इसे सुनेंरोकेंफ्रायड का यह मत था कि वयस्क व्यक्ति के स्वभाव में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं लाया जा सकता क्योंकि उसके व्यक्तित्व की नींव बचपन में ही पड़ जाती है, जिसे किसी भी तरीके से बदला नही जा सकता. हालाँकि बाद के शोधों से यह साबित हो चुका है कि मनुष्य मूलतः भविष्य उन्मुख होता है। Show
फ्राइड के अनुसार मन की संरचना का सही कोटि क्या है?इसे सुनेंरोकेंफ्रायड ने कार्य के अनुसार भी मन को तीन मुख्य भागों में वर्गीकृत किया है। इड (मूल-प्रवृत्ति): यह मन का वह भाग है, जिसमें मूल-प्रवृत्ति की इच्छाएं (जैसे कि उत्तरजीवित यौनता, आक्रामकता, भोजन आदि संबंधी इच्छाएं) रहती हैं, जो जल्दी ही संतुष्टि चाहती हैं तथा खुशी-गम के सिद्धांत पर आधारित होती हैं। पढ़ना: वास्तु की गुप्त ऊष्मा कितनी होती है? फ्राइड के अनुसार व्यक्तित्व निर्माण में मुख्य भूमिका किसकी होती है?इसे सुनेंरोकेंइस अवधारणा के साथ ही फ्रायड ने व्यक्ति की मानसिक संरचना के विषय में बताया कि मानसिक शक्ति काम (Libido) से उत्पन्न होती है। यह काम समस्त जीवन संबंधी मूल प्रवृत्तियों की शक्ति है तथा यही बालक के व्यवहार की प्राथमिक चालक शक्ति भी है। व्यक्तित्व की गत्यात्मकता इसी काम संतुष्टि की आवश्यकता से शासित होती है। मानव चेतना क्या है? इसे सुनेंरोकेंचेतना मनुष्य की वह विशेषता है जो उसे जीवित रखती है और जो उसे व्यक्तिगत विषय में तथा अपने वातावरण के विषय में ज्ञान कराती है। इसी ज्ञान को विचारशक्ति (बुद्धि) कहा जाता है। यही विशेषता मनुष्य में ऐसे काम करती है जिसके कारण वह जीवित प्राणी समझा जाता है। फ्राइड के अनुसार सामान्य भूले क्या होती है? इसे सुनेंरोकेंअचेतन (Unconscious) – सिगमंड फ्रायड व्यक्ति के अचेतन मन को बहुत महत्व देते थे फ्रायड के अनुसार व्यक्ति के मन या मस्तिष्क के बहुत बड़े भाग के रूप में उसका अचेतन मन हैं जिसमें उसकी काम भावना निवास करती है फ्रायड के अनुसार व्यक्ति को शारीरिक तृप्ति द्वारा सुख की अनुभूति प्राप्त होती है इसलिए उनके इस सिद्धांत को सुखवादी … पढ़ना: अजंता की गुफा किसने और क्यों बनवाई? फ्रायड के अनुसार व्यक्तित्व के कितने पहलू है?इसे सुनेंरोकेंइस सिद्धांतो के आधार पर सिगमंड फ्रायड यह निष्कर्ष निकालते हैं कि मानव व्यवहार और उसका व्यक्तित्व उसके मनोजगत से जुड़ा है। साथ ही यह भी स्पष्ट करते हैं कि अब तक मानव जाति का विकास, कला, साहित्य, विज्ञान आदि मानव मन की आदिम प्रवृत्तियों के दमन के आधार पर हुआ है। चेतन अवचेतन मन क्या है?