आत्मत्राण कविता का मूल भाव क्या है? - aatmatraan kavita ka mool bhaav kya hai?

आत्मत्राण कविता का मूल भाव क्या है? - aatmatraan kavita ka mool bhaav kya hai?

Atamtran Class 10 | Hindi Chapter 9 Atamtran, Explanation, Question Answer

आत्मत्राण CBSE Class 10 Hindi Lesson summary with a detailed explanation of the lesson ‘Atamtran’ along with meanings of difficult words.

Given here is the complete explanation of the lesson, along with a summary and all the exercises, Question and Answers given at the back of the lesson

कक्षा 10   हिंदी पाठ 9   आत्मत्राण (कविता)

कवि परिचय

कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर
जन्म – 6 मई 1861 ( बंगाल )
मृत्यु – 1941

  • See Video Explanation of Chapter 9 Atamtran
  • आत्मत्राण पाठ प्रवेश
  • आत्मत्राण पाठ की व्याख्या
  • आत्मत्राण पाठ सार
  • आत्मत्राण प्रश्न अभ्यास

आत्मत्राण पाठ प्रवेश

यदि कोई तैरना सीखना चाहता है तो कोई उसको पानी में उतरने में मदद तो कर सकता है ,उसको डूबने का डर ना रहे इसलिए उसके पास भी बना रह सकता है परन्तु जब तैरना सिखने वाला पानी में हाथ – पैर चलायेगा तभी वो तैराक बनेगा। परीक्षा जाते समय व्यक्ति बड़ों के आशीर्वाद की कामना करता ही है ,और बड़े आशीर्वाद देते भी हैं लेकिन परीक्षा तो उसे खुद ही देनी होती है। इसी तरह जब दो पहलवान कुश्ती लड़ते हैं तब उनका उत्साह तो सभी लोग बढ़ाते हैं जिससे उनका मनोबल अर्थात हौंसला बढ़ता है। मगर कुश्ती तो उन्हें खुद ही लड़नी पड़ती है।

Atamtran Class 10 Video Explanation

 

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  प्रस्तुत पाठ में कविगुरु मानते हैं कि प्रभु में सबकुछ संभव करने की ताकत है फिर भी वह बिलकुल नहीं चाहते की वही सब कुछ करे। कवि कामना करते हैं कि किसी भी आपदा या विपदा में ,किसी भी परेशानी का हल निकालने का संघर्ष वो स्वयं करे ,प्रभु को कुछ भी न करना पड़े। फिर आखिर वो अपने प्रभु से चाहते क्या हैं।

आत्मत्राण कविता का मूल भाव क्या है? - aatmatraan kavita ka mool bhaav kya hai?
            
आत्मत्राण कविता का मूल भाव क्या है? - aatmatraan kavita ka mool bhaav kya hai?

रवीन्द्रनाथ ठाकुर की प्रस्तुत कविता का बंगला से हिंदी अनुवाद श्रद्धेय आचार्य हरी प्रसाद द्विवेदी ने किया है। द्विवेदी जी का हिंदी साहित्य को समृद्ध बनाने में बहुत बड़ा योगदान है। यह अनुवाद बताता है कि अनुवाद कैसे मूल रचना की ‘आत्मा ‘ को ज्यों का त्यों  बनाये रखने में सक्ष्म है।

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आत्मत्राण पाठ सार

इस कविता के कवि ‘कविगुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर ‘ हैं। इस कविता का बंगला से हिंदी रूपांतरण आचार्य हरी प्रसाद द्विवेदी जी ने किया है। इस कविता में कविगुरु ईश्वर से अपने दुःख दर्द कम न करने को कह रहे है। वे उनसे दुःख दर्दों को झेलने की शक्ति मांग रहे हैं। कविगुरु ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं कि किसी भी  परिस्थिति में मेरे मन में आपके प्रति संदेह न हो। कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं कि हे प्रभु ! दुःख और कष्टों से मुझे बचा कर रखो में तुमसे ऐसी कोई भी प्रार्थना नहीं कर रहा हूँ। बल्कि मैं तो सिर्फ तुमसे ये चाहता हूँ कि तुम मुझे उन दुःख तकलीफों को झेलने की शक्ति दो। उन कष्टों के समय में मैं कभी ना डरूँ और उनका सामना करूँ। मुझमें इतना आत्मविश्वास भर दो कि मैं हर कष्ट पर जीत हासिल कर सकूँ। मेरे कष्टों के भार को भले ही कम ना करो और न ही मुझे तसल्ली दो। आपसे केवल इतनी  प्रार्थना है की मेरे अंदर निर्भयता भरपूर डाल दें ताकि मैं सारी परेशानियों का डट कर सामना कर सकूँ। सुख के दिनों में भी मैं आपको एक क्षण के लिए भी ना भूलूँ अर्थात हर क्षण आपको याद करता रहूं। दुःख से भरी रात में भी अगर कोई मेरी मदद न करे तो भी मेरे प्रभु मेरे मन में आपके प्रति कोई संदेह न हो इतनी मुझे शक्ति देना।

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आत्मत्राण की पाठ व्याख्या

विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं
केवल इतना हो (करुणामय)

आत्मत्राण कविता का मूल भाव क्या है? - aatmatraan kavita ka mool bhaav kya hai?

