माता पिता की अपने बच्चों के प्रति क्या जिम्मेदारियां हैं? - maata pita kee apane bachchon ke prati kya jimmedaariyaan hain?

बच्चों का माता-पिता के प्रति कर्तव्य पर निबंध |Essay on Children’s Duty towards Parents in Hindi!

मनुष्य का जीवन अनेक उतार-चढ़ावों से होकर गुजरता है । उसकी नवजात शिशु अवस्था से लेकर विद्‌यार्थी जीवन, फिर गृहस्थ जीवन तत्पश्चात् मृत्यु तक वह अनेक प्रकार के अनुभवों से गुजरता है ।

अपने जीवन में वह अनेक प्रकार के कार्यों व उत्तरदायित्वों का निर्वाह करता है । परंतु अपने माता-पिता के प्रति कर्तव्य व उत्तरदायित्वों को वह जीवन पर्यत नहीं चुका सकता है । माता-पिता से संतान को जो कुछ भी प्राप्त होता है वह अमूल्य है । माँ की ममता व स्नेह तथा पिता का अनुशासन किसी भी मनुष्य के व्यक्तित्व निर्माण में सबसे प्रमुख भूमिका रखते हैं ।

किसी भी मनुष्य को उसके जन्म से लेकर उसे अपने पैरों तक खड़ा करने में माता-पिता को किन-किन कठिनाइयों से होकर गुजरना पड़ता है इसका वास्तविक अनुमान संभवत: स्वयं माता या पिता बनने के उपरांत ही लगाया जा सकता है । हिंदू शास्त्रों व वेदों के अनुसार मनुष्य को 84 लाख योनियो के पश्चात् मानव शरीर प्राप्त होता है । इस दृष्टि से माता-पिता सदैव पूजनीय होते हैं जिनके कारण हमें यह दुर्लभ मानव शरीर की प्राप्ति हुई ।

आज संसार में यदि हमारा कुछ भी अस्तित्व है या हमारी इस जगत में कोई पहचान है तो उसका संपूर्ण श्रेय हमारे माता-पिता को ही जाता है । यही कारण है कि भारत के आदर्श पुरुषों में से एक राम ने माता-पिता के एक इशारे पर युवराज पद का मोह त्याग दिया और वन चले गए ।

कितने कष्टों को सहकर माता पुत्र को जन्म देती है, उसके पश्चात् अपने स्नेह रूपी अमृत से सींचकर उसे बड़ा करती है । माता-पिता के स्नेह व दुलार से बालक उन संवेदनाओं को आत्मसात् करता है जिससे उसे मानसिक बल प्राप्त होता है ।

हमारी अनेक गलतियों व अपराधों को वे कष्ट सहते हुए भी क्षमा करते हैं और सदैव हमारे हितों को ध्यान में रखते हुए सद्‌मार्ग पर चलने हेतु प्रेरित करते हैं । पिता का अनुशासन हमें कुसंगति के मार्ग पर चलने से रोकता है एवं सदैव विकास व प्रगति के पथ पर चलने की प्रेरणा देता है ।

यदि कोई डॉक्टर, इंजीनियर व उच्च पदों पर आसीन होता है तो उसके पीछे उसके माता-पिता का त्याग, बलिदान व उनकी प्रेरणा की शक्ति निहित होती है । यदि प्रांरभ से ही माता-पिता से उसे सही सीख व प्ररेणा नहीं मिली होती तो संभवत: समाज में उसे वह प्रतिष्ठा व सम्मान प्राप्त नहीं होता ।

अत: हम जीवन पथ पर चाहे किसी भी ऊँचाई पर पहुँचें हमें कभी भी अपने माता-पिता के सहयोग, उनके त्याग और बलिदान को नहीं भूलना चाहिए । हमारी खुशियों व उन्नति के पीछे हमारे माता-पिता की अनगिनत खुशियों का परित्याग निहित होता है । अत: हमारा यह परम दायित्व बनता है कि हम उन्हें पूर्ण सम्मान प्रदान करें और जहाँ तक संभव हो सके खुशियाँ प्रदान करने की चेष्टा करें ।

