बर्दवान में नीलामी क्यों की जा रही थी? - bardavaan mein neelaamee kyon kee ja rahee thee?

बंगाल और वहाँ के जमींदार : औपनिवेशिक शासन सर्वप्रथम बंगाल में स्थापित किया गया था। यही वह प्रांत था जहाँ पर सबसे पहले ग्रामीण समाज...

बर्दवान में नीलामी क्यों की जा रही थी? - bardavaan mein neelaamee kyon kee ja rahee thee?


बंगाल और वहाँ के जमींदार :


औपनिवेशिक शासन सर्वप्रथम बंगाल में स्थापित किया गया था। यही वह प्रांत था जहाँ पर सबसे पहले ग्रामीण समाज को पुनव्र्यवस्थित करने और भूमि संबंध्ी अध्किारों की नयी व्यवस्था तथा एक नयी राजस्व प्रणाली स्थापित करने के प्रयत्न किए गए थे।


बर्दवान  में  की  गई  नीलामी  की  एक  घटना :


सन् 1797 में बर्दवान ;आज के ब(र्मानद्ध में एक नीलामी की गई। यह एक  बड़ी  सार्वजनिक  घटना  थी।  बर्दवान  के  राजा द्वारा  धरित अनेक महल  भूसंपदाएँ  बेचे  जा  रहे  थे।  सन्  1793 में इस्तमरारी  बंदोबस्त लागू  हो  गया  था। ईस्ट  इंडिया  वंफपनी  ने  राजस्व की राशि  निश्चित  कर दी थी जो प्रत्येक जमींदार को अदा करनी होती थी। जो जमींदार अपनी निश्चित राशि नहीं चुका पाते थे उनसे राजस्व वसूल करने के लिए उनकी संपदाएँ नीलाम कर दी जाती थीं। चूँकि बर्दवान के राजा पर राजस्व की बड़ी भारी रकम बकाया थी, इसलिए उसकी संपदाएँ नीलाम की जाने वाली थीं।


नीलामी में बोली लगाने के लिए अनेक ख़रीददार आए थे और संपदाएँ महालद्ध सबसे उँची बोली लगाने वाले को बेच दी गईं। लेकिन कलेक्टर को तुरंत ही इस सारी कहानी में एक अजीब पेंच दिखाई दे गया। उसे जानने में आया कि उनमें से अनेक ख़रीददार, राजा के अपने ही नौकर या एजेंट थे और उन्होंने राजा की ओर से ही शमीनों को ख़रीदा था। नीलामी में 95 प्रतिशत से अधिक बिक्री फर्जी थी। वैसे तो राजा की जमीनें खुलेतौर पर बेच दी गई थीं पर उनकी शमींदारी का नियंत्रण उसी के हाथों में रहा था।


अदा  न  किए  गए  राजस्व  की  समस्या :


अकेले बर्दवान राज की शमीनें ही ऐसी संपदाएँ नहीं थीं जो अठारहवीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में बेची गई थीं। इस्तमरारी बंदोबस्त लागू किए जाने के बाद 75 प्रतिशत से अध्कि शमींदारियाँ हस्तांतरित कर दी गई थीं।


ब्रिटिश अधिकारी यह आशा करते थे कि इस्तमरारी बंदोबस्त लागू किए जाने से वे सभी समस्याएँ हल हो जाएँगी जो बंगाल की विजय के समय से ही उनके समक्ष उपस्थित हो रही थीं। 1770 के दशक तक आते-आते, बंगाल की ग्रामीण अर्थव्यवस्था संकट के दौर से गुजरने लगी थी क्योंकि बार-बार अकाल पड़ रहे थे और खेती की पैदावार घटती जा रही थी। अधिकारी लोग ऐसा सोचते थे कि खेती, व्यापार और राज्य के राजस्व संसाधन सब तभी विकसित किए जा सवेंफगे जब कृषि में निवेश


उपनिवेशवाद और देहात :


