प्रस्तुत लेख में आप इस लखनवी अंदाज पाठ के लेखक, पाठ का सार, महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर, तथा बहु विकल्प वाले प्रश्नों का भी अध्ययन करेंगे। Show
लखनवी अंदाज यशपाल जी के द्वारा लिखी गई कहानी है, जिसके माध्यम से समाज के एक वर्ग को उद्घाटित करने का प्रयास किया है। जब देश गुलाम था छोटी-छोटी आवश्यकताओं के लिए संघर्ष कर रहा था। ऐसे में एक वर्ग अपने नवाबी शौक को पूरा करने में व्यस्त थे। उन्हें अपने से ऊंचा कोई बर्दाश्त नहीं था, उनका शौक नहीं उनके परिचय हुआ करते थे। लखनवी अंदाज संपूर्ण शिक्षालेखक स्वाधीनता आंदोलन से जुड़े थे, उन्होंने देश को आजाद कराने के लिए लड़ाई लड़ी थी इसलिए वह समाज के निम्न वर्ग से जुड़े थे। जिसमें सामंती व्यवस्था ने लोगों का जीवन दुष्कर बना दिया था। जोर जबरदस्ती उनकी आदत हो गई थी। सामान्य तथा गरीब लोगों पर दमनकारी नीति चलाकर वह अपने शौक पूरा किया करते थे। उसी दमनकारी व्यवस्था पर कटाक्ष करते हुए सामंती वर्ग की संस्कृति को इस लेख में उद्घाटित कर रहे हैं, जो बनावट और दिखावे की जीवन शैली को अपनाए हुए है। यशपाल का जीवन परिचयजन्म – 1903 स्थान – पंजाब के फिरोजपुर छावनी में शिक्षा – स्नातक नेशनल कॉलेज लाहौर यशपाल जी के आरंभिक जीवन में स्वाधीनता आंदोलन का प्रभाव था। वह इस आंदोलन में शामिल भी हुए थे, जिसके कारण उन्हें अनेकों बार जेल का सामना करना पड़ा। यह समय स्वाधीनता संग्राम की लड़ाई का था जिसमें लगभग समस्त भारत वासियों ने अपना योगदान सुनिश्चित किया था। अंग्रेजों से देश की आजादी के लिए संघर्ष करते हुए यशपाल जी जेल भी गए, फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और साहित्य के क्षेत्र में एक अमित छाप छोड़ गए। उनके साहित्य समाज का दर्पण स्वरूप है। यशपाल जी का साहित्य उस समय के समाज को प्रदर्शित करता है। रचनाएँ – कहानी संग्रह – ज्ञानदान, तर्क का तूफान, पिंजरे की उड़ान, फूलों का कुर्ता, उपन्यास – अमिता, दिव्या, दादा कामरेड। भाषा शैली – यशपाल जी का साहित्य अध्ययन से स्पष्ट होता है कि उनके साहित्य की भाषा शैली यथार्थवादी थी। वह जिसे समाज में जो देखा करते थे उसी के अनुरूप उनकी भाषा शैली हुआ करती थी। मृत्यु – 1976 लखनवी अंदाज पाठ का सारसमय बचाने और भीड़भाड़ से बचने के लिए लेखक में सेकंड क्लास की टिकट लेकर रेल यात्रा आरंभ करता है, उन्हें अधिक दूर नहीं जाना था। थोड़ा सा खाली समय मिले जिसमें एक नए साहित्य की कल्पना की जा सके, ऐसा विचार करते हुए वह सेकंड क्लास के छोटे से डिब्बे में जा पहुंचे। वहां सफेद पोशाक में पालथी जमाए लखनऊ की नवाबी मुद्रा में एक सज्जन बैठे थे। उनके ठीक सामने दो खीरे सफेद तौलिए पर रखे हुए थे। लेखक को वहां देखकर नवाब को कुछ अच्छा नहीं लगा। लेखक भी उसकी असहजता को भांप गए थे, अपने आत्मसम्मान को ऊँचा रखते हुए वह सीट के नीचे अपना सामान रखकर सीट पर बैठ गए। लेखक विचार करने लगे आखिर इस सज्जन कि असहजता का क्या कारण होगा? किंतु उन्हें थोड़ा यह ठीक लग रहा था कि उन्होंने ऐसे व्यक्ति को स्वयं साक्षात आंखों से देखा और उसी के आस-पास बैठकर वह यात्रा कर रहे थे। वह सोचने लगे कि शायद नवाब साहब अकेले यात्रा करने के विचार से इस सेकंड क्लास में आए होंगे, यहां मेरा आना उन्हें इसलिए उचित नहीं लग रहा होगा। नवाब साहब और लेखक दोनों कुछ कुछ देर पर एक दूसरे को तिरछी नजरों से देख रहे थे। और दोनों लोग एक दूसरे की स्थिति पर नजर बनाए हुए थे। अचानक कुछ देर बाद नवाब साहब ने लेखक को खीरा खाने