अस्पृश्यता को अपराध क्यों माना जाता है? - asprshyata ko aparaadh kyon maana jaata hai?

यह अनुच्छेद अस्पृश्यता (भेदभाव,छुआछुत) का अंत करता है एवं कोई भी व्यक्ति-व्यक्ति से छुआछूत नहीं कर सकेगा और अगर वह ऐसा करता है तो यह संवैधानिक अधिकार पर अतिक्रमण होगा।


अनुच्छेद 17 पर विधि:-

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 17 एवं अनुच्छेद 35 के अधीन संसद ने सन् 1955 में अस्पृश्यता अपराध अधिनियम,1955 पारित किया था, इस अधिनियम में छुआछूत के अपराध के लिए दण्ड व्यवस्था करता एवं सजा का प्रावधान था। इसके बाद सन् 1967 द्वारा संशोधन करके अस्पृश्यता के पालन करने के लिए विहित दण्ड को और भी कठोर बना दिया गया एवं इस अधिनियम का नाम को बदलकर सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम,1955 कर दिया गया। 


इसके अधीन लोकसेवक का यह कर्तव्य होगा कि वह उक्त अपराधों की जाँच करें एवं समुचित कार्यवाही तुरंत करें अगर लोकसेवक अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करता है एवं जानबूझकर कर्तव्य की उपेक्षा करता है तब उसे भी दण्ड दिया जाएगा।


अस्पृश्यता का अर्थ:- 

भारतीय संविधान में अस्पृश्यता शब्द को कहीं भी परिभाषित नहीं किया है लेकिन न्यायालय द्वारा समय-समय पर इसका अर्थ बताया गया है। जैसे निम्न वर्गों के साथ छुआछूत करना, रोगी से भेदभाव करना, जातिप्रथा के अनुसार भेदभाव उत्पन्न करना, मृत्यु के कारण अस्पृश्यता करना आदि।


नोट:- उच्चतम न्यायालय ने पीपुल्स यूनियन फार डेमोक्रेटिक राइट्स बनाम भारत संघ में अभिनिर्धारित किया है कि अनुच्छेद 17 का मौलिक अधिकार राज्य के विरुद्ध उल्लंघन तो है ही यह प्राइवेट व्यक्तियों के विरूद्ध भी उल्लंघन माना जायेगा, अर्थात कोई व्यक्ति छुआछूत जैसा व्यवहार करता है तो उसके खिलाफ अनुच्छेद 32 के अंतर्गत डारेक्ट उच्चतम न्यायालय में याचिका लगाई जा सकती है क्योंकि यह मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।

अस्पृश्यता का अंत किया जाता है और उसका किसी भी रूप में आचरण निषिद्ध किया जाता है । ‘अस्पृश्यता’ से उपजी किसी निर्योग्यता को लागू करना अपराध होगा जो विधि के अनुसार दंडनीय होगा ।

-संविधान के शब्द

अनुच्छेद 17 का स्पष्टीकरण(Explanation)

बिना किसी कारण कोई जाति के व्यक्ति के साथ सिर्फ उस जाति मे जन्म लेने से उसको नीचा मानना एसे सदियो से हमारे समाज मे चले आ रहे उच-नीच के भेदभाव, आभडछेड़, छूयाछूत की निंदनीय प्रथा को खतम करने के लिए इस अनुच्छेद को संविधान मे स्थान दिया गया।

हम सब जानते है की ड्राफ्टिंग कमिटी के अध्यक्ष बाबासाहेब आंबेडकर थे जो एक दलित जाती से आते थे। जिससे वह एसी जाति के दर्द अच्छे से समज सकते थे।

यह अनुछेद 17 संविधान मे लिखित सभी अधिकारो मे सिर्फ एक मात्र निरपेक्ष अनुच्छेद(Absolute Article) है। यानि की अस्पृश्यता का पालन किसी भी स्वरूप मे करना गैर संवैधानिक है।

आपने पढ़ा होगा की अन्य सभी अधिकारो मे कोइना कोई अपवाद होता ही जबकि इस अनुच्छेद का कोई अपवाद नही है। मतलब की आप किसी भी परिस्थिति मे इसका उलंघन नही कर सकते।

यह अनुच्छेद केवल राज्य के विरुद्ध नही प्राइवेट व्यक्तियो के भी विरुद्ध है और राज्य का संवेधानिक कर्तव्य है की इन अधिकारो का अतिलंधन रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाये।(पीपल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स केस)

संविधान मे अस्पृश्यता रोकने के लिए अनुच्छेद 17 के साथ अनुच्छेद 15(2) के प्रावधान भी उपयोक्त है।


  • भारतीय संविधान की उद्देशिका

अस्पृश्यता क्या है? (What is Untouchability)

भारतीय संविधान मे अस्पृश्यता की कोई व्याख्या नही दी हुई है और नही संसद द्वारा पारित किसी अधिनियम मे दी गई है इस शब्द का अर्थ सर्वविदित है।

किन्तु मैसूर उच्च न्यायालय ने अपने एक निर्णय में इसके अर्थ को स्पष्ट किया है। न्यायालय ने कहा है कि

