विद्रोह जहाँ भी सफल हुआ वहाँ हिन्दुओं की भावनाओं का आदर करते हुए मुसलमानों ने गौ-हत्या बन्द कर दी थी। हिन्दुओं ने भी बड़े सम्मान से विद्रोह के बाद बहादुरशाह द्वितीय को अपना बादशाह मान लिया था। Show इस प्रकार विद्रोह ने हिन्दू-मुस्लिम एकता प्रमुख थी। प्रश्न 3. 1857 की क्रांति के दो महत्वपूर्ण परिणाम बताइए। उत्तर-(i) 1857 ई. की क्रांति में हिन्दू-मुसलमान कंधे से कंधा मिलाकर अंग्रेजों के विरुद्ध लड़े। (ii) 1857 ई. की क्रांति ने कंपनी शाषन का अंत करके कुछ वर्षों बाद स्वराज्य-प्राप्ति के लिए प्रयास करने की पृष्ठभूमि तैयार की। प्रश्न 4. 1857 का विद्रोह ‘जन विद्रोह’ था। कैसे ? दो कारण लिखिए। उत्तर-(i) जब अंग्रेजों द्वारा मशीनों से बना माल भारतीय बाजारों में लाया गया, तो भारतीय हस्त-उद्योग पूरी तरह से ठप्प हो गये और कारीगर भुखमरी के कगार पर आ गए। (ii) किसानों पर तरह-तरह के कर लगाये जाते थे। उन्हें कच्चा माल उगाने के लिए विवश किया गया जाता था और फिर मनमाने दामों पर उनसे यह माल ले लिया जाता था। आए दिन अनाज की कमी के कारण अकाल पड़ने लगे थे। अत: जन आन्दोलन भड़कना स्वाभाविक था। प्रश्न 5. 1857 के विद्रोह के चार प्रमुख केन्द्रों और उनको संचालित करने वाले नेताओं के नाम लिखें। उत्तर-(i) झाँसी में रानी लक्ष्मीबाई। (ii) आरा-जगदीशपुर (बिहार) में कुंँवर सिंह। (iii) लखनऊ में बेगम हजरत महल। (iv) कानपुर में नाना साहब और तात्या टोपे। प्रश्न 6. 1857 के विद्रोह के दौरान बहादुरशाह द्वितीय को भारत का सम्राट क्यों घोषित किया गया था ? उत्तर-1857 के विद्रोह के पश्चात् बहादुरशाह द्वितीय को सम्राट घोषित करने का कारण यह था कि बहादुरशाह द्वितीय मुगल वंश का अन्तिम था। उसके बादशाह के सभी अधिकार छीनने के लिए अंग्रेजों ने घोषणा कर दी थी। विद्रोह में भाग लेने के लिए वह एक प्रतिष्ठित और सही व्यक्ति था। प्रश्न 7. 1857 के विद्रोह में अवध के तालुकदार क्यों शामिल हुए? उत्तर-1857 के विद्रोह में अवध के तालुकदार के शामिल होने के कारण-1857 के विद्रोह में अवध के तालुकदार इसलिए शामिल हुए कि लार्ड डलहौजी ने 1857 में अवध का अधिग्रहण कर लिया था। इसके साथ ही वे अंग्रेजों की कूटनीति से बहुत भयभीत थे। प्रश्न 8. 1857 के विद्रोह की असफलता के दो कारण बताइए। उत्तर-1. क्रांतिकारियों में संगठन और आपसी तालमेल का अभाव था। 2. सभी क्रांतिकारियों का एक सामान्य उद्देश्य नहीं था। कोई तो अपनी पेंशन बंद होने के कारण लड़ रहा था और कोई अपना राज्य छिन जाने के कारण लड़ रहा था। प्रश्न 9. 1857 की क्रांति के लिए उत्तरदायी दो सैनिक कारण क्या थे ? उत्तर-(i) भारतीय सैनिकों को अधिक-से-अधिक उच्च सैनिक पद हवलदार तक ही दिया जाता था। चाहे वह जान हथेली पर लेकर ही क्यों न लड़े; परन्तु इस सीमा तक ही उसे उन्नति दी जाती थी। (ii) सैनिकों को एक साथ खाना पड़ता था जिससे उन्हें जातीय आघात लगता था। (iii) सैनिकों को समुद्र पार लड़ने के लिए जो भेजा जाता था, इससे वे अपने आप को धर्मभ्रष्ट मानने लगते थे तथा बाद में समाज के सामने भी अपमान सहना पड़ता था। प्रश्न 10. 