भारतीय खाद्य निगम किसानों से अनाज कैसे खरीदते हैं - bhaarateey khaady nigam kisaanon se anaaj kaise khareedate hain

खाद्य सचिव सुधांशु पांडेय ने कहा कि सिर्फ FCI और राज्य एजेंसियां ही नहीं बल्कि खाद्यान्न खरीद प्रक्रिया में निजी कंपनियों भी होंगी।

केंद्र जल्द ही बफर स्टॉक के लिए खाद्यान्न खरीद के काम में भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) और अन्य सरकारी एजेंसियों के साथ निजी कंपनियों को आमंत्रित करेगा। FCI और दूसरी सरकारी एजेंसियों भी खरीदारी करेंगी। खरीद लागत घटाने के लिए निजी कंपनियां आमंत्रित होंगी । केंद्र ने राज्य सरकारों को इस संबंध में चिट्ठी भेजी है।

खाद्यान्न, मुख्य रूप से चावल और गेहूं, सीधे किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीदा जाता है और गरीबों को कल्याणकारी योजनाओं के तहत इसका वितरण किया जाता है। चावल और गेहूं की खरीद MSP पर होती है।

खाद्य सचिव की बड़ी बातें

खाद्य सचिव सुधांशु पांडेय ने कहा कि सिर्फ FCI और राज्य एजेंसियां ही नहीं बल्कि खाद्यान्न खरीद प्रक्रिया में निजी कंपनियों भी होंगी। निजी कंपनियां अधिक कुशलता से खरीद करने में सक्षम है। अगले सत्र से खरीद के लिए निजी कंपनियां भी आमंत्रित होगी। इसके लिए केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को निर्देश दिए हैं।

उन्होंने आगे कहा कि हाल ही में अंतरराष्ट्रीय अनाज सम्मेलन की अपनी यात्रा में उन्होंने पाया कि निजी कंपनियां अधिक कुशलता से खरीद का काम कर रही थीं। अगर निजी कंपनियां मौजूदा एजेंसियों की तुलना में कम लागत पर और अधिक कुशलता से खाद्यान्न खरीदती हैं, तो इसमें सरकार को कोई समस्या नहीं है।

खाद्य सचिव ने आगे कहा कि हमने राज्यों को लिखा है कि सरकार एफसीआई और राज्य एजेंसियों के अलावा निजी क्षेत्र को खरीद प्रक्रिया में लाना चाहती है। एफसीआई और अन्य सरकारी एजेंसियां ​​​​बफर स्टॉक के लिए सालाना लगभग 900 करोड़ टन अनाज की खरीद करती हैं, जबकि 6 करोड़ टन की मांग होती है। उन्होंने आगे कहा कि राज्य सरकारों को स्पष्ट रूप से कहा गया है कि केंद्र सरकार 2 फीसदी से अधिक का आकस्मिक खर्च वहन नहीं करेगी।

भारतीय खाद्य निगम किसानों से अनाज कैसे खरीदते हैं - bhaarateey khaady nigam kisaanon se anaaj kaise khareedate hain

मुंबई- भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के अलावा निजी कंपनियां भी अनाजों का भंडारण कर सकेंगी। केंद्र सरकार जल्द ही इस संबंध में इन कंपनियों का आमंत्रित करेगा। इसमें एफसीआई के अलावा राज्य सरकारों की एजेंसी और अन्य कंपनियां होंगी। खाद्य सचिव सुधांशु पांडे ने यह जानकारी दी।

उन्होंने कहा कि केंद्रीय खाद्य मंत्रालय इस मामले में सभी राज्यों को पहले ही पत्र लिखा है। एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा, केंद्र ने दो बातें कही हैं। पहली तो यह कि राज्य सरकारों द्वारा की गई खरीद पर केवल 2 फीसदी तक ही आकस्मिक खर्च मिलेगा। इससे ज्यादा की जवाबदारी राज्यों की होगी। दूसरा यह खरीद की लागत को कम करने के लिए अगले सीजन से निजी क्षेत्र की कंपनियों को भी इसमें शामिल करेगा।