माता-पिता की सदैव यही हार्दिक इच्छा होती है कि पुत्र बड़ा होकर उनके नाम को गौरवान्वित करे । अत: हम सबका उनके प्रति यह दायित्व बनता है कि हम अपनी लगन, मेहनत और परिश्रम के द्‌वारा उच्चकोटि का कार्य करें जिससे हमारे माता-पिता का नाम गौरवान्वित हो । हम सदैव यह ध्यान रखें कि हमसे ऐसा कोई भी गलत कार्य न हो जिससे उन्हें लोगों के सम्मुख शर्मिंदा होना पड़े ।

आज की भौतिकवादी पीढ़ी में विवाहोपरांत युवक अपने निजी स्वार्थों में इतना लिप्त हो जाते हैं कि वे अपने बूढ़े माता-पिता की सेवा तो दूर अपितु उनकी उपेक्षा करना प्रारंभ कर देते हैं । यह निस्संदेह एक निंदनीय कृत्य है । उनके कर्मों व संस्कार का प्रभाव भावी पीढ़ी पर पड़ता है । यही कारण है कि समाज में नैतिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है । टूटते घर-परिवार व समाज सब इसी अलगाववादी दृष्टिकोण के दुष्परिणाम हैं ।

अत: जीपन पर्यंत मनुष्य को अपने माता-पिता के प्रति कर्तव्यों व उत्तरदायित्वों का निर्वाह करना चाहिए । माता-पिता की सेवा सच्ची सेवा है । उनकी सेवा से बढ़कर दूसरा कोई पुण्य कार्य नहीं है । हमारे वैदिक ग्रंथों में इन्हीं कारणों से माता को देवी के समकक्ष माना गया है ।

माता-पिता की सेवा द्‌वारा प्राप्त उनके आशीर्वाद से मनुष्य जो आत्म संतुष्टि प्राप्त करता है वह समस्त भौतिक सुखों से भी श्रेष्ठ है । ”मातृदेवो भव, पितृदेवो भव” वाली वैदिक अवधारणा को एक बार फिर से प्रतिष्ठित करने की आवश्यकता है ताकि हमारे देश का गौरव अक्षुण्ण बना रहे ।

अपने पहले बच्चे की परवरिश के समय हम इतने पारंगत नहीं होते | जब आप अपने बच्चे की पसंद और नापसंद के बारे में सीखते हैं तब आप एक माता-पिता के रूप में विकसित होते हैं । वह कब भूखी है? या रात में उसे किस तरह से सोना पसंद है? फिर जैसे-जैसे वह बड़ी होती है, आप और अधिक सीखते रहते हैं - क्या वह शर्मीले स्वभाव की है जो हमेशा आपकी गोद में बैठना सुविधाजनक समझती है? या वह खेलते ही खेलते बहार चली जाती है और अपने आप ही सब कुछ ख़ोज लेती है? तो, यहाँ आपकी भूमिका क्या है? माता-पिता की भूमिका क्या है?

ज्ञानी पुरुष दादाश्री कहते है कि, अपने साथ खुद के संस्कार तो लेकर ही आता है बच्चा। लेकिन उसमें आपको हेल्प करके उन संस्कारों को रंग देने की ज़रूरत है। जैसे की सेब या नारंगी का बिज बोते ही उसी का पेड उत्पन्न होता है| वैसा ही बालक के साथ होता है | वह अपने साथ अपना बीज कर्म लेकर आता है। ऐसा कुछ नहीं है कि, नारंगी सेब से बेहतर है। सभी के अपने व्यक्तित्व कि एक पहचान होती है और जब सही तरीके से पोषण दिया जाएगा तो वह खूबसूरती से खिलेंगे। ज़रा आसपास देखेंगे तो और आपको कई सफल लोग मिलेंगे, जो या तो अंतर्मुखी या बहिर्मुखी हैं। कोई एसा नियम नहीं है जैसे एक दूसरे से बेहतर या दुसरे से ज़्यादा सुखी है।

चलिये हम बच्चें के विकास में एक माँ की भूमिका और एक पिता की भूमिका को समझें|

माता-पिता का कर्तव्य समझें

परम पूज्य दादा भगवान कहते हैं:

