भारत में व्यापार करने सर्वप्रथम कौन आया था? - bhaarat mein vyaapaar karane sarvapratham kaun aaya tha?

भारत में यूरोपीय कंपनियों का आगमन – दोस्तों, आज हम आधुनिक भारत के इतिहास के सबसे प्रथम विषय भारत में यूरोपीय कंपनियों का आगमन के बारे में जानेंगे की कैसे और किन परिस्थितियों में ये कंपनियां भारत में आई थी। 

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1 भारत और यूरोप की परिस्थितियां

1.1 भारत और यूरोपीय देशों के व्यापार में रुकावटों के कारण

1.2 यूरोपियों द्वारा नई भगौलिक खोजों की शुरुवात

2 भारत में यूरोपीय कंपनियों का आगमन

2.1 यूरोपीय कंपनियों का भारत में आगमन का समयकाल

2.2 यूरोपीय कंपनियों का भारत में स्थापनाक्रम

2.3 यूरोपीय कंपनियों की प्रथम फैक्ट्रीयों का स्थान एवं स्थापना

3 पुर्तगाली ईस्ट इंडिया कंपनी

3.1 पुर्तगाल के भारत में वाइसराय

3.1.1 फ़्रांसिस्को डी अल्मेडा ( Francisco de Almeida ) ( 1505 – 1509 )

3.1.2 अफोंसो डी अल्बुकर्क ( Afonso de Albuquerque ) ( 1509 – 1515 )

3.1.3 नीनो-डी-कुन्हा ( Nino da Cunha )

4 पुर्तगाली कंपनी से जुड़े कुछ अन्य बिंदु

5 डच ईस्ट इंडिया कंपनी

6 ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी

6.1 भारत में अंग्रेजी राजदूत

6.2 ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का भारत में शुरुवाती दौर

6.3 ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के भारत में सुदृढ़ होने के अन्य कारण

6.4 ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का मुग़ल शासकों से संघर्ष

6.5 ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी से जुड़े कुछ अन्य बिंदु

7 फ्रांस ईस्ट इंडिया कंपनी

8 कुछ छोटी कंपनियों का भारत में आगमन

9 भारत में यूरोपीय कंपनियों का आगमन

10 बार बार पूछे जाने वाले प्रश्न

10.1 सर्वप्रथम कौन सी यूरोपीय कंपनी भारत में आई थी ?

10.2 वास्कोडिगामा भारत में कब आया था ?

10.3 यूरोपीय व्यापारियों के भारत आगमन का सही क्रम क्या है?

10.4 भारत आने वाले अंतिम यूरोपीय कौन थे?

10.5 ब्लू वाटर पॉलीसी क्या थी?

10.6 भारत में सबसे पहले आने वाली यूरोपीय कंपनी और सबसे बाद में जाने वाली यूरोपीय कंपनी कौनसी थी?

भारत और यूरोप की परिस्थितियां 

जिस समय भारत में मुगल शासन चल रहा था और भारत अपने मध्य काल में था तब उस समय यूरोप में पुनर्जागरण का दौर चल रहा था अर्थात यूरोप अपने आधुनिकाल में था और वहां के लोगो के द्वारा नई भगौलिक खोजों की शुरूवात होने लग गई थी। 

भारत भी उस समय अर्थव्यवस्था की दृष्टि से बहुत ज्यादा समृद्ध हो चुका था। 

सिंधु घाटी सभ्यता या प्राचीन काल से ही भारत का व्यापार यूरोपीय देशों से स्थलीय रास्तों के ज़रिये होता रहता था, परंतु बाद में कुछ कारणों की वजह से इन रास्तों में बहुत रुकावटें आने लग गई थी, जिस कारण यूरोपीय लोगों के द्वारा अन्य नए मार्गों की खोजें होने लग गई थीं। 

भारत और यूरोपीय देशों के व्यापार में रुकावटों के कारण 

कुस्तुनतुनिया, यह क्षेत्र यूरोप के पूर्वी भाग में तुर्की के अंतर्गत आता था।

1453 में अरबो द्वारा इस क्षेत्र में आक्रमण कर दिया जाता है और इस क्षेत्र में अरबो द्वारा विजय प्राप्त करके अपना अधिकार कर लिया जाता है।

