P.S. जिन लोगों ने मन्नू भंडारी की आत्मकथा पढ़ी है या जिनको मन्नू और राजेंद्र यादव के वैवाहिक जीवन की जानकरी रही है वे लोग इस उपन्यास को उन दोनों की अपनी निजी ज़िन्दगी का लेख जोखा ही मानेंगे; खुद मुझे भी यही लगा था लेकिन हमारे इस भ्रम को मन्नू भंडारी ने दूर कर दिया है. उपन्यास के अंत में दोनों लेखकों ने इस डेढ़ साल तक चले "प्रयोग" पर अपने विचार दो चैप्टर्स में लिखे हैं जो इस किताब की खूबसूरती को और बढ़ा देते हैं और इसी में मन्नू भंडारी ने स्पष्ट कहा है कि इस कहानी का उनके निजी जीवन से कोई लेना देना नहीं। पर फिर भी मन मानता तो नहीं। Show अब पुस्तक पढ़ ली है तो ये कहते मुझे संकोच नहीं कि ये वैसा उपन्यास नहीं जिसे आप एक बार उठा लें तो ख़त्म कर के ही दम लें। दो अलग-अलग लेखन शैली के लेखकों को जोड़ता ये उपन्यास खुद कथा लेखन में रुचि रखने वालों के लिए जरूर बेहद महत्त्व का है, पर आम पाठकों के लिए इसके नीरस हिस्सों को पार कर पाना कभी-कभी काफी दुरूह हो जाता है। आखिर साथ-साथ लिखने की सोच कहाँ से आई? इस उपन्यास की उत्पत्ति बारे में स्वयं मन्नू भंडारी जी कहती हैं..... ".....यह सच है कि लेखन बहुत ही निजी और व्यक्तिगत होता है. लेकिन “एक इंच मुस्कान” उस दौर में लिखा गया था जब प्रयोगात्मक उपन्यास लिखने का सिलासिला चल रहा था. उस समय एक उपन्यास निकला था ''ग्यारह सपनों का देश'' इस उपन्यास को दस लेखकों ने मिलकर लिखा था. जिसने आरंभ किया था उसी ने समाप्त भी किया. लेकिन यह एक प्रयोग था जो कि पूरी तरह असफल रहा. तब लक्ष्मीचन्द्र जैन ने मुझसे और राजेन्द्र से यह प्रयोग दोबारा करने को कहा हम राज़ी हो गए. मेरा एक उपन्यास तैयार रखा था. राजेंद्र ने कहा क्यों न हम इस उपन्यास को फिर से लिख लें. हांलाकि मेरी भाषा-शैली और नज़ारिया राजेन्द्र से बिलकुल अलग है, लेकिन हमने किया यह कि मैं मुख्य रूप से महिला पात्र पर केंद्रित रही और राजेन्द्र पुरूष पात्र पर....." पर सबसे आश्चर्य इस बात पर होता है कि इस उपन्यास को पढ़ कर इसके बारे में जो अनुभूतियाँ आपके मन में आती हैं, वही पुस्तक के अंत में दिए गए लेखक और लेखिका के अलग अलग वक्तव्यों में प्रतिध्वनित होती हैं। यानि प्रयोगात्मक तौर पर लिखे इस उपन्यास की कमियों का अंदाजा लेखकगण को भी था। खुद राजेंद्र यादव लिखते हैं "..मुझे हमेशा मन में एक बोझ सा महसूस होता रहता था कि मेरे चैप्टर सरस नहीं जा रहे हैं जितने मन्नू के। मन्नू के लिखने में प्रवाह और निव्यार्ज आत्मीयता है, और मेरी शैली बहुत सायास और बोझिल है..यह बात कुछ ऍसे कौशल से फ़िजा में भर दी गई कि जहाँ कोई कहता कि......... आप लोगों का उपन्यास ज्ञानोदय में........