  • प्रधानमंत्री बनने में उसमें कम ज़िम्मेदारी है, लेकिन माता-पिता होना, उसमें बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है। माता-पिता के रूप में, यदि आप कुछ गलत करते हैं, तो इससे आपके बच्चे को नुकसान होगा। "
  • “बच्चें के जन्म के निमित्त हम है इसिलिए हम उनके प्रति अपनी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हुए हैं। उन्हें अच्छे संस्कार मिलने चाहिए।”
  • आपका धर्म क्या? बेटे को पाल-पोषकर बड़ा करना, उसे सही रास्ते पर चलाना। अब वह टेढ़ा बोल रहा है और आप भी टेढ़ा बोलो तो परिणाम क्या होगा? वह बिगड़ जाएगा। इसलिए आपको प्रेम से उसे फिर से समझाना चाहिए। ” यह माता-पिता कि मुख्य भूमिका है | यानी सभी फर्ज़ों के साथ धर्म होना चाहिए।
  • "जब आप के बच्चें अपनी पढ़ाई पूर्ण कर लेते है और उन्हें अच्छी परवरिश देने के बाद जब वे पूर्ण रूप से अपने जीवनमें स्थायी हो जाते हैं, तो आपको उन्हें आर्थिक सहायता देने की आवश्यकता नहीं रहती है।"

माता-पिता के रूप में अपने कर्तव्य को पूरा करने के कुछ व्यावहारिक तरीके निचे दर्शाए गए हैं:

1. प्रत्येक द्रष्टिकोण से अपने जीवन को सुधारे

सही जीवन केसे जिए, यह बात माता-पिता को समझनी चाहिए। पैसो के पीछे जीवन व्यर्थ नहीं करना चाहिए | अपनी सेहत का ख्याल रखिये । अपने स्वास्थ्य, धन और बच्चों की परवरिश के प्रति जाग्रत रहें । जीवन की प्रत्येक परिस्थिति को सुधारने का प्रयत्न करे |

हररोज़ दिन के आखिर में अपने बच्चों के साथ शांति से बैठ कर बातचीत करे । बच्चों को थोड़ा उत्साह देने की ज़रूरत है। उनके पास पहले से ही सांस्कृतिक मूल्य हैं, लेकिन बस उन्हें उत्साह देने की आवश्यकता है।

2. माता-पिता के अपने बीच जिम्मेदारियों को साझा करे

आदर्श रूप से, माता-पिता के बीच बच्चों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों पर चर्चा करें और उन्हें विभाजित करें। चौदह वर्ष की आयु तक, एक बच्चे को माँ के प्यार और ध्यान की अधिक आवश्यकता होती है। उसे देखभाल करने दें और दैनिक दिनचर्या का निर्णय लें। पिता को आम तौर पर जीवन के अहम फैसलों में शामिल होना पड़ता है जैसे कि आपके बच्चे को किस स्कूल में दाखिला दिलवाना है, किस क्षेत्र में आगे बढ़ाना है आदि। पंद्रह साल की उम्र के बाद पिता को बच्चे के विकास में मुख्य भूमिका निभाने दें। पिता की यह भूमिका बच्चे के विकास में महत्वपूर्ण साबित होती है |

पेरेंटिंग का सर्वागीं द्रष्टिकोण : जिम्मेदार पेरेंटिंग की व्यापक भूमिका

ज़रूरत से ज्यादा ध्यान केन्द्रित न करे

बच्चे के विकास में माता-पिता की यह एक महत्वपूर्ण भूमिका है। जब बच्चे कम उम्र के हो तभी से उन्हें कुछ घरेलू काम दें और आपके व्यवसाय के काम में मदद करने के लिए कहें, इससे उन्हें अपने पास जो कुछ भी है उसकी किंमत पता चलेगी और अपनी जिम्मेदारी के प्रति जाग्रत होंगे । कई माँ-बाप अपने बच्चों को ज़रूरत से ज़्यादा की निर्देश और नियम देते हैं या फिर ज्यादा ओवरप्रोटेक्टिव हो कर अपने बच्चे को लाड़-प्यार देते है | बच्चो के प्रति ज़रूरत से ज़्यादा ध्यान देने से उनका दम घुटने लगता है। उन्हें निष्फलता का सामना करने दे; थोड़ी नुकसानी देखने दे और इन सभी से ही उनका विकास संभव है|

