what are the factors of industrial location in hindi उद्योग की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले कारक | उद्योगों के स्थानीयकरण के कारण कारकों का वर्णन कीजिए बताइए ? अवस्थिति को प्रभावित करने वाले कारक वास्तविक व्यवहार में, उद्योगों की अवस्थिति ऐतिहासिक, आर्थिक, प्राकृतिक और यहाँ तक कि मनोवैज्ञानिक कारकों द्वारा भी निर्धारित होती है। ऐतिहासिक कारक
कच्चे माल की उपलब्धता कतिपय उद्योग हैं जिनमें उत्पाद की उत्पादन लागत का प्रमुख घटक कच्चे माल की लागत होती हैं, उदाहरण के लिए चीनी, सूती वस्त्र, जूट वस्त्र, वृक्षारोपण उद्योग इत्यादि । दूसरी ओर, कुछ अन्य उद्योगों में यह अधिक नहीं होता है। उत्पादन की कुल लागत में कच्चे माल की लागत का अनुपात जितना अधिक होगा इस कारक का उतना ही अधिक भारित होगा। विपरीत स्थिति रहने पर यह कच्चे माल का स्वरूप भी इस कारक का सापेक्षिक महत्त्व निर्धारित करता है। कतिपय कच्चा माल या तो अत्यन्त भारी भरकम होता है अथवा जल्द ही नष्ट होने वाला होता है या भारी होता है। इन कच्चे मालों का परिवहन लम्बी दूरी तक नही किया जा सकता है। दूसरी ओर पी वी सी का परिवहन आसानी से काफी दूरी तक किया जा सकता है। पहली स्थिति में, कच्चे माल की निकटता महत्त्वपूर्ण कारक होगा, जबकि दूसरी स्थिति में, इसकी भूमिका अधिक नही होगी। बाजार की अभिगम्यता दूसरी ओर यदि तैयार माल का परिवहन आसानी से लम्बी दूरी तक करना संभव हो तो कोई कारण नहीं कि उद्योग किसी विशेष स्थान पर ही केन्द्रीकृत हो। औद्योगिक कार्यकलापों के विकेन्द्रीकरण में नए बाजारों का विकास एक महत्त्वपूर्ण घटक है। परिवहन सम्पर्क परिवहन के आधुनिक साधनों की बढ़ी हुई उपलब्धता और कार्य कुशलता ने उद्योगों की अवस्थिति के चयन के मामले में विगत की अपेक्षा अधिक स्वतंत्रता प्रदान की है। विद्युत
संसाधन श्रम संबंध एक, कम मजदूरी पर श्रमिकों की उपलब्धता है। पहले मुम्बई क्षेत्र और बाद में अन्तवर्ती कस्बों जैसे अहमदाबाद, शोलापुर, नागपुर और कानपुर में वस्त्र उद्योग के बड़े पैमाने पर केन्द्रीकरण के लिए यही कारक उत्तरदायी था। इसी प्रकार, जमशेदपुर में लौह और इस्पात उद्योग की स्थापना काफी हद तक सतत् श्रम आपूर्ति के कारण संभव हुआ था। तथापि, इस एक कारक का प्रभाव अब काफी कुछ कम हो रहा है। अब परिवहन और संचार के साधनों के विकास के साथ किसी भी दूरस्थ स्थान से श्रम की बढ़ी हुई पूर्ति का प्रबन्ध करना अधिक संभव होता जा रहा है। उदाहरण के लिए, कॉल सेंटरों का विकास। दो, इस निर्णय में श्रम-संबंध भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उन क्षेत्रों में जहाँ ट्रेड-यूनियनों का प्रभाव अधिक है, को सामान्यता कम प्राथमिकता दी जाती है। ट्रेड यूनियनों की उपस्थिति से भी अधिक महत्त्वपूर्ण यूनियनों की गतिविधियों के प्रति सरकार का रवैया है। सरकार ने जिन क्षेत्रों में अधिक संघर्षवादी यूनियनों को सख्ती से नियंत्रित करने का प्रयास किया है उन क्षेत्रों में उद्योगों के फलने-फूलने की प्रवृत्ति होती है। इसके विपरीत, जहाँ सरकार ट्रेड यूनियनों की अवैध गतिविधियों की मूक-दर्शक बनी रहती हैं वहाँ से उद्योगों के हट जाने की घटना सर्वविदित हैं। आधारभूत संरचना सेवाएँ वित्तीय सेवाएँ किंतु अंतरण और संचार के इलैक्ट्रॉनिक साधनों के विकास के कारण इस कारक का महत्त्व घट गया है। किंतु वह विशेष क्षेत्र या प्रदेश इसका अपवाद है जहाँ उद्योगों को आकर्षित करने के लिए सरकार उदार शर्तों पर साख सुविधएँ प्रदान करती हैं। प्राकृतिक और जलवायु संबंधी दशाएँ इसी प्रकार, उद्योग विशेषकर वे उद्योग जो कृषिगत कच्चे मालों पर निर्भर करते हैं की अवस्थिति