ज्यादा अहंकार होने से क्या होता है? - jyaada ahankaar hone se kya hota hai?

आचार्य महाप्रज्ञ
एक राजहंस उड़ता हुआ आकर एक कुएं की मेंड़ पर बैठा। कुएं में एक मेंढक रहता था। उसने राजहंस को देखकर पूछा, हे सुंदर पक्षी, तुम कहां से आए हो? मैं मानसरोवर से आ रहा हूं, हंस ने जवाब दिया। यह मानसरोवर क्या है? क्या वहां तुम्हारा निवास है? मेंढक ने फिर पूछा। राजहंस ने बताया कि हां, वही मेरा निवास है। मेंढक को कौतूहल हुआ, कितना बड़ा है तुम्हारा मानसरोवर? क्या मेरे इस घर (कुंए) से बड़ा है? हां, इससे तो बहुत बड़ा है। ऐसे हजारों कुएं उसमें समा जाएं, इतना बड़ा है। मेंढक नाराज हो गया। बोला, तुम झूठ बोल रहे हो। भला इस कुएं से बड़ा किसी का घर कैसे हो सकता है। मेरे घर से बड़ा तुम्हारा घर हो ही नहीं सकता। राजहंस ने समझाया, हे मेंढक! तू सदा कुएं में ही रहा। इससे बाहर कभी आया नहीं। इसलिए नहीं जानता कि यह संसार कितना बड़ा है। इस संसार में कितने बड़े-बड़े जलाशय हैं, नदियां हैं, समुद हैं। तूने वह सब देखा ही नहीं है। कुएं में बैठा मेंढक यदि ऐसी गर्वोक्ति करे तो कोई आश्चर्य नहीं होता। जो नीचे रहने वाला है, छोटे में रहने वाला है, वह बहुत थोड़े में अहंकारी बन जाता है। अपने से ज्यादा बड़ा उसने कभी देखा ही नहीं, इसलिए उसमें अहंकार आ जाता है। जो बहुत बड़ी-बड़ी चीजें देख रहा है, इस दुनिया की विशालता का अनुभव कर रहा है, उसमें अहंकार नहीं आ पाता। एक कवि ने लिखा है, ऐसा कौन सा व्यक्ति है, जो अपने से छोटे जनों को देखकर अहंकार से नहीं भर जाए और ऐसा कौन सा व्यक्ति है, जो अपने से बड़ों को देखकर अपनी लघुता को नहीं महसूस करे। अहंकार या अंधकार -दोनों मिलते-जुलते शब्द हैं। अहंकार से अधिक दुनिया में कोई अंधकार नहीं। जिस व्यक्ति में अहंकार होता है, समझिए- वह सदा अंधकार में ही रहता है। उसके लिए कभी सूर्योदय होता ही नहीं। कभी दीपक जलता ही नहीं। अहंकारी आदमी की आंखें कभी नहीं खुलतीं। जिस व्यक्ति की आंखें ही नहीं खुलतीं, वह सूर्योदय हो जाए या दीया-बाती जल जाए- वह देख नहीं पाता। पर हमेशा दो आंखों से देखना ही क्या देखना होता है? जब तक व्यक्ति की तीसरी आंख नहीं खुल जाती, विवेक के चक्षु नहीं खुल जाते, तब तक उसका देखना भी क्या देखना हुआ? दो आंखों से कोई सब कुछ तो नहीं देख पाता। दुनिया में दो तरह के अहंकार सबसे बड़े होते हैं। एक अहंकार है- 'मैं' और दूसरा अहंकार है- 'मेरा'। 'मैं' सबसे बड़ा अहंकार है। सब धर्म इस बात को स्वीकार करते हैं कि अहंकार से बड़ा कोई अंधकार दुनिया में नहीं है। इसीलिए सब कहते हैं कि हम अंधकार से प्रकाश की ओर जाएं। लेकिन यह भावना तब तक पूरी नहीं हो सकती, जब तक उसकी प्राप्ति का साधन ठीक नहीं हो, उसका उपाय ठीक न हो। भावना होना एक बात है और उपाय होना अलग बात है। कुछ लोग भावना रखते हैं, पर उपाय ठीक नहीं करते। इसलिए भावना सफल नहीं हो पाती। एक लोक कहानी है। सास ने बहू से कहा, 'बहू रानी, आज मैं कहीं जा रही हूं। तुम नई-नई आई हो, अपने घर का यह नियम है कि रात को अंधेरा नहीं रहना चाहिए। तुम ध्यान रखना, घर में अंधेरा न हो।' बहू नई-नई और भोली थी। सास बाहर चली गई। संध्या हुई, अंधेरा होने लगा। बहू ने सारे दरवाजे और खिड़कियां बंद कर दिए। अंधेरा घना हो गया। वह हाथ में लाठी ले कर अंधेरे को पीटने लगी, भगाने लगी। हाथ लहूलुहान हो गए, पर अंधेरा बना रहा। जब सास आई तो बहू ने सिसकते हुए अपने घायल हाथ आगे कर दिए, मैंने तो अंधेरे को बहुत रोका, सारी खिड़कियां और दरवाजे बंद कर दिए, फिर भी पता नहीं वह भीतर कैसे आ गया। उसके बाद उसे भगाने की भी बहुत कोशिश की, उसे लाठियों से भी पीटा, लेकिन वह गया ही नहीं। सास ने दियासलाई ली और दो-चार दीये जला दिए। एकदम प्रकाश हो गया। सास बोली, 'लाठी से पीटने पर अंधकार नहीं जाता, अंधकार जाता है दीया जलाने से।' मुझे लगता है, हम लोग भी केवल लाठियां बजा-बजाकर अंधेरे को मिटाना चाहते हैं।

