रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर सी. रंगराजन की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समीति के अनुसार गरीबी की परिभाषा इस प्रकार है, ग्रामीण क्षेत्रों में 32 रुपया प्रतिदिन और कस्बों तथा शहरी क्षेत्रों में 47 रुपये प्रतिदिन खर्च करने वाले लोगों को गरीब नहीं कहा जा सकता है। रंगराजन समिति के अनुमान के अनुसार, 2009-10 के 29.8% के मुकाबले 2011-12 के दौरान गरीबी रेखा से नीचे की जनसंख्या (बीपीएल) घटकर 21.9% रह गई थी जबकि 2004-05 के दौरान यह 37.2% फीसदी थी। Show
योजना आयोग (अब नीति आयोग) हर वर्ष के लिए समय-समय पर गरीबी रेखा और गरीबी अनुपात का सर्वेक्षण करता है जिसके सांख्यिकी और कार्यक्रम मंत्रालय का राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) बड़े पैमाने पर घरेलू उपभोक्ता व्यय के सैंपल सर्वे लेकर कार्यान्वित करता है। आम तौर पर इन सर्वेक्षणों को पंचवार्षिक आधार (हर 5 वर्ष में) पर किया जाता है। हालांकि इस श्रृंखला में पिछले पाँच साल का सर्वेक्षण, 2009-10 (एनएसएस का 66वां दौर) में किया गया था। 2009-10 का वर्ष भारत में गंभीर सूखे की वजह से एक सामान्य वर्ष नहीं था, एनएसएसओ ने 2011-12 में बड़े पैमाने पर एक बार फिर सर्वेक्षण (एनएसएसओ का 68वां दौर) किया। गरीबी को कैसे परिभाषित किया गया है? भारत में गरीबी रेखा को परिभाषित करना हमेशा से ही एक विवादास्पद मुद्दा रहा है, विशेष रूप से 1970 के मध्य में जब पहली बार इस तरह की गरीबी रेखा का निर्माण योजना आयोग द्वारा किया गया था, जिसमें ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में क्रमश: एक वयस्क के लिए 2,400 और 2,100 कैलोरी की न्यूनतम दैनिक आवश्यकता को आधार बनाया गया था। डीटी लकड़ावाला और बाद में वाई के अलघ जैसे अन्य दूसरे अर्थशास्त्री समय-समय पर होने वाले गरीबी रेखा के सर्वेक्षण कार्य में शामिल रहे हैं। हाल ही में इसमें कुछ संशोधनों के साथ गरीब लोगों की अन्य बुनियादी आवश्यकताओं पर विचार किया गया, जिसमें आवास, वस्त्र, शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता, वाहन, ईंधन, मनोरंजन, आदि शामिल था, ताकि प्रकार गरीबी रेखा की परिभाषा को और अधिक यतार्थवादी बनाया जा सके। यह कार्य यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान सुरेश तेंदुलकर ने 2009 और सी रंगराजन ने 2014 में किया। तेंदुलकर समिति ने नए मानक तय किये जिसके अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में 27 रूपये और शहरी क्षेत्रों में 33 रूपये प्रतिदिन खर्च करने वालों को गरीबी रेखा से ऊपर रखा गया, और इस मानक के अनुसार गरीबी रेखा वाली आबादी में 22 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई की गई। यह काफी विवादस्पद रहा, क्योंकि संख्याओं को वास्तविकता से परे माना गया। बाद में रंगराजन समिति ने इस सीमा को बढा दिया जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों में 32 रूपये और शहरी क्षेत्रों में 47 रूपये प्रतिदिन खर्च करने वालों को गरीबी रेखा रसे बाहर रखा गया और गरीबी रेखा में 30 फीसदी गिरावट की बात कहीं गई। गरीबी रेखा गरीबी रेखा के आंकलन का पुराना फार्मूला वांछित कैलोरी आवश्यकता पर आधारित है। इसमें अनाज, दालें, सब्जियां, दूध, तेल, चीनी आदि वो खाद्य वस्तुएं शामिल थी जो जरूरतमंद कैलोरी प्रदान करते हैं। कैलोरी की जरूरत उम्र, लिंग और कार्य पर निर्भर करती है जो एक एक व्यक्ति करता है। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में औसत कैलोरी आवश्यकता 2400 कैलोरी, प्रति व्यक्ति प्रति दिन है, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 2100 कैलोरी प्रति व्यक्ति प्रति दिन है। चूंकि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोग स्वंय को ज्यादा शारीरिक कार्यों में व्यस्त रखते हैं इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों में कैलोरी की आवश्यकताओं को शहरी क्षेत्रों की तुलना में अधिक रखा गया। इन गणनाओं के आधार पर, वर्ष 2000 में ग्रामीण क्षेत्रों में 328 रुपये प्रति माह और शहरी क्षेत्रों में 454 रुपये प्रति माह कमाने वाले मानक को गरीबी रेखा में शामिल किया गया था। इस तरह वर्ष 2000 में, ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले और 1,640 रुपये प्रति महीने से भी कम कमाई वाले पांच सदस्यों के एक परिवार को गरीबी रेखा के नीचे रखा गया। स्रोत: एनएसएसओ डेटा गरीबी रेखा के आंकलन और विवाद आयोग के ताजा अनुमान के मुताबिक, शहरों में 28.65 रुपये और ग्रामीण इलाकों में 22.42 रुपये से ज्यादा रोज खर्च करने वाले लोग गरीब नहीं हैं। इस पैमाने की बड़े पैमाने पर सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा आलोचना की गई। इस मापदंड के अनुसार भारत में गरीबों की संख्या 2004-05 के 40.72 करोड़ से घटकर 2009-10 में 34.47 करोड़ रह गई है। यह गणना तेंदुलकर पैनल की पद्धति के अनुसार की गई थी। बीपीएल जनसंख्या में भारतीय राज्यों की स्थिति: (एनएसएसओ डाटा) यह बहुत ही दयनीय स्थिति है कि, भारत को एक विकासशील देश भी कहा जाता है और अभी भी यहां गरीबी रेखा से नीचे इतनी बड़ी आबादी रहती है। गरीबी का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and definition of Poverty) गरीबी वह सामाजिक स्थिति हैं, जिसके अन्तर्गत समाज का एक वर्ग अपने जीवन की बुनियादी आवश्यकताओं से वंचित रहता है तथा वह न्यूनतम जीवन स्तर से भी नीचे अपना जीवनयापन करता हैं, अर्थात् गरीबी उस स्थिति को कहा जाता है जिसमें एक व्यक्ति अपनी दैनिक आवश्यकताओं को भी पूरा नहीं कर पाता तथा अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण नहीं कर सकता। गरीबी को निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है- (1) जे०एल० हेन्सन के शब्दों में, “न्यूनतम जीवन स्तर को बनाये रखने के लिए जितनी आय की आवश्यकता होती है, उससे कम आय होने पर व्यक्ति को निर्धन माना जायेगा।” (2) विश्व बैंक के अनुसार, “यदि कोई व्यक्ति प्रतिदिन एक डॉलर की औसत आय अर्जित करने में असमर्थ हैं, तो यह माना जायेगा कि वह निर्धनता रेखा से नीचे जीवन बसर कर रहा है। “ (3) योजना आयोग द्वारा गठित विशेष दल, “Task force of Minimum Needs and Effective Consumption Demand” के अनुसार, “ग्रामीण क्षेत्र में प्रति व्यक्ति 2,400 कैलोरी प्रतिदिन तथा शहरी क्षेत्र में प्रति व्यक्ति 2,100 कैलोरी प्रतिदिन का पोषण प्राप्त न