विषमपोषी पोषणविषमपोषी पोषणजब कोई जीव, अन्य जीव द्वारा बनाये गये भोजन से पोषण (nutrition) प्राप्त करते हैं, तो यह विषमपोषी पोषण (Heterotropic Nutrition) कहलाता है। तथा ऐसे जीव जो दूसरे जीव द्वारा बनाये गये भोजन से पोषण प्राप्त करते हैं, विषमपोषी (Heterotrophs) कहलाते हैं। Show
"हेट्रोट्रॉप्स (Heterotrophs)" एक ग्रीक शब्द है, जो दो शब्दों "हेट्रो (Hetero)" तथा "ट्रॉप्स (Trophs)" के मेल से बना है। "हेट्रो (Hetero)" का अर्थ होता है "दूसरा या अन्य" तथा "ट्रॉप्स (Trophs)" का अर्थ होता है "पोषण"। अर्थात दूसरे या अन्य से पोषण। अत: वे जीव जो पोषण के लिये दूसरे जीव पर निर्भर होते हैं, हेट्रोट्रॉप्स (Heterotrophs), अर्थात "विषमपोषी" कहलाते हैं। पोषण की विधि भोजन के स्वरूप तथा उपलब्धता के आधार पर विभिन्न प्रकार की होती है, साथ ही पोषण प्राप्त करने के तरीके, जीव के भोज़न ग्रहण करने के ढ़ग पर भी निर्भर करता है। सारे जीव भोजन की उपलब्धता तथा रहने के स्थान के अनुरूप ही विकसित हुए हैं। कुछ जीव प्राप्त भोजन को उर्जा प्राप्ति के लिए शरीर के अंदर पाचन के द्वारा विघटित करते हैं, जैसे कि मनुष्य, कुत्ता, घोड़ा, हाथी, बाघ, शेर, कौआ, इत्यादि। जबकि कुछ जीव भोजन को शरीर के बाहर ही विघटित कर उसका अवशोषण करते हैं, यथा फफूँदी, यीस्ट, मशरूम, आदि। कुछ जीव भोजन को पूरी तरह अंतर्ग्रहित कर लेते हैं, अर्थात खा लेते हैं, जैसे कि मनुष्य, बाघ, गाय, शेर, चिड़्या, आदि जबकि कुछ जीव अन्य जीवों को बिना मारे ही उनसे पोषण प्राप्त करते हैं, जैसे कि जोंक, जूँ, फीताकृमि, अमरबेल, आदि। जीव अपना पोषण कैसे करते हैं?विभिन्न जीवों के भोजन तथा भोजन के अंतर्ग्रहण की विधि में अंतर होने के कारण उनमें पाचन तंत्र भी भिन्न है। जैसे एककोशिक जीव भोजन को शरीर के संपूर्ण सतह से लेते हैं। अमीबा एककोशिक जीव का एक उदाहरण है। तथा अन्य जटिल जीव भोजन को खाने की प्रक्रिया द्वारा शरीर के अंदर कर लेते हैं जहाँ उसका पाचन होकर विघटन होता है, जैसे कि मनुष्य, गाय, हाथी, घोड़ा, कौआ, आदि जटिल जीव के उदारण हैं। अमीबा में पोषणअमीबा एक एककोशिक जीव है। अमीबा के कोशिकीय सतह (cell surface) पर अँगुली जैसे अस्थायी प्रवर्ध (temporary finger like extensions) होते हैं। अमीबा इन अँगुली जैसे अस्थायी प्रवर्धों (temporary finger like extensions) के द्वारा भोजन को घेर लेते हैं जो संगलित (Fuse) होकर खाद्य रिक्तिका (food vacuoles) बनाते हैं। इस खाद्य रिक्तिका (food vacuoles) के अंदर जटिल पदार्थों का विघटन सरल पदार्थों में किया जाता है और वे कोशिकाद्रव्य (Cytoplasm) में विसरित (diffuse) हो जाते हैं। बचा गुआ अपच पदार्थ कोशिका की सतह की ओर गति करता है तथा शरीर से बाहर निष्काषित कर दिया जाता है। Fig:1. अमीबा में पोषण 1 पैरामीशियम भी एककोशिक जीव है। इसकी कोशिका का एक निश्चित आकार होता