चीन ने तिब्बत पर कब कब्जा किया - cheen ne tibbat par kab kabja kiya

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| Updated: May 22, 2021, 8:03 PM

नयी दिल्ली, 22 मई :भाषा: साल के 365 दिन इतिहास में किसी न किसी घटना के साथ दर्ज हैं। साल के पांचवें महीने का 23वां दिन तिब्बत पर चीन के औपचारिक कब्जे के दिन के रूप में इतिहास में दर्ज है। चीन के इस कदम का तिब्बत और दुनिया के कई देशों में जमकर विरोध हुआ। दलाई लामा के प्रयासों से इस देश में स्वतंत्रता की अलख जगी और पिछले कई दशकों से देश की आजादी हासिल करने की जद्दोजहद अभी भी जारी है। देश में कोविड महामारी के बढ़ते प्रकोप की बात करें तो इसके वायरस से संक्रमित लोगों का

चीन ने तिब्बत पर कब कब्जा किया - cheen ne tibbat par kab kabja kiya

नयी दिल्ली, 22 मई :भाषा: साल के 365 दिन इतिहास में किसी न किसी घटना के साथ दर्ज हैं। साल के पांचवें महीने का 23वां दिन तिब्बत पर चीन के औपचारिक कब्जे के दिन के रूप में इतिहास में दर्ज है। चीन के इस कदम का तिब्बत और दुनिया के कई देशों में जमकर विरोध हुआ। दलाई लामा के प्रयासों से इस देश में स्वतंत्रता की अलख जगी और पिछले कई दशकों से देश की आजादी हासिल करने की जद्दोजहद अभी भी जारी है।

देश में कोविड महामारी के बढ़ते प्रकोप की बात करें तो इसके वायरस से संक्रमित लोगों का आंकड़ा हर गुजरते दिन के साथ बढ़ता रहा। 23 मई का दिन भी इससे अछूता नहीं रहा और बीते 24 घंटे में बीमारी के 6,654 नए मामले सामने आए जिसके साथ संक्रमण के कुल मामले बढ़कर 1,25,101 पर पहुंच गए। इस अवधि में 137 मरीजों की मौत हुई और मृतक संख्या बढ़कर 3,720 हो गई।

देश दुनिया के इतिहास में 23 मई की तारीख पर दर्ज अन्य प्रमुख घटनाओं का सिलसिलेवार ब्यौरा इस प्रकार है:-

1844 : बहाई सम्प्रदाय के महत्वपूर्ण धार्मिक व्यक्ति सैयद अली मुहम्मद शीराज़ी ने 24 साल की उम्र में ईरान में अवतार होने का दावा किया। देश की सरकार ने उन्हें मौत की सजा दी।

1848 : अमेरिका के राइट बंधुओं से भी पहले ग्लाइडर बनाकर इंसान को पहली बार उड़ना सिखाने वाले ओटो लिलिएनथाल का जन्म।

1919 : जयपुर राजघराने की राजमाता महारानी गायत्री देवी का जन्म।

1945 : जर्मन तानाशाह हिटलर की यहूदी विरोधी ख़ुफ़िया सेवा के प्रमुख हेनरिख हिमलर ने अंतरराष्ट्रीय संयुक्त सेनाओं की हिरासत में आत्महत्या की।

1951 : चीन ने एक स्वायत्त क्षेत्र के रूप में तिब्बत पर कब्जा कर लिया।

1977 : उत्तरी मलूका मूल के चरमपंथियों ने उत्तरी हालैंड के एक प्राथमिक स्कूल और एक ट्रेन में घुसकर बहुत से लोगों को बंधक बना लिया। कमांडो कार्रवाई के जरिए इस संकट को सुलझाने में बीस दिन का समय लगा

1986 : अमेरिका और पश्चिम यूरोपीय देशों ने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ भारी प्रतिबंधों के प्रस्ताव पर वीटो किया।