के निर्धारण में जलवायु महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। व्यक्तिगत कारक रणनीतिक कारण संक्षेप में, उद्योग की अवस्थिति के लिए स्थान के चयन को कई कारक निर्धारित करते हैं। बहुत बड़ी संख्या में कारकों का जटिल सम्मिश्र है जो इस संबंध में निर्णय की प्रक्रिया को प्रभावित करता है। बोध प्रश्न 3 अवस्थिति को प्रभावित करने वाले कारण किसी उद्योग की अवस्थिति को सर्वव्यापक कच्चे माल की अपेक्षा स्थानीय कच्चा माल अधिक प्रभावित करता है। इसी प्रकार किसी विशिष्ट स्थान के प्रति कोई उद्योग कहाँ तक आकर्षित होता है वह इस बात पर भी निर्भर करता है कि उत्पादन की प्रक्रिया में कच्चे माल का भार किस हद तक घटता है। उन सामग्रियों जिनका भार उत्पादन की प्रक्रिया में कम होता है, शुद्ध माल की अपेक्षा अधिक पसंद किए जाते हैं। उपर्युक्त सरल निगमनों के आधार पर ही बेबर ने परिवहन अभिविन्यास का अपना नियम प्रतिपादित किया था। उनका विश्वास है कि तैयार वस्तु की तुलना में स्थानीय मालों के भार का अनुपात विनिर्माण उद्योगों की अवस्थिति पर निर्धारक प्रभाव डालता है। यदि यह अनुपात (जिसे वह भौतिक सूचीश् कहते हैं) अधिक है तो उद्योग की प्रवृत्ति कच्चे माल के भण्डार के समीप अवस्थित होने की रहेगी। यदि भौतिक सूची कम है तो उद्योग की प्रवृत्ति खपत के केन्द्र के समीप अवस्थित होने की रहेगी। पप) वेबर ने श्रम लागतों को दूसरा महत्त्वपूर्ण प्रादेशिक कारण माना है दान अवस्थिति को आकर्षित करने की शक्तियाँ दो कारकों पर निर्भर हैं: संक्षेप में, परिवहन लागतें और श्रम लागते प्रादेशिक अथवा प्राथमिक कारक हैं जो एक उद्योग की अवस्थिति को स्पष्ट करते हैं। प्रत्येक उद्योग विशेष, अवस्थिति के संबंध में निर्णय लेने से पहले परिवहन लागत लाभों और श्रम लागत लाभों के बीच संतुलन स्थापित करना चाहता है। ख) संचयी और विसंचयी कारक संचयी कारक एक ही स्थान पर उद्योग के केन्द्रीकरण के परिणामस्वरूप उत्पादन लागत में आने वाली मितव्ययिता से संबंधित है। दूसरे शब्दों में, संचयी कारक पैमाने की बाह्य मितव्ययिता से संबंधित है। संचयी और विसंचयी कारक विपरीत दिशाओं में काम करते हैं। जिन उद्योगों के कुल उत्पादन लागत में विनिर्माण व्ययों का अधिक अनुपात होता है, के केन्द्रीकरण की जबर्दस्त प्रवृत्ति होती है क्योंकि तब बाह्य मितव्ययिताएँ प्राप्त की जा सकती हैं। एक उद्योग को किसी विशेष स्थान पर आकर्षित करने के लिए संचयी कारक की शक्तियाँ दो घटकों पर निर्भर करती है: प) कुल उत्पादन मूल्य में विनिर्माण लागतों का अनुपात (विनिर्माण सूची); और स्थानीय परिमाण में विनिर्माण लागतों के अनुपात को वेबर ने ‘विनिर्माण गुणांक‘ (विनिर्माण-फल) कहा है। यदि विनिर्माण गुणांक अधिक हो तो उद्योग एक ही स्थान पर इकट्ठे होने लगते हैं जबकि विनिर्माण गुणांक कम हो तो उद्योग भिन्न-भिन्न स्थानों पर स्थापित होने लगते हैं। इस प्रकार प्रत्येक संचयी प्रवृत्ति से विचलनकारी बल का सृजन होता है जो परिवहन नेटवर्क (संजाल) को विकृत कर देता हे। एक से अधिक
स्थानों पर अवस्थिति उस स्थिति में जब उत्पादन के विभिन्न चरण अलग-अलग स्थानों पर पूरे किए जा सकते हैं तो उद्योग अलग-अलग स्थानों पर स्थापित होंगे। अधिकांशतया उत्पादन का प्रथम चरण वह चरण है जिसमें बेकार सामग्रियों को नष्ट कर दिया जाता है। दूसरे चरण में शुद्ध माल को परिष्कृत किया जाता है। उत्पादन के दूसरे चरण को पहले चरण से कोई आर्थिक लाभ प्राप्त नहीं होता है। ऊपर वर्णित सापेक्षिक प्राथमिक और गौण कारकों पर विचार करते हुए उद्योग को. दो अलग-अलग स्थानों पर स्थापित किया जाता है। बोध प्रश्न 1 सब्सक्राइब करे youtube चैनल |