फसल के कटाई के बाद सबसे जरूरी काम अनाज भंडारण का होता है। अनाज के सुरक्षित भंडारण के लिए वैज्ञानिक विधि अपनाने की जरूरत होती है, जिससे अनाज को लंबे समय तक चूहे, कीट, नमी, फफूंद आदि से बचाया जा सके। प्राय: खाद्यान्नों में लगाने वाले कीट लेपिडोप्टेरा एवं कोलिओप्टेरा ऑर्डर के होते हैं जो भंडारित अनाज में अधिक नमी और तापमान की दशा में अत्यधिक हानि पहुँचाते हंै। इनमे से चावल का घुन, अनाज का पतंगा या तितली, छोटी सुरसुरी, दाल भृंग (पल्स बीटल), खपरा बीटल एवं अन्य कीट अत्यधिक हानिकारक है जो दानों को खाकर खोखला कर देते है एवं अनाज की पौष्टिकता कीड़ों की मलमूत्र, अंडों, मरे हुये कीटों व उनके श्वसन से उत्पन्न नमी के कारण पैदा हुई फफूंद से नष्ट हो जाती है। देश में पैदा होने वाले अनाज का 10-12 प्रतिशत केवल अनुचित रखरखाव के कारण नष्ट हो जाता है, अत: यह वैज्ञानिक तौर पर आवश्यक है कि किसान की कड़ी मेहनत की कमाई अनुचित रखरखाव से खराब न हो। भारत में वार्षिक भंडारण हानि 7000 करोड़ रुपए कीमत के लगभग 14 मिलियन टन खाद्यान्न है, जिसमें अकेले कीटों से हानि लगभग 1300 करोड़ रुपए है। भंडारण कीट द्वारा प्रमुख हानि न केवल उनके द्वारा अनाज को खाने से होती है बल्कि संदूषण से भी होती है। Show प्रमुख कीट एवं उनके पहचान के लक्षण: अनाज का छोटा बेधक – यह भंडार गृह का नाशीकीट है। यह भंडार के अधिकांश कीटनाशी के प्रति अवरोधक क्षमता विकसित कर लिया है। प्रौढ़ गहरे भूरे, छोटे (3 मिमी लंबाई तक ) होते है और सिर गर्दन के अंदर झुका होता है। प्रौढ़ उडऩे में सक्षम एवं मजबूत होते हैं। प्रौढ़ एवं सूँडी दोनों ही क्षति पहुँचाते है। मादा 200-400 अंडे अनाज के सतह पर देती है। नवजात सूँडी (सफ़ेद भूरे सिर का ) बाहर से शुरू कर के अनाज मे छिद्र बना देते है और दानों को भीतर से खाकर खोखला कर देते है तथा अनाज को आटे में परिवर्तित कर देते है। खपड़ा बीटल – प्रौढ़ कीट सलेटी भूरे रंग का होता है जिसकी लंबाई 2.5 मिमी तथा 2 मिमी होता है। इसका शरीर अंडाकार, सिर छोटा तथा सिकुडऩे वाला होता है सूँडी बारीक रोयें से भरपूर होते हंै जिनको भंडारण में खुली आंखों से देखा जा सकता है। केवल सूँडी ही अनाज को खाती है और इस कीट की कोई भी अवस्था दानों के भीतर नहीं पायी जाती है। सूँडी का प्रकोप मुख्यत: अनाज के भ्रूण पर होता है। मादा अंडे नाज की सतहों एवं दीवार की दरारों में देते हैं। औसतन 35 डिग्री सेल्सियस पर अपना जीवन चक्र 50 दिनों में पूरा कर लेते हंै तथा प्रतिकूल परिस्थितियों में भी यह कीट जीवित रहता है। आटे का लाल भृंग – यह कीट समान्यत: अनाज, संसाधित अनाज, आटा, मैदा, सूजी इत्यादि का कीट है। प्रौढ़ कीट छोटा लाल भूरे रंग का लगभग 3 मिमी लंबा होता है। सिर, वक्ष, तथा उदर स्पष्ट होते है। भृंग बहुत जल्दी चलने और उडऩे में तेज होते हंै। इसके एंटिनी कुछ झुके हुये तथा एंटिनी के ऊपर के तीन खंड मिलकर एक मोटा विकसित भाग बनाते हंै। ये समान्यत: 4-5 सप्ताह में जीवन चक्र पूरा कर लेते हैं। दालों का भृंग – प्रौढ़ कीट लगभग 3.2 मिमी लंबा होता है। इसका शरीर भूरा तथा शरीर आगे की ओर नुकीला तथा पीछे चौड़ा होता है। मादा की एंटिनी शृंगाकार तथा नर की कंघाकर होती