कबड्डी (अंग्रेज़ी:Kabaddi) एक सामूहिक खेल है, जो प्रमुख रूप से भारत में खेला जाता है। कबड्डी नाम का प्रयोग प्राय: उत्तर भारत में किया जाता है, इस खेल को दक्षिण भारत में चेडु-गुडु और पूरब में हु तू तू के नाम से भी जानते हैं। भारत के साथ पड़ोसी देशों में भी कबड्डी बड़े पैमाने पर खेली जाती है। विभिन्न क्षेत्रों में इसके अलग-अलग नाम हैं। पश्चिमी भारत में हु-तू-तू, पूर्वी भारत और बांग्लादेश में हा-दो -दो; दक्षिण भारत में चेडु-गुडु; श्रीलंका में गुड्डु और थाईलैंण्ड में थीचुब। यद्यपि यह खेल थोड़ी भिन्नता के साथ खेला जाता है, पर शत्रु क्षेत्र में आक्रमण का मूलतंत्र सभी में समान रहता है। इस खेल में एक खिलाड़ी विरोधी दल के पाले (क्षेत्र) में 'कबड्डी,कबड्डी' या 'हु-तू-तू' दोहराया जाता है, विरोधी दल के खिलाड़ियों को छूने के प्रयास में तेज़ी से घूमता है और वापस अपने पाले (क्षेत्र) में आ जाता है; यह सभी एक ही सांस में और विरोधियों की गिरफ़्त से बचकर होना चाहिए। इतिहासयद्यपि कोई औपचारिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है, पर इस खेल का उद्भव प्रागैतिहासिक काल से माना जा सकता है, जब मनुष्य में आत्मरक्षा या शिकार के लिए प्रतिवर्ती क्रियाएँ विकसित हुईं। इस बात का उल्लेख एक ताम्रपत्र में है कि भगवान कृष्ण और उनके साथियों द्वारा कबड्डी से मिलता-जुलता एक खेल खेला जाता था। महाभारत में कुरुक्षेत्र के युद्ध के दौरान एक रोचक प्रसंग में अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु, को शत्रु के चक्रव्यूह को भेदने के लिए कहा गया। प्रत्येक चक्र कौरवों सात युद्ध वीरों से सुसज्जित था। यद्यपि अभिमन्यु व्यूह को भेदने में सफल हो गए, मगर वह बाहर आने में असमर्थ रहे। ऋषि-मुनियों द्वारा चलाए जा रहे गुरुकुलों में भी कबड्डी खेली जाती थी, जहाँ शिष्य शारीरिक व्यायाम के लिए इसे खेलते थे। [1] पहली प्रतियोगिता20वीं सदी के पहले दो दशकों में महाराष्ट्र के विभिन्न सामाजिक संगठनों ने कबड्डी के खेल को औपचारिकता व लोकप्रियता प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1918 में कुछ सामान्य नियम बनाए गए और कुछ प्रतियोगिताएँ आयोजित की गईं। लेकिन कबड्डी के नियमों के औपचारिक गठन और प्रकाशन का ऐतिहासिक क़दम सन् 1923 में भारतीय ओलिंपिक संघ के तत्वावधान में उठाया गया। इस स्वदेशी खेल का पहला अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शन एक खेल संगठन, हनुमान व्यायाम प्रसारक मंडल ने 1936 के बर्लिन ओलिंपिक में किया। में पहली प्रतियोगिता कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) के टाला बगीचे में आयोजित की गई। 