1857 की क्रांति को प्रारंभ करने के लिए अंग्रेजों के द्वारा समाज सुधार के कार्य कहाँ तक उत्तरदायी थे? उत्तर-(i) बाल विवाह, सती प्रथा, पर्दा प्रथा पर रोक, विधवाओं का फिर से विवाह करवाना, लड़कियों को शिक्षित करना आदि कुछ ऐसे कार्य थे, जिनसे कट्टरपंथी हिन्दू अंग्रेजों के विरुद्ध हो गये थे। (ii) पाश्चात्य शिक्षा से मुल्ला-मौलवी और ब्राह्मण समझते थे कि उनकी पाठशालाओं और मदरसों को तोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। साथ ही उनकी धार्मिक भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। प्रश्न 11.1857 में विद्रोहियों ने महाजनों पर आक्रमण क्यों किया? किसी एक कारण का उल्लेख कीजिए। उत्तर-1857 में विद्रोहियों द्वारा महाजनों पर आक्रमण करने के कारण-1857 के विद्रोह के अन्तर्गत विद्रोहियों ने महाजनों पर आक्रमण किया, क्योंकि महाजनों ने अंग्रेजों के प्रति वफादारी दिखायी थी और क्रांति का विरोध किया था। महाजनों ने क्रांतिकारियों को आर्थिक सहायता देनी भी बन्द कर दी थी। प्रश्न 12. 1857 के विद्रोह का प्रसार कितना था ? आधुनिक शिक्षा प्राप्त भारतीयों द्वारा इसको समर्थन न देने के कारणों का उल्लेख कीजिए। उत्तर-1857 का विद्रोह बैरकपुर, मेरठ, झाँसी, बरेली, लखनऊ, आगरा, नागपुर; कानपुर आदि क्षेत्रों में हुआ। इसके प्रति आधुनिक शिक्षित भारतीयों ने उपेक्षा का रुख अपनाया, क्योंकि वे भारत की प्रगति के लिए उस समय ब्रिटिश शासन ने उपयोगी समझते थे। वे मानते थे कि ब्रिटिश शासन के बिना भारत में आधुनिक विज्ञान तथा तकनीकी एवं अंग्रेजी शिक्षा का प्रसार नहीं हो सकता। उनके मन में यह गलत विश्वास था कि अंग्रेज आधुनिकीकरण के क्षेत्र में सहायता करेंगे, जबकि 1857 के विद्रोह के नेता, जमींदार, पुराने शासक तथा अन्य सामन्ती तत्व देश को पीछे धकेल देंगे। उन्हें तो केवल अपने हित-साधन की चिंता थी, उन्हें देश के हित की चिंता न थी। प्रश्न 13. 1857 के विद्रोह के सामान्य कारण क्या थे ? उत्तर-(1) अंग्रेजों ने निजी स्वार्थ के लिए भारत का आर्थिक शोषण किया तथा विभिन्न तरीकों से भारत से धन अपने देश ले गये। (2) भारत में ब्रिटिश काल में प्रशासन सभी स्तरों पर भ्रष्टाचार फैला हुआ था। सरकार जन कल्याण में कोई रुचि नहीं लेती थी। (3) वेलेजली तथा डलहौजी की साम्राज्यवादी और विस्तारवादी नीतियों ने भारत के कई राजाओं को अपनी चपेट में ले लिया था। अतः सभी रुष्ट थे। (4) चर्बी वाले कारतूसों को प्रयोग में न लाने की बात पर सैनिक अड़ गये और 10 मार्च, 1857 ई. को समय से पहले ही विद्रोह की आग भड़क उठी। प्रश्न 14. चर्बी के कारतूस की व्याख्या कीजिए। उत्तर-कारतूसों में लगा चिकना पदार्थ सूअर और गाय की चर्वी थी। नयी एनफील्ड बंदूकों में गोली भरने से पूर्व कारतूस को दाँत से छीलना पड़ता था। हिन्दू और मुसलमान दोनों ही क्रमशः गाय और सूअर की चर्बी से अपने-अपने धर्म पर आधात समझते थे। अत: उनका भड़कना स्वाभाविक था। प्रश्न 15. विलय नीति की विद्रोह उभारने में क्या भूमिका थी ? उत्तर-देशी राज्यों का अंग्रेजी राज्य में विलय के कारण उनकी सेना को भंग कर दिया गया। 