इस कारणवश भारत और यूरोपीय देशों के बीच जो व्यापारिक संबंध स्थलीय रास्तों के ज़रिये बनते थे उनमे रुकावटें आना शुरू हो जाती है।

यूरोपियों द्वारा नई भगौलिक खोजों की शुरुवात 

अब क्यूंकि अरबो के कारण भारत और यूरोप में व्यापार में रुकावटें आने लग गई थी, इसलिए यूरोपियों द्वारा नई भगौलिक खोजों की शुरुवात होने लग गई थी ताकि व्यापार फिर से शुरू किया जा सके। 

इसमें सबसे पहले समुद्री रास्तों के जरिए नए-नए क्षेत्रों की खोज की शरुवात का प्रारंभ हुआ, इन खोजों में पुर्तगाल और स्पेन जैसे देश सबसे आगे थे। 

इसी क्रम में 1492 में स्पेन के कोलंबस ( Columbus ) ने भारत के लिए अपनी खोज की शुरुवात करी थी, परंतु वे भारत की तरफ आने की जगह अमेरिका की तरफ चले गए थे और तब भारत की जगह उन्होंने 1492 में अमेरिका की खोज कर दी थी। 

बाद में 1498 में पुर्तगाल के वास्को द गामा ( Vasco da Gama ) ने भी भारत के लिए अपनी खोज की शुरुवात करी, परंतु वे कोलंबस की तरह भारत की तरफ आने की जगह किसी दूसरी दिशा में नहीं गए और 1498 में उन्होंने भारत की खोज कर ली थी। 

इस क्रम में तब फिर अलग-अलग देशों ने भी समुद्री रास्तों के ज़रिये अपनी खोजों की शुरुवात कर दी थी और वे सब भारत में व्यापार करने के लिए आने लग गए थे और तब भारत में यूरोपीय कंपनियों के आगमन की शुरुवात होने लग गई थी।  

भारत में यूरोपीय कंपनियों का आगमन

दोस्तों, जैसे की हमने जाना की किन परिस्थितियों में और किन कारणों की वजह से यूरोपीय कंपनियों को समुद्री रास्तों के जरिये व्यापार के लिए खोजें करनी पड़ी थी।

बहुत सारे देश या कंपनियां उस समय भारत में व्यापार करने के लिए आये थे जैसे की स्पेन, डच, पुर्तगाल, ब्रिटेन, डेनमार्क, फ्रांस, परंतु इनमे से कुछ देशों की कंपनियां ही भारत में सुदृढ़ रूप से व्यापार कर पाई थी, जो कुछ इस प्रकार है:

यूरोपीय कंपनियों का भारत में आगमन का समयकाल

यूरोपीय कंपनियांकंपनियों का भारत में आगमन का समयकाल  1. पुर्तगाल1498 2. डच1595 3. ब्रिटेन / अंग्रेज1600 4. फ्रांस1664 भारत में यूरोपीय कंपनियों का आगमन – arrival of european companies in india in hindi

जैसे की हमने ऊपर जाना की पुर्तगाल के वास्को द गामा ने 1498 में भारत की खोज करी थी इसलिए पुर्तगाली सबसे पहले भारत में व्यापार करने के लिए आये थे। 

पुर्तगालियों के लगभग 100 वर्ष बाद डच कंपनी भी भारत में 1595 में व्यापार की दृष्टि से आते है, परंतु वे भारत से पहले इंडोनेशिया क्षेत्र से होते हुए भारत में व्यापार के लिए आते हैं। 

इसके कुछ ही समय बाद ब्रिटेन / अंग्रेजों का भी आगमन भारत में 1600 में हो जाता है। 

बाद में अंत में फ्रेंच कंपनी भी 1664 में भारत में व्यापार की दृष्टि से आ जाते हैं।   