के लिए आग्रह किया। अचानक नवाब साहब के भाव को परिवर्तित देख लेखक अचंभित हुए उन्होंने शुक्रिया कहकर खीरा खाने से इंकार कर दिया। नवाब साहब ने खीरे को पानी से धोकर तौलिए से सुखा कर तथा चाकू से काटा। उसके झाग को निकाल कर तोलिया पर सजाया और करीने से लाल मिर्च, जीरा, आदि मसालों को खीरे में लगाया यह सब प्रक्रिया लेखक बड़े उत्साह और एकाग्र होकर देख रहे थे। जब खीरा खाने के लिए सज चुका था तब नवाब साहब ने एक बार फिर लेखक से खाने के लिए आग्रह किया कहा – ‘शौक फरमाइए लखनऊ का बालम खीरा है’ लेखक शायद खीरा खाना चाह रहे थे किंतु एक बार मना कर दिया था इसलिए उन्होंने आत्मसम्मान को ऊपर मानते हुए वह लेने के लिए मना कर दिया और शुक्रिया कहते हुए उन्हें स्वयं खाने के लिए कहा। लखनवी अंदाज पाठ के प्रश्न उत्तर1 प्रश्न – लेखक को नवाब साहब के किन हाव-भावों से महसूस हुआ कि वे उनसे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं है ? उत्तर – लेखक जब भीड़ कम जानते हुए छोटे से डिब्बे में घुसे, वहां एक सफेदपोश लखनवी अंदाज में पालथी जमाए नवाब साहब बैठे थे। लेखक को वहां पाकर वह असहज महसूस करने लगे। लेखक से नजर चुराने लगे जैसे उनके शांत मुद्रा को किसी ने भंग कर दिया हो।इससे पूर्व नवाब साहब आंख बंद कर चिंतन की मुद्रा में बैठे थे। लेखक से वह नजरें चुराते हुए खिड़की से बाहर निरंतर देख रहे थे जैसे उन्हें लेखक से बात करने की तनिक भी उत्सुकता ना हो। लेखक भी नवाब साहब को नजरअंदाज करते हुए सीट के नीचे सामान जमा कर बैठ गए। 2 प्रश्न – नवाब साहब ने बहुत ही यत्न से खीरा काटा, नमक मिर्ची बुरका, अंततः सूंघकर ही खिड़की से बाहर फेंक दिया। उन्होंने ऐसा क्यों किया होगा? उनका ऐसा करना उनके कैसे स्वभाव को इंगित करता है? उत्तर – लेखक जब सेकंड क्लास के डब्बे में पहुंचे तो वहां उन्होंने नवाब साहब को देखा। जिसके सामने सफेद तौलिए पर एक खीरा रखा हुआ था जिसे नवाब साहब ने धोकर करीने से कटिंग करते हुए उस पर नमक, मिर्ची, जीरा आदि मसाले को बुरका। लेखक ने जब नवाब साहब के कहने के बाद खाने से इंकार कर दिया तब नवाब ने अपनी अमीरी दिखाने का एक अवसर पा लिया। लेखक शायद खीरा खाना भी चाहते थे किंतु नवाब के पहले प्रस्ताव को उन्होंने ठुकरा दिया था इसलिए दोबारा उन्हें खीरा खाना अच्छा नहीं लगा। शायद कोई भी मनुष्य उस खीरे को देखकर खाने के लिए लालच कर सकता था, जो लेखक के मन में भी आया। नवाब ने उस खीरे को जितनी मेहनत से काटा और सजाया उतनी ही अमीरी का परिचय उसने फेंकने में दिखाया। वह खीरे के एक-एक फांक को उठाकर सूंघते हुए खिड़की से बाहर फेंकते रहे, जिससे उसका अमीरी का प्रदर्शन हो सके। संभवत लेखक के समक्ष नवाब साहब की अमीरी प्रकट हुई होगी। 3 प्रश्न – बिना विचार, घटना और पात्रों के भी क्या कहानी लिखी जा सकती है ? यशपाल के इस विचार से आप कहां तक सहमत हैं ?उत्तर – किसी भी साहित्य का सीधा संबंध मनुष्य और उसके घटनाक्रम से होता है। आज कितने ही साहित्य (उपन्यास, नाटक, कहानी ) देखने को मिलते हैं जिसमें पात्र का कोई बंधन नहीं है। कहीं एक बरगद का पेड़, दीवार, खिड़की भी देखने को मिल जाता है। यशपाल जी का यह कहानी उसी परिपाटी की है जिसमें बिना किसी पात्र, घटना आदि के बिना यह कहानी लिखी गई है। किसी भी साहित्य का एक उद्देश्य होता है। इस कहानी का भी अंतिम उद्देश्य नवाबी तथा सामंती प्रथा को दिखाना था, जिसमें लेखक अंततोगत्वा सफल हुए हैं। 4 प्रश्न – आप इस निबंध को और क्या नाम देना चाहेंगे? उत्तर – किसी भी साहित्य का नामकरण उसकी सफलता का द्वार खोलती है, इसलिए लेख का नामकरण कभी सावधानीपूर्वक करते हैं। लेखक ने ‘लखनवी अंदाज’ पाठ का नाम देकर नामकरण की सार्थकता को प्रस्तुत किया। फिर भी अगर दूसरा नाम रखने को अवसर मिले तो