1856 ई. में अवध के विलीनीकरण के कारण 60,000 सैनिकों को नौकरी से हटा दिया गया। अत: ऐसी स्थिति में बेकार शासक विद्रोह फैलाने और लोगों को भड़काने में भरपूर सहायता कर रहे थे। प्रश्न 16. मेरठ से जत्था दिल्ली या लाल किले के फाटक पर कब पहुँचा ? बहादुरशाह से मुलाकात का विद्रोह पर क्या प्रभाव पड़ा? (V. Imp.) उत्तर-मेरठ छावनी से सिपाहियों का जत्था दिल्ली या लाल किले फाटक पर 11 मई, 1857 को पहुँचा। किले में घुसे इन सिपाहियों की माँग थी कि बादशाह बहादुरशाह उन्हें अपना आशीर्वाद दे। विवश सम्राट के पास उनकी माँग मानने के अतिरिक्त कोई चारा न था। इस तरह इस विद्रोह ने एक वैधता प्राप्त कर ली क्योंकि अब इसे मुगल बादशाह के नाम पर चलाया जा सकता था। प्रश्न 17. लखनऊ, कानपुर और बरेली जैसे शहरों में साहूकार विद्रोहियों के निशाने पर क्यों थे? उत्तर-लखनऊ, कानपुर और बरेली जैसे बड़े शहरों में साहूकार और अमीर भी विद्रोहियों के गुस्से का शिकार बनने लगे। किसान इन लोगों को न केवल अपना उत्पीड़क बल्कि अंग्रेजों का पिट्ठू मानते थे। ज्यादातर जगह अमीरों के घर-बार लूटकर तबाह कर दिए गए। प्रश्न 18. मई-जून 1857 में अंग्रेजों के पास विद्रोहियों का जवाब था या नहीं ? उनकी स्थिति का प्रारंभ में ब्रिटिश शासन पर क्या प्रभाव पड़ा ? लगभग 30 शब्दों में समझाइए। उत्तर-मई-जून 1857 के महीनों में अंग्रेजों के पास विद्रोहियों की कार्रवाइयों का कोई जवाब नहीं था। अंग्रेज अपनी जिंदगी और घर-बार बचाने में फंसे हुए थे। इस संदर्भ में ब्रिटिश शासन “ताश के किले की तरह बिखर गया।” प्रश्न 19. विद्रोह काल में भारतीय भाषाओं में छपने वाले अखबारों में क्या दोष था? उत्तर-विद्रोह के समय देश की भाषाओं (और अंग्रेजी में भी) के अखबारों में छपी खबरें अकसर पत्रकार के पूर्वाग्रह या सोच से प्रभावित होती थी। प्रश्न 20. हेनरी हार्डिंग का नाम 1857 के गदर में किस प्रकार से इतिहासकारों ने जोड़ दिया है? उत्तर-गवर्नर जनरल के तौर पर हार्डिंग ने सैनिक साजो-समान के आधुनिकीकरण का प्रयास किया। उसने जिन एनफील्ड राइफलों का इस्तेमाल शुरू किया उनमें चिकने कारतूसों का इस्तेमाल होता था जिनके खिलाफ सिपाहियों ने विद्रोह किया था। प्रश्न 21. विद्रोह के दौरान अवध के विद्रोही ग्रामीणों से निपटने के लिए अंग्रेजों को किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा ? उल्लेख कीजिए। उत्तर-एक लेख के अनुसार अवध के विद्रोही ग्रामीण अंग्रेजों की पकड़ से बिल्कुल बाहर हैं। पल में बिखर जाते हैं, पल में फिर जुट जाते हैं। शासकीय अधिकारियों का कहना है कि इन गाँव वालों की संख्या बहुत है और उनके पास बाकायदा बंदूकें