अर्थात provide को अंग्रेजी भाषा में ही भरण पोषण कहा जाता है और यह अर्थात provide अथवा भरण पोषण एक प्रकार की होती है कहने का तात्पर्य है provide शब्द या भरण पोषण शब्द किसी वाक्य में की भाँती व्यवहार करते हैं | Show
प्रश्न : भरण पोषण किसे कहते हैं ? उत्तर : भरण पोषण = provide अर्थात अंग्रेजी के शब्द provide को ही भरण पोषण कहते हैं | प्रश्न : भरण पोषण की परिभाषा क्या हैं ? उत्तर : चूँकि भरण पोषण अंग्रेजी के शब्द provide का हिंदी अर्थ होता है जो एक प्रकार की होती है | अर्थात भरण पोषण की परिभाषा provide वर्ड से समझी जा सकती है जो एक होती है | प्रश्न : भरण पोषण के पर्यायवाची / विलोम शब्द क्या है लिखिए | उत्तर : यह है जिसका इंग्लिश में मीनिंग provide होता है भरण पोषण के पर्यायवाची और विलोम शब्द उपलब्ध नहीं है | question : what is meaning of provide in hindi language ? answer : provide = भरण पोषण and this is a type of in any sentence using provide word. what is definition of भरण पोषण in hindi ? ans : भरण पोषण means provide and is a in provide / भरण पोषण used sentences. kisi english me भरण पोषण ka arth provide hota hai it means भरण पोषण ko hi english me provide kahte hai aur yah ek kaha jaata hai jo vaaky me provide / भरण पोषण ko batati hai aur provide ka ya भरण पोषण vilom shabd aur paryayvachi shabd N/A . भरण पोषण शब्द से आप क्या समझते हैं? What do you understand by the terms maintenance? What are the circumstances under colich a Hindu wife is entitled to live separately from her husband profecting her right to claim maintenance?October 21, 2021 भरण पोषण क्या है: - समान्यतःहिंदू विधि में भरण-पोषण को वृहद रूप से लिया गया है और उसके अंतर्गत भोजन वस्त्र आवास शिक्षा और चिकित्सा परिचर्या के लिए उपलब्ध खर्चे आते हैं. अविवाहित पुत्री की दशा में उसके विवाह के युक्ति युक्त और प्रसांगिक व्यय भी आते हैं. Maintenance is a right to necessities which are responsible e.g. food, clothing and shelter by a person from another.
भरण पोषण का अधिकार संयुक्त परिवार के सिद्धांत से उत्पन्न होता है. परिवार का सिद्धांत यह है कि परिवार का मुखिया परिवार के सभी सदस्यों के भरण-पोषण संस्कारों की पूर्ति तथा विवाह के व्ययों की पूर्ति करने के लिए उत्तरदाई होता है. संयुक्त परिवार के सदस्यों को संयुक्त परिवार के कोष में से भरण-पोषण पाने का अधिकार है चाहे उनकी कुछ भी आयु या संस्थिति क्यों ना हो. पोषण के अधिकार में जीवन की वे युक्तियुक्त आवश्यकतायें सम्मिलित है जिसके बिना मनुष्य का समाज में जीवित रहना असंभव है. यह आवश्यकता है रोटी कपड़ा और मकान है. एक प्रकार का आभार है जो कि विधिक संबंध से उत्पन्न होता है. धर्म शास्त्रों के अनुसार भरण पोषण प्राप्त करने वाले व्यक्तियों को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है - ( 1) प्रथम वह वर्ग है जिसके विषय में कहा गया है कि उन का भरण पोषण का दावा