पांडे ने कहा कि हाल में वे जब अंतरराष्ट्रीय अनाज सम्मेलन में गए थे तो वहां देखा गया कि निजी कंपनियां अधिक कुशलता से खरीद संचालन कर रही थीं। अगर ये कंपनियां मौजूदा एजेंसियों की तुलना में कम लागत पर और अधिक कुशलता के साथ खरीद करती हैं तो सरकार को कोई समस्या नहीं है। एफसीआई और राज्यों की एजेंसियां सालाना 9 करोड़ टन अनाज खरीदती हैं, जबकि मांग 6 करोड़ टन की होती है।

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भारतीय खाद्य निगम

  • 03 Jan 2020
  • 24 min read

 Last Updated: July 2022 

परिचय

भारतीय खाद्य निगम (Food Corporation of India- FCI) ‘उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय’ के खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग के अंतर्गत शामिल सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है।

  • FCI एक सांविधिक निकाय है जिसे भारतीय खाद्य निगम अधिनियम, 1964 के तहत वर्ष 1965 में स्थापित किया गया।
    • देश में भीषण अन्न संकट, विशेष रूप से गेहूँ के अभाव के चलते इस निकाय की स्थापना की गई थी।
    • इसके साथ ही कृषकों के लिये लाभकारी मूल्य की सिफारिश करने हेतु वर्ष 1965 में ही कृषि लागत और मूल्य आयोग (Commission for Agricultural Costs and Prices- CACP) का भी गठन किया गया।
  • इसका मुख्य कार्य खाद्यान्न एवं अन्य खाद्य पदार्थों की खरीद, भंडारण, परिवहन, वितरण और बिक्री करना है।

कृषि लागत और मूल्य आयोग

(Commission on Agricultural Costs and Prices- CACP)

  • कृषि लागत और मूल्य आयोग भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय से संलग्न कार्यालय है। यह आयोग जनवरी 1965 में अस्तित्व में आया।
  • आयोग का गठन कृषि उत्पादों के लिये संतुलित और एकीकृत मूल्य संरचना तैयार करने के उद्देश्य से किया गया है। कृषि लागत और मूल्य आयोग कृषि उत्पादों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price- MSP) के बारे में सलाह देता है।
  • आयोग द्वारा 24 कृषि फसलों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य जारी किये जाते हैं।
  • इसके अतिरिक्त गन्ने के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य की जगह ‘उचित एवं लाभकारी मूल्य’ (Fair And Remunerative Price- FRP) की घोषणा की जाती है।
    • गन्ना मूल्य निर्धारण के लिये अनुमोदन आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति द्वारा किया जाता है।
    • वर्तमान में CACP 23 वस्तुओं के MSPs की सिफारिश करता है, जिनमें 7 अनाज (धान, गेहूँ, मक्का, ज्वार, बाजरा और रागी), 5 दलहन (चना, अरहर, मूँग, उड़द, मसूर), 7 तिलहन (मूँगफली, तोरिया-सरसों, सोयाबीन, तिल, सूरजमुखी, कुसुम, नाइजर सीड) और 4 वाणिज्यिक फसलें (खोपरा, गन्ना, कपास और कच्ची जूट) शामिल हैं।

FCI का संगठनात्मक प्रारूप

FCI नई दिल्ली में स्थित अपने मुख्यालय, पाँच आंचलिक कार्यालयों, पच्चीस क्षेत्रीय कार्यालयों और 170 ज़िला कार्यालयों के देशव्यापी नेटवर्क के माध्यम से अपने कार्यों का समन्वय करता है।

भारतीय खाद्य निगम किसानों से अनाज कैसे खरीदते हैं - bhaarateey khaady nigam kisaanon se anaaj kaise khareedate hain