हैं। प्रश्न 22. लक्ष्मीबाई कौन थीं? संक्षिप्त परिचय दीजिए। [B.Exam.2009A] उत्तर-वह झाँसी (उत्तर प्रदेश) की रानी थीं। अपनी सन्तान न होने पर उसने एक बच्चे को दत्तक पुत्र के रूप में गोद ले लिया था तथा झाँसी का उत्तराधिकारी घोषित किया था। लेकिन अंग्रेजों ने उसके उत्तराधिकार घोषणा के अधिकार को मान्यता नहीं दी थी। इसी कारण वह 1857 के विद्रोह के दिनों में अंग्रेजी सेनाओं से जूझ पड़ी। उसने नाना सहिब के विश्वसनीय सेनापति तात्या टोपे और अफगान सरदारों की मदद से ग्वालियर पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। अन्त में कालपी के स्थान पर वह अंग्रेजों से संघर्ष करती हुई वीरगति को प्राप्त हुई। उसकी वीरता सभी के लिए प्रेरणा मानी जाती है। प्रश्न 23. तांत्या टोपे कौन थे ? उनका संक्षिप्त परिचय दीजिए। उत्तर-तांत्या टोपे नाना साहिब की सेना का एक कुशल, अत्यधिक साहसी, परम वीर एवं विश्वसनीय सेनापति था। उसने 1857 के विद्रोह में कानपुर में अंग्रेजों के विरुद्ध कुशलता से गुरिल्ला नीति अपनाते हुए अंग्रेजी सेना की नाक में दम कर दिया था। उसने अंग्रेज जेनरल बिन्द्रहैम को बुरी तरह परास्त किया तथा झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का पूर्ण निष्ठा से सहयोग दिया। कालन्तर में सर कोलिन कैम्पवेल ने उसे हराया तथा 1858 में अंग्रेजों ने तांत्या टोपे को फाँसी की सजा दे दी। प्रश्न 24. नाना साहिब कौन थे ? उनका संक्षिप्त परिचय दीजिए। उत्तर-नाना साहिब अन्तिम मराठा पेशवा बाजीराव द्वितीय का दत्तक पुत्र था। 1857 के विद्रोहियों ने उन्हें अंग्रेजों के विरुद्ध कानपुर में विप्लव छेड़ने के लिए उकसाया था। जब कानपुर के सिपाहियों और शहर के लोगें ने नाना साहिब के समक्ष बगावत की बागडोर संभालने की प्रार्थना की तो ऐसा करने के अतिरिक्त उनके समक्ष कोई भी विकल्प नहीं था। सन् 1851 से ही (जब पेशवा बाजीराव द्वितीय की मृत्यु हो गई थी) अंग्रेजों ने नाना साहिब को न तो पेशवा माना और न ही उन्हें पेशन दी। लम्बे संघर्ष के बाद जब अंग्रेजों ने कानपुर पर अधिकार कर लिया तो नाना साहिब ने अंग्रेज सेनापति नील तथा हैवलॉक को तांत्या टोपे की मदद से पराजित कर कानपुर के किले पर पुनः अधिकार कर लिया। दिसम्बर 1857 में नई सेना के आने के बाद सर कोलिन कैम्पवेल ने पुन: नाना साहिब को पराजित किया। नाना साहिब अंग्रेजों के हाथों नहीं आये। वे नेपाल भागकर पहुँचने में कामयाब रहे। उनके प्रशंसक उनकी इस कूटनीति को उनके साहस एवं बहादुरी का ही हिस्सा मानते हैं। प्रश्न 25. कुँवर सिंह कौन थे ? उनका संक्षिप्त परिचय दीजिए। उत्तर-कुंँवर सिंह आरा (जगदीशपुर), बिहार में एक स्थानीय जमींदार थे। वह बड़े जमींदार होने के कारण लोगों में राजा के नाम से विख्यात थे। कुंँवर सिंह की उम्र बहुत थी तो भी उन्होंने आजमगढ़ तथा बनारस में अंग्रेजी फौज को पराजित किया। उन्होंने छापामार युद्ध पद्धति से अंग्रेजों के दाँत खट्टे कर दिये। उन्होंने