उसे प्रदान करने वाले से उसके संबंध पर आधारित है. प्रथम वर्ग के माता पिता गुरु पत्नी संतान अतिथि तथा अग्नि आते हैं. ( 2) दूसरे वर्ग में वे लोग आते हैं जिनके भरण पोषण का बाध्यकारी दायित्व है. वृद्ध माता-पिता साहनी स्त्री एवं अवयस्क शिशु आते हैं. जिनके विषय में मनु का कथन है कि उन का भरण पोषण सैकड़ों अपकृत्य करके भी करना चाहिए. हिंदू पत्नी का बिना पोषण का अधिकार खोए अपने पति से अलग रहने का अधिकार - हिंदू दत्तक ग्रहण तथा भरण पोषण अधिनियम 1956 की धारा 18 के अंतर्गत पत्नियों को दो प्रकार के अधिकार दिए गए हैं - ( 1) भरण पोषण ( 2) पृथक निवास का अधिकार सन 1956 के अधिनियम के पूर्व प्रत्येक हिंदू पति का यह कर्तव्य था कि वह अपनी पत्नी का भरण पोषण करें चाहे उसके पास संपत्ति हो या ना हो. प्रत्येक पति का यह व्यक्तिगत दायित्व है कि वह पत्नी का भरण पोषण करें. यह दायित्व पति पत्नी के संबंध में उत्पन्न होता है. इसके लिए यह आवश्यक नहीं है कि स्वअर्जित या पैतृक संपत्ति हो. धर्मशास्त्रकारों ने सदैव से पत्नी के भरण-पोषण के पति के दायित्व को मान्यता दी है. यह स्थिति वर्तमान हिंदू विधि में है. पत्नी को भी यह अधिकार नहीं था कि वह बिना युक्तियुक्त कारण के पति से अलग रह कर भरण पोषण का दावा करें. क्योंकि उस अवस्था में वह स्वयं वैवाहिक धर्म तोड़ने की दोषी होती है.
किसी भी स्त्री को अपने पति से भरण-पोषण प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि वह उस पुरुष की विविध: विवाहित पत्नी हो अर्थात उसका और उसके पति का विवाह शून्य न हो. यदि विवाह शून्य है तो पुरुष को पति की हैसियत प्राप्त नहीं होती और उसकी हैसियत एक ऐसी जैसी होती है स्त्री को पत्नी का सौदा प्राप्त नहीं होता और वह रखैल जैसी बनी रहती है. अत: धारा 18 के अंतर्गत पत्नी द्वारा पति से भरण-पोषण लिए यह प्रथम शर्त रखी गई है कि वह विधित: विवाहित हो. धारा 18(2) के अंतर्गत कोई भी हिंदू पत्नी पोषण का अधिकार खोए बिना अपने पति से पृथक निवास की अधिकारिणी होगी - (अ) यदि पति-पत्नी के अभित्याग का अपराधी है अर्थात वह बिना युक्तियुक्त कारण के या बिना पत्नी की राय के या उसकी इच्छा के विरुद्ध उसे त्यागता है या इच्छा पूर्वक उसकी अवहेलना करता है. (ब) यदि पति ने पत्नी के साथ इस प्रकार निर्दयता का व्यवहार किया है जिससे कि उसकी पत्नी के मस्तिष्क में यह युक्तियुक्त संदेह उत्पन्न हो जाए कि उसका पति के साथ रहना हानिकारक या घातक है. (स) यदि पति घृणित तथा उग्र कुष्ठ रोग (virulent from of Leprosy) से पीड़ित है. (द) यदि उसकी कोई दूसरी जीवित पत्नी है. (य) यदि वह जिस घर में उसकी पत्नी रहती है उसी में एक रखेल स्त्री रखता है या अन्यत्र कहीं उस रखैल के साथ प्राया रहता है. (र) यदि वह हिंदू धर्म त्याग कर कोई और धर्म अपना लेता है. (ल) यदि कोई अन्य कारण से जो उसके प्रत्येक निवास को न्यायोचित ठहराता हैं. कोई भी हिंदू स्त्री अपना धर्म त्याग कर दूसरा धर्म जब अपना लेती है या उसका सतीत्व भंग हो जाता है तो वह ना तो पृथक निवास का दावा कर सकती है और ना ही भरण-पोषण का.
