नामवर के पिता का क्या नाम था? - naamavar ke pita ka kya naam tha?

काशी के नाम

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हिन्दी की कविताएँ, कहानियाँ, उपन्यास और आलोचनाएँ - यहाँ तक कि साहित्यिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक बहसें भी पिछले पचास वर्षों से अपने को टटोलने और जाँचने-परखने के लिए जिस अकेले एक समीक्षक से वाद-विवाद-संवाद करके सन्तोष का अनुभव करती रही हैं, निर्विवाद रूप से उसका नाम नामवर सिंह है। ‘काशी के नाम’ उन्हीं की चिट्ठियों का संकलन है जो उन्होंने काशीनाथ को लिखी थीं। साठ वर्षों से साहित्य में सक्रिय नामवर हिन्दी के किंवदन्ती पुरुष हैं। अस्सी वर्ष की उम्र में भी उतने ही तरो-ताज़ा और र्उ$जावान हैं जितना पहले थे। आज भी न थके हैं, न झुके हैं। हर समय अपनी कहने को तैयार, दूसरे की सहने को तैयार। असहमति और विरोध तो जैसे उनके जुड़वाँ हों। हर आने वाली पीढ़ी उन्हें देखना चाहती है, सुनना चाहती है लेकिन जानना भी चाहती है - उनकी शख़्सियत के बारे में, उनके घर-परिवार के बारे में, नामवर के ‘नामवर’ होने के बारे में! क्योंकि वे जितने अधिक ‘दृश्य’ हैं, उससे अधिक अदृश्य हैं। इसी अदृश्य नामवर को प्रत्यक्ष करता है ‘काशी के नाम’। ऐसे तो, साहित्य के अनेक प्रसंगों से भरी पड़ी हैं चिट्ठियाँ लेकिन सबसे दिलचस्प वे टिप्पणियाँ हैं जो भाई काशी की कहानियों पर की गई हैं। कोई मुरव्वत नहीं, कोई रियायत नहीं, बेहद सख़्त और तीखी। ऐसी कि दिल टूट जाय। लेकिन अगर काशी का कुछ लिखा पसंद आ गया तो नामवर का आलोचक सहसा भाई हो जाता है - भाव-विह्नल और आत्मविभोर। ‘काशी के नाम’ चिट्ठियों में जीवन और साहित्य साथ- साथ हैं - एक-दूसरे में परस्पर गुँथे हुए। घुले-मिले! कोई ऐसी चिट्ठी नहीं, जिसमें सिर्फ जीवन हो, साहित्य नहीं, या साहित्य हो जीवन नहीं। यदि एक तरफ नामवर का संघर्ष है, माँ-पिता हैं, भाई हैं, बेटा-बेटी हैं, भतीजे-भतीजियाँ हैं, उनकी चिन्ताएँ और परेशानियाँ हैं, तो उसी में कहीं न कहीं या तो साहित्यिक हलचलों या गतिविधियों पर टिप्पणियाँ हैं या ‘जनयुग’ और ‘आलोचना’ की जरूरतंे हैं, या किन्हीं लेखों या कहानियों के जिक्र हैं या कथाकार को हिदायतें हैं। यानी परिवार हो या साहित्य-संसार या ये दोनों - इनके झमेलों के बीच नामवर के ‘मनुष्य’ को देखना हो तो किसी पाठक के लिए इन चिट्ठियों के सिवा कोई विकल्प नहीं।

हिंदी न्यूज़ करियरनहीं रहे हिन्दी आलोचना के शिखर पुरुष नामवर सिंह, जानें उनके बारे में ये बातें

हिन्दी आलोचना के शिखर पुरुष नामवर सिंह का मंगलवार की मध्य रात्रि यहां अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स)  में निधन हो गया। वह 92 वर्ष के थे। नामवर सिंह गत एक माह से बीमार थे। उनका अंतिम संस्कार दोपहर तीन बजे लोधी रोड शव गृह में किया जाएगा। उनके परिवार में एक पुत्र और एक पुत्री है। उनकी पत्नी का निधन कई साल पहले हो गया था। 

हिंदी के मशहूर साहित्यकार डॉ. नामवर सिंह का निधन, पढ़ें उनकी ये कविताएं

28 जुलाई 1926 को बनारस के गांव जीयनपुर (अब चंदौली) में पैदा हुए नामवर सिंह ने हिंदी साहित्य में काशी विश्वविद्यालय से एमए और पीएचडी की डिग्री हासिल की। बाद में उन्होंने इसी विश्वविद्यालय में पढ़ाया भी।

नामवर सिंह की गिनती देश के बड़े बुद्धिजीवियों तथा विद्वानों में होती थी। उनकी प्रमुख कृतियों में छायावाद,  दूसरी परम्परा की खोज, इतिहास और आलोचना, कहानी: नयी कहानी, हिन्दी  आधुनिक साहित्य की  प्रवृतियां, वाद विवाद संवाद प्रमुख हैं। 