इसे सुनेंरोकेंचेतन मन: चेतन मन हम सभी लोगों के मन के अंदर सवाल पैदा करता है, उन सवाल को हल करने के लिए तर्क वितर्क करता है और सोचने समझने के पश्चात हमें निर्णय देता है। अर्धाचेतन मन: अर्ध चेतन मन हमें इन सभी के स्वप्न स्वप्न दिखाता है ताकि हम सभी लोग अपने आगे के जीवन को सुधार सकें। अर्ध चेतन मन को ही अवचेतन मन भी कहा जाता है। फ्रायड के अनुसार मनोलैंगिक विकास की अवस्थाएं कितनी है?इसे सुनेंरोकेंमनोलैंगिक विकास के इस चरण में किशोरावस्था एवं प्रौढ़ावस्था या वयस्यावास्था दोनों को ही शामिल किया गया है। यह 13 वर्ष की उम्र से प्रारंभ होती है और निरन्तर चलती ही रहती है। फ्रायड के अनुसार इस अवस्था में व्यक्ति के शरीर में अनेक प्रकार के परिवर्तन होते हैं। पढ़ना: फांसी हमेशा 4 30 बजे ही क्यों दी जाती है? फ्राइड का सिद्धांत क्या है? इसे सुनेंरोकेंफ्राइड (Freud) के अनुसार मानसिक संरचना में इदं, अहम और पराअहम – तीनों मुख्य भाग है जो अनवरत रूप से संघर्षशील रहते हैं। इदम् और पराअहम् में विरोध रहता है क्योंकि इदम् का कार्य सुख को खोजना है, तनाव कम करने की दृष्टि से यह दुख से दूर रहता है इससे व्यक्ति और पर्यावरण के मध्य संघर्ष रहता है। इस सिद्धांतो के आधार पर सिगमंड फ्रायड यह निष्कर्ष निकालते हैं कि मानव व्यवहार और उसका व्यक्तित्व उसके मनोजगत से जुड़ा है। साथ ही यह भी स्पष्ट करते हैं कि अब तक मानव जाति का विकास, कला, साहित्य, विज्ञान आदि मानव मन की आदिम प्रवृत्तियों के दमन के आधार पर हुआ है। मनोविष्लेशण के क्षेत्र में आगे चलकर एल्फ्रड एडलर ने व्यक्तित्व के विकास में हीनता ग्रंथि (Inferiority Complex) को एक केन्द्रीय तत्व के रूप में पहचाना और बताया कि बचपन में बच्चा इसी ग्रंथि के प्रभाव में विकास करता है। श्रेष्ठता के लिए मनुष्य की इच्छा इस हीनता ग्रंथि से उबरने की संचालक शक्ति है। एडलर के बाद कार्ल जी जुंग ने विश्लेषणात्मक मनोविज्ञान की नींव रखी। जुग के सिद्धांतों ने धर्म, दर्शन, साहित्य, पुरातत्व जैसे विषयों को अपने चिंतन से प्रभावित किया। उन्होंने मानव प्रकृति को समझने के लिए अंतर्मुखी और बहिर्मुखी स्वभाव की अवधारणा प्रस्तुत की। अवचेतन को गहरार्इ में विश्लेषित करते हुए सामूहिक अवचेतन की अवधारणा दी। इसे आर्केटाइप के रूप में आदिम बिम्ब को, मिथक की मान्यता प्रदान की। जुंग ने अपने आनुभविक साक्ष्यों द्वारा आधुनिक मनुष्य की समस्या को स्पष्ट किया है। उनके अनुसार आधुनिक मनुष्य की समस्या मूलत: आध्यात्मिक है। इस रूप में जुंग के सिद्धांत आधुनिकता की मुक्ति की संभावना से जुड़े हुए हैं। उनका विश्वास था कि मनुष्य का भौतिक लक्ष्यों के अलावा आध्यात्मिक लक्ष्य जीवन में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।