कि मैं बीच में ही काटकर बोल पड़ता "जी हाँ और उसमें मन्नू के चैप्टर अच्छे जा रहे हैं।..." मन्नू जी ने भी माना है कि कथानक के गठन और प्रवाह में जगह जगह शिथिलता है, पर वो ये भी कहती हैं कि ऐसे प्रयोगों में इससे अधिक की आशा रखना ही व्यर्थ है। कथा के शिल्प पर तो खूब टीका-टिप्पणी हो गई पर चलिए असली मुद्दे पर लौटते हैं कि आखिर ये एक इंची मुस्कान है किन लोगों के बारे में ? पूरा उपन्यास तीन पात्रों के इर्द गिर्द घूमता है। ये कथा है एक साहित्यकार और उसकी मध्यमवर्गीय कामकाजी प्रेमिका की, जिससे नायक आगे चलकर शादी भी कर लेता है। आप सोच रहे होंगे तो फिर परेशानी क्या है, इतनी सीधी सपाट कहानी है। पर तीसरा किरदार ही तो सारी परेशानी का सबब है और उसका चरित्र सबसे जटिल है। वो है आभिजात्य वर्ग से ताल्लुक रखने वाली साहित्यकार की एक प्रशंसिका जिसके चरित्र को मन्नू जी ने आरंभ में बड़ी खूबसूरती से उकेरा है पर आखिर तक ये पकड़ छूटती महसूस होती है।
मन्नू भंडारी (३ अप्रैल १९३१ ― १५ नवंबर २०२१)[2] हिन्दी की सुप्रसिद्ध कहानीकार थीं। मध्य प्रदेश में मंदसौर जिले के भानपुरा गाँव में जन्मी मन्नू का बचपन का नाम महेंद्र कुमारी था। लेखन के लिए उन्होंने मन्नू नाम का चुनाव किया। उन्होंने एम ए तक शिक्षा पाई और वर्षों तक दिल्ली के मिरांडा हाउस में अध्यापिका रहीं। धर्मयुग में धारावाहिक रूप से प्रकाशित उपन्यास आपका बंटी से लोकप्रियता प्राप्त करने वाली मन्नू भंडारी विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में प्रेमचंद सृजनपीठ की अध्यक्षा भी रहीं। लेखन का संस्कार उन्हें विरासत में मिला। उनके पिता सुख सम्पतराय भी जाने माने लेखक थे। प्रमुख कृतियाँकहानी
उपन्यास
आत्मकथापुरस्कार और सम्मानहिन्दी अकादमी, दिल्ली का शिखर सम्मान, बिहार सरकार, भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता, राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, व्यास सम्मान और उत्तर-प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा पुरस्कृत।[कृपया उद्धरण जोड़ें] डेढ़ इंच मुस्कान किसकी रचना है?हिन्दी प्राध्यापक एवं नेट परीक्षा-2019-20 | `डेढ़ इंच मुस्कान`नाटक के रचनाकार हैं--(1) मन्नू भंडारी (2) मोह... | Facebook.
राजेंद्र यादव की पत्नी हिंदी की प्रसिद्ध लेखिका का नाम क्या है?उनका विवाह सुपरिचित हिन्दी लेखिका मन्नू भण्डारी के साथ हुआ था। वे हिन्दी साहित्य की सुप्रसिद्ध हंस पत्रिका के सम्पादक थे।
मन्नू भंडारी के पिता का नाम क्या था?सुख सम्पतरायमन्नू भंडारी / पिताnull
मन्नू भंडारी की हिंदी प्राध्यापिका का क्या नाम था?संकलित अंश में मन्नू जी के किशोर जीवन से जुड़ी घटनाओं के साथ उनके पिताजी और उनकी कॉलिज की प्राध्यापिका शीला अग्रवाल का व्यक्तित्व विशेष तौर पर उभरकर आया है, जिन्होंने आगे चलकर उनके लेखकीय व्यक्तित्व के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
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