करने वाला व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे माना जाता है। “ (4) विश्व बैंक की विश्व विकास रिपोर्ट 2011-12 के अनुसार लगभग 140 करोड़ व्यक्ति गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन कर रहे हैं क्योंकि वे अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए औसत रूप से एक डॉलन प्रतिदिन भी व्यय नहीं कर सकते है। (5) गरीबी शब्द दो अर्थों में प्रयुक्त होता है (1) निरपेक्ष गरीबी (2) सापेक्ष गरीबी। 1. निरपेक्ष गरीबीगरीबी से तात्पर्य मनुष्य की आधारभूत आवश्यकताओं-उदाहरण के लिए भोजन, कपड़ा, मकान, स्वास्थ्य तथा चिकित्सा इत्यादि को पूरा करने के लिए पर्याप्त वस्तुओं एवं सेवाओं को जुटा पाने में असमर्थता से है। अन्य शब्दों में, “एक मनुष्य की निरपेक्ष गरीबी का यह तात्पर्य है उसकी आय तथा उपभोग व्यय इतना कम है कि वह न्यूनतम भरण- भोषण स्तर पर अपना जीवन निर्वाह कर रहा है। “ 2. सापेक्ष गरीबीसापेक्ष गरीबी से अभिप्राय आय की विषमताओं से है। जब दो देशों की प्रति व्यक्ति आय की तुलना की जाती है तो उनमें काफी अन्तर पाया जाता है। इसी अन्तर के आधार पर यह कहा जा सकता है कि एक देश दूसरे देश से गरीब है। इस गरीबी को सापेक्षिक गरीबी कहा जाता है। भारत में गरीबी के निरपेक्ष विचार को ही मान्यता दी जाती है। इसे भी पढ़े…
गरीबी रेखा से आशयभारत में गरीबी या निर्धनता को पौष्टिक आहार के आधार पर परिभाषित किया गया है। भारतीय योजना आयोग के अनुसार “यदि किसी व्यक्ति को गांव में 2400 कैलोरीज प्रतिदिन व शहर में 2100 कैलोरीज प्रतिदिन पौष्टिक आहार नहीं मिलता है तो यह माना जायेगा कि वह व्यक्ति गरीबी की रेखा के नीचे अपना जीवन यापन व्यतीत कर रहा है। भारत में गरीबी या निर्धनता के कारण अथवा समस्या (Problems or Causes of Poverty in India)(अ) वैयक्तिक कारणवैयक्तिक कारणों के अन्तर्गत स्वयं व्यक्ति में ही कई प्रकार के दोष व अभाव होते हैं जो निम्नलिखित हैं- 1. मानसिक दोष- भारत की अधिकांश जनसंख्या ग्रामों में निवास करती है। इन ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा सम्बन्धी सुविधाओं का आभाव रहता है और साथ ही अल्पाहार मिलता है। बच्चों का उचित रूप से पालन-पोषण न होने से बच्चे अल्पबुद्धि ही रह जाते है। इनको उचित प्रकार की शिक्षा भी नहीं मिल पाती है। इस कारण ये लोग जीवनभर दूसरों पर आश्रित रहते हैं। 2. शारीरिक दोष व बिमारियाँ- शारीरिक दोष व बिमारियाँ, ये दोनों दशाएँ भी व्यक्ति को निर्धन बनाने में सहायक सिद्ध होती है। यदि कोई व्यक्ति शारीरिक दोष से पूर्ण हैं, तो ऐसी दशा में उसको जीविकोपार्जन करने में बड़ी परेशानी का समाना करना पड़ता है। अनभिज्ञता व चिकित्सा के अभाव में कई बच्चे पोलियों तथा विकलांगता के शिकार हो जाते है। भारत में लाखों की संख्या में बहरे और अन्धे हैं, जिनके उत्थान हेतु अभी तक कोई उचित कदम नहीं उठाये गये है। ये सभी अपने जीवन पर्यन्त दूसरों के कन्धों पर बोझ स्वरूप रहते हैं, जिसके कारण निर्धनता को बढ़ावा मिलता है। 3. भाग्यवादिता में विश्वास- भारत की अधिकांश जनसंख्या द्वारा रूढ़िवादिता को महत्त्व देकर हर पहलू को भाग्य के आधार पर जाँचा जाता है। व्यक्ति यह सोचकर निष्क्रिय हो जाते हैं कि भाग्य में ऐसा ही लिखा है तथा वे जीवनभर निर्धनता की गोद में पलते है। 