कभी न विपदा में पाऊँ भय।
दुःख-ताप से व्यथित चित्त को न दो सांत्वना नहीं सही

पर इतना होवे (करुणामय)
दुख को मैं कर सकूँ सदा जय।
कोई कहीं सहायक न मिले
तो अपना बल पौरुष न हिले;
हानि उठानी पड़े जगत् में लाभ अगर वंचना रही
तो भी मन में ना मानूँ क्षय।।

शब्दार्थ – Difficult Word Meaning

विपदा – विपत्ति ,मुसीबत
करुणामय – दूसरों पर दया करने वाला
दुःख-ताप – कष्ट की पीड़ा

आत्मत्राण कविता का मूल भाव क्या है? - aatmatraan kavita ka mool bhaav kya hai?

व्यथित – दुःखी
चित्त – मन
सांत्वना – दिलासा
सहायक – मददगार
पौरुष – पराक्रम
वंचना – वंचित
क्षय – नाश

  प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श भाग -2 ‘से ली गई हैं। इसके कवि ‘कविगुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर ‘ हैं। इन पंक्तियों का बंगला से हिंदी रूपांतरण आचार्य हरी प्रसाद द्विवेदी जी ने किया है। इन पंक्तियों में कविगुरु ईश्वर से अपने दुःख दर्द कम न करने को कह रहे है वे उन दुःख दर्दों को झेलने की शक्ति मांग रहे हैं।

व्याख्या – इन पंक्तियों में कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं कि हे प्रभु ! दुःख और कष्टों से मुझे बचा कर रखो,मैं तुमसे ऐसी कोई भी प्रार्थना नहीं कर रहा हूँ। बल्कि मैं तो सिर्फ तुमसे ये चाहता हूँ कि तुम मुझे उन दुःख तकलीफों को झेलने की शक्ति दो। कष्टों के समय में मैं कभी ना डरूँ और उनका सामना करूँ। दुःख की पीड़ा से दुःखी मेरे मन को आप हौंसला मत दो परन्तु हे प्रभु ! मुझमें इतना आत्मविश्वास भर दो कि मैं हर कष्ट पर जीत हासिल कर सकूँ। कष्टों में कहीं कोई सहायता करने वाला भी ना मिले तो कोई बात नहीं परन्तु वैसी स्थिति में मेरा पराक्रम कम नहीं होना चाहिए। मुझे अगर इस संसार में हानि भी उठानी पड़े और लाभ से हमेशा वंचित ही रहना पड़े तो भी कोई बात नहीं पर मेरे मन की शक्ति का कभी नाश नहीं होना चाहिए अर्थात मेरा मन हर परिस्थिति में आत्मविश्वास से भरा रहना चाहिए।

आत्मत्राण कविता का मूल भाव क्या है? - aatmatraan kavita ka mool bhaav kya hai?

मेरा त्राण करो अनुदिन तुम यह मेरी प्रार्थना नहीं
बस इतना होवे (करुणायम)
तरने की हो शक्ति अनामय।
मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नहीं सही।
केवल इतना रखना अनुनय-
वहन कर सकूँ इसको निर्भय।
नत शिर होकर सुख के दिन में
तव मुख पहचानूँ छिन-छिन में।
दुःख-रात्रि में करे वंचना मेरी जिस दिन निखिल मही
उस दिन ऐसा हो करुणामय,
तुम पर करूँ नहीं कुछ संशय।।

त्राण – भय निवारण ,बचाव
अनुदिन  – प्रतिदिन
तरने – पार करना

आत्मत्राण कविता का मूल भाव क्या है? - aatmatraan kavita ka mool bhaav kya hai?

