मध्य प्रदेश की सबसे प्रमुख फसल कौन सी है? - madhy pradesh kee sabase pramukh phasal kaun see hai?

अनाज

गेहूं, ज्‍वार, मक्‍का, धान

तिलहन

सोयाबीन, सरसों, अलसी

दलहन

चना, मसूर, तुअर

सब्‍जीयॉं

हरी मटर, फूलगोभी, भिण्‍डी, टमाटर, आलू, प्‍याज

फल

आम, अमरुद, संतरा, केला, पपीता

मसाले

मिर्ची, लहसून, धनिया, अदरक, हल्‍दी

Explanation : मध्य प्रदेश की प्रमुख फसल गेहूँ है। काली मिट्टी की प्रमुखता के कारण मध्य प्रदेश की मुख्य फसल गेहूं एवं कपास हैं। वर्ष 2019-20 में पिछले वर्ष के उत्पादन की तुलना में 47-17% की वृद्धि हुई और उत्पादन 25276 हजार मीट्रिक टन से बढ़कर वर्ष 2019-20 में 37198 मीट्रिक टन हो गया। मध्य प्रदेश की जलवायु उष्णकटिबन्धीय मानसूनी है तथा इस क्षेत्र की प्रमुख नदियां क्षिप्रा, बेतवा, सोनार व चंबल हैं। इस क्षेत्र के अधिकतर लोग कृषि एवं पशुपालन करते हैं। यह राज्य का प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र है। मालवा पठार के प्रमुख नगर इंदौर, भोपाल, उज्जैन, सागर, रतलाम, देवास, विदिशा, धार हैं।....अगला सवाल पढ़े

Tags : मध्य प्रदेश प्रश्नोत्तरी

Useful for : UPSC, State PSC, IBPS, SSC, Railway, NDA, Police Exams

Web Title : Madhya Pradesh Ki Pramukh Fasal Kaun Si Hai

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आपका प्रश्न है कि मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा फसल कौन सी होती है तो मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा फसल सोयाबीन और कपास की होती है

aapka prashna hai ki madhya pradesh mein sabse zyada fasal kaun si hoti hai toh madhya pradesh mein sabse zyada fasal soyabean aur kapaas ki hoti hai

आपका प्रश्न है कि मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा फसल कौन सी होती है तो मध्य प्रदेश में सबसे ज

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मध्य प्रदेश की सबसे प्रमुख फसल कौन सी है? - madhy pradesh kee sabase pramukh phasal kaun see hai?
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मध्य प्रदेश की सबसे प्रमुख फसल कौन सी है? - madhy pradesh kee sabase pramukh phasal kaun see hai?

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मध्य प्रदेश की सबसे प्रमुख फसल जवाहर है

madhya pradesh ki sabse pramukh fasal jawahar hai

मध्य प्रदेश की सबसे प्रमुख फसल जवाहर है

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भारत सरकार की ओर से कृषि क्षेत्र में दिया जाने वाला सर्वश्रेष्ठ सम्मान ‘‘कृषि कर्मण‘‘ अवार्ड लगातार 6 वर्ष से गौरव हासिल करने वाला मध्यप्रदेश, सोयाबीन एवं दलहन उत्पादन में भी सुविख्यात है।

हमारा प्रदेश सोयाबीन, चना, उड़द, तुअर, मसूर, अलसी के उत्पादन में प्रथम स्थान एवं मक्का, तिल, रामतिल, मूंग के उत्पादन में द्वितीय स्थान तथा गेहूं, ज्‍वार, जौ के उत्पादन में देश में तृतीय स्थान पर है। वहीं रबी में गेहूं, चना, मटर, मसूर, सरसों, गन्ना, अलसी बहुतायत से बोई जाती हैं।

मध्यप्रदेश क्षेत्रफल की दृष्टि से देश का दूसरा बड़ा राज्य है। इसका भौगोलिक क्षेत्रफल 307.56 लाख हेक्टेयर है, जो देश के कुल भूभाग का 9.38 प्रतिशत है। प्रदेश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 307.56 लाख हैक्टर में से लगभग 151.91 लाख हैक्टर ही कृषि योग्य है। इसमें से वर्तमान में लगभग 145 लाख हैक्टर क्षेत्र में खरीफ फसलें और लगभग 119 लाख हैक्टर में रबी फसलें ली जा रही हैं। प्रदेश की फसल सघनता 165.70 प्रतिशत है। प्रदेश में कुल सिंचित क्षेत्रफल शासकीय एवं निजी स्त्रोतों से लगभग 110.97 लाख हेक्टेयर है।