“इस शब्द का शाब्दिक अर्थ नहीं लगाया जाना चाहिये। शाब्दिक अर्थ में व्यक्तियों को कई कारणों से अस्पृश्य माना जा सकता है; जैसे-जन्म, रोग, मृत्यु एवं अन्य कारणों से उत्पन्न अस्पृश्यता। इसका अर्थ उन सामाजिक कुरीतियों से समझना चाहिये जो भारतवर्ष में जाति-प्रथा के सन्दर्भ में परम्परा से विकसित हुई हैं। अनुच्छेद 17 इसी सामाजिक बुराई का निवारण करता है जो जाति-प्रथा की देन है न कि शाब्दिक अस्पृश्यता का।”

न्यायालय द्वारा दिये हुये चुकादे और निर्देश से कुछ कार्यो को अस्पृश्यता का पालन माना जाएगा जिसके लिए दंड का प्रावधान भी किया गया है।

अस्पृश्यता माने जाने वाले कार्यो के उदाहरण

(1) किसी व्यक्ति को किसी सामाजिक संस्था में जैसे अस्पताल, दवाओ के स्टोर, शिक्षण संस्था में प्रवेश न देना,

(2) किसी व्यक्ति को सार्वजनिक उपासना के किसी स्थल(मंदिर,मज्जिद आदि) में उपासना या प्रार्थना करने निवारित करना,

(3) किसी दुकान, रेस्टोरांत, होटल या सार्वजनिक मनोरंजन के किसी स्थान पर जाने पर पाबंधी लगाना या किसी जलाशय, नल या जल के अन्य स्रोत, मार्ग, श्मशान या अन्य स्थान के संबंध में जहां सार्वजनिक रूप में सेवाएं प्रदान की जाती हैं वहा जाने की पाबंधी लगाना।

(4) अनुसूचित जाति(SC,ST,OBC) के किसी सदस्य का अस्पृश्यता के आधार पर अपमान करना

(5) प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अस्पृश्यता का उपदेश देना

(6) इतिहास, दर्शन या धर्म को आधार मानकर या किसी जाती प्रथा को मानकर अस्पृश्यता को सही बताना। (धर्म ग्रंथ मे जातिवाद लिखा है तो मे उसका पालन कर रहा हु एसा नही चलेगा इसको भी अपराध माना जाएगा)


क्या भारत में अस्पृश्यता का अंत करने के लिए कोई कानून है?

यह मूलभूत अधिकार अपने आप लागू नही होता। संविधान लागू होने के 70 सालो बाद भी भारत मे कई जगहो पर अभी भी अस्पृश्यता का पालन होता। इसको रोकने के लिए संसद ने अनुच्छेद 35 मे दी हुई शक्ति का इस्तमाल करके कानून बनाए है।


  • भारतीय संविधान के संशोधन की शक्ति, प्रकार और प्रक्रिया

अस्पृश्यता अपराध अधिनियम (The Untouchability Offences Act 1955)

प्रमुख प्रावधान

  • यह एक दंडनीय अपराध होगा, जिसमे किसी भी तरीके से माफी नही दी जा सकेगी
  • गुना साबित होने पर 6 मास का कारावास या 500 रूपिया जुर्माना या दोनों, हो सकते है।
  • संसद या राज्यविधान के चुनाव मे खड़े हुये किसी उमेदवार पर आरोप साबित होता है तो उसको अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा।

सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम

इस अधिनियम मे आरोप साबित होने पर दंड बढ़ा कर दो साल का कारावास या 2000 रू. दंड या दोनो कर दिया। और कुछ कार्यो को जोड़ा गया जो आपने ऊपर उदाहरणो मे पढ़ लिया है।

अगर मान ले की कोई एसा अस्पृश्यता का कार्य हुआ जो किसी कानून मे उल्लेखित नही है तो ऐसे से मामलो मे न्यायालय निर्णय देगी जिसको इस कानून मे समावेश करना होगा।

अस्पृश्यता का क्या मतलब होता है?

अस्पृश्यता का अर्थ : इसे सामान्य भाषा में लोग "अछूत" कहते है। इसका मतलब ये हुआ की किसी व्यक्ति या समूह के सभी लोगों के शरीर को सीधे छूने (what is untouchability in short) से बचना या रोकना। वैसे भारत की वर्ण-व्यवस्था में जाति आधारित अस्पृश्यता की रूढ़ि रही है।

अस्पृश्यता का अंत क्या है?

संविधान की प्रस्तावना में 'प्रतिष्ठा व अवसर की समता' तथा अनुच्छेद 14 में विधि के समक्ष समता, अनुच्छेद 15 में धर्म, मूल, वंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध एवं अनुच्छेद 17 में अस्पृश्यता के अंत की घोषणा है।

भारत में अस्पृश्यता समाप्त करने का कानून कब बना?

(१) सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम- संसद ने अस्पृश्यता के उन्मूलन के लिये अस्पृश्यता (अपराध) अधिनियम, 1955 पारित किया तथा 1976 में इसका संशोधन कर इसका नाम 'सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम' कर दिया गया। यह अधिनियम अस्पृश्यता को एक दण्डनीय अपराध के रूप में संबोधित करता है।

अस्पृश्यता की प्रथा के बारे में संविधान क्या कहता है?

अनुच्छेद 17 (Article 17 Abolition of Untouchability In Hindi) - अस्पृश्यता का अंत अनुछेद 17 संविधान मे लिखित सभी अधिकारो मे सिर्फ एक मात्र निरपेक्ष अनुच्छेद है। यानि की अस्पृश्यता का पालन किसी भी स्वरूप मे करना गैर संवैधानिक है। यह अनुच्छेद केवल राज्य के विरुद्ध नही प्राइवेट व्यक्तियो के भी विरुद्ध है।