अनामय – रोग रहित
लघु – कम
सांत्वना – हौसला ,तसली देना
अनुनय- – विनय
वहन  – सामना करना
निर्भय – बिना डर के
नत शिर – सिर झुका कर
दुःख-रात्रि  – दुःख से भरी रात
निखिल – सम्पूर्ण
संशय – संदेह

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श भाग -2 ‘से ली गई हैं। इसके कवि ‘कविगुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर ‘ हैं। इन पंक्तियों का बंगला से हिंदी रूपांतरण आचार्य हरी प्रसाद द्विवेदी जी ने किया है। इन पंक्तियों में कविगुरु ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं कि किसी भी  परिस्थिति में मेरे मन में आपके प्रति संदेह न हो।

व्याख्या – इन पंक्तियों में कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं कि हे प्रभु ! मेरी आपसे यह प्रार्थना नहीं है कि आप प्रतिदिन मुझे भय से दूर रखें। आप केवल मुझे  निरोग अर्थात  स्वस्थ रखें ताकि मैं अपनी शक्ति के सहारे इस संसार रूपी सागर को पार  कर  सकूँ। मेरे कष्टों के भार को भले ही कम ना करो और न ही मुझे तसली दो। आपसे केवल इतनी  प्रार्थना है की मेरे अंदर निर्भयता भरपूर डाल दें ताकि मैं सारी परेशानियों का डट कर सामना कर सकूँ। सुख के दिनों में भी मैं आपको एक क्षण के लिए भी ना भूलूँ अर्थात हर क्षण आपको याद करता रहूं। दुःख से भरी रात में भी अगर कोई मेरी मदद न करे तो भी मेरे प्रभु मेरे मन में आपके प्रति कोई संदेह न हो इतनी मुझे शक्ति देना।

आत्मत्राण कविता का मूल भाव क्या है? - aatmatraan kavita ka mool bhaav kya hai?
          
आत्मत्राण कविता का मूल भाव क्या है? - aatmatraan kavita ka mool bhaav kya hai?

आत्मत्राण प्रश्न अभ्यास (महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर )

(क ) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए
प्रश्न 1 – कवि किससे और क्या प्रार्थना कर रहा है ?

उत्तर – कवि करुणामय ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है की उसे भले ही दुःख दर्द और कष्ट दे परन्तु उन सबसे लड़ने की शक्ति भी दे। चाहे दुःख हो या ख़ुशी वो ईश्वर को कभी न भूले। उसके मन में कभी ईश्वर के प्रति संदेह न हो इतनी शक्ति की माँग कवि कर रहा है।

प्रश्न 2 – ‘विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं’- कवि इस पंक्ति के द्वारा क्या कहना चाहता है?

उत्तर – कवि इस पंक्ति में ईश्वर से प्रार्थना करता है कि मैं ये नहीं कहता की मुझ पर कोई विपदा न आये और कोई दुःख न आये। बस मैं ये चाहता हूँ कि मुझे उन विपदाओं और कष्टों को झेलने की शक्ति या ताकत देना।

प्रश्न 3 – कवि सहायक के न मिलने पर क्या प्रार्थना करता है ?

उत्तर – कवि सहायक के न मिलने पर  प्रार्थना करता है कि उसके पुरुषार्थ में कोई कमी न आये ,यदि संसार में उसे कोई हानि हो और कोई लाभ भी ना हो तो भी उसके मन की शक्ति का नाश नहीं होना चाहिए।

प्रश्न 4 – अंत में कवि क्या अनुनय करता है ?

उत्तर – अंत में कवि अनुनय करता है कि चाहे सब लोग उसे धोखा दें , उसके बुरे समय में कोई उसका साथ ना दे और सब दुःख दर्द उसे घेर लें फिर भी उसका विश्वास ईश्वर पर कभी कम नहीं होगा। ईश्वर के प्रति उसकी आस्था कभी कम नहीं होगी।

प्रश्न 5 – ‘आत्मत्राण ‘ शीर्षक की सार्थकता कविता के सन्दर्भ में स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – ‘आत्मत्राण’ का अर्थ है आत्मा का त्राण अर्थात आत्मा या मन के भय का निवारण या भय की मुक्ति। कवि ईश्वर से यह प्रार्थना नहीं कर रहा है कि उसे दुःख ना मिले बल्कि वह मिले हुए दुःखों को सहने और झेलने की शक्ति ईश्वर से मांग रहा है। अतः यह शीर्षक पूर्णतया सार्थक है।

प्रश्न 6 – अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना के अतिरिक्त आप और क्या – क्या प्रयास करते हैं ? लिखिए।

उत्तर – अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना के अतिरिक्त परिश्रम ,संघर्ष ,सहनशीलता और कठिनाई से परेशानिओं का सामना करना जैसे प्रयास आवश्यक हैं। धैर्य पूर्वक हम इन प्रयासों के जरिये अपनी इच्छाओं को पूरा करने का प्रयास करते हैं।

प्रश्न 7 – क्या कवि की यह प्रार्थना आपको अन्य प्रार्थना गीतों से अलग लगती है। यदि हाँ, तो कैसे ?