जहां पत्नी केवल इस बात से पति से अलग रहती है और भरण पोषण का दावा करती है कि वह शराब पीता है न्यायालय ने यह अभि निर्धारित किया है कि पति के शराब पीने मात्र से पत्नी को अलग रहने और भरण-पोषण पाने का अधिकार उत्पन्न नहीं हो जाता. यदि पति शराब पीने के साथ साथ क्रूरता पूर्ण आचरण करता है तो उस स्थिति में वह अलग रहकर भरण-पोषण पाने की अधिकारी हो जाती है. भरण पोषण का अधिकार व्यक्तिगत होने से अपने पति के जीवन काल में उसके किसी अन्य संबंधी से भरण-पोषण की मांग नहीं कर सकती है चाहे वह पति के द्वारा त्याग दी गई हो किंतु यदि कोई संबंधी उसके पति की संपत्ति पर काबिज है तो वह उससे भरण-पोषण की मांग कर सकती है. केशव भाई बनाम हरि भाई (ए आई आर 1971ब 115) के मामले में न्यायालय ने यह कहा है कि जहां पति उसी घर में एक रखैल स्त्री रखता है जिसमें वह अपनी विवाहित पत्नी के साथ रहता था अथवा रखैल के साथ सामान्यतः रहता है वहां पत्नी को यह अधिकार उत्पन्न हो जाता है कि वह पति से अलग रह कर भरण पोषण का दावा करें. यदि पति की जीवित दूसरी पत्नी है तो पत्नी को भरण-पोषण का अधिकार उत्पन्न हो जाता है इस तथ्य से कोई अंतर नहीं पड़ता की पत्नी पूर्व विवाहिता या बाद की है. वे शर्तें जिनके अंतर्गत पत्नी भरण पोषण का दावा कर सकती है - हिंदू पत्नी में निहित कोई पूर्ण अधिकार नहीं है कि पत्नी द्वारा उसका भरण पोषण किया जाएगा. यह भरण पोषण उसके साथ रहने पर और पत्नी के रूप में अपने कर्तव्य पालन पर निर्भर करता है. पत्नी भी भरण-पोषण भत्ता का दावा करने की अधिकारिणी होगी जब तक कि वह अपने पति से अलग रह रही है यदि धारा 18 (2) मे किसी शर्त की पूर्ति की गई है. वह भरण पोषण की अधिकारिणी है जब तक कि वह हिंदू है और सती है. नवीनतम वाद मीरा निरेशवालिया बनाम सुकुमार निरेश वालिया के वाद में मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया कि जहां पति अपना मकान तीसरे व्यक्ति को बेच देता है और इस बात की सूचना पत्नी को नहीं दी जाती है तथा बाद में विक्रेता को पत्नी से मकान खाली करवाने के लिए उकसाता है एवं इस प्रकार की उपेक्षा अपनी पत्नी के प्रति करवाता है ऐसी स्थिति में पत्नी का अलग रहना उचित है तथा वह भरण-पोषण की अधिकारिणी होगी. इस प्रकार कोई भी हिंदू पत्नी अपने पति से पृथक निवास करने तथा भरण पोषण का अधिकार प्राप्त करने की अधिकारी है यदि उसका पति किसी दूसरी स्त्री के साथ रहने लगता है अथवा उसके साथ क्रूरता पूर्वक व्यवहार करता है. पति के धर्म परिवर्तन करने से उसकी हिंदू पत्नी का उससे भरण पोषण प्राप्त करने का अधिकार किसी प्रकार भी प्रभावित नहीं होता है और वह ऐसे पति से भरण-पोषण पाने की अधिकारिणी है पत्नी का भरण पोषण प्राप्त करने का इतना प्रमुख एवं महत्वपूर्ण है कि यदि एक साहनी पत्नी अन्यायत: पति के घर से निष्कासित कर दी जाती है अथवा पर्याप्त भरण पोषण प्राप्त नहीं कर पाती तो वह अपने पति के नाम से ऋण ले सकती है और पति उसके इस