5 प्रश्न (क) – नवाब साहब द्वारा खीरा खाने की तैयारी करने का एक चित्र प्रस्तुत किया गया है, इस पूरी प्रक्रिया को अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए। उत्तर – नवाब साहब के क्रियाकलाप को लेखक बड़े ही सावधानी पूर्वक देख रहे थे, और चित्रात्मक रूप से पाठ में दृश्य को उतारने का प्रयास भी किया है। लेखक जब डिब्बे के भीतर सवार हुए तो उन्होंने सफेद पोशाक में नवाब साहब को लखनवी अंदाज में आंख बंद किए चिंतन मनन करते हुए पाया। उनके सामने साफ-सुथरे चमकदार सफेद खोलिए पर सुंदर खीरा रखा हुआ था। जिसे कुछ क्षण पश्चात नवाब साहब ने सावधानीपूर्वक उठाया और तौलिए को झाड़ कर बिछाया। पानी के लोटे में खीरे को बढ़िया से धोकर तौलिए से पोछा फिर जेब से चाकू निकालकर खीरे के सिर को काटा और उसका सफेद झाग निकालकर बड़े ही आकर्षक रूप से खीरे को छिला और उसके तीन भाग किए। यह कलाकारी बेहद सावधानी पूर्वक हो रही थी। तत्पश्चात नवाब साहब ने खीरे के एक-एक फांक को करीने से सजाते हुए उस पर जीरा, नमक लाल, मिर्च को बुरका और खाने के लिए तैयार किया। पाठ पढ़ते समय वह दृश्य आंखों के समय उत्पन्न हो जाता है, जो नवाब साहब द्वारा क्रियाकलाप किया जा रहा था। (ख) किन-किन चीजों का रसास्वादन करने के लिए आप किस प्रकार की तैयारी करते हैं ? उत्तर – पाठ में जिस प्रकार नवाब साहब के क्रियाकलाप को प्रस्तुत किया गया है। उनके नवाबी ठाठ बाट को दिखाने का प्रयास किया गया है उस प्रकार हम रोजमर्रा के जीवन में भी करते हैं। व्यक्तिगत रूप से जब मूंगफली का मौसम आता है तो मूंगफली खाने के लिए उसकी तैयारियां करनी पड़ती है। जैसे छिलका एकत्र करने के लिए एक कटोरा, साथ में नींबू, मिर्ची तथा नमक रखा जाता है, साथ में मूंगफली का आनंद और बढ़ जाता है। ऐसा ही प्रसंग अमरूद या संतरा खाने के समय भी देखने को मिलता है, जब अमरूद खाते हैं तो उसे धोकर साफ सुथरा करते हुए चाकू से नीचे और ऊपर के भाग को हटाकर। उसके छोटे-छोटे फांक बनाकर उसमें नमक तथा चाट मसाला मिलाकर खाने पर उसका स्वाद और बढ़ जाता है। तब इस पाठ की याद आती है जो नवाब अपने तरीके से कर रहे थे। 6 प्रश्न – खीरे के संबंध में नवाब साहब के व्यवहार को उनकी सनक कहा जा सकता है, आपने नवाबों की और भी सनकों के बारे में पढ़ा-सुना होगा किसी एक के बारे में लिखिए। उत्तर – नवाबों के व्यवहार के किस्से कहानी जनसामान्य में काफी सुनने-सुनाने को मिलते हैं ऐसा ही एक किस्सा मेरे पिताजी ने सुनाया जब रेडियो का जमाना हुआ करता था। भारत और पाकिस्तान का क्रिकेट मैच रेडियो पर प्रसारित किया जा रहा था। भारतीय खिलाड़ी जब एक के बाद एक निरंतर अपने विकेट खो रहे थे उस गुस्से को एक डॉक्टर सहन नहीं कर पाए और अपना रेडियो जमीन पर पटक दिया। रेडियो के चार टुकड़े हो गए वह चलने का नाम नहीं ले रहा था। डॉक्टर, क्रिकेट के प्रेमी थे या नवाब थे पता नहीं, उन्होंने झटपट पैसे निकाले और कंपाउंडर से एक और नया रेडियो मंगा लिया। जिसके बाद उन्होंने आनंद पूर्वक क्रिकेट सुना और आसपास के लोगों को भी सुनाया। शायद लखनवी अंदाज पाठ के नवाब साहब की भांति ही घटना है, दिखावे में उन्होंने अपना ही नुकसान किया था। Lakhnavi Andaaz mcq Online Testप्रश्न – लेखक ट्रेन में किस दर्जे में सफर कर रहे थे ?