ब्रिटिश सेनापति मार्कर को पराजित कर गंगा पार अपने प्रमुख किले जगदीशपुर पहुँचने में सफलता प्राप्त की। अप्रैल 1858 में उनकी मृत्यु हो गई। प्रश्न 26. मंगल पांडे कौन थे ? उसका संक्षिप्त परिचय दीजिए। उत्तर-मंगल पांडे (MangPandey): भारतीय इतिहास में प्रायः मंगल पांडे को 1857 के विद्रोह का प्रथम जनक, महान देशभक्त तथा क्रांतिकारी माना जाता है। वह बैरकपुर (बंगाल) की 34वीं (सैन्य) बटालियन का एक साधारण सिपाही थे। उसने अपनी छावनी में चर्बी वाले कारतूस की बात पहुँचाई तथा अंग्रेज अधिकारियों के धर्म विरोधी आदेश की अवहेलना की। सारजेन्ट मेजर हगसन के आदेशानुसार जब किसी भी भारतीय सैनिक ने पांडे को कैद नहीं किया तो उसने हगसन तथा लैफ्टिनेंट बाम को उसके घोड़े सहित ढेर कर दिया। कालान्तर में उसे कैद कर लिया गया तथा 8 अप्रैल, 1857 को फाँसी दे दी गई। उसकी वीरता एवं कुर्बानी ने कालान्तर में मेरठ सैनिक छावनी के विप्लव की भूमिका तैयार की। प्रश्न 27. शाहमल कौन थे ? उनका संक्षिप्त परिचय दीजिए। उत्तर-शाहमल (Shah Mal) : वह उत्तर प्रदेश के एक जाट (जाति के) परिवार से संबंध रखते थे। वह परिवार चौरासी गाँव (अर्थात् चारासीदस नामक क्षेत्र) में फैला हुआ था। अंग्रेजों ने इस क्षेत्र में ऊँचा लगान लगा रखा था जिसे बड़ी कठोरता से वसूला जाता था। परिणामस्वरूप वास्तविक रैयत या काश्तकार भूमि से बेदखल होकर नये जमींदारों या जोतदारों (धनाढ्य व्यापारियों तथा साहूकारों) की दया पर आश्रित होते चले जा रहे थे। शाहमल ने चौरासीदस के काश्तकारों तथा मुखियाओं (मुकद्दमों) को संगठित किया। उसने एक अंग्रेज आफिसर के बंगले पर अधिकार कर उसे “न्याय भवन” की संज्ञा दी तथा अंग्रेजों के विरुद्ध किसानों को जुलाई 1857 तक विप्लव करने की प्रेरणा दी तथा विद्रोहियों का नेतृत्व किया। जुलाई 1857 को शाहमल अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध में मारा गया। प्रश्न 28. मौलवी अहमदुल्ला शाह कौन थे ? उनका संक्षिप्त परिचय दीजिए। उत्तर-मौलवी अहमदुल्ला शाह (MaulviAhmadulla Shah) : वह 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (या विद्रोह) में उल्लेखनीय भूमिका निभाने वाले अनेक सारे प्रसिद्ध मौलवियों में से एक थे। हैदराबाद में शिक्षा प्राप्त करके वे इस्लाम के प्रचारक या उपदेशक बन गए थे। उन्होंने गाँव-गाँव जाकर अंग्रेजों के विरुद्ध जिहाद का प्रचार-प्रसार किया। 1856 में वह लखनऊ पहुँचे तो अंग्रेज सिपाहियों ने उन्हें धार्मिक उपदेश देने की अनुमति नहीं दी। 