1. व्यक्तित्व की संरचनासिगमंड फ्रायड ने व्यक्तित्व की संरचना का वर्णन दो मॉडलों के आधार पर किया है- (i) चेतन- चेतन मन में से समस्त अनुभव। इच्छायें, प्रेरणायें, संवेदनायें आती हैं। किनका सम्बन्ध वर्तमान समय से होता है और जिसमें व्यक्तित्व जाग्रतावस्था में होता है। अत: केवल वर्तमान संबंध होने के कारण चेतन मन व्यक्तित्व के अत्यन्त सीमित पहलू का प्रतिनिधित्व करता है। (ii). अर्द्धचेतन- यह चेतन एवं अचेतन के मध्य की स्थिति है। इस अवस्था में व्यक्तित्व न तो पूरी तरह जाग्रत अर्थात् चेतन होता है। और न ही पूरी तरह से अचेतना सिगमंड फ्रायड का मानना है कि अद्धचेतन मन में ऐसी इच्छाएं, भावनायें एवं अनुभूतियां आती हैं, किन्तु प्रयास करने पर चेतन स्तर पर आ जाती है। अवचेतन मन को सुलभस्मृति के नाम से भी जाना जाता है। उदाहरण- जैसे कि कोई व्यक्ति अपना चश्मा या अन्य कोई वस्तु रखकर भूल जाता है। कुछ समय तक सोचने के बाद उसे याद आता है कि वह चश्मा या वस्तु तो उसके उदाहरण में आप देखिये कि व्यक्ति को प्रारंभ में याद नहीं आता है कि अचुक वस्तु उसने कहीं रखी है अर्थात् वह स्मृति अभी चेतनमन के स्तर पर नहीं है, किन्तु कुछ समय के बाद उसे स्मरण हो आता है कि वह चीज उसने यहां पर रखी है। इस प्रकार वह स्मृति चेतन मन का एक अच्छा उदाहरण है। (iii). अचेतन- अचेतन शब्द, चेतन के ठीक विपरीत है अर्थात् जो चेतना से परे हो, वह अचेतन है। सिगमंड फ्रायड ने व्यक्तित्व के आकारात्मक मॉडल में चेतन एवं अर्द्धचेतन की तुलना में अचेतन को कहीं अधिक महत्वपूर्ण माना है। उनके अनुसार मनुष्य का व्यवहार अचेतन अनुभूतियां अच्छाओं एवं प्रेरणाओं से ही सर्वाधिक प्रमाणित होता है। सिगमंड फ्रायड की यह भी मान्यता है कि अचेतन में जो भी इच्छा है, विचार, अनुभव एवं प्रेरणायें होती हैं। उनका स्वरूप कामुक, अनैतिक,घृणित एवं आसामाजिक होता है। कहने के आशय यह है कि नैतिक दबाव अथवा सामाजिक दबाव इत्यादि के कारण अपनी कुछ इच्छाओं की पूर्ति व्यक्ति चेतन में नहीं कर पाता है। अत: ऐसी इच्छाएं चेतन स्तर पर निष्क्रिय होकर अचेतन मन में दमित हो जाती है और मानवीय व्यवहार को निरन्तर प्रभावित करती रहती है। इसी के परिणाम स्वरूप व्यक्ति को विभिन्न प्रकार के मनोरोगों का सामना करना पड़ता है। 2. गव्यात्मक या संरचनात्मक मॉडल- आकारात्मक मॉडल को जानने के बाद अब आपके मन में गत्यात्मक भी संरचनात्मक मॉडल के बारे में जानने की जिज्ञासा उत्पन्न हो रही होगी। सिगमंड फ्रायड का मत है कि मूल प्रवृतियों से उत्पन्न मानसिक संघर्षों का समाधान जिन साधनों के द्वारा होता है। वे सभी गत्यात्मक या संरचनात्मक मॉडल के अन्तर्गत आते हैं। सिगमंड फ्रायड के अनुसार ऐसे साधन तीन हैं- 1. उपाहं-