सामान्य तौर पर घमंड को अहंकार का पर्याय माना जाता है कितु ऐसा नहीं है इनके अंतर को समझना आवश्यक है। अहंकार चेतना की वृत्त का नाम है। जिसके द्वारा व्यक्ति को अपने होने का अहसास होता है। अहंकार के अनेक रूप हैं। वह इस पर निर्भर है कि वह व्यक्ति हमारे मय को किस रूप में देख पाता है। प्रकृति के तीन गुण हैं और तत्व की अधिकता से अहंकार सात्विक कहलाता है यह विवेकपूर्ण है वह परिणाम स्वरूप कल्याणकारी है वह जमीन के चरम लक्ष्य आत्मज्ञान की ओर ले जाता है जहां उसे अपनी पूर्णता का बोध होता है। रजोगुण की अधिकता से युक्त अहंकार वासना द्वारा प्रेरित होता है वह दुर्बुद्धि का पर्याय होता है। यहां धन जन प्रतिष्ठा आज अनेक प्रकार की वासना और संचालित होने के कारण व्यक्ति को अलग-अलग मार्ग पर ले जाता है। परिणाम स्वरूप व्यक्ति के अंदर हिसा का जन्म होता है और वह निरंतर दुख उठाता है। क्रोध की अधिकता से युक्त अहंकार तामस अहंकार कहलाता है। ज्ञान पूर्णता है और हमें नेकता पूर्ण कार्यों की ओर ढकेलता है। रजोगुण और तमोगुण की अधिकता वाले दोनों प्रकार के घमंड दुखदायी होते हैं। घमंड की बेहोशी विवेक तथा रजोगुण की वासना में हिसा शामिल होती है। यह अहंकार का विकृत रूप है। स्वार्थी का आकार का घमंड से कोई संबंध नहीं है। साधारण मानव हमेशा इस घमंड के चक्रव्यूह में फंस रहा है। गुरु जो ज्ञान देते हैं, उसका अनुशरण ही व्यक्ति करे तो इन सबसे मुक्ति पाकर श्रेष्ठता को प्राप्त कर सकता है। अध्यात्मवाद के बताए मार्ग पर चलकर योग साधना द्वारा जन व आत्मज्ञान की अवस्था को पाकर जब लगता है। एकमात्र परमात्मा की ही सत्ता है और वह इस सत्ता के अनंत महासमुद्र में उत्पन्न होने वाली एक लहर मात्र है। कबीर कहते हैं कि तू तू करता तू मैं मैं वहीं हूं।