1994 : सऊदी अरब में भगदड़ से 270 तीर्थयात्रियों की मौत।

2004 : बांग्लादेश में तूफ़ान के कारण मेघना नदी में नाव डूबने से 250 डूबे।

2008 : भारत ने सतह से सतह पर मार करने वाली मिसाइल पृथ्वी-2 का सफल परीक्षण किया।

2009 : भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे दक्षिण कोरिया के पूर्व राष्ट्रपति 'रोह मू ह्यून' ने अपने घर के नज़दीक पहाडियों से छलांग लगाकर आत्महत्या की।

2010 : उच्चतम न्यायालय ने बिना विवाह किये महिला और पुरुष के एक साथ रहने को अपराध की श्रेणी से बाहर किया।

2014 : रूस और चीन ने सीरिया में युद्ध अपराधों के लिए अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायालय की स्थापना के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में वीटो शक्ति का प्रयोग किया।

2020 : कोविड-19 के संक्रमितों का आंकड़ा देश में सवा लाख का आंकड़ा पार कर गया। बीमारी से मरने वालों की संख्या 3720 हो गई।

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चीन के कब्ज़े में तिब्बत कब और कैसे आया?

21 जून 2020

अपडेटेड 22 जून 2020

चीन ने तिब्बत पर कब कब्जा किया - cheen ne tibbat par kab kabja kiya

इमेज स्रोत, SEAN CHANG

लद्दाख की गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प से तीन साल पहले डोकलाम में भी दोनों देश एक दूसरे के आमने-सामने आ चुके थे.

भारत-चीन सीमा विवाद का दायरा लद्दाख, डोकलाम, नाथूला से होते हुए अरुणाचल प्रदेश की तवांग घाटी तक जाता है.

अरुणाचल प्रदेश के तवांग इलाक़े पर चीन की निगाहें हमेशा से रही हैं.

वो तवांग को तिब्बत का हिस्सा मानता है और कहता है कि तवांग और तिब्बत में काफ़ी ज़्यादा सांस्कृतिक समानता है. तवांग बौद्धों का प्रमुख धर्मस्‍थल भी है.

दलाई लामा ने जब तवांग की मॉनेस्ट्री का दौरा किया था तब भी चीन ने इसका काफ़ी विरोध किया था.

यहां तक कि इस साल फरवरी में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अरुणाचल प्रदेश के दौरे पर गए थे, तब भी चीन ने उनकी यात्रा पर औपचारिक तौर पर विरोध दर्ज कराया था.

चीन, तिब्बत के साथ अरुणाचल प्रदेश पर भी दावा करता है और इसे दक्षिणी तिब्बत कहता है. अरुणाचल प्रदेश की चीन के साथ 3488 किलोमीटर लंबी सीमा लगती है

तिब्बत को चीन ने साल 1951 में अपने नियंत्रण में ले लिया था, जब कि साल 1938 में खींची गई मैकमोहन लाइन के मुताबिक़ अरुणाचल प्रदेश भारत का हिस्सा है.

तिब्बत का इतिहास

मुख्यतः बौद्ध धर्म को मानने वाले लोगों के इस सुदूर इलाके को 'संसार की छत' के नाम से भी जाना जाता है. चीन में तिब्बत का दर्जा एक स्वायत्तशासी क्षेत्र के तौर पर है.

चीन का कहना है कि इस इलाके पर सदियों से उसकी संप्रभुता रही है जबकि बहुत से तिब्बती लोग अपनी वफादारी अपने निर्वासित आध्यात्मिक नेता दलाई लामा के प्रति रखते हैं.

दलाई लामा को उनके अनुयायी एक जीवित ईश्वर के तौर पर देखते हैं तो चीन उन्हें एक अलगाववादी ख़तरा मानता है.

तिब्बत का इतिहास बेहद उथल-पुथल भरा रहा है. कभी वो एक खुदमुख़्तार इलाके के तौर पर रहा तो कभी मंगोलिया और चीन के ताक़तवर राजवंशों ने उस पर हुकूमत की.