2. व्यक्तित्व की गतिकीव्यक्तित्व की गतिकी का आशय है- व्यक्तित्व में उर्जा का स्रोत क्या है? यह उर्जा कहां से प्राप्त होती है तथा समय-समय पर व्यक्तित्व में किस प्रकार से परिवर्तन होते हैं। सिगमंड फ्रायड के अनुसार मनुष्य एवं शारीरिक एवं मानसिक दोनों ही प्रकार की उपाधि होती है। जिनका मुख्य स्रोत यौन उर्जा है। चलना, दौड़ना, लिखना इत्यादि कार्य करने में शारीरिक उर्जा तथा सोचना, तर्क करना, निर्णय लेना, समस्या का समाधान करना इत्यादि में मानसिक उर्जा काम में आती है। सिगमंड फ्रायड ने व्यक्तित्व के कुछ गत्यात्मक पहलू बताये हैं, जो निम्न हैं- 1. मूलप्रवृत्ति - मूलप्रवृत्ति से सिगमंड फ्रायड का आशय है- जन्मजात शारीरिक उत्तेजना यही मूल प्रवृत्ति के समस्त व्यवहार की निर्धारक होती है। इन मूलप्रवृत्तियों को सिगमंड फ्रायड ने दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया है- (i). जीवनमूल प्रवृत्ति- जीवन मूलप्रवृत्ति के कारण व्यक्ति की प्रवृत्ति रचनात्मक कार्यों में होती है। वह नये-नये अर्थात् मौलिक और अच्छे-अच्छे कार्य करने के लिये प्रेरित होता है। रचनात्मक कार्यों में मानवजाति का प्रजनन भी शामिल है। यहां पर ध्यान देने योग्य बात यह है कि सिगमंड फ्रायड ने अपने पूरे सिद्धांत में ‘‘यौन मूल प्रवृत्ति’’ पर सर्वाधिक बल डाला है। फ्रायड के अनुसार यौन उर्जा व्यक्तित्व विकास के लिए अत्यधिक आवश्यक है। 2. चिन्ता - व्यक्तित्व का दूसरा गत्यात्यक पहलू है-’’चिन्ता’’। सिगमंड फ्रायड के अनुसार चिन्ता का अर्थ है- ‘‘एक दु:खद भावनात्मक अवस्था’’। यह चिन्ता व्यक्ति के अहं में भविष्य के खतरे के प्रति सतर्क एवं सावधान करता है, जिसके कि व्यक्ति अपने परिवेश के प्रति सामान्य एवं अनुकूली व्यवहार हो सके तथा वह वातावरण के साथ समायोजन कर सके। सिगमंड फ्रायड ने चिन्ता के निम्न तीन प्रकार बतलाये हैं- (i). वास्तविक चिन्ता- वास्तविक चिन्ता का अर्थ है- ‘‘बाहरी वातावरण में विद्यमान वास्तविक खतरे के प्रति की गई सांवेगिक अनुक्रिया।’’ इस प्रकार की चिन्ता इसलिये उत्पन्न होती है, क्योंकि अहं कुछ हद तक बाहृय वातावरण पर निर्भर होता है। उदाहरण- भूकंप, आँधी-तूफान, शेर इत्यादि से डर उत्पन्न होकर चिन्तित होना वास्तविक चिन्ता के उदाहरण है। (ii). तंत्रिकातापी चिन्ता- इस प्रकार की चिन्ता के उत्पन्न होने का कारण है- अहं का उपाहं की इच्छाओं पर निर्भर होना। उदाहरण- जैसे व्यक्ति का यह सोचकर चिंताग्रस्त हो जाना कि क्या अहं, उपाहं की यौन इच्छाओं, आक्रामक एवं हिंसात्मक इच्छाओं को नियंत्रित करने में सक्षम हो पायेगा (iii). नैतिक चिन्ता- अहं की पराहं पर निर्भरता के कारण व्यक्ति में नैतिक चिन्ता उत्पन्न होती है। कहने का तात्पर्य यह है कि जब अहं, उपाहं की अनैतिक इच्छाओं को कार्यरूप दे देता है, तो उसे पराहं से दण्डित होने की धमकी मिलती है। इससे वह नैतिक रूप से चिन्ताग्रस्त हो जाता है तथा उसमें दोषभाष, शर्म इत्यादि की भावना उत्पन्न हो जाती है। यदि हम सामूहिक रूप से देखें तो ये तीनों प्रकार की चिन्तायें एक दूसरे से संबंधिक है तथा एक प्रकार की चिन्ता दूसरे प्रकार की चिन्ता को जन्म देती हैं। 