जी के त्रिवेदी, कार्यवाहक प्राचार्य, पंडित ओमकार नारायण प्रकाश नारायण मिश्रा महाविद्यालय, सिरसा कलार

------- संसार में दुखों का कारण बनता अभिमान :

घमंड बुंदेलखंडी द्रश्य काव्य में कहा जाता है कि लाला घमंड ज्यादा ना करो कहलाता है। घमंड तो रावण को नहीं रहे तुम कहां लागत हो। बड़े-बड़े आए और चले गए राजा, महाराजा, सेठ, साहूकार जमींदार, सत्तो पटाई गए कौनो को निशान न मिलत है, तुम्हारी का औकात है। मान जाओ लाला जो घमंड करत है, वह काहीं को नही रहत है। आदमी की जात तो पानी के बुलबुलों जैसी है। समय रहते बात मानकर सुधर जा भगवान को डर। ईश्वर का झटका झेलना पाहो। हमने देखो हैं हमारे गांव को एक दादा बहुत अत्ती चाल करें रहत थे। सबकी बेइज्जती करत रहैं। रोज शाम को शराब पीकर सबके गाली देता तो। एक दिन सवेरे उठव न पायो वाकौ लकवा मार गए। अब तो शौचक्रिया तक बिस्तर पर ही करत है। जाई से कहत लल्ला मान जाओ घमंड ना करौ। कबीर दास ने भी अपने दोहों में घमंड को खराब बताते हुए उसको कम शब्दों में परिभाषित किया है। सत्य, संतोष, दया, क्षमा, धीरज विचार के इस कार्य पर चलकर मानव इस घमंड के चक्रव्यूह का भेदन कर सकता है। व्यक्ति जीवन में माया मोह से दूर हो जाता है, मुख्य भाव में पहुंच जाता है यही मानव की पूर्ण अवस्था है।

- पुनीत त्रिपाठी, प्रवक्ता पंडित ओमकार नारायण प्रकाश नारायण मिश्र महाविद्यालय सिरसाकलार

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संसार में कीट से अधिक नहीं व्यक्ति की हैसियत :

घमंड में व्यक्ति को उचित अनुचित, पाप पुण्य शुभ अशुभ का ज्ञान नहीं रहता है। वह सारे जीवन अपने इस कृत्य में लगा रहता है। वह कभी सुखचैन नहीं प्राप्त कर पाता है। घमंडी हमेशा आत्म मुग्ध रहता है। जहां कहीं उसके इस भाव को चोट लगती है वह हिसक होने से बाज नहीं आता। यह मानव की अत्यंत करूण अवस्था का सूचक है। घमंडी इसी को अपना आभूषण मानकर हमेशा भ्रम में ही जीता है। समय के प्रवाह के साथ- साथ संसार के थपेड़ों से जूझते हुए आपदा को आमंत्रित करता है। बारंबार चोट खाता है कितु फिर भी सुधरने की ओर ध्यान ना देकर इसी घमंड के साथ लगा रहता है। यही तो घमंड का चक्रव्यूह है। जो लोग समय रहते चेत जाते हैं और किसी का बुरा न चाहते हुए रहते हैं वह सुख को प्राप्त करते हैं।

अरुण गुबरेले, प्रवक्ता पंडित ओमकार नारायण प्रकाश नारायण मिश्र महाविद्यालय, सिरसा कलार

--------- बल पर घमंड करने वाला मूर्ख :

इंसान को अपने धन का घमंड करना चाहिये। यह आती जाती छाया है, जो कभी एक स्थान पर नहीं रहती है। व्यक्ति को अपने बल पर घमंड नहीं करना चाहिए। बल पर घमंड करने वाले इंसान का बल धीरे-धीरे क्षीण हो जाता है। इसका उदाहरण महाभारत में देखने को मिलता है। केवल दुर्योधन ही नहीं बल्कि भीम ने भी अपने बल पर घमंड किया। चक्रव्यूह भेदन के दौरान भीम ने कहा था कि सातवें द्वार को अपनी गदा से तोड़ दूंगा लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाए और सातवें द्वार पर अभिमन्यु को अपने प्राण गंवाने पड़े। यह घटना बताती है कि अधिक नहीं बोलना चाहिए। जो लोग ताकतवर होते हैं वह बड़े बोल नहीं बोलते हैं। ऐसे लोगों का बल वक्त पर काम आता है। उनकी ऊर्जा नष्ट नहीं होती है। पौराणिक ग्रंथों में एक नहीं बल्कि तमाम ऐसे उदाहरण हैं तो इस बात को साबित करते हैं कि घमंड व्यक्ति का सबसे बड़ा दुश्मन है। तमाम दंभियों का दंभ चूर हो गया और इनका नाम लेने वाला भी कोई नहीं रहा।