है। इसके द्वारा भोजन एक निश्चित स्थान (specific spot) से ही ग्रहण किया जाता है। भोजन इस स्थान तक पक्ष्याभ (cilia) की गति द्वारा पहुँचता है, जो कोशिका (cell) की पूरी सतह को ढ़के होते हैं। मनुष्य में पोषणमनुष्य में पोषण भोजन के पाचन से प्राप्त होता है। मनुष्य में भोजन का पाचन आहार नली (Alimentary canal) में होता है। आहार नली (Alimentary canal) मुँह से गुदा (from mouth to anus) तक विस्तारित (extended) एक लंबी नली (tube) होती है। इस आहार नली (Alimentary canal) में भोजन का पाचन विभिन्न चरणों में होता है, जिससे मनुष्य को पोषण प्राप्त होता है। आहार नली (Alimentary canal) तथा भोजन का पाचनआहार नली को कार्य के अनुरूप मुख्यत: निम्नांकित छ: (6) भागों में बाँटा जा सकता है: (1) मुँह (Mouth) (2) ग्रसिका (Oesophagus) (3) अमाशय (Stomach) (4) क्षुद्रांत्र (Small intestine) (5) बृहद्रांत्र (Large intestine) (6) गुदा द्वार (Anus)
(1) मुँह (Mouth)मुँह आहार नली (Alimentary canal) का मुख्य द्वार है। मुँह को बकल कैविटी (buccal cavity) या ओरल कैविटी (Oral cavity) (मुख गुहा) भी कहा जाता है। मनुष्य; भोजन मुँख से ही प्राप्त करता है तथा भोजन का पाचन मुँह से ही शुरू हो जाता है। मुँह के निम्नाकित भाग हैं: (a) दाँत (Teeth)दाँत का मुख्य कार्य भोजन को चबाना है। दाँत भोजन को काट कर सर्वप्रथम छोटे छोटे टुकड़ों में बाँट देता है, ततपश्चात उसे पीसकर महीन बना देता है। भोजन चबाने के आलावे दाँत बोलने में हमारी मदद करता है तथा हमारे चेहरे को अच्छा आकार देता है। (b) लाला ग्रंथि (Salivary Gland)लाला ग्रंथि एक प्रकार की ग्रंथि है, जो मुँह में होता है। लाला ग्रंथि से एक प्रकार का रस निकलता है, जिसे लालारस (Salivary juice Or Salivary amylase) कहा जाता है। लालारस एक प्रकार एंजाइम (Anzyme) होता है, जो जैव उत्प्रेरक के रूप में जटिल भोजन को साधारण घटकों (Simpler form) (शुगर), में विघटित करने का कार्य करता है। आहार नाल का आस्तर (lining) काफी कोमल होता है, अत: भोजन को निगलने से पूर्व महीन टुकड़ों में पीसने के अतिरिक्त उसे गीला करना भी आवश्यक होता है ताकि आहार नाल के आस्तर को कोई हानि न पहुँचे। लाला ग्रंथि से निकलने वाला लाला रस भोजन को चबाने के क्रम में उसमें मिलकर भोजन को गीला कर देता है। लालारस भोजन के पाचन में भी मदद करता है, अत: लालारस मिलने के कारण भोजन का पाचन मुँह से ही शुरू हो जाता है। (c) जीभ (Tongue)जीभ (tongue) पत्ते के आकार का एक मांसपेशी है, जो मुँह में अवस्थित होता है। भोजन को चबाने के क्रम में जीभ भोजन को चलाने तथा उसमें लालारस मिलाने का कार्य करता है। चबाने के बाद, जीभ भोजन को अंदर की ओर धकेलता (push करता) है। जीभ पर कई स्वाद ग्रंथियाँ होती हैं, जो हमें भोजन का स्वाद बतलाता है। इन्हीं ग्रंथियों के सहयोग से हमें भोजन का स्वाद पता