FCI के उद्देश्य

  • किसानों को लाभकारी मूल्य प्रदान करना।
  • प्रत्येक व्यक्ति के लिये हर समय खाद्यान्न की उपलब्धता, पहुँच और सामर्थ्य सुनिश्चित करने के लिये संकट प्रबंधन उन्मुख खाद्य सुरक्षा को एक स्थिर सुरक्षा प्रणाली में परिवर्तित करने में सहायता करना ताकि कोई भी, कहीं भी और कभी भी भूखा न रह जाए।
  • खाद्यान्नों के कार्यात्मक बफर स्टॉक का संतोषजनक स्तर बनाकर राष्ट्र की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना।
  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Public Distribution System- PDS) के माध्यम से संपूर्ण देश में खाद्यान्न का वितरण।
  • किसानों के हितों की सुरक्षा के लिये प्रभावी मूल्य सहायता ऑपरेशन (Effective Price Support Operations)।

खाद्य सुरक्षा

खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization- FAO) के अनुसार खाद्य सुरक्षा के मूलतः चार स्तंभ हैं:

  1. उपलब्धता (Availability): खाद्य हर समय और सभी स्थानों पर पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होना चाहिये।
  2. खरीद सामर्थ्य (Affordability): खाद्य सस्ता या खरीद के लिये वहन योग्य होना चाहिये, अर्थात् लोगों के पास खाद्य की खरीद के लिये आर्थिक पहुँच (पर्याप्त आय) मौजूद हो।
  3. अवशोषण (Absorption): खाद्य सुरक्षित और पौष्टिक होना चाहिये जिसे शरीर स्वस्थ जीवन के लिये अवशोषित कर सके।
  4. स्थिरता (Stability): खाद्य प्रणाली यथोचित रूप से स्थिर होनी चाहिये, क्योंकि खाद्य प्रणालियों में उच्च अस्थिरता न केवल गरीबों पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है बल्कि राजनीतिक और सामाजिक प्रणालियों की स्थिरता को भी खतरे में डालती है।

FCI द्वारा कार्यान्वित प्रमुख गतिविधियाँ

खरीद (Procurement)

  • केंद्र सरकार FCI और राज्य एजेंसियों के माध्यम से गेहूँ, धान और मोटे अनाज की खरीद के लिये समर्थन मूल्य का निर्धारण करती है। सार्वजनिक खरीद एजेंसियाँ FCI द्वारा निर्धारित विनिर्देशों के अनुरूप सभी खाद्यान्नों की खरीद, न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) तथा प्रोत्साहन बोनस (यदि कोई घोषणा की गई हो) के साथ करती हैं।
  • यह खरीद प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों तरीकों से की जाती है।
  • 1997-98 में शुरू की गई विकेंद्रीकृत खरीद योजना (Decentralized Procurement Scheme- DCP) के तहत खाद्यान्नों की खरीद और वितरण का कार्य स्वयं राज्य सरकारों द्वारा किया जाता है। अधिसूचित राज्य, लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Targeted Public Distribution System- TPDS) और सरकार की अन्य कल्याणकारी योजनाओं के तहत खाद्यान्न की खरीद, भंडारण और निर्गमन करते हैं।
  • खरीद की विकेंद्रीकृत प्रणाली को PDS की क्रय दक्षता बढ़ाने और गैर-पारंपरिक राज्यों में खरीद को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ पारगमन हानि तथा लागत को कम करने के लिये प्रस्तुत किया गया था।
  • प्रत्येक खरीद मौसम की शुरुआत से पहले केंद्र सरकार गेहूँ, धान, चावल और मोटे अनाज की गुणवत्ता के लिये एक सार्वभौमिक विनिर्देश की घोषणा करती है।
  • FCI का गुणवत्ता नियंत्रण प्रभाग (Quality Control Division) भारत सरकार के सार्वभौमिक गुणवत्ता विनिर्देशों के अनुरूप खरीद केंद्रों से खाद्यान्नों की खरीद सुनिश्चित करता है।
  • दलहन और तिलहन की खरीद के लिये भी FCI को एक अतिरिक्त नोडल एजेंसी के रूप में नामित किया गया है।

वितरण (Distribution)