प्रकार लिए गए ऋण को आधा करने के लिए बाध्य है. पत्नी का पृथक निवास तथा भरण पोषण की अधिकारिणी नहीं रह जाती है - निम्नलिखित परिस्थितियों में पत्नी को पृथक निवास तथा भरण पोषण का अधिकार नहीं रह जाता. ( 1) जब वह धर्म परिवर्तन करके हिंदू नहीं रह जाती. ( 2) जब वह असाहनी हो जाती गई. ( 3) जब वह बिना किसी युक्तियुक्त कारण के पृथक निवास करती है. ( 4) जब पति-पत्नी आपसी समझौते के फल स्वरुप पत्नी अलग रहती है और अपने भरण-पोषण का दावत त्याग देती है. बसंती मोहंती बनाम परिमित मोहंती (ए आई आर 2003 उड़ीसा 20) के वाद में भरण-पोषण के लिए पत्नी द्वारा दावा किए जाने पर पत्नी ने विवाह से इनकार कर दिया था साक्ष्य इस बात से स्पष्ट करते हैं कि अपीलार्थी और प्रत्यर्थी ना सिर्फ उनके परिवार के सदस्यों के बीच बल्कि गांव वालों की दृष्टि में भी पति-पत्नी जाने जाते थे. जो शादी विवाह में उपस्थित थे उनका साक्ष्य सुसंगत तथा विश्वसनीय था और असंभाव्मता से ग्रस्त नहीं था सिर्फ इस आधार पर की पत्नी द्वारा भरण-पोषण के लिए दावा किए जाने वाले आवेदन पत्र से इस बात का उल्लंघन नहीं किया गया कि उसका विवाह कब संपन्न हुआ था? आवेदन पत्र को अस्वीकार करना उचित नहीं है. धारा 18 (3) मे उपयुक्त पहले और दूसरे आधार का ही विवरण दिया गया है जिसके अंतर्गत पत्नी को भरण-पोषण का और पृथक निवास का अधिकार नहीं रह जाता अन्य आधारों का विवरण भिन्न-भिन्न न्यायालयों के निर्णय के परिणाम स्वरूप प्राप्त हुआ है. Share LabelsHINDU LAWLabels: HINDU LAW Share हिंदू विधि के प्रमुख स्रोत: What are the various sources of Hindu lawAugust 26, 2021 हिंदू विधि के स्रोत (sources of Hindu law): - प्राचीन मत के अनुसार विधि एवं धर्म में एक अभिन्न संबंध था तथा विधि धर्म का ही एक अंग मानी जाती थी धर्म के स्रोत ही विधि के स्रोत माने जाते थे मनु के अनुसार वेद, स्मृति, सदाचार एवं जो अपने को तुष्टिकरण लगे यह 4 धर्म के स्पष्ट लक्षण माने गए थे. याज्ञवल्क्य ने भी धर्म के चार आधार स्तंभ इस प्रकार बतलाए हैं .श्रुति, स्मृति .सदाचार जो अपने को प्रिय लगे तथा सम्यक् संकल्पों से उत्पन्न इच्छाये़। याज्ञवल्क्य ने पुनः विधि के ज्ञान के 14 स्रोत बताएं हैं वेद (4) ,वेदांग (6)धर्मशास्त्र , न्याय पुराण एवं मीमांसा . हिंदू विधि के स्रोतों को हम सुविधानुसार दो भागों में विभाजित कर सकते हैं - ( 1) प्राचीन या मूल स्रोत: - प्राचीन स्रोत के अंतर्गत निम्न चार प्रकार के स्रोत आते हैं - (A) श्रुति (B) स्मृति (C) भाष्य तथा निबंध (D) प्रथाएं ( 2) आधुनिक स्रोत: - निम्न तीन स्रोत आते हैं - (A) न्याय साम्य सद् विवेक (B) विधायन (C) न्यायिक निर्णय ( 1) प्राचीन स्रोत: - (A) श्रुति (shruti): - श्रुति का शाब्दिक अर्थ है वह जो सुना गया है श्रुति ओं Share Post a CommentRead more एक अधिवक्ता के न्यायालय के प्रति कर्तव्य: Duties of advocate towards courtFebruary 15, 2021 न्यायालय के प्रति