उत्तर – दूसरे दर्जे में। प्रश्न – नवाब साहब ने सफेद तो लिया पर क्या रखा हुआ था?
उत्तर खीरा। प्रश्न – खीरा छीलकर नवाब साहब ने क्या किया ?
उत्तर – छीलकर फेंक दिया अपने पाठ्यक्रम से संबंधित अन्य लेख का भी अध्ययन करेंनेताजी का चश्मा ( पाठ का सार, प्रश्न उत्तर ) class 10 रस की परिभाषा, भेद, प्रकार और उदाहरण अलंकार की परिभाषा, भेद, प्रकार और उदाहरण – Alankar in hindi उपसर्ग की संपूर्ण जानकारी क्रिया की परिभाषा, उदहारण, भेद समास की परिभाषा, उदाहरण, भेद अव्यय की परिभाषा, भेद, और उदाहरण विशेषण की परिभाषा, भेद, तथा उदाहरण क्रिया विशेषण की परिभाषा, भेद, और उदाहरण लोकोक्तियाँ अर्थ एवं वाक्य में प्रयोग सहित उदाहरण संधि की परिभाषा, भेद, एवं उदाहरण सहित संपूर्ण जानकारी समापनभारत संस्कृति में नवाबी को एक अलग नजरिए से देखा जाता है। जहां सामान्य लोगों के बीच आदर्श और उच्च वर्ग का प्रतीकात्मक रूप है वही लेखक तथा बुद्धिजीवियों के लिए यह सामंती व्यवस्था निम्न वर्गों का दोहन करने के लिए सदैव तत्पर रहती है। इस वर्ग का जीवन सदैव दिखावे का रहता है, इस दिखावे का मूल्य संभवत निम्न वर्ग ही चुकाता है। जैसा कि हमने आजादी के समय की सामंती व्यवस्था को देखा है। प्रेमचंद के साहित्य में बारीकी से अध्ययन किया है, उसी दिखावे की व्यवस्था को प्रदर्शित करता है। लेखक ने इस पाठ के माध्यम से जहां एक दिखावे की परंपरा, संस्कृति को प्रदर्शित किया है, वहीं सामंती व्यवस्था पर करारा व्यंग भी करा है। भारत में आज भी एक वर्ग जहां भूखा सोने पर विवश है वही दूसरा वर्ग अन्न का दुरुपयोग कर उसको फेकता है, उसका निरादर करता है। जबकि आवश्यकता के अनुसार ऐसे वर्ग को वह वस्तुएं मिल जानी चाहिए जिसे वास्तविक रूप से आवश्यक हो। नवाब साहब ने लेखक से दोबारा खीरा खाने का आग्रह क्यों किया?(2) आम के अचार का रसास्वादन करने के लिए हम पहले उसे करीने से निकाल कर उसे उलट-पुलट कर देखते हैं। फिर उसे खाने के लिए धीरे-धीरे अपने मुँह के पास लाते हैं और उसके खट्टे स्वाद का आनंद लेते हुए उसे खाते हैं।
नवाब साहब द्वारा दोबारा पूछने पर भी लेखक ने खीरा खाने से क्यों मना कर दिया और मना करने का क्या कारण बताया?लेखक ने खीरा खाने से मना इसलिए कर दिया है क्योंकि जिस तरह नवाब साहब ने उनसे खीरा खाने के लिए पुछा था उससे साफ-साफ पता लगता है कि नवाब साहब बिल्कुल भी इछुक नहीं थे उन्हें खीरा देने में तो लेखक उनका यही व्यवहार देखकर खीरा खाने से मना कर दिया होगा।
लेखक ने खीरा खाने से मना क्यों कर दिया था?उत्तर- नवाब साहब ने करीने से सजी खीरे की फाँकों पर नमक-मिर्च छिड़ककर लेखक से खाने के लिए आग्रह किया तो लेखक ने साफ़ मना कर दिया।
9 खीरा खाने की इच्छा होने पर भी लेखक ने क्यों इंकार कर दिया?3. 'मेदा' क्या होता है? की पुड़िया भी हाज़िर कर देते हैं। नवाब साहब ने बहुत करीने से खीरे की फाँकों पर जीरा-मिला नमक और लाल मिर्च की सुर्खी बुरक दी।
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