4. मद्यपान- भारत में अधिकतर निर्धनता मद्यपान के कारण बढ़ती हैं। व्यक्ति नशे हेतु अपनी तथा परिवार की मौलिक आवश्यकताएँ भी त्याग देते है। भारत में प्रतिदिन मद्यपान की आदतों के कई लोग शिकार हो रहे हैं। अतः मद्यपान भारत के अन्दर निर्धनता को बढ़ावा देने का प्रमुख कारण है। 5. बेकारी-निर्धनता के व्यक्तिगत कारणों में बेकारी भी एक कारण है। भारत में आज बेरोजगारी की समस्या विकट रूप धारण करती जा रही है। इसे भी पढ़े…
(ब) भौगोलिक कारणकुछ भौगोलिक कारण भी भारत में निर्धनता के लिए उत्तरदायी रहे हैं। प्रमुख भौगोलिक कारण निम्नलिखित हैं- 1. प्राकृतिक साधनों की कमी- जिन स्थानों पर भूमि ऊपर होती है, कोयले व लोहे के उत्पादन के साधनों की कमी होती है, खनिज लवण उपलब्ध नहीं होते, वहाँ के व्यक्ति गरीब होते हैं। भारत के भौगोलिक कारणों में कई क्षेत्र तो ऐसे हैं जहाँ की 100 प्रतिशत जनसंख्या निर्धन हैं। जैसे-पहाड़ी क्षेत्रों की भूमि बिल्कुल भी खेती करने योग्य नहीं होती है। राजस्थान में बहुत वर्षा होती हैं, क्योंकि यहाँ मरुस्थलीय जलवायु होती है तथा कृषि के अन्य साधन उपलब्ध न होने के कारण लोग अत्यधिक निर्धन हैं। 2. प्रतिकूल जलवायु और मौसम – हिमालय पर्वत के शिखरों पर सदैव बर्फ पड़ती रहती है। राजस्थान भी इसी श्रेणी में आता है। रेगिस्तान होने के कारण खेती आदि नहीं हो पाती और निर्धनता बढ़ती है। अतः जलवायु और मौसम की प्रतिकूलता भी निर्धनता पर गहरा प्रभाव डालती हैं। 3. हानिकारक कीड़े- भारत में टिड्डी दलों का यदाकदा आक्रमण होता रहता हैं जो फसलों को चौपट कर देती हैं। इसके अतिरिक्त कई कीड़े ऐसे होते हैं, जो गेहूँ, गन्ना, धान आदि फसलों को नष्ट कर देते हैं। व्यापारियों द्वारा एकत्रित अनाज को भी ये कीड़े नष्ट कर देते हैं। अनुमानतः फसलों को 20 प्रतिशत कीड़े खाते है या नष्ट कर देते हैं। इस प्रकार सम्पूर्ण जनता निर्धनता में रहती है। 4. प्राकृतिक विपत्तियाँ- प्राकृतिक विपत्तियाँ, जैसे सूखा पड़ना या वर्षा का अधिक होना, ज्वालामुखी का विस्फोट, भूचाल, तूफान आदि सारे क्षेत्र में खलबली मचा देती है। भारत की कृषि आज भी वर्षा पर निर्भर है। वर्षा कम होने से अकाल का सामना करना पड़ता हैं और कभी-कभी भयंकर वर्षा का प्रकोप होने से करोड़ों रूपयों की फसलें नष्ट हो जाती है। ये प्राकृतिक विपत्तियाँ भी भारत में निर्धनता के लिए उत्तरदायी रही हैं। इसे भी पढ़े…
(स) आर्थिक कारणभारत में निर्धनता के लिए निम्न आर्थिक कारण भी कुछ सीमा तक उत्तरदायी हैं- 1 कृषि का पिछड़ापन- हमारे देश में पुराने ढंग की खेती की जाती है, क्योंकि अशिक्षित होने के कारण किसानों को नीवनतम वैज्ञानिक साधनों का प्रयोग करना नहीं आता। भारत में सिंचाई व्यवस्था, रासायनिक खाद एवं अच्छे बीजों का अभाव होने से कृषि आज भी केवल जीविकोपार्जन का साधन मानी जाती है। 2. कृषि पर अत्यधिक निर्भरता- भारत में अधिकांश जनसंख्या जीविकोपार्जन के लिए कृषि पर निर्भर है। एक परिवार के पास थोड़ी सी जमीन होती है। सभी व्यक्ति मिलकर रहते और कम जमीन होने से पालन-पोषण होता है तथा कृषि पर ही निर्भर होने के कारण गरीब रहते हैं। 