दोस्तों, शुरुवात में तो ये कंपनियां भारत में सिर्फ व्यापार की दृष्टि से आती हैं, परन्तु बाद में भारत की समृद्ध अर्थव्यवस्था को देखते हुए ये कंपनियां भारत में अपने क्षेत्रों का विस्तार और अपने धर्मों का प्रचार-प्रसार करना शुरू कर देती है। 

यूरोपीय कंपनियों का भारत में स्थापनाक्रम 

भारत की समृद्ध अर्थव्यवस्था के कारण इतनी सारी यूरोपीय कंपनियां भारत में आई, और भारत में सुदृढ़ रूप से व्यापार करने के लिए इन कंपनियों ने भारत में अलग-अलग क्षेत्रों में अपनी-अपनी कंपनियों की स्थापना करी दी थी। 

इन कंपनियों को ईस्ट इंडिया कंपनी ( East India Company ) के नाम से संबोधित किया गया था और इन कंपनियों का स्थापनक्रम कुछ इस प्रकार है:

यूरोपीय कंपनियांकंपनी का स्थापना समय   1. पुर्तगाली ईस्ट इंडिया कंपनी1498 2. अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी1600 3. डच ईस्ट इंडिया कंपनी1602 4. फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी1664 भारत में यूरोपीय कंपनियों का आगमन – arrival of european companies in india in hindi

पुर्तगाली 1498 में भारत में आये, और उसी वर्ष उन्होंने अपनी स्थापना भारत में कर दी थी। 

अंग्रेजी कंपनी भी 1600 में भारत में आये थे,और उसी वर्ष महारानी एलिज़ाबेथ प्रथम द्वारा 31 दिसंबर, 1600 में उन्होंने अपनी स्थापना भारत में कर दी थी। 

डच कंपनी भारत में 1595 में आये थे परंतु, उन्होंने अपनी स्थापना भारत में 1602 में करी थी, अर्थात डच कंपनी भारत में अंग्रेजों से पहले आई थी लेकिन उनकी स्थापना भारत में अंग्रेजों के बाद हुई थी। 

फ्रेंच कंपनी भारत में 1664 में आई, और उसी वर्ष अपनी स्थापना भारत में कर दी थी। 

यूरोपीय कंपनियों की प्रथम फैक्ट्रीयों का स्थान एवं स्थापना 

इन सारी यूरोपीय कंपनियों को भारत में सुदृढ़ व्यापार चलाने के लिए एक व्यापारिक केंद्र की आव्यशकता थी ताकि वे अच्छे ढंग से अपना व्यापार कर सकें और व्यापार बढ़ा भी सकें, इसलिए इन कंपनियों द्वारा अपने-अपने केंद्रों या फैक्ट्रीयों की स्थापना करी जाती है। 

इन कंपनियों ने अपने केंद्र या फैक्ट्रियों की स्थापना समुद्री किनारों के क्षेत्रों में करी थी, ताकि इन कंपनियों का आवागमन भी उनके अपने देशों के साथ आसानी से हो सके। 

इन कंपनियों के केंद्र या फैक्ट्रीयों का स्थान एवं स्थापनक्रम कुछ इस प्रकार हैं:

यूरोपीय कंपनियांफैक्ट्रीयों का स्थानफैक्ट्रियों की स्थापना का समय   1. पुर्तगाली   कोचीन  1503 2. अंग्रेज  सूरत  1608 3. डच मसूलीपट्टम1605 4. फ्रेंचसूरत 1668 भारत में यूरोपीय कंपनियों का आगमन – arrival of european companies in india in hindi

दोस्तों, जैसे की हमने ऊपर जाना की पुर्तगाली सबसे पहले भारत में केरल क्षेत्र में आये थे, इसलिए उन्होंने केरल क्षेत्र में ही कोचीन नामक स्थान में अपनी प्रथम फ़ैक्ट्री 1503 में स्थापित की थी। 

