भारत में पहली महिला न्यायाधीश कौन बनी? - bhaarat mein pahalee mahila nyaayaadheesh kaun banee?

साल था 1928, त्रावणकोर राज्य में इस बात को लेकर बहस तेज़ थी कि महिलाओं को सरकारी नौकरियों में आरक्षण मिलना चाहिए या नहीं. इस मुद्दे पर सबकी अपनी अपनी दलीलें थीं.

इसी मुद्दे पर त्रिवेंद्रम की एक सभा में चर्चा हो रही थी. इस सभा में राज्य के जाने-माने विद्वान टी.के.वेल्लु पिल्लई शादीशुदा महिलाओं को सरकारी नौकरी देने के विरोध में भाषण दे रहे थे.

तभी 24 साल की अन्ना चांडी मंच पर चढ़ीं और सरकारी नौकरियों में महिलाओं को आरक्षण देने के पक्ष में एक-एक कर दलील देने लगीं. उस समय ऐसा लग रहा था जैसे ये बहस किसी मंच पर न होकर अदालत में चल रही हो.

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अन्ना चांडी :भारत में हाईकोर्ट की जज बनने वालीं पहली महिला

वहीं राज्य में लोग इस बात पर भी बंटे हुए थे कि ये नौकरियां अविवाहित महिलाओं को मिलें या विवाहित महिलाओं को.

टी. के. वेलु पिल्लई अपनी दलील में कह रहे थे, "सरकारी नौकरियां महिलाओं के विवाहित जीवन की ज़िम्मेदारियों में बाधा डालेंगी, दौलत कुछ परिवारों में सिमटेगी और पुरुषों के आत्म-सम्मान को ठेस पहुंचेगी".

वक़ालत पढ़ चुकीं अन्ना चांडी ने अपने तर्क देते हुए कहा, "इस याचिका से साफ़ होता है कि याचिकाकर्ता मानते हैं कि महिलाएं सिर्फ़ पुरुषों के लिए घरेलू सुख का साधन हैं और इस आधार पर महिलाओं के नौकरी ढूंढने की कोशिशों पर पाबंदी लगाना चाहते हैं क्योंकि उनके मुताबिक अगर वो रसोई से बाहर जाती हैं तो इससे पारिवारिक सुख में कमी आएगी."

उन्होंने ज़ोरदार तरीके से कहा कि महिलाओं के कमाने से परिवार को संकट के समय में सहारा मिलेगा, अगर सिर्फ़ अविवाहित महिलाओं को नौकरी मिलेगी तो कई महिलाएं शादी करना नहीं चाहेंगी.

केरल में इतिहासकार और लेखिका जे देविका कहती हैं कि अन्ना चांडी इस सभा में भाग लेने के लिए ख़ास तौर पर कोट्टम से त्रिवेंद्रम पहुंची थीं और उनके इस भाषण से महिला आरक्षण की मांग को राज्य में म़जबूती मिली. इसके बाद ये बहस अख़बार के ज़रिए आगे भी चलती रही.

महिला आरक्षण की मांग की शुरुआत करने वाली मलयाली महिलाओं में अन्ना चांडी अग्रणी मानी जाती हैं.

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क़ानून की डिग्री लेने वाली पहली महिला

अन्ना चांडी का जन्म त्रावणकोर राज्य में मई 1905 में हुआ था.

1926 में केरल में क़ानून की डिग्री हासिल करने वाली पहली महिला अन्ना चांडी ही थीं.

जे देविका कहती हैं , "सीरियन ईसाई परिवार में पली बढ़ीं अन्ना चांडी केरल राज्य में क़ानून की डिग्री लेने वाली पहली महिला बनी थीं. जब लॉ कॉलेज में उन्हें दाखिला मिला तो उनके लिए ये आसान नहीं था. कॉलेज में उनका मज़ाक उड़ाया जाता था लेकिन वो एक मज़बूत शख़्सियत वाली महिला थीं."

अन्ना चांडी आपराधिक मामलों में कानून पर अपनी पकड़ के लिए जानी जाती थीं.

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महिला आरक्षण के लिए आवाज़ उठाने वालीं अन्ना चांडी सामाजिक स्तर पर और राजनीति में महिलाओं के स्थान को लेकर मुखर थीं.

उन्होंने 1931 में त्रावणकोर में श्री मूलम पॉप्युलर एसेंबली के लिए चुनाव लड़ा.

