उत्तरप्रदेश के आजमगढ़ जिले के छोटे से गाँव मिजवां में 14 जनवरी 1919 में इनका जन्म हुआ था । इन्हें बचपन से ही कविताएँ पढ़ने का शौक था। भाइयों द्वारा प्रोत्साहित किये जाने पर ये खुद भी कविताएं लिखने लगे। 11 साल की उम्र में इन्होंने अपनी पहली गज़ल लिखी। धार्मिक रूढि़वादिता से परेशान कैफी साम्यवादी विचारधारा से प्रभावित हुए और उन्होंने निश्चय किया कि वे सामाजिक संदेश के लिए ही अपनी लेखनी का उपयोग करेंगे। उनकी रचनाओं में आवारा सज़दे, इंकार, आख़िरे-शब आदि प्रमुख हैं। क़ैफ़ी आज़मी को राष्ट्रीय पुरस्कार के अलावा कई बार फिल्मफेयर अवॉर्ड भी मिला। 1974 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया। 2. कर चले हम फिदा कविताकर चले हम फ़िदा जानो-तन साथियो मरते-मरते रहा बाँकपन साथियो ज़िंदा रहने के मौसम बहुत हैं मगर आज धरती बनी है दुलहन साथियो राह कुर्बानियों की न वीरान हो बांध लो अपने सर से कफ़न साथियो खींच दो अपने खूँ से ज़मी पर लकीर अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो 3. कर चले हम फिदा कविता का सार : 4. कर चले हम फिदा कविता का भावार्थकर चले हम फ़िदा जानो-तन साथियो मरते-मरते रहा बाँकपन साथियो मृत्यु को सामने देखकर भी हमने अपने कदम पीछे नहीं हटाए और मातृभूमि के सारे दुश्मनों का डट कर सामना किया। हमें हमारे सिर कटने का भी कोई गम नहीं है, बल्कि हमें इस बात का गर्व है कि हमने हिमालय (भारत माता) का सिर झुकने नहीं दिया। अर्थात् हमने दुश्मनों को अपनी सीमा में प्रवेश नहीं करने दिया। अब हम दूसरी दुनिया में जा रहे हैं, देश की रक्षा अब तुम्हें करनी है। ज़िंदा रहने के मौसम बहुत हैं मगर आज धरती बनी है दुलहन साथियो राह कुर्बानियों की न वीरान हो बांध लो अपने सर से कफ़न साथियो खींच दो अपने खूँ से ज़मी पर लकीर अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो जैसे प्रभु श्री राम एवं लक्ष्मण जी ने माँ सीता को रावण से बचाया, ठीक उसी प्रकार तुम्हें भी हर हाल में भारत माता की रक्षा करनी होगी। शहीद हो रहा सैनिक अपने साथियों से आखिरी साँस लेते हुए कहता है – “मैं भले ही शहीद हो रहा हूँ, लेकिन अब वतन तुम्हारे हवाले है, इसकी हर हालत में रक्षा करना मेरे बहादुर साथियों!” |