चलता है। इन कार्यों के अतिरिक्त, जीभ बोलने में हमें सक्षम बनाता है। (2) ग्रसिका (Oesophagus)ग्रसिका (Oesophagus) मांशपेशियों से बनी एक लंबी नली होती है। ग्रसिका (Oesophagus) मुँह से अमाशय को जोड़ती है। आहार नली के हर भाग में भोजन की नियमित रूप से गति उसके सही ढ़ंग से पचने की प्रक्रिया पूरी होने के लिये आवश्यक है। आहार नली के आस्तर (lining) में पेशियाँ (muscles) होती हैं, जो नियमित तथा निरंतर फैलकर तथा सिकुड़कर (contract rhythmically) ) भोजन को आगे बढ़ाती है। इस गति को क्रमाकुंचक गति (Peristaltic movements) कहते हैं, जो पूरी भोजन नली में होती है, तथा भोजन को लगातार आहार नली में आगे बढ़ाती रहती है। मुँह से भोजन ग्रसिका (Oesophagus) के द्वारा अमाशय में पहुँचता है। ग्रसिका में किसी प्रकार के पाचन की क्रिया नहीं होती है। (3) अमाशय (Stomach)अमाशय का आकार एक बैग की तरह होता है। अमाशय एक बृहत अंग है, जो भोजन के आने पर फैल जाता है। अमाशय की पेशीय भित्ति भोजन को अन्य पाचक रसों के साथ मिश्रित करने में सहायक होती है। ये पाचन कार्य अमाशय की भित्ति में उपस्थित जठर ग्रंथियों (Gastric glands) के द्वारा सम्पन्न होते हैं। ये हाइड्रोक्लोरिक अम्ल, एक प्रोटीन पाचक एंजाइम पेप्सिन तथा श्लेष्मा का स्त्रावण करते हैं। हाइड्रोक्लोरिक अम्ल एक अम्लीय माध्यम तैयार करता है जो पेप्सिन एंजाइम की क्रिया में सहायक होता है। सामान्य परिस्थितियों में श्लेष्मा (mucus) अमाशय के आंतरिक आस्तर की अम्ल से रक्षा करता है। (4) क्षुद्रांत्र (Small Intestine)अमाशय से भोजन क्षुद्रांत में प्रवेश करता है। यह अवरोधिनी पेशी (sphincter muscle) द्वारा नियंत्रित होता है। क्षुद्रांत्र आहार नली का सबसे लंबा भाग है, अत्यधिक कुंडलित (extensive coiling) होने के कारण यह संहत स्थान (Compact space) में अवस्थित होती है। विभिन्न जंतुओं में क्षुद्रांत की लंबाई उनके भोजन के प्रकार के अनुसार अलग अलग ओती है। घास खाने वाले शाकाहारी का सेल्युलोज पचाने के लिए लंबी क्षुद्रांत की आवश्यकता होती है। मांस का पाचन सरल है, अत: बाघ जैसे मांसाहारी की क्षुद्रांत छोटी होती है। एक वयस्क मनुष्य के क्षुद्रांत की लम्बाई लगभग 6 मीटर या 20 फीट होती है। क्षुद्रांत में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन तथा वसा के पूर्ण पाचन होता है। इस कार्य के लिए क्षुद्रांत यकृत तथा अग्न्याशय से स्त्रावण प्राप्त करती है। अमाशय से आने वाला भोजन अम्लीय है अत: अग्न्याशयिक एंजाइमों की क्रिया के लिए उसे क्षारीय बनाया जाता है। यकृत से स्त्रावित पित्तरस इस कार्य को करता है, यह कार्य वसा पर क्रिया करने के अतिरिक्त है। क्षुद्रांत में वसा बड़ी गोलिकाओं के रूप में होता है जिससे उस पर एंजाइम का कार्य करना मुश्किल हो जाता है। पित्त लवण उन्हें छोटी गोलिकाओं में खंडित कर देता है, जिससे