बेटी के लिए पिता क्या करता है? - betee ke lie pita kya karata hai?

हर घर में बेटियां पिता की लाडली होती हैं। वैसे भी अक्सर यही कहा जाता है कि बेटे मां के करीब होते हैं तो बेटियां अपने पापा के ज्यादा करीब होती हैं। पापा की परी और घर में सबसे प्यारी, बड़ा गहरा चाव और लगाव होता है बाप-बेटी का, तभी तो उम्र के हर पड़ाव पर पापा उनके लिए खास भूमिका निभा रहे होते हैं। कभी बचपन में हर खेल में जीत दिलाने वाले सुपरमैन के रोल में होते हैं तो कभी बिटिया की विदाई के समय बच्चों की तरह फूट-फूटकर रोते हैं। पढ़ाई या नौकरी के लिए घर से दूर जा रही बेटी अपने लिए सबसे ज्यादा भरोसा और उम्मीद पिता की आंखों में ही देखती है। ऐसा ही होता है पापा का मन, जो प्रेम दिखाता तो नहीं पर निभाता जरूर है। इसी निभाव के लिए पिता बेटियों की उम्र के मुताबिक ढलते और साथ चलते रहते हैं, ताकि जीवन के हर पड़ाव पर बने रहें अपनी बिटिया का संबल। और शायद यही वजह है कि आज बेटियां अपने पापा के ज्यादा नजदीक हैं। वे पिता को अपना गुरु , अपना मार्गदर्शक मानती हैं और अपना सबसे अच्छा दोस्त भी। यही वजह है कि वे उनकी अंगुली हमेशा थामे रहती हैं, शादी के बाद भी।

प्यारा है यह लगाव

बेटियां आज आगे बढ़ रही हैं। वे सफल हैं, आत्मविश्वासी हैं। इन सबके पीछे पिता के स्नेहिल संबल की बड़ी भूमिका है। इस रिश्ते का लगाव और चाव इतना प्यारा और गहरा होता है कि शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। आज भी कितने ही घरों में पिता हाथ थाम कर कहते हैं कि मैं हूं ना मेरी बिटिया, तुम डरो नहीं। खुशियों और कामयाबियों की असंख्य राहें खुलेंगी, जब मैं तुम्हारा हाथ अपने हाथ में लेकर हौसले से आगे बढूंगा। तुम्हारी हिफाजत जिम्मेदारी है मेरी। तुम्हारे मासूम सपनों की उड़ान को आसमान देना मेरा सबसे सुनहरा स्वप्न है। मैं हूं तुम्हें दुनियावी तपिश से सुरक्षा देने के लिए। मेरी तमाम कोशिशें तुम्हें आगे बढऩे का संबल देने और तुम्हारे अस्तित्व को सहेजने के लिए ही तो हैं। यह सब कुछ कहा भी जाता है और कई बार अनकहा भी रहता है। पापा और बिटिया के मन तो एक-दूजे की अनकही बात भी सुन लेते हैं। यही समझ भरोसे को बल देती है। इसी भरोसे और हिम्मत की पोटली उठाए बेटियां आज हर मोर्चे पर अपनी मौजूदगी दर्ज करवा रही हैं। निसंदेह आज की सशक्त और सफल बेटियों के पीछे भी उनके स्नेहिल पिताओं का भरपूर सहयोग है। अब पापा बेटियों का हाथ थाम कर चलने में विश्वास रखते हैं, उन्हें पीछे रखने में नहीं। इसी का सुखद नतीजा है कि बेटियां भी अब किसी हद में बंधकर नहीं सोच रही हैं। वे जानती हैं कि ऐसा संबल उनके साथ है, जो ना केवल उन्हें आगे बढऩे की हिम्मत देगा, बल्कि किसी भी परिस्थिति में उन्हें डिगने भी नहीं देगा। वह हिम्मत, जो जिंदगी के हर मोड़ पर उनके काम आएगी, दुनिया से लडऩे की ताकत देगी।