को प्रोत्साहन दिया जाएगा और ऐसा तभी किया जा सकेगा जब संपत्ति के अध्किर प्राप्त कर लिए जाएँगे और राजस्व माँग की दरों को स्थायी रूप से तय कर दिया जाएगा। यदि राज्य ;सरकारद्ध की राजस्व माँग स्थायी रूप से निर्धरित कर दी गई तो वंफपनी राजस्व की नियमित प्राप्ति की आशा कर सकेगी और उद्यमकर्ता भी अपने पूँजी-निवेश से एक निश्चित लाभ कमाने की उम्मीद रख सवेंफगे, क्योंकि राज्य अपने दावे में वृ( करके लाभ की राशि नहीं छीन सकेगा। अध्किरियों को यह आशा  थी  कि  इस प्रव्रिफया से छोटे किसानों योमॅन और धनी भूस्वामियों का एक ऐसा वर्ग उत्पन्न  हो जाएगा  जिसके  पास  कृषि  में सुधार  करने  के लिए  पूँजी  और  उद्यम  दोनों होंगे।  उन्हें  यह  भी  उम्मीद थी  कि  ब्रिटिश शासन  से  पालन-पोषण और प्रोत्साहन  पाकर, यह वर्ग कंपनी  के  प्रति  वपफादार  बना  रहेगा।

लेकिन  समस्या  यह  पता  लगाने  की थी कि वे कौन से व्यक्ति  हैं जो वृफषि में सुधर करने के साथ-साथ राज्य को निर्धरित राजस्व अदा करने का ठेका ले सकेंगे। कंपनी के अधिकारियों के बीच परस्पर लंबे वाद-विवाद  के  बाद, बंगाल के राजाओं और ताल्लुकदारों के साथ इस्तमरारी बंदोबस्त लागू किया गया। अब उन्हें जमींदारों के रूप में  वर्गीवृफत किया गया और उन्हें सदा के  लिए एक निर्धरित राजस्व माँग को अदा करना था। इस परिभाषा के अनुसार, शमींदार गाँव में भू-स्वामी नहीं था, बल्कि वह राज्य का राजस्व समाहर्ता यानी ;संग्राहकद्ध मात्रा था।


जमींदारों के नीचे अनेक ;कभी-कभी तो 400 तकद्ध गाँव होते थे। वंफपनी के हिसाब से, एक जमींदारी के भीतर आने वाले गाँव मिलाकर एक राजस्व संपदा का रूप ले लेते थे। वंफपनी समस्त संपदा पर वुफल माँग निर्धरित करती थी। तदोपरांत, शमींदार यह निर्धरित करता था कि भिन्न-भिन्न गाँवों से राजस्व की कितनी-कितनी माँग पूरी करनी होगी, और पिफर शमींदार उन गाँवों से निर्धरित राजस्व राशि इकट्टòी करता था। शमींदार से यह अपेक्षा की जाती थी कि वह वंफपनी को नियमित रूप से राजस्व राशि अदा करेगा और यदि वह ऐसा नहीं करेगा वो उसकी संपदा नीलाम की जा सकेगी।

बर्दवान में जमीदारी की नीलामी कब की गई?

1-1 बर्दवान में की गई नीलामी की एक घटना सन्‌ 1797 में बर्दवान में एक नीलामी की गई। यह एक बड़ी सार्वजनिक घटना थी। बर्दवान के राजा द्वारा धारित अनेक महल; संपदाएं बेचे जा रहे थे। सन्‌ 1793 में इस्तमरारी बंदोबस्त लागू हो गया था।

बंगाल के जमींदार लगान चुकाने से क्यों चूक जाते थे?

7 राजस्व राशि के भुगतान में जमींदार क्यों चूक करते थे? 3 जमींदार लोग नए कानूनों को समझने में असमर्थ रहे इसलिए वे राजस्व देने में कोताही करने लगे जिसके कारण राजस्व की राशि बढती चली गई । 6 7 धन व्यय करना पड़ा जिसके परिणामस्वरूप लगान का भुगतान करने के लिए उनके पास धन की कमी हो गई ।

जमींदार भुगतान में चूक क्यों करते हैं?

राजस्व राशि के भुगतान में जमींदार द्वारा चूक का कारण : (i) प्रारंभिक माँगें बहुत ऊँची थी, क्योंकि ऐसा महसूस किया गया था कि आगे चलकर कीमतों में बढ़ोतरी होने और खेती का विस्तार होने से आय में वृद्धि हो जाने पर भी कंपनी का दावा कभी नहीं कर सकेगी ।

स्थाई बंदोबस्त के बाद से बहुत जमींदारों को क्यों नीलाम कर दिया गया?

कभी कम मूल्यों और फसल अच्छी न होने के कारण किसान अपने राजस्व का भुगतान करने में असमर्थ हो जाते थे, तो कभी रैयत जानबूझकर ठीक समय पर राजस्व का भुगतान नहीं करते थे। इस प्रकार जमींदार ठीक समय पर राजस्व का भुगतान नहीं कर पाता था और उसकी ज़मींदारी नीलाम कर दी जाती थी।