  • FCI खरीदे गए अनाज के माध्यम से TDPS की आवश्यकताओं को पूरा करता है, जिसे समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों की मदद करने के उद्देश्य से सरकार द्वारा निर्धारित केंद्रीय निर्गम मूल्य (Central Issue Price) पर जारी किया जाता है।
  • FCI उचित मूल्य की दुकानों (Fair Price Shops) के माध्यम से वितरण के लिये अपने बेस डिपो से राज्य सरकार/राज्य एजेंसियों को खाद्यान्न वितरित करता है।
  • TDPS और अन्य कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से अत्यधिक रियायती कीमतों पर अनाज वितरित करने को प्रतिबद्ध राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के लागू होने के बाद FCI की भूमिका और भी महत्त्वपूर्ण हो गई है।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS)

  • भारत में आवश्यक वस्तुओं का सार्वजनिक वितरण अंतर-युद्ध अवधि के दौरान भी अस्तित्व में था। लेकिन शहरी अभावग्रस्त क्षेत्रों में खाद्यान्न वितरण पर ध्यान केंद्रित करते हुए PDS की शुरुआत 1960 के दशक के गंभीर खाद्य संकट के समय हुई।
  • PDS ने खाद्यान्न की कीमतों में वृद्धि और शहरी उपभोक्ताओं तक खाद्य की पहुँच सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। चूँकि हरित क्रांति के बाद राष्ट्रीय कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई अतः PDS के दायरे को 1970 और 1980 के दशक में आदिवासी प्रखंडों और अत्यंत निर्धनताग्रस्त क्षेत्रों की ओर भी बढ़ा दिया गया।
  • PDS सहायक प्रकृति का है, इसलिये यह इसके अंतर्गत वितरित किसी पण्य/कमोडिटी की संपूर्ण आवश्यकता को किसी परिवार या समाज के किसी वर्ग तक उपलब्ध कराने का लक्ष्य नहीं रखता।
  • PDS का संचालन केंद्र और राज्य सरकारों के संयुक्त उत्तरदायित्व के तहत होता है। केंद्र सरकार FCI के माध्यम से खाद्यान्न की खरीद, भंडारण, परिवहन तथा राज्य सरकारें इसके थोक आवंटन के उत्तरदायित्व का निर्वाह करती हैं।
  • राज्य के भीतर आवंटन, लाभार्थी परिवारों की पहचान, राशन कार्ड जारी करना और उचित मूल्य की दुकानों के कामकाज की निगरानी सहित संचालन संबंधी उत्तरदायित्व राज्य सरकारों के पास है।
  • PDS के अंतर्गत वर्तमान में गेहूँ, चावल, चीनी और केरोसिन जैसे पण्यों का आवंटन राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा किया जा रहा है। कुछ राज्य/केंद्रशासित प्रदेश दालों, खाद्य तेलों, आयोडीन युक्त नमक, मसालों आदि वृहत उपभोग की अतिरिक्त वस्तुओं का वितरण भी PDS दुकानों के माध्यम से करते हैं।

नवीकृत सार्वजनिक वितरण प्रणाली

(Revamped Public Distribution System- RPDS)

  • PDS को सशक्त और सुव्यवस्थित करने के साथ-साथ पहाड़ी, दुर्गम और दूरस्थ क्षेत्रों में (जहाँ गरीबों का एक बड़ा तबका पाया जाता है) इसकी पहुँच सुनिश्चित करने के उद्देश्य से जून 1992 में नवीकृत/संशोधित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (RPDS) लागू की गई।
  • इसमें 1775 प्रखंड (Blocks) शामिल किये गए जहाँ सूखा प्रवण क्षेत्र कार्यक्रम (DPAP), एकीकृत जनजातीय विकास परियोजनाएँ (ITDP), मरुस्थल विकास कार्यक्रम (DDP) जैसे विशिष्ट कार्यक्रम कार्यान्वित किये जा रहे थे। इसके साथ ही राज्य सरकारों के परामर्श से कुछ नामित पहाड़ी क्षेत्रों (Designated Hill Areas- DHA) को विशेष देख-रेख के लिये शामिल किया गया।

लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली

(Targeted Public Distribution System)

  • PDS प्रणाली की विफलता के बाद गरीबों को लाभ पहुँचाने और बजटीय खाद्य सब्सिडी को वांछित सीमा तक नियंत्रित रखने के उद्देश्य से 1997 में लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TDPS) शुरू की गई।
    • अवधारणात्मक रूप में सार्वभौमिक PDS से TDPS की ओर संक्रमण सही दिशा में उठाया गया कदम था, क्योंकि इसे सभी गरीब परिवारों को शामिल करने और उनके लिये इकाई सब्सिडी एवं राशन कोटा बढ़ाने के लिये डिज़ाइन किया गया था।
  • TDPS का उद्देश्य गरीबी रेखा से नीचे के लोगों को PDS से अत्यधिक रियायती कीमतों पर और गरीबी रेखा से ऊपर के लोगों को अपेक्षाकृत अधिक मूल्य पर खाद्यान्न प्रदान करना है।
  • इस प्रकार भारत सरकार द्वारा अपनाई गई TDPS योजना भी PDS के समान ही है, लेकिन यह गरीबी रेखा से नीचे के लोगों पर विशेष ध्यान केंद्रित करती है।
  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 (NFSA) को अधिसूचित किया गया है जो कि देश की 75% ग्रामीण आबादी और 50% शहरी आबादी को अत्यधिक सब्सिडी वाले खाद्यान्न प्राप्त करने के दायरे में लाती है।

राष्‍ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013

(National Food Security Act)

  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम एक ऐतिहासिक पहल है जिसके माध्यम से लोगों की खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित की जा रही है। खाद्य सुरक्षा अधिनियम का विशेष बल निर्धनों, महिलाओं एवं बच्‍चों की आवश्यकताएँ पूरी करने पर है।
  • इस अधिनियम में शिकायत निवारण तंत्र की भी व्‍यवस्‍था है। अगर कोई लोकसेवक या अधिकृत व्‍यक्ति इसका अनुपालन नहीं करता है तो उसके विरुद्ध शिकायत पर सुनवाई का प्रावधान किया गया है।
  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत गरीबों को 2 रुपए प्रति किलो गेहूँ और 3 रुपए प्रति किलो चावल देने की व्यवस्था की गई है। इस कानून के तहत व्यवस्था है कि लाभार्थियों को उनके लिये निर्धारित खाद्यान्न हर हाल में मिले, इसके लिये खाद्यान्न की आपूर्ति न होने की स्थिति में खाद्य सुरक्षा भत्ते के भुगतान के नियम को जनवरी 2015 में लागू किया गया।
  • इस अधिनियम के तहत समाज के अति निर्धन वर्ग के प्रत्येक परिवार को प्रत्येक माह अंत्‍योदय अन्‍न योजना में सब्सिडी दरों पर यानी तीन रुपए, दो रुपए, एक रुपए प्रति किलो चावल, गेहूँ और मोटा अनाज मिल रहा है।
  • पूरे देश में यह कानून लागू होने के बाद 81.34 करोड़ लोगों को 2 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से गेहूँ और 3 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से चावल दिया जा रहा है।

FCI के पुनर्गठन हेतु समिति

खरीद, भंडारण और वितरण के प्रमुख उद्देश्यों में FCI के दोषों को देखते हुए FCI के पुनर्गठन के लिये शांता कुमार की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया।

समिति की कुछ प्रमुख सिफारिशें:

  • खरीद सेसंबंधितमुद्दों पर:समिति कासुझावहै कि FCI कोगेहूँ, धानऔरचावल संबंधीसभीखरीद कार्योंकोउन राज्योंकोसौंप देनाचाहियेजिन्होंने इससंबंधमें पर्याप्तअनुभवप्राप्त करलियाहै औरखरीदके लियेउपयुक्तअवसंरचना कानिर्माणकर लियाहै (जैसे आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, मध्यप्रदेश, ओडिशाऔरपंजाब)।
    • FCI इनराज्यों कीसरकारोंसे केवलअधिशेष (NFSA के अंतर्गतराज्योंकीआवश्यकताओंकीपूर्ति केबाद) स्वीकार करेगाऔरइस अधिशेषकोअभावग्रस्तराज्योंकोप्रदान करेगा
    • FCI को उनराज्योंकी मददकेलिये आगेबढ़नाचाहिये जहाँ MSP सेकाफी नीचेकीकीमतों परसंकटग्रस्तबिक्री (Distress Sales) करनेकेकारण किसानपीड़ितहोते हैंऔरजहाँ छोटीजोतोंकी समस्याहावीहै (जैसेपूर्वीउत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम आदि)। 
    • यही वहभूमिपट्टी हैजहाँसे दूसरीहरितक्रांति कीअपेक्षाहै औरयहाँ FCI को सक्रियहोतेहुए राज्यएवंअन्य एजेंसियोंकोबड़ी संख्यामेंकिसानों, विशेषरूपसे छोटेऔरसीमांत किसानोंको MSP का लाभप्रदानकरने औरउनसेअधिकाधिक खरीदकेलिये प्रेरितकरनेकी आवश्यकताहै 
  • परक्राम्यगोदामरसीद प्रणाली (Negotiable Warehouse Receipt System-NWRS):इसे प्राथमिकतासेअपनातेहुएत्वरितकार्यान्वयन कीआवश्यकताहैइसप्रणालीके तहतकिसानअपनी उपजकोपंजीकृत गोदामोंमेंजमा करासकतेहैं और MSP परअपनी उपजमूल्यके अनुरूपबैंकोंसे अग्रिमऋणप्राप्त करसकते हैं 
    • NWRS कीसुविधासे कृषकअपनेउत्पादों कोउचितकीमतों परबेचनेमें सक्षमहोपाएंगेइससेनिजीक्षेत्रोंकोभीलाभ मिलेगातथासरकार कीभंडारणलागत बड़ेपैमानेपर कमकरेगी 
    • सरकार FCI औरवेयरहाउसिंग डेवलपमेंटरेगुलेटरीअथॉरिटी (WDRA) केमाध्यमसे इनगोदामोंको बेहतरप्रौद्योगिकीके साथनिर्मितकरने केलियेप्रोत्साहितकरसकतीहै औरदैनिक/साप्ताहिकआधारपरजमा अनाजभंडारकी ऑनलाइननिगरानीकर सकतीहै
    • समय केसाथसरकार यहअध्ययनकर सकतीहैकि क्याइसप्रणाली काउपयोग MSP से नीचेगिरतेबाज़ार मूल्यकेमामले मेंकिसानोंकी क्षतिपूर्तिकेलियेकियाजासकता हैऔरसरकार परभौतिकरूप सेबड़ीमात्रा मेंअनाजको संभालनेकाबोझ नहींहोगा 
  • MSP नीतिपर पुनर्विचार:वर्तमान में MSP कीघोषणा 23 पण्योंकेलिये कीजातीहै, लेकिनप्रभावीरूप सेमूल्यसमर्थन मुख्यतःगेहूँऔर चावलकोही प्राप्तहोताहै औरवहभी कुछचुनिंदाराज्योंमेंहीयह कृषकोंकोगेहूँ औरचावलकी पैदावारकेप्रति अधिकआकर्षितकरता हैचूँकिदेश मेंदलहनऔर तिलहन (खाद्यतेलों) कीकमीहै, उनकीकीमतेंप्रायः किसीप्रभावीमूल्य समर्थनकेअभाव में MSP सेनीचे चलीजाती हैं 