1950 में भारतीय कबड्डी महासंघ की स्थापना हुई। पुरुषों के लिए पहली राष्ट्रीय प्रतियोगिता 1952 में मद्रास (वर्तमान चेन्नई) में आयोजित की गई, जबकि महिलाओं की पहली राष्ट्रीय प्रतियोगिता 1955 में कलकत्ता में हुई। लगभग 1938 1972 ग़ैर व्यावसायिक कबड्डी संघ (एमेच्योर कबड्डी फ़ेडरेशन) की स्थापना हुई और प्रतिप्रयोगिताएँ शुरू की गईं। 1974 में भारतीय दल ने खेल को लोकप्रिय बनाने के लिए बांग्लादेश का दौरा किया। 1978 में बांग्लादेश के दल ने भारत के विरुद्ध टेस्ट श्रृंखला खेलने के लिए यहाँ का दौरा किया। दक्षिण एशिया क्षेत्र में इस खेल के विकास का महत्त्वपूर्ण मोड़ था, एशियाई ग़ैर व्यावसायिक कबड्डी संघ (एशियन एमेच्योर कबड्डी फ़ेडरेशन) की स्थापना। पहली एशियाई कबड्डी प्रतियोगिता 1980 में कलकत्ता में आयोजित की गई। 1982 में नई दिल्ली में हुए एशियाई खेलों में कबड्डी का प्रदर्शन किया गया। 1985 से इसे दक्षिण एशियाई संघीय खेलों में शामिल कर लिया गया। 1990 में बीजिंग में हुए एशियाई खेलों में कबड्डी ने एक प्रतियोगी खेल के रूप में पदार्पण किया। खेल का मैदानखेल का मैदान समतल तथा नर्म होता है। यह मिट्टी, खाद या बुरादे का होता है। पुरुषों के लिए मैदान का आकार 121/2 मी X 10 मी होता है। केन्द्रीय रेखा इसे दो समान भागों में बाँटती है। प्रत्येक भाग 10 मी X 61/4 मी. होता है। स्त्रियों तथा जूनियर्स के लिए मैदान का नाप 11 मी. X 8 मी. होता है। मैदान के दोनों ओर एक मीटर चौड़ी पट्टी होगी जिसे लॉबी कहते हैं। प्रत्येक क्षेत्र में केन्द्रीय रेखा से तीन मीटर दूर उसके समानांतर मैदान की पूरी चौड़ाई के बराबर रेखाएं खीची जाती है। इन रेखाओं को बॉक रेखाएं कहते हैं। केन्द्रीय रेखा स्पष्ट रुप से अंकित की जानी चाहिए। केन्द्रीय रेखा तथा अन्य रेखाओं की अधिकतम चौड़ाई 5 सैंटीमीटर या 2" होनी चाहिए। साइड रेखा और अंत रेखा के बाहर की ओर 4 मीटर स्थान खुला छोड़ना आवश्यक है। बैठने का ब्लॉक अंत रेखा से दो मीटर दूर होता है। पुरुषों के लिए बैठने का ब्लॉक अंत रेखा से जूनियर्स के लिए 2 मीटर X 6 मीटर होता है। सामान तथा पोशाकखिलाड़ी की पोशाक, बनियान और निक्कर होती है। इसके नीचे जांघिया या लंगोट होता है। खिलाड़ी कपड़े के जूते तथा जुराब पहन सकते है तथा बनियान भी पहन सकते हैं। बनियान के आगे पीछे नम्बर लिखा हुआ होना चाहिए। बैल्ट सेफ्टी पिन और अंगूठियों की आज्ञा नहीं है तथा नाख़ून कटे होने चाहिए। खेल के नियमस्मरणीय तथ्य
कबड्डी में विपक्षी खिलाड़ी संघर्ष करते हुए
मैच के नियमरात्रि में कबड्डी मैच का एक दृश्य, मुंबई
(ii) यदि 50 मिनट के खेल के पश्चात् टाई हो तो वह टीम जीतेगी जिसने पहले अंक प्राप्त किया हो।
जब एक टीम के सारे खिलाड़ी आउट हो जाएं तो विरोधी टीम को 2 अंक अधिक मिलते हैं। उसको हम लोना कहते हैं। प्रतियोगिता निम्नलिखित दो प्रकार के होती हैं।
कबड्डी का आनन्द लेते ग्रामीण
अधिकारी और निर्णायक
अधिकारी के अधिकार
त्रुटियाँ