अधिवक्ता के कर्तव्य: - अधिवक्ताओं का व्यवसाय कर्तव्य परायणता व निष्ठा का माना गया है इसलिए इस व्यवसाय में वही व्यक्ति सफल हो सकता है जो अपने कर्तव्य के प्रति समुचित रूप से जागरूक व समर्पित है अधिवक्ताओं के निम्नलिखित कर्तव्य होते हैं - ( 1) अपने वाद को प्रस्तुत करने एवं न्यायालय के समस्त अन्य कार्य करते समय अधिवक्ता को मर्यादा और सम्मान के साथ आचरण करना चाहिए नियम यह भी स्पष्ट कर देता है कि अधिवक्ता दास नहीं होगा यदि किसी न्यायिक अधिकारी के विरुद्ध गंभीर शिकायत का उचित आधार है तब अधिवक्ता का यह अधिकार व कर्तव्य है कि वह उचित प्राधिकारी के समक्ष शिकायत प्रस्तुत करें. ( 2) अधिवक्ता न्यायालय के प्रति आदर की दृष्टि कोण अपना आएगा क्योंकि न्यायिक अधिकारियों की मर्यादा को न्यूनतम ना स्वतंत्र समुदाय के अस्तित्व के लिए गंभीर खतरा होगा. ( 3) कोई भी अधिवक्ता गैरकानूनी या अनुचित साधनों का प्रयोग करके न्यायालय के निर्णय को प्रभावित नहीं करेगा. ( 4) अधिवक्ता अपने मुवक्किल को गलत और अनुचित कार्य करने से रोकेगा जो मुवक्किल ऐसी अनुचित कार्य करने की हट करता है तो उसका प्रत Share Post a CommentRead more अंतरराष्ट्रीय विवादों को सुलझाने के लिए शांतिपूर्ण उपाय(pacific means of settlement of international Disputes ) : (1) माध्यस्थम (Arbitrations): - prof.openhaime के अनुसार राज्यों के मतभेदों को एक या अधिक निर्णायक द्वारा हल करने को माध्यस्थम कहते हैं। इन निर्णयों को पक्षकार स्वयं चुनते हैं। विवाचन द्वारा अंतर्राष्ट्रीय झगड़ों का निवारण बहुत प्राचीन समय से होता रहा है। परंतु आधुनिक समय में इसके जन्म का श्रेय अमेरिका तथा इंग्लैंड के बीच 1794 की संधि को है। माध्यस्थम विवाचन द्वारा विवाद निपटाने की दो आवश्यक तत्व है: (क)माध्यस्थम विवाचन के प्रत्येक चरण में पक्षकार राज्यों की सहमति आवश्यक है। यह एक ऐसा तत्व है जिनके ऐतिहासिक रूप से राज्यों को अपने झगड़ों को विवाचन के सुपुर्द करने को प्रेरित किया गया है। (ख)विवाचन प्रक्रिया का दूसरा तत्व यह है कि झगड़ों का निस्तारण विधि के सम्मान के आधार पर होना चाहिए। विवाचन द्वारा अंतर्राष्ट्रीय झगड़ों का निवारण बहुत प्राचीन समय से होता चला आ रहा है। परंतु आधुनिक समय में इनके जन्म का श्रेय अमेरिका तथा इंग्लैंड के बीच Jay treaty of 1774 को है। भरण पोषण का क्या अर्थ है?यही भरणपोषण (Maintenance, मेंटनेंस) या गुजारा पाने का अधिकार है। भरणपोषण में अन्न, वस्त्र एवं निवास ही नहीं वरन् आधारित व्यक्ति के स्तर की सुख और सुविधा की वस्तुएँ भी सम्मिलित हैं। भरणपोषण पाने का अधिकार व्यक्तिगत विधि में भी प्रदत्त है और आपराधिक व्यवहारसंहिता धारा 488 में भी।
भरण पोषण करने की क्रिया को क्या कहते हैं?भरण-पोषण संज्ञा
अर्थ : भोजन, वस्त्र आदि देकर जीवन रक्षा करने की क्रिया। उदाहरण : कृष्ण का पालन पोषण यशोदा ने किया था।
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