आज हम आदिकालीन कवियों की प्रमुख कृतियों का विवरण प्रस्तुत कर रहें हैं : इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट छायावादी काव्य का विश्लेषण करने पर हम उसमें निम्नांकित
प्रवृत्तियां पाते हैं :- 1. वैयक्तिकता : छायावादी काव्य में वैयक्तिकता का प्राधान्य है। कविता वैयक्तिक चिंतन और अनुभूति की परिधि में सीमित होने के कारण अंतर्मुखी हो गई, कवि के अहम् भाव में निबद्ध हो गई। कवियों ने काव्य में अपने सुख-दु:ख,उतार-चढ़ाव,आशा-निराशा की अभिव्यक्ति खुल कर की। उसने समग्र वस्तुजगत को अपनी भावनाओं में रंग कर देखा। जयशंकर प्रसाद का'आंसू' तथा सुमित्रा नंदन पंत के 'उच्छवास' और 'आंसू' व्यक्तिवादी अभिव्यक्ति के सुंदर निदर्शन हैं। इसके व्यक्तिवाद के स्व में सर्व सन्निहित
है।डॉ. शिवदान सिंह चौहान इस संबंध में अत्यंत मार्मिक शब्दों में लिखते हैं -''कवि का मैं प्रत्येक प्रबुद्ध भारतवासी का मैं था,इस कारण कवि ने विषयगत दृष्टि से अपनी सूक्ष्मातिसूक्ष्म अनुभूतियों को व्यक्त करने के लिए जो लाक्षणिक भाषा और अप्रस्तुत रचना शैली अपनाई,उसके संकेत और प्रतीक हर व्यक्ति के लिए सहज प्रेषणीय बन सके।''छायावादी कवियों की भावनाएं यदि उनके विशिष्ट वैयक्तिक दु:खों के रोने-धोने तक ही सीमित रहती,उ प्रयोगवाद के कवियों में हम सर्वप्रथम तारसप्तक के कवियों को गिनते हैं और इसके प्रवर्तक कवि सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय ठहरते हैं। जैसा कि हम पहले कह आए हैं कि तारसप्तक 1943 ई. में प्रकाशित हुआ। इसमें सातकवियों को शामिल किए जाने के कारण इसका नाम तारसप्तक रखा गया। इन कवियों को अज्ञेय ने पथ के राही कहा। ये किसी मंजिल पर पहुंचे हुए नहीं हैं,बल्कि अभी पथ के अन्वेषक
हैं। इसी संदर्भ में अज्ञेय ने प्रयोग शब्द का प्रयोग किया, जहां से प्रयोगवाद की उत्पत्ति स्वीकार की जाती है। इसके बाद 1951 ई. में दूसरा,1959 ई में तीसरा और 1979 में चौथा तारसप्तक प्रकाशित हुए। जिनका संपादन स्वयं अज्ञेय ने किया है। आइए,सर्वप्रथम हम इन चारों तारसप्तकों के कवियों के नामों से परिचित हो लें। 1. तारसप्तक के कवि: अज्ञेय,भारतभूषण अग्रवाल,मुक्तिबोध,प्रभाकर माचवे,गिरिजाकुमार माथुर,नेमिचंद्र जैन,रामविलास शर्मा। 2. दूसरे तारसप्तक के कवि: भवानीप्रसाद मिश्र, शंकुत माथुर, नरेश मेहत्ता,रघुवीर
सहाय,शमशेर बहादुर सिंह,हरिनारायण व्यास,धर्मवीर भारती। 3. तीसरे तारसप्तक के कवि: प्रयागनारायण त्रिपाठी, कीर्ति चौधरी, मदन व हिन्दी साहित्य के इतिहास में लगभग 8वीं शताब्दी से लेकर 14वीं शताब्दी के मध्य तक के काल को आदिकाल कहा जाता है। इस युग को यह नाम डॉ॰ हजारी प्रसाद द्विवेदी से मिला है। इसकी समय सीमा संवत 1000 से संवत 1400 तक स्वीकार की। उन्होंने इस नामकरण के पीछे यह तर्क दिया कि आदिकाल प्रारंभ का सूचक ना होकर परंपरा के विकास का सूचक है तथा इसमें वीरता पूर्ण, धार्मिक, सांस्कृतिक, शृंगारिक, भक्ति परक तथा मनोरंजनात्मक कृतियों का भी समावेश है। Also Read : 50+ Hindi Sahitya Prashnottari (हिंदी साहित्य से महत्वपूर्ण प्रश्न) प्रगतिवादी कवि और उनकी रचनाएँ Aadikal Ke Kavi Aur Unki Rachnayen:-आदिकाल के प्रमुख कवि और उनकी रचनाएं प्रकार हैं।
ये भी जाने :- हिन्दी के कवियों के उपनामनई कविता के प्रमुख कवि एवं रचनाएं आदिकाल से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्नप्रश्न आदिकाल का प्रथम कवि कौन है? उत्तर- महर्षि वाल्मीकि प्रश्न हिंदी साहित्य के आदिकाल के आरंभिक काल नाम से अभिहित किया? उत्तर- मिश्र बंधु ने प्रश्न आचार्य रामचंद्र शुक्ल कृत हिंदी साहित्य का इतिहास का प्रकाशन किस वर्ष हुआ? उत्तर- 1929 प्रश्न आदिकाल में चरित काव्य सर्वाधिक किस साहित्य में रचे गए? उत्तर- जैन साहित्य प्रश्न आदिकाल के रचनाकार कौन है? उत्तर- डॉ॰ हजारी प्रसाद द्विवेदी Related Articles :
For Latest Update Please join Our Social media Handle आदिकाल के प्रमुख कवि कौन है?स्वयंभू, पुष्पदन्त, धनपाल आदि उस समय के प्रख्यात कवि हैं।
आदिकाल के प्रथम कवि कौन है?आदिकाल के प्रथम कवि महर्षि वाल्मीकि थे। और उन्होंने रामायण ग्रंथ की रचना की थी। आदिकाल के प्रथम कवि होने के कारण उनको आदिकवि कहा जाता है।
आदिकाल के लेखक कौन है?आदिकालीन रचना एवं रचनाकार सूची. आदिकाल की प्रमुख रचना कौन सी है *?इस युग की अन्य मुख्य रचनाएँ हैं- खुमान रासो, आल्ह-खण्ड, जयचंद्र-प्रकाश, जय मयंक, जस चन्द्रिका, राठौड़री ख्यात तथा रणमल्लछंद, परमाल रासो, खुसरो की पहेलियाँ और विद्यापति की पदावली। अंतिम दो रचनाएँ और वीर-गाथा-काल की स्फुट रचनाओं के अन्तर्गत आती हैं।
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