समाचार22 अक्टूबर, 2016भारत ने कबड्डी विश्व कप जीताविश्व विजेता भारतीय कबड्डी टीम अहमदाबाद के द एरेना बाय ट्रांसस्टेरिडया में खेले गए कबड्डी विश्वकप के फाइनल में शनिवार 22 अक्टूबर, 2016 को मेजबान भारत ने ईरान को नौ अंकों के अंतर से हराकर खिताब पर क़ब्ज़ा जमाया। मौजूदा चैम्पियन भारत ने ईरान को 38-29 से मात देते हुए लगातार तीसरी बार खिताब अपने नाम किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने टीम इंडिया को जीत पर बधाई दी। भारत की जीत के हीरो दिग्गज रेडर अजय ठाकुर रहे। अजय ने पहले हाफ तक पीछे चल रही भारत को लगातार सफल रेड डालते हुए न सिर्फ बराबरी दिलाई, बल्कि अहम समय पर भारत को मजबूत किया। उन्होंने कुल 12 अंक हासिल किए। एक समय ईरान ने अपने मज़बूत डिफेंस और ज़ोरदार हमले के दम पर मध्यांतर तक 18-13 की बढ़त बना ली थी। दर्शकों से खचाखच भरे स्टेडियम में तब सन्नाटा पसरा हुआ था। ईरान के अबुल फ़ज़ल, मेराज शेख़ और ग़ुलाम अब्बास अपने रेड पर लगातार प्वाइंट अर्जित कर भारत पर दबाव बना रहे थे। लेकिन जैसे ही दूसरा हॉफ शुरू हुआ, अजय ठाकुर ने ईरान के मिराज़ को आउट कर भारत भेजा और भारतीय खेमे में नया जोश पैदा किया। इसके बाद भारतीय टीम ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। भारत ने दो बार ईरान को ऑल आउट किया। समाचार को विभिन्न स्रोतों पर पढ़ें
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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महाराष्ट्र में कबड्डी को किस नाम से जाना जाता है?इसे विभिन्न नामों से जाना जाता है जैसे दक्षिण में गुडु-गुडु, बंगाल में डो–डो और महाराष्ट्र में हू-तू-तू के नाम से जाना जाता है। कबड्डी फेडरेशन ऑफ इंडिया के नियमानुसार कबड्डी का एक ही रूप मान्य है। इस खेल को हू-तू-तू नाम महाराष्ट्र ने दिया, जहां धावा बोलने वाला (रेडर) अभी भी हू-तू-तू का प्रयोग करता है।
भारत में कबड्डी का पुराना नाम क्या है?कबड्डी को अलग-अलग जगह पर कई नामों से जाना जाता है. इसका नाम कबड्डी मुख्य तौर पर उत्तर भारत में रखा गया. इसे दक्षिण भारत में चेडुगुडु के नाम से जानते हैं. हालांकि इसका कबड्डी नाम बहुत ज्यादा लोकप्रिय हो गया है.
कबड्डी खेल के मैदान को किस नाम से जानते हैं?कबड्डी खेलने के मैदान को हम किस नाम से जानते हैं? उत्तर: कबड्डी खेलने के मैदान को हम कबड्डी कोर्ट अर्थात् पाला नाम से जानते हैं।
कबड्डी खेल का जन्म किस देश में हुआ?प्रो कबड्डी लीग के ईरानी प्लेयर मेराज शेख का कहना है कि उनके होमटाउन सिस्तान में इस खेल का जन्म लगभग 5000 साल पहले हुआ था. ESPN से बातचीत में वो कहते हैं कि ईरान इस खेल की असली जन्मभूमि है ना कि भारत और इसका जिक्र कई पुरानी किताबों में भी किया गया है.
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