3. उद्योग-धन्धों का अभाव- भारत में उद्योग धन्धों का समुचित विकास नहीं हो सका। उद्योग-धन्धों के अभाव के कारण चारों ओर गरीबी का साम्राज्य दृष्टिगत होता हैं। 4. उद्योगों का असन्तुलित विकास- 20 वीं शताब्दी के बाद औद्योगिक विकास का अवसर प्राप्त हुआ, किन्तु ब्रिटिश शासन की उदासीनता के कारण कुटीर उद्योगों को संरक्षण नहीं पल पाया। इस स्थिति ने बेकारी को जन्म दिया। 5. बढ़ती महँगाई- भारत में बढ़ती महँगाई ने विकराल रूप धारण कर लिया है। इससे भक्ति अपने परिवार को मौलिक आवश्यकताएँ पूरी करने में असमर्थ रहते हैं। आज हमारे देश में लगभग 20 प्रतिशत जनसंख्या निर्धनता की श्रेणी में आती हैं। 6. कम पूँजी- पूँजी उचित मात्रा में नहीं मिल पाने से देश का विकास स्थिर है, जबकि “जनसंख्या बढ़ती जा रही है। वस्तुओं के मूल्य बढ़ रहे हैं। ये सभी कारक निर्धनता को बढ़ावा दे रहे हैं। 7. परिवहन व संचार के उचित साधनों की कमी- हमारे देश का पहाड़ी क्षेत्र आज भी हजारो साल पुराना परम्परागत समुदायों का दीख पड़ता है। यहाँ परिवार के साधनों के अभाव में प्राकृति साधनों, जैसे-जंगलों आदि का कम उपयोग हो पाता है। (द) सामाजिक कारणभारत में निर्धनता के लिए सामाजिक कारण अधिक उत्तरदायी हैं, जो भारत को निर्धन बनाये रखने में महत्त्वपूर्ण रूप से सहायक रहे हैं। 1. जाति प्रथा- जाति प्रथा के कारण लोगों को परम्परागत व्यवसाय अच्छे न होते हुए. भी करने पड़ते हैं। इस प्रथा के कारण समाज में “श्रम की गरिमा का महत्त्व नहीं पनप पाया, जेस कारण उच्च वर्ग के लोगों ने निम्न व्यवसायों को स्वीकार नहीं किया बल्कि भूखों मरना स्वीकार किया। फलस्वरूप देश में निर्धनता बढ़ती चली जाती है। 2. संयुक्त परिवार प्रणाली- संयुक्त परिवार प्रणाली से व्यक्ति के अन्दर आलस्य उत्पन्न हो जाता है, बाल-विवाह को बढ़ाव मिलता है। इन सब कारणों से निर्धनता बढ़ती चली जाती है। 3. सामाजिक कुप्रथाएँ- भारतवर्ष में कई कुप्रथाएँ, जैसे- दहेज, बाल-विवाह, पर्दा-प्रथा आदि हैं, जिनसे अनेक हानियाँ होती हैं और ये निर्धनता बनाये रखने में सहायक होती हैं। 4. दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली- हमारे देश में शिक्षा प्रणाली व्यक्ति को निष्क्रिय बना रही है। समाज में बेरोजगारी बढ़ रही है और अनेक प्रकार की समस्याओं का जन्म हो रहा है। 5. धर्म- भारत में हर बात का सम्बन्ध भाग्य या धर्म से जोड़ा जाता है। वृद्ध व्यक्तियों के मरने पर अशिक्षित लोग कर्ज लेकर भी हजारों रूपया व्यय करते हैं तथा निर्धनता की बेड़ियों में जकड़े रहते हैं। इसे भी पढ़े…
(य) जनसंख्यात्मक कारकआधुनिक युग में बेकारी व निर्धनता के लिए जनसंख्या को एक मूल कारक कहा जा सकता है। हमारे देश में पिछले 50 वर्षों में जनसंख्या में काफी वृद्धि हुई है। इसका मूल कारण अधिक जन्म-दर है। इस स्थिति में बेरोजगारी, खाद्य सामग्री की कमी आदि हो जाती है और निर्धनता बढ़ने लगती है। गरीबी समाप्त करने के लिए सरकारी प्रयास या सुझाव (Measures to solve the poverty)(1) स्वर्णजयन्ती ग्राम रोजगार- योजना ग्रामीण क्षेत्रों से गरीबी हटाने के लिए अप्रैल 1999 में एक नयी स्वर्णजयन्ती ग्राम योजना चलायी गयी। यह योजना स्वर्णजयन्ती ग्राम स्वरोजगा योजना के