एक मई 1926 को उत्तर प्रदेश के जीयनपुर में जन्मे नामवर सिंह के निधन से हिन्दी साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गयी है। साहित्य अकादमी जनवादी लेखक संघ, प्रगतिशील लेखक संघ एवं जनसंस्कृति मंच ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। वह साहित्य अकादमी के फेलो भी थे।

हिंदी के मशहूर साहित्यकार डॉ. नामवर सिंह का 93 साल की उम्र में निधन

नामवर सिंह को उनकी रचना 'कविता के नये प्रतिमान' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था। वह जवाहर लाल नेहरू विश्विद्यालय में भारतीय भाषा केंद्र के अध्यक्ष और महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्विद्यालय के कुलाध्यक्ष भी थे।

प्रसिद्ध लेखक अशोक वाजपेयी, निर्मला जैन, विश्वनाथ त्रिपाठी, काशी नाथ सिंह, ज्ञानरंजन, मैनेजर पांडे, मुरली मनोहर प्रसाद सिंह, असगर वज़ाहत,  नित्यानंद तिवारी तथा मंगलेश डबराल जैसे लेखकों ने श्री सिंह के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है और हिन्दी साहित्य जगत के लिए अपूरणीय क्षति बताया है। 

                
                                                                                 
                            

सच पूछिए तो नामवर को ठीक से तब तक न पिता जी जानते थे, न हम दोनों भाई। भौजी का तो सवाल ही नहीं था। 1941 में उन्होंने गांव छोड़ा था। छुट्टियों में दो-चार दिनों के लिए जब कभी आते, गांव में छोटे-बड़े सबसे मिलते और चले जाते। हमें इतना पता था कि ‘कवी’ हैं। पिताजी इतना जानते थे कि डेढ़-दो साल पहले विश्वविद्यालय की पढ़ाई खत्म कर चुके हैं। उसके बाद भी वहां क्यों पड़े हुए हैं- यह नहीं समझ पाते थे। पिताजी के भाइयों में एक ठंडा तनाव था, लेकिन घर के अंदर भयावह कलह। और वह बढ़ता जा रहा था। मैं हाईस्कूल का इम्तिहान देने जा रहा था और मंझले भाई इंटर का। जुलाई से विजय की भी पढ़ाई शुरू होनी थी। बंटवारे की धौंस दो-तीन साल पहले से ही दी जा रही थी, लेकिन बेटों के हित में पिताजी सहते और टालते जा रहे थे। वे खुद खेतीबारी में अनाड़ी थे।  लेकिन अब टालना संभव नहीं रह गया था। वे परेशान और चिंतित। ऐसे ही में उन्होंने बनारस से भैया को बुलाया। भैया चुपचाप उन्हें सुनते रहे और कुछ नहीं बोले। 

मेरी जानकारी में यह ‘पिता-पुत्र’ का पहला लंबा संवाद था- दस-पंद्रह मिनट का। इससे  पहले ‘कब आए? कब जाना है?’ से अधिक कभी नहीं सुना था। शाम को पिताजी और उनके दोनों  भाई जुटे। भैया ने व्यवहार में कभी उन तीनों में फर्क नहीं किया था। वे भी शायद पहली बार  मुंह खोल रहे थे उन तीनों के सामने। सिर्फ निवेदनवश। वह कुछ इस तरह था, जो मुझे याद है- ‘आप तीनों मेरे पिता हैं। कभी जबान नहीं खोली आप सबके सामने। लेकिन जो कुछ देखा-सुना उसी के आधार पर कहना चाहता हूं कि बात और बिगड़े और लोग हम पर हंसें, इसके पहले आप तीनों अलग हो जाएं। आपस में प्रेम बना रहे, इसके लिए भी यह जरूरी है। इतना ध्यान रखें कि गांव से बाहर किसी को खबर न हो। किसी रिश्तेदार या पास-पड़ोस के किसी आदमी को पंचायत करने का मौका न मिले। इसी में आपकी प्रतिष्ठा है।’ और अंतिम बात उन्होंने पिताजी से कही- ‘बड़का बाबू घर के मालिक हैं। और कक्का आपके छोटे भाई। बड़का बाबू जो उचित और सही समझेंगे, बिना भेद के करेंगे। इतना विश्वास कीजिए और सिर झुकाकर स्वीकार कीजिए।’ ‘मेरी यही सलाह है, बाकी आप लोग बड़े हैं, जो ठीक समझें, करें।’

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3 years ago

नामवर सिंह का जन्म कब हुआ था?

28 जुलाई 1926नामवर सिंह / जन्म तारीखnull

71 नामवर सिंह के पिताजी का क्या नाम था?

नामवर सिंह के पिताजी का नाम ठाकुर नागर सिंह था

नामवर सिंह का जन्म कहाँ हुआ था?

वाराणसी, भारतनामवर सिंह / जन्म की जगहnull

नामवर सिंह का मृत्यु कब हुआ था?

19 फ़रवरी 2019नामवर सिंह / मृत्यु तारीखnull