बच्चें को हिम्मत से जीवन का सामना करना सिखाएं

कोष से निकलने वाली तितली का संघर्ष उसे दुनिया का सामना करने के लिए मजबूत बनाता है; अन्यथा वह अशक्त हो जाएगी | याद रखें कि एक बच्चे की बहुत अधिक देखभाल करने से वह भी अशक्त हो सकता है। थोड़ा सा प्रतिरोध, संघर्ष, एक बच्चे की प्रतिभा को विकसित करने के लिए एक आशीर्वादरूप साबित होती है। विपरीत परिस्थितियों के बीच में ही एक बच्चा सफलता की चोटियों तक पहुंचने के लिए एक नया मार्ग प्रस्थापित करता है। बच्चे को जीवनमें आनेवाली असफलता का साहसपूर्वक सामना करना सिखाये । हमेशा किसी भी चुनौती का सामना करने से पहले बच्चे को प्रेरित करें, और किसी भी निष्फलता के लिए उनकी कभी आलोचना न करें। इसके बजाय, उनसे पूछें कि उन्होंने अगली बार क्या सबक सीखा या वे इसे कैसे ठीक करेंगे।

एक आँख में प्यार और दूसरी आँख में सख्ती

कई बार माता-पिता द्वारा उकसाने के कारण बच्चे गलत रास्ते पर चले जाते हैं। इसलिए, हर चीज में सामान्यता लाएं। एक आँख में प्यार बनाए रखें, और दूसरे में सख्ती। कठोरता दूसरे व्यक्ति को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाती है; क्रोध के कारण बहुत नुकसान होता है। कठोरता का मतलब क्रोध नहीं है, वह सिर्फ क्रोध का निम्न प्रकार है। आपको सब कुछ करना है, लेकिन नाटकीय रूप से। नाटक किसे कहते है? अर्थात शांति की जंजीर को खिंच के फिर क्रोध दिखाना।

कब प्रोत्साहित करना है और कब नहीं

माता-पिता की भूमिका एक तरह से चुनौतीभरी है। एक पिता खुश हो जाता है जब उसका बेटा उसकी मूंछों को ज़ोर से खींचता है। वह कहते है, "देखो इसे, यह मेरी मूंछ कैसे खींच रहा है!" | यदि आप बच्चे को उसकी इच्छानुसार करने देंगे और उनसे कुछ न कहेंगे, तो बच्चा कभी नहीं जान पाएगा कि वह गलत कर रहा है। बच्चा प्रत्येक परिस्थिति में दुसरो की प्रतिक्रिया देखकर ज्ञान ग्रहण कर लेता है। यदि और कुछ नहीं, तो बस थोड़ी सी चुटकी दें ताकि बच्चे को पता चल जाए कि वह कुछ गलत कर रहा है। इससे यह समझ प्राप्त होगी कि वह जो व्यवहार कर रहा है, वह गलत है।’ इसके लिए सजा देने की आवश्यता नहीं है; बस एक छोटी सी चुटकी काफी है।

तो उसे पता होना चाहिए कि जब भी वह मूंछों को खींचेगा, तो बदले में उसे एक चुटकी मिलेगी। यदि आप उसे यह कहते है कि , "बहुत अच्छा, मेरे पास एक उत्कृष्ट पुत्र है," तो उसे प्रोत्साहन मिलता है और फिर वह हर बार और भी अधिक खींचेगा! हर बार जब वह कुछ गलत करता है, तो उसे समझाएं कि यह गलत है। यह गलत है, इस बात का उसे एहसास दिलाए। अन्यथा, वह एसा मानेगा कि वह जो कुछ कर रहा है वही सही है। इससे वह गलत रास्ते पर चला जाता है। इसलिए, आपको बच्चे को समझाना चाहिए।

