कि अपनी ठुड्डी को जमीन से सीधा करके खड़े हों। अपने कंधों को पीछे की दिशा में ले जाने की कोशिश किए बिना उन्हें स्वाभाविक रूप से आराम करने दें। याद रखें कि झुकी हुई पोजीशन में खड़े न हों जैसे कि आपका पेट फुला हुआ हो और अपने कूल्हों को खींचे ताकि शरीर का ग्रेविटेशनल पुल उन पर बना रहे।

ध्यान रखने योग्य बातें

ब्रीच बेबी को घुमाना एक चुनौतीपूर्ण काम हो सकता है। यदि आप ऊपर बताई गई तकनीकों और एक्सरसाइज को आजमाती हैं, तो आप उन्हें सही पोजीशन में ला सकती हैं। हालांकि, कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए ताकि गर्भावस्था के दौरान या प्रसव के दौरान किसी भी समस्या से बचा जा सके।

  • ब्रीच बेबी की पोजीशन तब तक सामान्य है जब तक आप गर्भावस्था के 30वें हफ्ते तक नहीं पहुंच जाती हैं और 32वें हफ्ते तक ठीक हो जाती हैं।
  • किसी भी तकनीक या व्यायाम को आजमाने से पहले हमेशा अपने डॉक्टर से सलाह जरूर लें क्योंकि आपको या बच्चे को इस स्थिति से जुड़े स्वास्थ्य जोखिम हो सकते हैं।
  • यदि गर्भावस्था के 37वें सप्ताह के अंत तक आपका बच्चा अभी भी ब्रीच पोजीशन में है, तो मेडिकल मदद लेने की सलाह दी जाती है। यह ध्यान रखना जरूरी है कि ऐसे मामलों में ब्रीच बेबी को मैन्युअल रूप से मोड़ने के लिए ईसीवी या एक्सटर्नल सेफेलिक वर्जन को अपनाया जाएगा।
  • ऐसे हालात में आपको अपने ऊपर भरोसा रखने और सकारात्मक होने की जरूरत है और दुःखी नहीं होना यह सोचकर कि आपके साथ ऐसा क्यों हुआ।
  • अगर आपको एक्सरसाइज के दौरान कोई दर्द या तकलीफ होती है तो तुरंत बंद कर दें।
  • जितना हो सके उतना पानी पिएं। शरीर की सभी समस्याओं के लिए तरल पदार्थ पीना एक प्रभावी समाधान है, और इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता है।
  • ईसीवी उन गर्भवती महिलाओं के लिए इस्तेमाल की जाने तकनीक नहीं है जिनके गर्भ में जुड़वां बच्चे हैं या वे गर्भवती महिलाएं जिनके गर्भाशय का आकार दिल जैसा हो और नाशपाती के आकर जैसा नहीं।
  • अपने आप पर, अपने बच्चे पर और अपने शरीर पर भरोसा करें; कभी-कभी आपको बस इतना करना होता है कि धैर्य रखकर इंतजार करें और बच्चे को सामान्य रूप से सिर नीचे करने की पोजीशन में लाएं। ऐसे में घबराना कोई समाधान नहीं है।
  • बच्चों में हिप डिस्प्लेसिया या दिमाग तक पहुंचने वाली ऑक्सीजन की कमी जैसी समस्याओं से बचने के लिए ब्रीच बेबी को घुमाना जरूरी हो जाता है।
  • बात करना कभी-कभी मददगार साबित होता है। दिल से निकले शब्द आपकी सहायता कर सकते हैं। अपने पेट पर हाथ रखकर बात करें; बच्चे को यह सुनने दें कि आप क्या चाहती हैं और इस पोजीशन में उसे क्या करने की जरूरत है।
  • आखिर में, यदि कोई अन्य तकनीक काम नहीं करती है तो सी-सेक्शन अपनाना ही आपका अंतिम विकल्प है। बाद में किसी भी समस्या से बचने के लिए सी-सेक्शन के लिए पहले से ही योजना बनाना हमेशा बेहतर रहता है।

ऊपर दी गई जानकारी को देखकर आप अब तक जान गई होंगी कि ब्रीच बेबी क्या होता है और ऐसी स्थिति में आप क्या कर सकती हैं। किसी भी तरह के तनाव से बचने के लिए शांत रहें और मेडिटेशन करें। साथ ही, यह भी जानना कि यह एक सामान्य स्थिति है और 37 सप्ताह के अंत तक केवल लगभग 3% बच्चे ही हैं जो अपने सिर को नीचे की तरफ नहीं ला पाते हैं, जो कि इसे अहम बनाता है। इसे एक अतिरिक्त टिप के रूप में लें, दूसरे जो कह रहे हैं उस पर विश्वास करने के बजाय खुद पर और अपनी जानकारी पर भरोसा रखें।

गर्भ में बच्चा उल्टा हो तो क्या करना चाहिए?

गर्भ में बच्‍चा उल्‍टा हो जाए तो इस स्थिति में ऑपरेशन से ही डिलीवरी करवानी पड़ती है। उल्‍टे बच्‍चे का प्रसव करवाना आसान नहीं होता है लेकिन फिर भी आज के चिकित्‍सा युग में ऑपरेशन की इसका इलाज रह गया है। पुराजे जमाने में दाई बच्‍चे के उल्‍टा होने पर भी बिना ऑपरेशन के सुरक्षित प्रसव करवा देती थीं।

गर्भ में बच्चा सीधा कब होता है?

बहुत से शिशु जन्म से पहले घूमकर सिर नीचे वाली अवस्था में आ जाते हैं। हालांकि, यदि 36 सप्ताह की गर्भावस्था के बाद भी आपका शिशु गर्भ में उल्टा ही है, तो उसके सीधी अवस्था में आने की संभावना बहुत कम होती है।

उल्टा होने का क्या कारण है?

यह कई कारणों से होता है जैसे - मोशन सिकनेस / सीसिकनेस, गर्भावस्था की पहली तिमाही, भावनात्मक तनाव, पित्ताशय की बीमारी, संक्रमण, दिल का दौरा, अधिक भोजन करना, ब्रेन ट्यूमर, कैंसर, अल्सर, बुलिमिया और विषाक्त पदार्थों का सेवन या अधिक शराब।

बच्चे का सिर कौन से महीने में नीचे आता है?

बच्चा कब खिसकता है बच्चा अमूमन गर्भावस्था के 34वे और 36वे सप्ताह में खिसकता है। लेकिन कुछ महिलाओं में ऐसा प्रसव पीड़ा के कुछ क्षण पहले भी हो सकता है। खासकर उन महिलाओं में यह ज्यादा होता है, जो पहली बार गर्भवती हुई हैं। जो महिलाएं एक से ज्यादा बार गर्भवती हो चुकी हैं, उनके गर्भ में बच्चे नीचे की ओर नहीं खिसकते।