नाम से जानी जाती है। इस योजना के अन्तर्गत बड़ी संख्या में छोटी-छोटी औद्योगिक इकाइयों का विकास ग्रामीण क्षेत्रों में किया जाना था। इस योजना के अन्तर्गत जो ग्रामीण ल उद्योग इकाइयां लगाना चाहते थे उन्हें ऋण उपलब्ध कराने की व्यवस्था थी और इस ऋण पर अ प्रतिशत की छूट (सब्सिडी) थी। यह सब्सिडी स्वयं सहायता समूहों के लिए 50 प्रतिशत थी। इस योजना में केन्द्र तथा राज्य सरकारों के योगदान का अनुपात 75:25 था। (2) जवाहर ग्राम समृद्धि योजना- यह योजना 1999 में लागू हुईं। इस योजना क मुख्य उद्देश्य ग्रामीण जनता को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना था तथा पंचायतों के माध्य से इसका क्रियान्वयन होना था। (3) लघु तथा कुटीर उद्योग- लघु तथा कुटीर उद्योगों के विकास के लिए सरकार विशेष कदम उठाये ताकि ग्रामीण क्षेत्रों की गरीबी दूर हो सके। इस योजना पर भी सरकार द्वारा बड़ी धनराशि खर्च की गयी। (4) अल्प आवश्यकता कार्यक्रम- गरीबों के जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए य योजना शुरू की गयी। यह योजना पाँचव योजना काल में प्रारम्भ हुई तथा इसके अन्तर्गत प्राइमा शिक्षा, प्रौढ़ शिक्षा, ग्रामीण स्वास्थ्य, ग्रामीण जलव्यवस्था, ग्रामीण यातायात, ग्रामीण विद्युतीकर जैसी अनेक योजनाएं शामिल की गयी। (5) बीस सूत्रीय कार्यक्रम- 14 जनवरी 1982 को एक नया 20 सूत्रीय कार्यक्रम किया गया। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत देश की जनता को गरीबी से बचाने के लिए बीस बिन्दु किये गये और उन्हें पूरे देश में लागू किया गया। (6) नेहरू रोजगार योजना- पण्डित जवाहर लाल नेहरू की जन्मशती पर यह योग चालू की गयी और इसका उद्देश्य शहरी क्षेत्रों के गरीबों को रोजगार उपलब्ध कराना था। इसे भी पढ़े…
गरीबी की समस्या को दूर करने के उपायभारत में गरीबी के निवारणार्थ सर रूप से निम्नांकित प्रयास किये गये हैं- 1. कृषि का विकास- सरकार द्वारा कृषि के विकास हेतु सिंचाई, अनुसन्धान, नवीन प्रणालियों, उत्तम बीच व खाद को उपलब्ध कराने के सम्बन्ध में उल्लेखनीय कार्य किये गये है। सिंचाई सुविधाओं के लिए विशेष तौर पर नदी घाटी योजनाएँ बनायी गयी है। 2. चकबन्दी व्यवस्था- खेती में उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकार ने चकबन्दी योजना का विकास किया है। इसके अन्तर्गत छोटे-छोटे खेतों को मिलाकर विशाल रूप दिया जाता है। इसके साथ ही सहकारी कृषि का विकास किया जा रहा है। 3. बाजार की सुविधाएँ- सरकार द्वारा किसानों को अपनी उपज का सही मूल्य मिलें, इस सम्बन्ध में काफी प्रयास किये गये हैं। सरकार ने उचित बाजार संगठन की स्थापना की है तथा आवागमन के साधनों का भी इस सम्बन्ध में विकास किया गया है। 4. रोजगार की सुविधाएँ- निर्धनता दूर करने हेतु सरकार ने रोजगार सुविधाओं में व्यापक वृद्धि की हैं। वर्तमान में इसके अन्तर्गत “काम के बदले अनाज’ योजना अपनायी गयी है, जिससे लाखों ग्रामीणों को रोजगार के अवसर मिल रहे हैं। 5. परिवार नियोजन को प्रोत्साहन- सरकार ने निर्धनता को समाप्त करने के लिए जन्म दर में कमी लाने हेतु परिवार नियोजन कार्यक्रम को प्रोत्साहन दिया है। इसे भी पढ़े…
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