जब कुछ अच्छा कार्य करता है, तो आपको उसकी प्रशंसा करनी चाहिए और उसे पीठ पीछे थपथपा कर शाबाशी देनी चाहिए| तब उसके अहंकार को प्रोत्साहन मिलता है। इससे, वह एक बार फिर अच्छा काम करेगा। एक छोटे बच्चे का अहंकार सुषुप्त अवस्था में होता है। अहंकार मौजूद है, लेकिन वह सुषुप्त अवस्था में रहता है। बच्चे के बड़े होने पर यह अंकुरित होता है। एक बच्चा तभी अच्छा होगा जब तक आप उसके अहंकार को अनावश्यक रूप से पानी नहीं पिलाते। यदि उसके अहंकार को आपकी और से पोषण नहीं मिलता है, तो बच्चा उत्कृष्ट मूल्यों (संस्कार) के साथ विकसित हो जाएगा।

नियंत्रण नहीं; दिल से प्यार बरसाये

यह माता-पिता की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका है। जब आप अपने बच्चों से बात करते हैं, तब आपका अंदाज़ मालिकीभाव रहित होना चाहिए। उदाहरण के लिए, यदि कोई बच्चा ६0% से परिणाम प्राप्त करता है और जब पिता को दिखाता है, तब पिता को कहना चाहिए कि यह अच्छा है कि आपने परीक्षा पास कर ली है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। मैं आपसे उम्मीद करता हूँ कि आप ८५% प्राप्त करें और एक अच्छे इंजीनियर बनें ', फिर यह बात को यही छोड़ दें। उसे बार बार यह याद मत दिलाते रहें कि आपने उसे अच्छे अंक लाने के लिए कहा था। यदि आप बार बार इस बात से परेशान करेंगे, तो वह आपकी बातों को नजरअंदाज कर देगा।

कुछ महीनों के बाद, जब आप उसके परिणाम देखते हैं, यदि वह ७५% हो जाता है, तब अपने बच्चे को यह कहते हुए प्रोत्साहित करें कि , “आपके अंक बढ़ गए हैं। आपके पास आगे बढ़ने के लिए उत्कृष्ट क्षमता है। यदि आप अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं, तो मुझे यकीन है, आप बहोत आगे तक पहुंच सकेंगे। मुझे विश्वास है कि आप ८५% से ९0% प्राप्त कर सकते हैं , और बात को वही छोड़ दें। बच्चे को प्रोत्साहित करना महत्वपूर्ण है।

जब भी वे गलती करते हैं, तो इसे बहुत प्यार से समझाएं। आपको बच्चे से इस विषय पर बात ज़रूर करे, लेकिन उन्हें केसे कहा जाए उसका भी एक तरहिका होता है । वे अपने दरवाज़े खुद बंद करे इससे पहले आपको बोलना बंद कर देना चाहिए। यदि आप उस हद तक प्रतीक्षा करेंगे कि जहाँ वे खुद दरवाज़ा बंद करे, तो आपके शब्द व्यर्थ जाएंगे। बात करते समय अहंकार रहित शब्द का प्रयोग करें, खासकर बड़े बच्चों के साथ।

मैत्री बनाए रखें

  • परम पूज्य दादाश्री बताते हैं कि जब तक बच्चा सात से आठ साल का नहीं हो जाता है और जभी गलती करे – तब माता-पिता को उन्हें मार्गदर्शन देना होगा और यदि ज़रूरत पड़े तो उन्हें नियम में भी रखना भी आवश्यक है| बारह से पंद्रह साल की उम्र तक आप उन्हें मार्गदर्शन दे सकते हैं, लेकिन सोलह वर्ष के बाद आपको उनके साथ दोस्ती करनी होगी |
  • यदि आप अपने बच्चों के दोस्त बनते हैं, तो उनमे सुधार होगा। लेकिन अगर आप माता-पिता के तौर से उन पर हुकम करेंगे, तो आप उन्हें खो देंगे | आपकी दोस्ती ऐसी होनी चाहिए कि, बच्चा कहीं ओर अपनापन और मार्गदर्शन की तलाश में न जाए। आपको अपने बच्चे के साथ वह सब कुछ करना चाहिए जो एक दोस्त करते है; खेलिए, इतर प्रवृत्ति में सहभागी, साथ बैठ कर चाय पिए इत्यादि तभी वह आपका बना रहेगा, अन्यथा आप उसे खो देंगे।
  • सबसे पहले, आपको यह निश्चय करना होगा कि आप उनके साथ दोस्त के रूप में रहना चाहते हैं और फिर आप ऐसा कर पाएंगे।
  • अगर आपका दोस्त कुछ गलत कर रहा है, तो आप उसे कितनी दूर तक जाने देंगे? आप उसे केवल उस हद तक सलाह देंगे जितना वह सुनता है, लेकिन आप उसे परेशान नहीं करेंगे। यदि वह आपकी नहीं सुनता है, तो आप उसे कहेंगे कि निर्णय तो आखिर उसका ही है।
  • अपने बच्चे के साथ दोस्ती करने के लिए,आपको यह स्वीकार करना होगा कि सांसारिक दृष्टिकोण से आप उसके पिता हैं, लेकिन आपके मन (विचार) से, आपको अपने पुत्र का भी पुत्र बनना पड़ेगा। जब पिता अपने बच्चे के स्तर पर आ कर बात करते है, तो वह एक दोस्त के रूप में स्वीकार होते है| दोस्त बनने का ओर कोई उपाय नहीं है।