- राजेश पांडेय, शिक्षक, दयानंद वैदिक महाविद्यालय, उरई ----- पथ भ्रष्ट करता है घमंड

घमंड वह है तो व्यक्ति को पतन का मार्ग दिखाता है। रावण को अपने और पुत्रों के बल पर इतना अभियान था कि उसने किसी की बात को नहीं माना। अपने हठ पर अड़ा रहा। इसका नतीजा यह निकला कि उसके एक लाख पुत्रों और सवा लाख नातियों का विनाश हो गया। रावण भले ही पराक्रमी महाबली और विद्वान रहा हो लेकिन अहंकार ही उसके लिए काल बना। सोने की लंका रही न कोई राज करने वाला। रावण के राज्य का भोग भगवान से प्रेम करने वाले विभीषण को मिला। सोचनीय विषय यह है कि हर घर में रामचरित मानस का पाठ होता है। अखंड रामायण लोग शुभ कार्यों में करवाते हैं लेकिन फिर भी कोई सीख नहीं लेते हैं। उनका घमंड वैसा ही बना रहता है। यह व्यक्ति के लिए बेहद कष्टकारी होता है। बाइबल घमंड की बात करती है तो आम तौर पर इसे अच्छा नहीं बताया गया। बाइबल की नीतिवचन नामक पुस्तक में ही कई हवाले हैं जो घमंड को बुरा बताते हैं। कहते हैं कि घमंडी हमेशा हठ करता है कि जैसा वह कहता है वैसा ही किया जाए वरना कुछ भी न किया जाए। तो फिर यह समझना मुश्किल नहीं कि ऐसी मनोवृत्ति के कारण वह क्यों अकसर दूसरों के साथ किसी-न-किसी तरह का झगड़ा कर बैठते हैं। यह सब अहंकार के कारण ही होता है। गलत भी हो तो भी अपनी बात पर अड़े रहना गलत है।

अहंकार के लक्षण क्या होते हैं?

असंतोष, ईर्ष्या, लोभ, क्रोध अहंकार रूपी रोग के ही लक्षण हैंअहंकार के चक्रव्यूह को तोड़ पाना आसान नहीं है। उसके लिए सर्वप्रथम मन-प्राण से नम्रता, समर्पण और त्याग की सीढ़ी पर पांव रखना आवश्यक है।

अहंकार क्या नष्ट करता है?

अहंकार से मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है। अहंकार से ज्ञान का नाश हो जाता है। अहंकार होने से मनुष्य के सब काम बिगड़ जाते हैं। जब हम कामयाबी की ओर बढ़ते हैं, तो हमारे साथ अहंकार भी बढ़ता है और जब हम असफल होते हैं, तो अहंकार भी उतरता जाता है।

मनुष्य के मन में अहंकार का जन्म कब होता है?

इसके अतिरिक्त जब किसी को किसी स्थान विशेष पर अधिक महत्व दिया जाता है और उस व्यक्ति को लगता है कि वहां उपस्थित सभी लोगों में केवल वही है जो सर्वश्रेष्ठ है । तब उसके अन्दर अहंकार की भावना का जन्म होता है ।

मनुष्य अहंकार क्यों बनता है?

अहंकार कब और क्यों आता है मनुष्य के अंदर थोडा सा बल, बुद्धि, धन, ऐश्वर्य, और पद मिलने से मानव अहंकारी बन जाता है और हर समय अपना ही गुणगान करता रहता है। उसे अपने से श्रेष्ठ कोई नहीं दिखता। इन्हीं कारणों से उसका पतन होता है। इसलिए कभी अपने बल और धन पर घमंड नहीं करना चाहिए।