लेकिन साल 1950 में चीन ने इस इलाके पर अपना झंडा लहराने के लिए हज़ारों की संख्या में सैनिक भेज दिए. तिब्बत के कुछ इलाकों को स्वायत्तशासी क्षेत्र में बदल दिया गया और बाक़ी इलाकों को इससे लगने वाले चीनी प्रांतों में मिला दिया गया.

लेकिन साल 1959 में चीन के ख़िलाफ़ हुए एक नाकाम विद्रोह के बाद 14वें दलाई लामा को तिब्बत छोड़कर भारत में शरण लेनी पड़ी जहां उन्होंने निर्वासित सरकार का गठन किया. साठ और सत्तर के दशक में चीन की सांस्कृतिक क्रांति के दौरान तिब्बत के ज़्यादातर बौद्ध विहारों को नष्ट कर दिया गया. माना जाता है कि दमन और सैनिक शासन के दौरान हज़ारों तिब्बतियों की जाने गई थीं.

चीन तिब्बत विवाद कब शुरू हुआ?

चीन और तिब्बत के बीच विवाद, तिब्बत की क़ानूनी स्थिति को लेकर है. चीन कहता है कि तिब्बत तेरहवीं शताब्दी के मध्य से चीन का हिस्सा रहा है लेकिन तिब्बतियों का कहना है कि तिब्बत कई शताब्दियों तक एक स्वतन्त्र राज्य था और चीन का उसपर निरंतर अधिकार नहीं रहा. मंगोल राजा कुबलई ख़ान ने युआन राजवंश की स्थापना की थी और तिब्बत ही नहीं बल्कि चीन, वियतनाम और कोरिया तक अपने राज्य का विस्तार किया था.

फिर सत्रहवीं शताब्दी में चीन के चिंग राजवंश के तिब्बत के साथ संबंध बने. 260 साल के रिश्तों के बाद चिंग सेना ने तिब्बत पर अधिकार कर लिया. लेकिन तीन साल के भीतर ही उसे तिब्बतियों ने खदेड़ दिया और 1912 में तेरहवें दलाई लामा ने तिब्बत की स्वतन्त्रता की घोषणा की. फिर 1951 में चीनी सेना ने एक बार फिर तिब्बत पर नियन्त्रण कर लिया और तिब्बत के एक शिष्टमंडल से एक संधि पर हस्ताक्षर करा लिए जिसके अधीन तिब्बत की प्रभुसत्ता चीन को सौंप दी गई. दलाई लामा भारत भाग आए और तभी से वे तिब्बत की स्वायत्तता के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

ल्हासा: एक प्रतिबन्धित शहर

जब 1949 में चीन ने तिब्बत पर क़ब्ज़ा किया तो उसे बाहरी दुनिया से बिल्कुल काट दिया.

तिब्बत में चीनी सेना तैनात कर दी गई, राजनीतिक शासन में दख़ल किया गया जिसकी वजह से तिब्बत के नेता दलाई लामा को भाग कर भारत में शरण लेनी पड़ी.

फिर तिब्बत का चीनीकरण शुरू हुआ और तिब्बत की भाषा, संस्कृति, धर्म और परम्परा सबको निशाना बनाया गया.

किसी बाहरी व्यक्ति को तिब्बत और उसकी राजधानी ल्हासा जाने की अनुमति नहीं थी, इसीलिये उसे प्रतिबन्धित शहर कहा जाता है. विदेशी लोगों के तिब्बत आने पर ये पाबंदी 1963 में लगाई गई थी. हालांकि 1971 में तिब्बत के दरवाज़े विदेशी लोगों के लिए खोल दिए गए थे.

दलाई लामा की भूमिका

चीन और दलाई लामा का इतिहास ही चीन और तिब्बत का इतिहास है. सन 1409 में जे सिखांपा ने जेलग स्कूल की स्थापना की थी. इस स्कूल के माध्यम से बौद्ध धर्म का प्रचार किया जाता था.