इसके बाद अंग्रेजों ने 1608 में सूरत में अपनी प्रथम फ़ैक्ट्री की स्थापना की थी, परंतु कुछ किताबों में या कुछ स्थानों में आपको यह लिखा मिलेगा की अंग्रेजों ने अपनी प्रथम फ़ैक्ट्री मसूलीपट्टम में स्थापित करी थी। 

इसका कारण यह है की अंग्रेज अधिकारियों ने उस समय के मुग़ल शासक जहाँगीर से फ़ैक्ट्री बनाने की अनुमति मांगी थी और 1608 में सूरत में फ़ैक्ट्री बनाने के कार्य की शुरुवात कर दी थी। 

परंतु कुछ कारणों की वजह से जहाँगीर ने अंग्रेजों का सूरत में फ़ैक्ट्री बनाने का कार्य रुकवा दिया था, इस कारणवश अंग्रेजों ने बाद में 1611 में मसूलीपट्टम क्षेत्र में अपनी फ़ैक्ट्री को स्थापित किया था। 

बाद में अंग्रेजों का सूरत में फ़ैक्ट्री बनाने का कार्य फिर से शुरू हुआ और 1613 में उन्होंने अपनी फ़ैक्ट्री बनाने का कार्य सूरत में भी पूर्ण कर लिया था। 

डचों ने भी मसूलीपट्टम क्षेत्र में ही 1605 में अपनी फ़ैक्ट्री की स्थापना करी थी। 

अंत में फ्रांसीसियों द्वारा भी भारत में 1668 में अपनी फ़ैक्ट्री की स्थापना सूरत में कर दी गई थी। 

इस प्रकार से इन यूरोपीय कंपनियों द्वारा भारत में व्यापार के लिए आगमन किया जाता है और अपनी-अपनी फैक्ट्रियों की स्थापना भारत में इन कंपनियों द्वारा की जाती है। 

दोस्तों, अब हम इन कंपनियों के भारत में कार्यों और इनके द्वारा भारत में क्या स्थितियां उत्पन्न हुई उनके बारे में जानेंगे।

पुर्तगाली ईस्ट इंडिया कंपनी  

जैसे की हमने ऊपर जाना की वास्को द गामा द्वारा भारत की खोज 1498 में करी जाती है और जिस समुद्री मार्ग से वास्को द गामा भारत आये थे, उस मार्ग को केप ऑफ़ गुड होप ( Cape of Good Hope ) के नाम से संबोधित किया जाता है। 

केरल के कालीकट बंदरगाह से वास्को द गामा भारत में आये थे और तब उस समय केरल के राजा ज़ामोरिन ने वास्को द गामा का स्वागत किया था। 

वास्को द गामा ने भारत से बहुत सारे मसाले, कपडे आदि लिए और इन सब चीजों को वे अपने साथ पुर्तगाल ले गए और वहां इन सब चीजों को उन्होंने बेचना शुरू किया। 

कहा जाता है वे जो चीजें भारत से लाये थे जैसे मसाले, कपडे आदि उन सब चीजों को बेचकर और उनके अपने खर्चों को निकालकर उन्हें लगभग 60 गुना मुनाफा हुआ था। 

इसको देखते हुए पुर्तगाल के दूसरे लोग भी बहुत प्रभावित हुए और वास्को द गामा के बाद पुर्तगाल के और भी लोग भारत में व्यापार की दृष्टि से आने लगे। 

वास्को द गामा के बाद 1500 ईस्वी में ही पुर्तगाल से दूसरा समूह पेड्रो अल्वारेस कैब्राल ( Pedro Alvares Cabral ) के नेतृत्व में भारत में व्यापार की दृष्टि से आया था। 

पेड्रो अल्वारेस कैब्राल भी भारत से बहुत सारी वस्तुएँ अपने साथ पुर्तगाल ले जाते हैं और वहां उन्हें बेचके अपना व्यापार करते हैं। 

इसके बाद फिर से वास्को द गामा 1502 में भारत में व्यापार की दृष्टि से आते हैं और भारत से बहुत सारी वस्तुएँ अपने साथ ले जाते हैं। 