जे देविका बताती हैं, " उन दिनों राजनीति में महिलाओं के लिए रास्ता आसान नहीं था. अन्ना चांडी जब चुनाव मैदान में उतरीं तो उनके ख़िलाफ़ अपमानित करने वाला दुष्प्रचार किया गया. उनके ख़िलाफ़ अपमानजनक पोस्टर छपवाए गए और वो चुनाव हार गईं. लेकिन वो चुप नहीं रहीं और अपनी मैगज़ीन 'श्रीमती' में उन्होंने इस बारे में संपादकीय लिखकर विरोध जताया."

1932 में वो फिर चुनाव लड़ीं और जीत गईं.

देविका बताती हैं, "राज्य की एसेंबली की सदस्य रहते हुए उन्होंने महिलाओं के मुद्दों पर ही नहीं पर अन्य मुद्दों जैसे कि बजट पर भी बहसों में हिस्सा लिया. "

'महिलाओं के अपने शरीर पर अधिकार' की समर्थक

अन्ना चांडी ने 1935 में लिखा था, "मलयाली महिलाओं को संपत्ति का अधिकार, वोटिंग, नौकरी, सम्मान और आर्थिक स्वतंत्रता मिली है. पर कितनी महिलाओं का उनके ख़ुद के शरीर पर अधिकार है? महिला का शरीर सिर्फ पुरुषों के लिए सुख का साधन है इस तरह के मूर्खतापूर्ण विचार के कारण कितनी महिलाएं हीनता की गर्त में गिर हुई हैं?"

केरल पहले से प्रगतिशील राज्य माना जाता था. त्रावणकोर शासनकाल में केरल में बड़े तबके में मातृसत्तात्मक प्रणाली चली आ रही थी.

त्रावणकोर की महिला शासक के तहत महिलाओं को शिक्षा ,सामाजिक और आर्थिक ताकत देने को लेकर राज्य में पहले से सजगता थी लेकिन फिर भी महिलाओं को ग़ैरबराबरी का सामना करना पड़ता था.

देविका बताती हैं, "अन्ना चांडी ने महिलाओं के शरीर पर उनके हक़, शादी में महिला और पुरुषों के अधिकारों में असमानता को लेकर जो मुद्दे उठाए वो उनके समय से कहीं आगे थे."

अन्ना चांडी का मानना था कि औरतों को क़ानून की नज़र में भी बराबरी की नज़र से देखा जाना चाहिए.

इस बारे में देविका बताती हैं, "1935 में अगर उन्होंने त्रावणकोर राज्य के क़ानून में महिलाओं को फांसी से मिलने वाली छूट का विरोध जताया तो उन्होंने शादी में पति और पत्नी को मिले असमान क़ानूनी अधिकारों के ख़िलाफ़ भी आवाज़ उठाई और इस तरह के संवेदनशील मुद्दों को लेकर उनके कई विरोधी भी थे."

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त्रावणकोर दरबार के दीवान ने ज़िला स्तर की क़ानून अधिकारी (मुंसिफ) के तौर पर अन्ना चांडी को नियुक्त किया और वो इस पद पर पहुंचने वाली पहली मलयाली महिला मानी जाती हैं.

1948 में वो ज़िला जज और फिर 1959 में पहली महिला हाईकोर्ट जज बनीं.

वे मानती थी कि महिलाओं को खुद के शरीर पर अधिकार मिलना चाहिए और इस बात को उन्होंने कई मंच से उठाने की कोशिश की साथ ही उन्होंने ऑल इंडिया विमेन्स कॉन्फ़्रेंस में पूरे भारत में महिलाओं को गर्भ निरोध और जच्चा-बच्चा स्वास्थ्य के बारे में जानकारी देने के लिए क्लिनिक की मांग का प्रस्ताव रखा.

लेकिन उन्हें इस प्रस्ताव पर कई ईसाई महिला सदस्यों के विरोध का सामना करना पड़ा.

हाई कोर्ट के जज पद से रिटायर होने के बाद वो नेशनल लॉ कमिशन में शामिल की गईं.

दूरदर्शन के मुताबिक़, अन्ना चांडी के पति पीसी चांडी एक पुलिस अधिकारी थे और उन्हें इस शादी से एक बेटा हुआ था.

हमारी पुरखिन सीरिज़ के तहत बीबीसी हिंदी दस ऐसी महिलाओं की कहानी ला रहा है जिन्होंने लोकतंत्र की नींव मज़बूत की. उन्होंने महिलाओं के अधिकारों को अपनी आवाज़ दी. वे समाज सुधारक थीं और कई महत्वपूर्ण पदों पर पहुंचने वाली वे पहली महिला बनीं.

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(इस कहानी के इलस्ट्रेशन गोपाल शून्य ने बनाए हैं)

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