सब समझते हैं पापा

कभी मां को कहकर मन की बात पापा तक पहुंचाई जाती थी। अब पापा सब समझते हैं। बेटियों के मन की बात बिन कहे जान लेते हैं। तभी तो बेटियों के हीरो होते हैं पिता। जीवन में हर चुनौती से जूझते समय हाथ थामे रहने वाला दृढ़ सहारा होते हैं। हां, भावनाओं को अभिव्यक्त करने में पिता का हृदय थोड़ा संकोच जरूर करता है पर मन के भीतर अथाह प्रेम भरा होता है। पिता के कम शब्द और गहरी आवाज अक्सर ये अहसास करवाते हैं कि वे बिटिया को समझते ही नहीं। अनुशासन और सधे हुए संवाद का यह भाव चिंता के उस भाव को ढक देता है, जो हर पिता के मन में हर वक्त चलती है। आज के दौर में अपनी लाडो की जरूरतों से लेकर जिज्ञासाओं तक पिता बिन कहे ही समझ रहे हैं। अब जो समझ और समन्वय पिता बेटी के रिश्ते में दिखता है, वो अनगिनत तकलीफों के बावजूद बिटिया के सपनों को विस्तार देने वाला है। बेटी के अस्तित्व की स्वीकार्यता के साथ यह आश्वासन देने वाला है कि वो और विस्तार पाए और अपने सपने पूरे करे। अगर कोई समस्या आए तो मैं हूं हर हाल में तुम्हारा साथ देने के लिए। पितृसत्तात्मकता की अवधारणा वाले हमारे समाज में एक समय ऐसा भी था, जब परिवार में बेटियों की मौजूदगी कोई मायने ही नहीं रखती थी लेकिन आज उनका होना ही नहीं, मन का करने और आगे बढऩे के निर्णय भी मान्य हैं। अब हर पिता को लाडली बिटिया की उपलब्धियां खूब गौरवान्वित करती हैं। पापा इस गौरव को सबके साथ शेयर करना भी नहीं भूलते।

स्नेहभरी सख्ती

पापा कभी मन का करने की छूट देते हैं तो कभी बंदिशों से भरी हिदायतें भी लेकिन रूखी सी हंसी और सख्ती ओढ़े व्यवहार के पीछे पिता के मन का गहरा प्रेम और चिंता ही छिपी होती है। वे दुनियावी बातों और हालातों को जानते-समझते हैं। इसीलिए संभलकर जीने और आगे बढऩे की सीख उनकी हर बात में शामिल होती है। हालांकि अब पिता खुद उस कम्फर्ट जोन से बाहर आ रहे हैं, जिसमें बेटियों को एक तयशुदा परवरिश देने की हिमायत की जाती थी पर बिटिया की सुरक्षाओं लेकर उनकी दृढ़ता साफ दिखती है। यूं भी पिता घर की रीढ़ होते हैं और बिटिया के लिए तो शक्ति स्तम्भ। हर परिस्थिति में सबको संभालना उनकी पहली जिम्मेदारी है। यही कारण है कि पापा का सबसे महत्वपूर्ण गुण बन जाता है धैर्य। देखने में भी आ रहा है कि किस तरह हर परिस्थिति में शांत और सधी हुई सोच के साथ आज के पिता अपनी बेटियों को आगे बढ़ा रहे हैं। उनके सच्चे मार्गदर्शक बन रहे हैं। जीवन से जुड़े हर अच्छे-बुरे निर्णय में उनका साथ दे रहे हैं। सुखद है कि पिता अब भावनात्मक नहीं, व्यावहारिक धरातल पर बेटियों को जीना सिखा रहे हैं। उनके आत्मविश्वास को पोषित कर रहे हैं।

ऊर्जा देता साथ...

पापा का साथ जिंदगी के हर पहलू पर असर डालता है। यह साथ जीवन का हर हिस्सा संवारता है। तभी तो बदलते समय के साथ यह भूमिका और बड़ी हो रही है। पिता के साथ, समझ और स्नेह भरे व्यवहार तले बड़ी होने वाली बेटियां अपने अस्तित्व को लेकर जागरूक हैं। फादर इनवॉल्वमेंट रिसर्च एलायंस के अनुसार जो बेटियां पिता की देख-रेख में परवरिश पाती हैं, उनमें आत्मसम्मान का भाव बहुत गहरा होता है। पिता से सुरक्षा का जो वादा मिलता है, वह कभी किसी और रिश्ते से नहीं मिल सकता। आज के समय में जब, लड़कियों की भूमिका केवल घर तक ही सीमित नहीं रह गई है, इस रिश्ते में आए बदलावों ने बिटिया और पापा को मानवीय आधार पर भी जोड़ दिया है।