इन सारी व्यापारिक क्रियाओं और उनकी सफलताओं को देखते हुए ही उस समय पुर्तगाल के राजशाही प्रशासन ने भारत में पुर्तगाल ईस्ट इंडिया कंपनी को और ज्यादा सहयोग दिया। 

पुर्तगाल के राजशाही प्रशासन ने पुर्तगाल से अपने अधिकारियों और वाइसराय को भेजा ताकि पुर्तगाली फैक्ट्रियां भारत में स्थापित की जाए और फैक्ट्रियों के स्थापना के संबंध में हमने अभी ऊपर जाना था। 

अलग-अलग क्षेत्रों में पुर्तगालियों ने अपनी फैक्ट्रियां स्थापित कर दी थी, इसके साथ-साथ पुर्तगालियों द्वारा भारत के कई क्षेत्रों पर भी कब्ज़ा करा जाता है, जैसे की हम जानते है की भारत की आज़ादी के समय भी गोवा, दमन और दीव जैसे क्षेत्र पुर्तगाल के कब्ज़े में ही थे। 

पुर्तगाल के राजा प्रिंस हेनरी के अभियान और बढ़ावे के कारण ही पुर्तगाल में बहुत सारी नई भगौलिक खोजों को बढ़ावा मिला था और पुर्तगालियों द्वारा विश्व के नए-नए क्षेत्रों की खोज अभियान चलाये गए थे, प्रिंस हेनरी को “द नेविगेटर” ( The Navigator ) के नाम से भी संबोधित किया जाता है। 

दोस्तों, जब हम वास्को द गामा द्वारा भारत की खोज की बात करते है तो इसका मतलब यह नहीं है की भारत की धरती कहीं खो गई थी और उसे वास्को द गामा द्वारा ढूंढ लिया गया, बल्कि भारत का इतिहास तो 5000 वर्ष पुराना है और रोमन सभ्यता और भारत की सिंधु घाटी सभ्यता एक दूसरे से प्राचीन काल से परिचित थे। 

इस बात से यह अभिप्राय है की समुद्री रास्तो में उस समय दिशा का अनुमान लगाना थोड़ा कठिन था और वास्को द गामा कोलंबस की तरह भटके नहीं और सही समुद्री रास्ते से भारत में प्रवेश करते हैं। 

पुर्तगाल के भारत में वाइसराय 

जैसे की हमने ऊपर जाना की वास्को द गामा, पेड्रो अल्वारेस कैब्राल आदि लोगों की भारत में व्यापारिक क्रियाओं और उनकी सफलताओं को देखते हुए पुर्तगाल के राजशाही प्रशासन ने अपने अधिकारी और वाइसराय की नियुक्ति कर के उन्हें भारत में पुर्तगाली कंपनी को सहयोग और बढ़ावा देने के लिए भेजा था। 

इन वाइसराय के द्वारा भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में पुर्तगाली फैक्ट्रियों को स्थापित किया गया था और इन वाइसराय के द्वारा अलग-अलग कार्य भी किये गए थे, यह पुर्तगाली वाइसराय कुछ इस प्रकार हैं:

फ़्रांसिस्को डी अल्मेडा ( Francisco de Almeida ) ( 1505 – 1509 )

फ़्रांसिस्को डी अल्मेडा भारत में पुर्तगाल के प्रथम वाइसराय के रूप में आते है, इनके ही काल में सबसे प्रथम पुर्तगाली कंपनी का भारत में विकास हुआ था। 

इनके द्वारा भारत में प्रथम बार एक अलग प्रकार की नीति चलाई गई थी, जिसे ब्लू वाटर पॉलीसी ( Blue Water Policy ) के नाम से जाना जाता है। 

इस ब्लू वाटर पॉलीसी के जरिए पुर्तगाली हिंद महासागर के क्षेत्र में अपना कब्ज़ा चाहते थे, ताकि उस क्षेत्र से होने वाला व्यापार उनके नियंत्रण में आ सके। 