यह जगह भारत और चीन के बीच थी जिसे तिब्बत नाम से जाना जाता है. इसी स्कूल के सबसे चर्चिच छात्र थे गेंदुन द्रुप. गेंदुन आगे चलकर पहले दलाई लामा बने. बौद्ध धर्म के अनुयायी दलाई लामा को एक रूपक की तरह देखते हैं. इन्हें करुणा के प्रतीक के रूप में देखा जाता है. दूसरी तरफ इनके समर्थक अपने नेता के रूप में भी देखते हैं. दलाई लामा को मुख्य रूप से शिक्षक के तौर पर देखा जाता है. लामा का मतलब गुरु होता है. लामा अपने लोगों को सही रास्ते पर चलने की प्रेरणा देते हैं. तिब्बती बौद्ध धर्म के नेता दुनिया भर के सभी बौद्धों का मार्गदर्शन करते हैं.

1630 के दशक में तिब्बत के एकीकरण के वक़्त से ही बौद्धों और तिब्बती नेतृत्व के बीच लड़ाई है. मान्चु, मंगोल और ओइरात के गुटों में यहां सत्ता के लिए लड़ाई होती रही है. अंततः पांचवें दलाई लामा तिब्बत को एक करने में कामयाब रहे थे. इसके साथ ही तिब्बत सांस्कृतिक रूप से संपन्न बनकर उभरा था. तिब्बत के एकीकरण के साथ ही यहां बौद्ध धर्म में संपन्नता आई.

जेलग बौद्धों ने 14वें दलाई लामा को भी मान्यता दी. दलाई लामा के चुनावी प्रक्रिया को लेकर ही विवाद रहा है. 13वें दलाई लामा ने 1912 में तिब्बत को स्वतंत्र घोषित कर दिया था. करीब 40 सालों के बाद चीन के लोगों ने तिब्बत पर आक्रमण किया. चीन का यह आक्रमण तब हुआ जब वहां 14वें दलाई लामा के चुनने की प्रक्रिया चल रही थी. तिब्बत को इस लड़ाई में हार का सामना करना पड़ा. कुछ सालों बाद तिब्बत के लोगों ने चीनी शासन के ख़िलाफ़ विद्रोह कर दिया. ये अपनी संप्रभुता की मांग करने लगे.

हालांकि विद्रोहियों को इसमें सफलता नहीं मिली. दलाई लामा को लगा कि वह बुरी तरह से चीनी चंगुल में फंस जाएंगे. इसी दौरान उन्होंने भारत का रुख किया. दलाई लामा के साथ भारी संख्या में तिब्बती भी भारत आए थे. यह साल 1959 का था. चीन को भारत में दलाई लामा को शरण मिलना अच्छा नहीं लगा. तब चीन में माओत्से तुंग का शासन था. दलाई लामा और चीन के कम्युनिस्ट शासन के बीच तनाव बढ़ता गया. दलाई लामा को दुनिया भर से सहानुभूति मिली लेकिन अब तक वह निर्वासन की ही ज़िंदगी जी रहे हैं.

इमेज स्रोत, PETE SOUZA / THE WHITE HOUSE

क्या तिब्बत चीन का हिस्सा है?

चीन-तिब्बत संबंधों से जुड़े कई सवाल हैं जो लोगों के मन में अक्सर आते हैं. जैसे कि क्या तिब्बत चीन का हिस्सा है? चीन के नियंत्रण में आने से पहले तिब्बत कैसा था? और इसके बाद क्या बदल गया? तिब्बत की निर्वासित सरकार का कहना है, "इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि इतिहास के अलग-अलग कालखंडों में तिब्बत विभिन्न विदेशी शक्तियों के प्रभाव में रहा था. मंगोलों, नेपाल के गोरखाओं, चीन के मंचू राजवंश और भारत पर राज करने वाले ब्रितानी शासक, सभी की तिब्बत के इतिहास में कुछ भूमिकाएं रही हैं. लेकिन इतिहास के दूसरे कालखंडों में वो तिब्बत था जिसने अपने पड़ोसियों पर ताक़त और प्रभाव का इस्तेमाल किया और इन पड़ोसियों में चीन भी शामिल था."