एंजाइम की क्रियाशीलता बढ़ जाती है। अग्न्याशय अग्न्याशयिक रस का स्त्रावण करता है जिसमें प्रोटीन के पाचन के लिए ट्रिप्सिन एंजाइम होता है तथा इमल्सीकृत वसा का पाचन करने के लिए लाइपेज एंजाइम होता है। क्षुद्रांत्र की भित्ति में ग्रंथि होती है जो आंत्र रस स्त्रावित करती है। इसमें उपस्थित एंजाइम अंत में प्रोटीन को अमीनो अम्ल, जटिल कार्बोहाइड्रेट को ग्लूकोज में तथा वसा वसा अम्ल तथा ग्लिसरॉल में परिवर्तित कर देता है। पचे हुए भोजन को आंत्र की भित्ति अवशोषित कर लेती है। क्षुद्रांत्र के आंतरिक आस्तर पर अनेक अँगुली जैसे प्रवर्ध होते हैं जिन्हें दीर्घरोम कहते हैं, ये अवशोषण का सतही क्षेत्रफल बढ़ा देते हैं। दीर्घरोम में रूधिर वाहिकाओं की बहुतायत होती है जो भोजन को अवशोषित करके शरीर की प्रत्येक कोशिका तक पहुँचाते हैं। यहाँ इसका उपयोग उर्जा प्राप्त करने, नए ऊतकों के निर्माण और पुराने ऊतकों की मरम्मत में होता है। (5) बृहद्रांत्र (Large intestine)बिना पचा भोजन क्षुद्रांत्र (small intestine) से बृहदांत्र (Large intestine) में भेज दिया जाता है जहाँ अधिसंख्य दीर्घरोम (more villi) इस पदार्थ में से जल का अवशोषण (absorb) कर लेते हैं। चूँकि बृहदांत्र (Large intenstine) में जल का अवशोषण होता है, यही कारण है कि समय पर शौच नहीं जाने पर मल सूख जाता है तथा कब्जियत की शिकायत उत्पन्न हो जाती है। (6) गुदा द्वार (Anus)बृहदांत्र में जल के अवशोषण के बाद अन्य पदार्थ (rest material) गुदा (Anus) द्वारा शरीर से बाहर कर दिया जाता है। इस बर्ज्य पदार्थ (waste materials) का बहि:क्षेपण (exit) गुदा अवरोधिनी (anal sphincter) द्वारा नियंत्रित किया जाता है। Reference: विषमपोषी का दूसरा नाम क्या है?"हेट्रो (Hetero)" का अर्थ होता है "दूसरा या अन्य" तथा "ट्रॉप्स (Trophs)" का अर्थ होता है "पोषण"। अर्थात दूसरे या अन्य से पोषण। अत: वे जीव जो पोषण के लिये दूसरे जीव पर निर्भर होते हैं, हेट्रोट्रॉप्स (Heterotrophs), अर्थात "विषमपोषी" कहलाते हैं।
अमीबा में कुल कितनी कोशिकाएं होती हैं?अमीबा में कुल कितनी कोशिका होती हैं? अमीबा केवल एक कोशिकीय जीव हैं तथा इसी कोशिका के माध्यम से अपना भोजन ग्रहण करती वे अपशिष्ट पदार्थों का निष्कासन करती हैं।
विषमपोषी पोषण क्या होता है?यह पोषण हरे भरे पेड़ पौधों के अतिरिक्त सभी जीवों में होता है विषमपोषी पोषण के लिए सूर्य के प्रकाश, कार्बन डाइऑक्साइड इत्यादि अनिवार्य नहीं होते हैं। इस पोषण में भोजन के पाचन की आवश्यकता होती है। इस प्रकार का पोषण विषमपोषी पोषण कहते हैं।
अमीबा में कौन सा पोषण होता है?स्पष्टीकरण: पूर्णभोजी पोषण एक प्रकार का हेटरोट्रॉफ़िक पोषण है जिसमें भोजन (ठोस, तरल या गैस) को सीधे शरीर में प्रवेश कराया जाता है। अमीबा इस प्रकार के पोषण को दर्शाता है।
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