फ़्रांसिस्को डी अल्मेडा ने अपने काल में पुर्तगालियों से भारत में टिकने का बढ़ावा दिया था और इसके साथ ही साथ फ़्रांसिस्को डी अल्मेडा के प्रयासों और ब्लू वाटर पॉलीसी जैसी नीतियों के कारण पुर्तगालियों का हिंद महासागर में प्रभुत्व बढ़ गया था। 

अफोंसो डी अल्बुकर्क ( Afonso de Albuquerque ) ( 1509 – 1515 )

फ़्रांसिस्को डी अल्मेडा के बाद अफोंसो डी अल्बुकर्क पुर्तगाल के वाइसराय के रूप में भारत आते है, और इन्होंने भारत में अलग-अलग क्षेत्रों पर कब्ज़ा करने के प्रयास किये थे। 

इन्होंने ही भारत में पुर्तगाल के वाइसराय के रूप में आके पुर्तगालियों की स्थिति को भारत में और ज्यादा मजबूत और सुदृढ़ किया था और इन्हीं सब कारणों की वजह से इन्हें भारत में पुर्तगाल का वास्तविक संस्थापक भी माना जाता है।  

पुर्तगालियों ने जहां पर अपनी प्रथम फ़ैक्ट्री की स्थापना करी थी अर्थात कोचीन, उसको अफोंसो डी अल्बुकर्क द्वारा अपनी राजधानी बनाया गया था। 

इसके बाद अफोंसो डी अल्बुकर्क ने भारत में अलग-अलग अभियान करे और उन क्षेत्रों में पुर्तगालियों का कब्ज़ा कर लिया था। 

पहला अभियान 1510 में किया और उस समय के बीजापुर के शासक आदिल शाह से गोवा क्षेत्र को जीत लिया था और जब भारत को आज़ादी प्राप्त हुई उसके कई वर्षों के बाद तक भी पुर्तगालियों का ही कब्ज़ा गोवा पर था, बाद में चल कर 1961 में आज़ाद भारत द्वारा पुर्तगालियों से गोवा को वापस लिया गया था। 

इस प्रकार भारत में आने वाला पहला यूरोपीय देश पुर्तगाल था और सबसे बाद में जाने वाला यूरोपीय देश भी पुर्तगाल ही था।

भारत में सबसे पहले व्यापार करने कौन आया था?

यूरोपीय शक्तियों में पुर्तगाली कंपनी ने भारत में सबसे पहले प्रवेश किया। भारत के लिये नए समुद्री मार्ग की खोज पुर्तगाली व्यापारी वास्कोडिगामा ने 17 मई, 1498 को भारत के पश्चिमी तट पर अवस्थित बंदरगाह कालीकट पहुँचकर की। वास्कोडिगामा का स्वागत कालीकट के तत्कालीन शासक जमोरिन (यह कालीकट के शासक की उपाधि थी ) द्वारा किया गया।

पुर्तगाली सर्वप्रथम क्या खोजने के लिए भारत आए थे?

सही उत्तर विकल्प 3 अर्थात् मसाले है। पुर्तगाली मसालों की तलाश में भारत आए थेपुर्तगाल के वास्को डी गामा ने 1498 ई. में यूरोप से भारत के लिए एक समुद्री मार्ग की खोज की थी।

भारत आने वाले पहले अंग्रेजों का क्या नाम है?

माना जाता है कि भारत पहुंचने वाला पहला ब्रिटिश व्यक्ति थॉमस स्टीफंस नाम का एक अंग्रेजी जेसुइट पुजारी और मिशनरी था, जो अक्टूबर, 1579 में गोवा पहुंचा था।

पुर्तगालियों के बाद भारत में कौन आया?

भारत में यूरोपीय कंपनियों का आगमन: प्राचीन काल से ही विदेशी व्यापार हेतु भारत आया करते थे, व्यापार हेतु ही भारत में यूरोपीय कंपनियों का आगमन हुआ। सर्वप्रथम पुर्तगाली जलमार्ग होते हुए भारत आये, उनके बाद क्रमशः डच, ब्रिटिश और फ्रांसीसी भारत आये।