"दुनिया में आज कोई ऐसा देश खोजना मुश्किल है, जिस पर इतिहास के किसी दौर में किसी विदेशी ताक़त का प्रभाव या अधिपत्य न रहा हो. तिब्बत के मामले में विदेशी प्रभाव या दखलंदाज़ी तुलनात्मक रूप से बहुत ही सीमित समय के लिए रही थी."

लेकिन चीन का कहना है, "सात सौ साल से भी ज़्यादा समय से तिब्बत पर चीन की संप्रभुता रही है और तिब्बत कभी भी एक स्वतंत्र देश नहीं रहा है. दुनिया के किसी भी देश ने कभी भी तिब्बत को एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता नहीं दी है."

जब भारत ने तिब्बत को चीन का हिस्सा माना

साल 2003 के जून महीने में भारत ने ये आधिकारिक रूप से मान लिया था कि तिब्बत चीन का हिस्सा है.

चीन के राष्ट्रपति जियांग जेमिन के साथ तत्कालानी प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की मुलाकात के बाद भारत ने पहली बार तिब्बत को चीन का अंग मान लिया था. हालांकि तब ये कहा गया था कि ये मान्यता परोक्ष ही है. लेकिन दोनों देशों के बीच रिश्तों में इसे एक महत्वपूर्ण क़दम के तौर पर देखा गया था.

वाजपेयी-जियांग जेमिन की वार्ता के बाद चीन ने भी भारत के साथ सिक्किम के रास्ते व्यापार करने की शर्त मान ली थी. तब इस कदम को यूं देखा गया कि चीन ने भी सिक्किम को भारत के हिस्से के रूप में स्वीकार कर लिया है.

भारतीय अधिकारियों ने उस वक्त ये कहा था कि भारत ने पूरे तिब्बत को मान्यता नहीं दी है जो कि चीन का एक बड़ा हिस्सा है. बल्कि भारत ने उस हिस्से को ही मान्यता दी है जिसे स्वायत्त तिब्बत क्षेत्र माना जाता है.

चीन ने तिब्बत पर किस युद्ध में कब्जा किया?

1951: चीन ने एक स्वायत्त क्षेत्र के रूप में तिब्बत पर कब्जा कर लिया. 1977: उत्तरी मलूका मूल के चरमपंथियों ने उत्तरी हालैंड के एक प्राथमिक स्कूल और एक ट्रेन में घुसकर बहुत से लोगों को बंधक बना लिया. कमांडो कार्रवाई के जरिए इस संकट को सुलझाने में बीस दिन का समय लगा.

तिब्बत किस देश के कब्जे में है?

तिब्बत पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना का राष्ट्रीय स्वायत्त क्षेत्र है, और इसकी भूमि मुख्य रूप से पठारी है। इसे पारंपरिक रूप से बोड या भोट भी कहा जाता है।

चीन पर किस देश ने कब्जा किया था?

चीन के नक्शे में 6 देश पूर्वी तुर्किस्तान, तिब्बत, इनर मंगोलिया या दक्षिणी मंगोलिया, ताइवान, हॉन्गकॉन्ग और मकाउ देखे ही होंगे। ये वो देश हैं, जिन पर चीन ने कब्जा कर रखा है या इन्हें अपना हिस्सा बताता है। इन सभी देशों का कुल एरिया 41 लाख 13 हजार 709 वर्ग किमी से ज्यादा है।

तिब्बत भारत से कब अलग हुए?

1912 में तिब्बत के 13वें धर्मगुरु दलाई लामा ने तिब्बत को स्वतंत्र घोषित कर दिया।