है। डिम्भक या सूँडी अनाज के दानों को खा जाते हंै और उसमे छिद्र कर देते हैं। व्यस्क का जीवनकाल कम अवधि का होता है, वह हानिकारक नहीं होता है और वह भंडारित अनाज को बिल्कुल नहीं खाता है। अनाज का पतंगा – सुनहरे भूरे रंग के उडऩे वाले पतंगे होते हैं, प्रौढ़ 5-7 मिमी लंबे अनाजों की सतहों पर ढेर में लगते हैं। अगले पंख हल्के पीले, पिछले भूरे तथा आखिरी सिरे कुछ नुकीले एवं लंबे बालयुक्त होते हैं। सुंडी एक दाने के भीतर छिद्र करके खाती है और विकसित होकर प्रौढ़ के रूप में निकलती है। चावल का पतंगा – प्रौढ़ का पृष्ठ पंख भूरा और अग्र पंख में पतली सी लाइन भूरी गाढ़ी एवं उनके सिरों से नीचे की ओर होती है। सुंडी के द्वारा अनाज में एक मोटी सी जाली नुमा रचना की जाती है। तंबाकू या सिगरेट का भृंग – छोटे-मोटे पैरों को सिकोड़े हुए 1/8 इंच लंबे गाढ़ी भूरे रंग के कीट जिनके सिर, धड़ से एकदम चिपके हुए जो कि ऊपर से ठीक से दिखाई भी नहीं पड़ता। सूँडी और प्रौढ़ भंडारित तंबाकू, हल्दी, मिर्च और अदरक को खाते हैं। इंडियन मील मोथ – पंख विस्तार 3/8 इंच अगला आधा पंख हल्का तथा आधा गाढ़ा, सिर व धड़ लाल रंग लिए हुए, सूँडी अनाजों और मेवा (dryfruits) को नुकसान करती है । कटारी दांतों वाला अनाज का भृंग – यह लगभग 1/8 इंच लंबे, गाढ़े भूरे चपटे कीट होते हैं। धड़के दोनों किनारों पर आरीनुमा 6 दांत होने के कारण यह कीट आसानी से पहचान में आ जाता है। प्रबंधनकीट प्रकोप के पूर्व बचाव
कीट प्रकोप के पश्चात उपचार
प्रद्यूमन प्रक्रिया में ली जाने वाली सावधानियां
प्राकृतिक पदार्थों द्वारा संरक्षण:
भंडारण क्यों आवश्यक है?फसलों की कटाई के बाद सबसे जरूरी काम अनाज भंडारण का होता है। अनाज के सुरक्षित भंडारण के लिए वैज्ञानिक विधि अपनाने की जरूरत होती है, जिससे अनाज को लंबे समय तक चूहे, कीटों, नमी, फफूंद आदि से बचाया जा सके। भण्डारण की सही जानकारी न होने से 10 से 15 प्रतिशत तक अनाज नमी, दीमक, घुन, बैक्टीरिया द्वारा नष्ट हो जाता है।
भंडारण के क्या लाभ है?भण्डारण का महत्व (bhandaran ka mahatva)
पैकिंग, मिश्रण आदि के माध्यम से वस्तुओ के आकार में परिवर्तन कर उसे उपभोक्ताओं की आवश्यकता के अनुरूप बनाया जाता है। समय पर माल की उपलब्धि मांग को बढ़ाती है। मौसम में वस्तुओं की मांग गैर मौसम में भी पैदा की जा सकती है इस तरह भण्डारण माल की मांग को बढ़ाता है।
फसल के भंडारण से पूर्व धूप में सुखाना क्यों आवश्यक है?अनाज के भंडारण के लिए नमी की मात्रा 14 प्रतिशत से कम होनी चाहिए। अत: भंडारण से पहले अनाजों को धूप में सुखाया जाता है, जिससे नमी में कमी आ जाती है। अगर अनाजों में ज्यादा नमी रह जाती है तो भंडारण के दौरान कीट, चूहों एवं सूक्ष्मजीवों द्वारा इसके नष्ट होने की संभावना बढ़ जाती है।
भंडारण क्या है भंडारण के प्रकार बताइए?भंडारण किसे कहते हैं बड़ी मात्रा में वस्तुओं को, उनकी खरीद अथवा उत्पादन के समय से लेकर उनके वास्तविक उपयोग अथवा विक्रय के समय तक सुरक्षित रखना। भंडारण गृह अथवा गोदाम शब्द एक दूसरे के पर्यायवाची है, अत: जहाँ वस्तुओं को संग्रहित किया जाता है , वह भण्डार गृह कहलाता है।
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