स्वयं को सुधारे

यह माता-पिता की सबसे अहम् और सूक्ष्मतम भूमिका है। शुद्ध प्रेम आपके भीतर तभी उत्पन्न होगा जब आप शुद्ध होंगे, अर्थात् क्रोध, मान, माया, लोभ आदि से मुक्त होंगे तभी। यदि आप में सुधार होगा, तो आपकी हाज़िरी से ही सब कुछ सुधर जाएगा। जो पहले खुद को सुधारता है वह फिर दूसरों को सुधार सकता है। सुधार हुआ एसा कब कहा जा सकता है? जब आप डांटते हैं, तब भी बच्चा आपके डांटने के बाद प्यार को मेह्सुस करे। आप डांट सकते हैं, लेकिन यही चीज़ अगर आप प्यार से करे तो दूसरे व्यक्ति में सुधार होगा। यदि माता-पिता अच्छे हैं, तो बच्चे भी अच्छे होंगे, वे समझदार होंगे। करें, अपनेआप थोड़ा अंतर तप करे, लेकिन बच्चों को नैतिक मूल्यों से समृद्ध बनाएं।

बच्चे के लिए माता पिता की क्या जिम्मेदारी है?

घर पर लालन-पालन का एक वातावरण देना माता-पिता हर बच्चे के जीवन में सबसे जरूरी लोग होते हैं - वे पोषण, सुरक्षा, देखभाल और प्यार देते हैं। यूनिसेफ का मानना है कि माता-पिता की जिम्मेदारी निभाना दुनिया का सबसे बड़ा काम है।

माता पिता के कर्तव्य कौन कौन से हैं?

एक अच्छी बेटी कैसे बने?.
2.1 1. अपने माता-पिता का सम्मान करें.
2.2 2. अपने माता-पिता से बहस न करें.
2.3 3. अपने माता-पिता को आहत न करें.
2.4 4. अपने माता-पिता को खुश रखे.
2.5 5. अपने जीवन में आगे बढ़ें.
2.6 6. अपने माता-पिता की सलाह लें.
2.7 7. अपना चरित्र साफ रखें.
2.8 8. लोगों का आदर करें.

माता पिता अपने बच्चों के बारे में क्या सोचते हैं?

माता-पिता हमेशा अपने बच्चों का भला चाहते हैं और उनका हित सबसे ऊपर रखते हैं, भले ही बच्चों को ऐसा महसूस न हो। इस पर गौर कीजिए: 1 मजबूती से बात रखें पहला कदम बेहद जरूरी है। सबसे पहले तो विनम्रता बनाए रखें।

बच्चे अपने माता पिता के प्रति अपने प्रेम को कैसे अभिव्यक्त करते हैं?

बच्चे अपने माता−पिता के प्रति प्रेम की अभिव्यक्ति अपनी विविध प्रकार की हरकतों से करते हैं -.
(क) वे अपने माता−पिता से हट द्वारा अपनी माँगे मनवाते हैं और मिल जाने पर उनको विभिन्न तरह से प्यार करते हैं।.
(ख) माता−पिता के साथ नाना−प्रकार के खेल खेलकर।.
(ग) माता−पिता को अपने रोज़मर्रा के खेल और बातों को बताकर।.