जनसंख्या की दृष्टि से देश में यह पाँचवें क्रम पर है। मध्यप्रदेश में कृषि तथा कृषि से जुड़े व्यवसाय मुख्य रूप से राज्य की अर्थ व्यवस्था का आधार हैं। प्रदेश की तीन चैथाई, लगभग 72 प्रतिशत आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। इनमें से 35 प्रतिशत जनसंख्या अनुसूचित जाति (15.6 प्रतिशत*) एवं अनुसूचित जनजाति (21.1 प्रतिशत*) के अंतर्गत है, जिनके पास जोत सीमा बहुत कम है तथा विभिन्न कारणों से ये समुचित कृषि उत्पादन नहीं ले पाते हैं। इन्हें मिलाकर प्रदेश में 27.15 प्रतिशत लघु कृषक हैं जिनकी धारिता एक से दो हैक्टर है तथा 48.3 प्रतिशत सीमान्त कृषक हैं, जिनके पास अधिकतम 1 हैक्टर भूमि उपलब्ध है।

राज्य की विविधतपूर्ण जलवायु के आधार पर इसे 11 जलवायु क्षेत्रों तथा 5 फसल क्षेत्रों में विभाजित किया गया है। सोयाबीन फसल, खरीफ मौसम में हमारे प्रदेश में सर्वाधिक बोई जाने वाली फसल है, जो वर्तमान में लगभग 62 लाख हैक्टर में बोई जा रही है। इसके अलावा खरीफ में हमारी प्रमुख फसलें सोयाबीन, धान, मक्का, अरहर, मूंग उड़द, ज्वार, बाजरा, कोदों, कुटकी, तिल, कपास आदि हैं। वहीं रबी में गेहूं, चना, मटर, मसूर, सरसों, गन्ना, अलसी आदि प्रमुख फसलें हैं। इनमें गेहूं का रकबा सर्वाधिक है। गेहूं की उत्पादकता के लिये किये गये प्रयासों के कारण इसका क्षेत्रफल, उत्पादन तथा उत्पादकता भी तेजी से बढ़ रही है। इनके अलावा कपास तथा गन्ना फसल भी हमारी प्रमुख नकद फसलें हैं।

प्रदेश में बोई जाने वाली लगभग सभी फसलों ने विगत एक डेढ़ दशक में उत्पादन तथा उत्पादकता के क्षेत्र में उच्च कीर्तिमान स्थापित किये हैं।

किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग के माननीय मंत्री श्री कमल पटेल हैं। शासन स्तर पर कृषि उत्पादन आयुक्त श्री के. के. सिंह , प्रमुख सचिव श्री अजीत केसरी एवं संचालक श्रीमती प्रीति मैथिल हैं। विभाग का संचालनालय विंध्याचल भवन, भोपाल में स्थित है। संभागीय स्तर पर संयुक्त संचालक, जिला स्तर पर उप संचालक, अनुभाग में अनुविभागीय अधिकारी तथा विकासखंड स्तर पर वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी के अंतर्गत मैदानी अधिकारी पदस्थ हैं, जिनकी पहुंच प्रदेश के समस्त ग्रामों तक है।

इसके अतिरिक्त संचालनालय कृषि अभियांत्रिकी, म.प्र. राज्य कृषि विपणन बोर्ड, म.प्र. राज्‍य बीज एवं फार्म विकास निगम, म.प्र. राज्य बीज प्रमाणीकरण संस्था, म.प्र. राज्य जैविक प्रमाणीकरण संस्था एवं जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर तथा राजमाता सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय, ग्वालियर और राज्य कृषि विस्तार एवं प्रशिक्षण संस्थान बरखेड़ी कलां विभाग की सहयोगी संस्थाएं हैं, जिनके सहयोग से विभाग आदान-आपूर्ति, प्रशिक्षण, यंत्रीकरण तथा विस्तार कार्यों का संपादन करता है।

विभाग की विभिन्न इकाइयों का दायित्व प्रदेश में कृषि फसलों के उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि, भूमि एवं जल प्रबंधन, लघु सिंचाई कार्यक्रमों का विस्तार तथा विकसित कृषि तकनीकों को खेतों तक पहुंचाकर किसानों की आय में वृद्धि करना है।