3. मनोरचनायें - जब व्यक्ति के अन्दर अनेक प्रकार की चिन्तायें उत्पन्न होने लगती है तो वह इन चिन्ताओं से छुटकारा पाने के लिये अहं रक्षात्मक प्रक्रमों के संप्रत्यय का प्रतिपादन तो फ्रायड द्वारा किया गया, किन्तु इसकी सूची को पूरा करने का कार्य उनकी पुडी अन्ना फ्रायड एवं दूसरे नव-फ्रायडियनों द्वारा किया गया। एक सीमा तक इन रक्षात्मक प्रक्रमों का प्रयोग करना ठीक है, किन्तु इनके लगातार तथा अधिक प्रयोग के कारण व्यक्ति के मन में अनेक प्रकार के मनोरोग जन्म लेने लगते हैं। 3. व्यक्तित्व का विकाससिगमंड फ्रायड ने व्यक्तित्व विकास को ‘‘मनोलैंगिक विकास’’ की संज्ञा दी है तथा इस विकास के पाँच चरण या अवस्थायें बतायी है - 1. मुखावस्था-
2. गुदावस्था-
3. लिंग प्रधानावस्था-
4. अव्यवक्तावस्था-
5. जननेन्द्रियावस्था-
फ्रायड का व्यक्तित्व का मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत के गुणमूल्यांकन में किसी भी व्यक्ति, वस्तु, परिस्थिति अथवा सिद्धांत के गुण एवं दोष की समीक्षा की जाती है। फ्रायड के व्यक्तित्व सिद्धांत में भी कुछ गुण है और कुछ इसकी सीमायें हैं - आक्रामकता का क्या कारण है?आक्रामकता शारीरिक रूप से एवं मनोवैज्ञानिक कारणों से हो सकती हैं। शारीरिक आनुवंशिक या सहज इरादों और मनोवैज्ञानिक किसी स्थिति में होने के कारण या लिंग भेद होने के कारण हो।
फ्रायड के 3 सिद्धांत क्या हैं?(1)चेतन मन- यह मन वर्तमान से संबंधित है। (2) अर्द्ध चेतन मन – ऐसा मन जिसमें याद होते हुए भी याद ना आए कोई भी चीज, पर जब मन पर ज्यादा जोर दिया जाए तो यह ( कोई भी चीज) याद आ जाता है। (3) अचेतन मन – जो मन चेतना में नहीं होता, यह दुखी, दम्भित इच्छाओं का भंडार होता है।
फ्रायड के अनुसार व्यक्तित्व के कितने पहलू हैं?फ्रायड के मूल प्रवित्ति के सिद्धांत में चर्चा करते हुए हमारे जीवन के दो पहलुओं को जीवन की मूल प्रवित्ति मानते है | पहला इरोज़ (EROS) अर्थात जिजीविषा और दूसरा थान्टोस( THANATOS ) मतलब मुमूर्षा | जिजीविषा से आशय जीने की मूल प्रवित्ति , इच्छा , प्रेम , आत्मसंरक्षण और जीवन में होने वाले सकारात्मक पहलुओं से है जबकि मुमूर्षा ...
आक्रामकता को कैसे नियंत्रित करें?आक्रामकता के प्रबन्धन हेतु योग, शिथिलिकरण, हँस चिकित्सा, उल्टी गिनती गिनना, पाँच श्वास आदि तकनीकों का इस्तेमाल करके आक्रमकता को नियंत्रित किया जा सकता है। जब भी खिलाड़ी आक्रामकता को नियंत्रित रखें उसे सकारात्मक सुदृढीकरण प्रदान करना चाहिए उदाहरण के लिये कोई पुरस्कार देना।
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