उत्तर – यह प्रार्थना गीत अन्य प्रार्थना गीतों से भिन्न है क्योंकि अन्य गीतों में ईश्वर से दुःख दर्द ,कष्टों को दूर करने और सुख शांति की कामना की जाती है। परन्तु इस गीत में ईश्वर से दुःख दर्द और कष्टों को दूर करने के लिए नहीं बल्कि उन दुःख दर्द और कष्टों को सहने की और झेलने की शक्ति देने के लिए कहा है।

(ख ) निम्नलिखित अंशों के भाव स्पष्ट कीजिए –
(1) नत शिर होकर सुख के दिन में
तव मुख पहचानूँ छिन-छिन में।

उत्तर – इन पंक्तियों में कवि  कह रहे हैं कि सुख के दिनों में भी ईश्वर को एक क्षण के लिए भी ना भूलूँ अर्थात हर क्षण ईश्वर को याद करता रहूं। मेरे प्रभु मेरे मन में आपके प्रति कोई संदेह न हो इतनी मुझे शक्ति देना।

(2) हानि उठानी पड़े जगत् में लाभ अगर वंचना रही

उत्तर – इन पंक्तियों में कवि  कह रहे हैं कि उन्हें अगर इस संसार में हानि भी उठानी पड़े और लाभ से हमेशा वंचित ही रहना पड़े तो भी कोई बात नहीं पर उनके मन की शक्ति का कभी नाश नहीं होना चाहिए अर्थात उनका मन हर परिस्थिति में आत्मविश्वास से भरा रहना चाहिए।

(3) तरने की हो शक्ति अनामय।
मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नहीं सही।

उत्तर – इन पंक्तियों में कवि  कह रहे हैं कि हे प्रभु ! आप केवल मुझे निरोग अर्थात  स्वस्थ रखें ताकि मैं अपनी शक्ति के सहारे इस संसार रूपी सागर को पार कर सकूँ। मेरे कष्टों के भार को भले ही कम ना करो और न ही मुझे तसल्ली  दो। आपसे केवल इतनी प्रार्थना है की मेरे अंदर निर्भयता भरपूर डाल दें ताकि मैं सारी परेशानियों का डट कर सामना कर सकूँ।

 
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CBSE Class 10 Hindi Lessons

Chapter 1 Saakhi Chapter 2 Meera ke Pad Chapter 3 Dohe
Chapter 4 Manushyata Chapter 5 Parvat Pravesh Mein Pavas Chapter 6 Madhur Madhur Mere Deepak Jal
Chapter 7 TOP Chapter 8 Kar Chale Hum Fida Chapter 9 Atamtran
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आत्मत्राण कविता शीर्षक का मूल भाव क्या है?

उत्तर – 'आत्मत्राण' का अर्थ है आत्मा का त्राण अर्थात आत्मा या मन के भय का निवारण या भय की मुक्ति। कवि ईश्वर से यह प्रार्थना नहीं कर रहा है कि उसे दुःख ना मिले बल्कि वह मिले हुए दुःखों को सहने और झेलने की शक्ति ईश्वर से मांग रहा है। अतः यह शीर्षक पूर्णतया सार्थक है।

आत्मत्राण कविता हमें क्या संदेश देती है?

आत्मत्राण कविता में कवि मनुष्य को भगवान के प्रति विश्वास बनाए रखने का संदेश देता है। वह प्रभु से प्रार्थना करता है कि चाहे कितना कठिन समय हो या कितनी विपदाएँ जीवन में हों। परन्तु हमारी आस्था भगवान पर बनी रहनी चाहिए। उनके अनुसार जीवन में थोड़ा-सा दुख आते ही, मनुष्य का भगवान पर से विश्वास हट जाता है।

आत्मत्राण का मतलब क्या होता है?

आत्मत्राण का अर्थ है आत्मा का त्राण अर्थात आत्मा या मन के भय का निवारण, उससे मुक्ति। कवि चाहता है कि जीवन में आने वाले दुखों को वह निर्भय होकर सहन करे। दुख न मिले ऐसी प्रार्थना वह नहीं करता बल्कि मिले हुए दुखों को सहने, उसे झेलने की शाक्ति के लिए प्रार्थना करता है। इसलिए यह शीर्षक पूर्णतया सार्थक है।

आत्मत्राण कविता में कवि ने क्या प्रेरणा दी है?

आत्मत्राण. कविता से हमें प्रेरणा मिलती है कि हम अपने काम एवं दायित्वों को पूरी निष्ठा एवं ईमानदारी के साथ पूर्ण करें। हम अपने कार्यों के लिए ईश्वर पर निर्भर न रहें, बल्कि स्वयं के अन्दर ऐसी शक्ति एवं क्षमता विकसित कर लें, जिससे विषम परिस्थितियों एवं कठिनाइयों से जूझने की शक्ति हमारे अन्दर मौजूद हो।