किसानों की आय में वृद्धि करने के हेतु सर्वाधिक आवश्‍यकता कृषि की लागत को कम करने एवं उत्पादन वृद्धि करना है। इस हेतु अपनायी जा रही प्रमुख पद्धतियों एवं कार्यो का संक्षिप्त विवरण निम्नानुसार है -

1. मेडागास्कर पद्धति अपनाकर धान उत्‍पादन में वृद्धि।

2. मृदा परीक्षण के द्वारा उर्वरक दर का निर्धारण।

3. जमीन की तैयारी से लेकर समस्त कृषि कार्यो के लिए कस्टम हायरिंग के माध्यम से अथवा अनुदान पर क्रय कर कृषि उपकरणों का उपयोग करना।

4. खेत के 10 प्रतिशत रकबे में प्रतिवर्ष उन्नत जाति के प्रमाणित बीज बोकर अगले वर्ष के लिए संपूर्ण आवश्‍यकता का बीज तैयार करना।

5. बीजोपाचार एवं जीवाणु खाद से तैयार किये जाने वाला बीज बोना।

6. बोवाई के लिए उन्नत कृषि पद्धतियां जैसे धान में ''श्री पद्धति'' तथा सोयाबीन में ''रिज एंड फरो'' या ''रेज्‍ड बेड'' पद्धति, अरहर में ''धारवाड़ पद्धति'' के साथ ही अंतवर्तीय खेती अपनायी जाना फसलों के जोखिम को कम कर अधिक उत्‍पदान प्राप्‍त करने का सुगम मार्ग है।

7. सिंचाई की उन्नत पद्धतियां जैसे ड्रिप एवं स्प्रिंकलर के उपयोग से सिंचाई जल की बचत तथा समान रूप से जल वितरण किया जाना।

8. जैविक खेती के प्रोत्साहन हेतु स्थानीय स्तर पर उपलब्ध सामग्री से जैविक खाद एवं जैविक कीटनाशक तैयार कर उपयोग करना। एकीकृत कीट व रोग नियंत्रण के उपाय अपनाना।

9. ई-मार्केटिंग अथवा अन्य स्त्रोतों से प्राप्‍त जानकारी के आधार पर उच्चतम मूल्‍य की जानकारी प्राप्त कर उत्‍पादों का विक्रय करना।

10. खेती के साथ-साथ उद्यानिकी, वानिकी, पशुपालन, मछली पालन, रेशम कीट पालन आदि के माध्यम से आय के वैकल्पिक स्त्रोत स्थापित करना।

11. खाद्य प्रसंस्करण के उपाय अपना कर उत्‍पादों को संरक्षित करना तथा उनके मूल्‍य संवर्धन के द्वारा अधिक लाभ अर्जित करना।

MP में सबसे ज्यादा फसल किसकी होती है?

सोयाबीन फसल, खरीफ मौसम में हमारे प्रदेश में सर्वाधिक बोई जाने वाली फसल है, जो वर्तमान में लगभग 62 लाख हैक्टर में बोई जा रही है। इसके अलावा खरीफ में हमारी प्रमुख फसलें सोयाबीन, धान, मक्का, अरहर, मूंग उड़द, ज्वार, बाजरा, कोदों, कुटकी, तिल, कपास आदि हैं।

मध्य प्रदेश की मुख्य फसल कौन सी है?

प्रदेश में गेहूं, चना, मटर, मसूर, तुअर ''अरहर'', सरसों, गन्ना, अलसी की फसलें बहुतायत से बोई जाती है। मध्यप्रदेश राज्य उद्यानिकी फसलों अमरुद के उत्पादन में देश में द्वितीय स्थान पर, सीताफल, नींबू में तृतीय स्थान पर, पपीता में चतुर्थ स्थान पर एवं अंगूर में आंठवे स्थान पर है।

मध्य प्रदेश में सबसे सिंचित फसल कौन सी है?

गेहूं राज्य की प्रमुख सिंचित फसल है। राज्य के कुल सिंचित क्षेत्रफल का 50.3 प्रतिशत क्षेत्र गेहूं के अ्रतर्गत आता है।

मध्य प्रदेश में कितने फसली क्षेत्र है?

मध्य प्रदेश में 11 कृषि-जलवायु क्षेत्र हैं। राज्य को 11 कृषि-जलवायु क्षेत्रों और 5 फसल क्षेत्रों में विभाजित किया गया है। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल है।