    • समिति कीसिफारिशहै किदलहनऔर तिलहनकोप्राथमिकतादीजानीचाहिये औरसरकारको उनकेलियेबेहतर मूल्यसमर्थनसुनिश्चित करनाचाहियेसाथ हीव्यापारनीति केसाथइनकी MSP नीतिकोसंगत बनानाचाहियेताकि आयातितलागत (LandedCosts) उनके MSP सेकमहो 
  • भंडारण औरपरिवहनसे संबंधितमुद्दे: समितिकीसिफारिश हैकि FCI को अपनेभंडारणकार्योंकोकेंद्रीयभंडारणनिगम, राज्यभंडारण निगम, निजीउद्यमी गारंटी (PEG) योजनाके तहतसक्रियनिजी क्षेत्रऔरउसके सहयोगसेराज्य मेंभंडारगृहबना रहींराज्यसरकारों कोसौंपदेना चाहिये
    • यहकार्य प्रतिस्पर्द्धीबोली-प्रक्रियाके आधारपरकिया जानाचाहियेजहाँ विभिन्नहितधारकआमंत्रित होंऔरभंडारण कीलागतको नीचेलानेके लियेउनकेबीच प्रतिस्पर्द्धाकालाभ मिले 
    • कवर एंडप्लिंथ (CAP) भंडारण कोधीरे-धीरेचरणबद्धतरीकेसेसमाप्त करदेनाचाहिये जिससे CAP मेंकोई भीअन्नभंडार तीनमाहसे अधिकसमयतक शेषरहेजहाँ भीसंभवहो साइलोबैगप्रौद्योगिकी औरपारंपरिकभंडारण द्वारा CAP भंडारणको प्रतिस्थपितकियाजाना चाहिये
    • अनाजोंके परिवहनकोधीरे-धीरेकंटेनरीकृतकियाजाना चाहियेजोपारगमन केनुकसानको कमकरनेमें मददकरेगाऔर रेलवेकेकिनारों परअधिकमशीनीकृत सुविधाएँहोनेसे उन्हेंतीव्रतासे कार्यान्वितकियाजासकेगा 
  • बफर स्टॉकिंगसंचालनऔर परिसमापननीति: FCI केलियेप्रमुख चुनौतियोंमेंसे एकबफरस्टॉक मेंबफरस्टॉकिंग मानदंडोंसेअधिक वृद्धिहोनाहैजबभीभंडार बफरस्टॉकमानदंडों केपरेजाए, FCI कोओपनमार्केट सेलस्कीम (OMSS) यानिर्यातबाज़ारमें अपनेभंडारके परिसमापन (liquidate) केलिये क्रमबद्धरूपसे कार्यकरना चाहिये 
    • वर्तमान प्रणालीअत्यंतअनौपचारिक, धीमीऔरराष्ट्र परभारीबोझ डालनेवालीहैएकपारदर्शीपरिसमापननीतिसमयकी आवश्यकताहै, जो स्वचालितरूपसे तबसक्रियहो, जब FCI बफरमानदंडोंकीतुलनामें अधिशेषभंडारका सामनाकरे। OMSS औरनिर्यातबाज़ारोंमेंकामकरनेके लियेव्यावसायिकउन्मुखता केसाथ FCI को अधिकलचीलेपनकी आवश्यकताहै
  • पूर्णतःकंप्यूटरीकरण (On end to end computerization): समितिनेकिसानों सेखरीदसे लेकरभंडारण, परिवहनऔरअंततः TDPS के माध्यमसेवितरण तकसंपूर्णखाद्य प्रबंधनप्रणालीको पूर्णतःकंप्यूटरीकृतकरने कीसिफारिशकी है
    • FCI का नयास्वरूपखाद्य प्रबंधनप्रणालीमेंनवाचारोंकेलिये समर्पितएकएजेंसी केसमानहोगा जोखरीदसे लेकरभंडारणऔर अंतमें TDPS के माध्यमसेवितरण तकखाद्यान्नआपूर्तिश्रृंखलाकेप्रत्येक चरणमेंप्रतिस्पर्द्धा केसृजनपर प्राथमिकतासेध्यानकेंद्रितकरेगाताकिप्रणालीकीसमग्र लागतमेंपर्याप्त कमीआए, लीकेज पररोकलगे औरयहकिसानोंउपभोक्ताओंकीबड़ी संख्याकोलाभ पहुँचाए

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