1857 में जब उन्होंने संयुक्त प्रान्त के कुछ हिस्सों में विद्रोह का नेतृत्व किया तो फैजाबाद की जेल में पकड़कर कैद कर लिया गया। चिनहट के प्रसिद्ध संघर्ष में उसने हेनरी लॉरेंस के नेतृत्व में लड़ने वाली सैन्य टुकड़ी के दाँत खट्टे किये। लोगों में वह काफी समय तक अपनी वीरता तथा सामाजिक निष्ठा एवं देश-सेवा के लिए याद किया गया। प्रश्न 29. दीवान अजीम-उल्ला खाँ कौन थे ? उनका संक्षिप्त परिचय दीजिए। उत्तर-अजीम-उल्ला खाँ (Azim Ullah Khan): 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संघर्ष में हिस्सा लेने वाले मुस्लिम देशभक्तों में अजीम उल्ला खाँ का भाग एक सितारे की तरह चमकता है। वह साहसी युवक, प्रतिभाशाली, वीर तथा कानपुर में विद्रोह का संचालन करने वाले नाना साहिब का विश्वसनीय परामर्शदाता था। विद्रोह की अधिकांश योजनाएँ उल्ला खाँ के मस्तिष्क की ही उपज थीं। प्रारंभ में वह एक यूरोपीय का बावर्ची था। उसने उसी से अंग्रेजी तथा फ्रांसीसी भाषाएँ सीखी कुछ समय बाद वह एक विद्यालय में अध्यापक नियुक्त हो गये थे। उनकी योग्यता से प्रभावित होकर नानासाहिब पेंशन देने के लिए कई वार तर्क दिये लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। उन्होंने भारत के साथ-साथ टर्की, इटली तथा मिस्र की भी यात्राएँ की थीं। उन्होंने विद्रोह के समय गुरू की तरह परामर्श दिया। उन्हें उनकी देशभक्ति तथा स्वामी के प्रति निष्ठा के लिए याद किया जाता है। लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions) प्रश्न 1. 1857 के विद्रोह की प्रमुख घटनाओं का विवेचन कीजिए। उत्तर-1. विद्रोह का आरम्भ 10 मई, 1857 ई. को दिल्ली से लगभाग 36 मील दूर मेरठ में हुआ। बाद में यह तेजी से पूरे भारत में फैल गया। शीघ्र ही उत्तर में पंजाब से लेकर दक्षिण में नर्मदा तक तथा पूर्व में बिहार से लेकर पश्चिम में राजस्थान तक एक विस्तृत क्षेत्र इसकी चपेट में आ गया। 2. मेरठ से पहले बैरकपुर में मंगल पांडे को अकेले विद्रोह करने तथा अपने दो अधिकारियों को मारने के कारण 8 अप्रैल, 1857 ई. को फाँसी दे दी गई थी। 3. 24 अप्रैल को तीसरी देशी घुड़सवार सेना के 90 सिपाहियों ने चर्बी वाले कारतूस लेने से इन्कार कर दिया। उनमें से 85 को 9 मई को बर्खास्त करके दस-दस वर्ष सश्रम कारावास की सजा दी गई और उन्हें जंजीरों में जकड़ दिया गया। इससे मेरठ में तैनात भारतीय सैनिकों में विद्रोह की आग भड़क उठी। 10 मई को उन्होंने अपने सभी कैद किये गये साथियों को छुड़ा लिया, अपने अधिकारियों को मार डाला तथा विद्रोह का झंडा खड़ा कर दिया। 4. दूसरे दिन मेरठ के सिपाही दिल्ली के सिपाहियों से जा मिले। विद्रोहियों ने अंतिम मुगल शासक बहादुर शाह को अपना नेता मान लिया। सभी भारतीय राजाओं ने भी मुगल सम्राट के प्रति अपनी वफादारी घोषित कर दी। 5. शीघ्र ही बंगाल की पूरी सेना विद्रोह में शामिल हो गई। अवध, रूहेलखंड, दोआब, मध्य भारत, बिहार का एक बहुत बड़ा भाग और पूर्वी पंजाब, इन सभी स्थानों पर ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध विद्रोह भड़क उठा। ग्वालियर के हजारों सिपाही तात्या टोपे और झाँसी की रानी के साथ हो गये। अनेक स्थानों पर किसानों, दस्ताकारों, दुकानदारों, मजदूरों आदि ने विद्रोह में कूदकर अपनी देशभक्ति का प्रमाण दिया। प्रश्न 2. 1857 में भातीय सिपाहियों के असन्तोष के कारणों का वर्णन कीजिए। उत्तर- 1. भारतीय सैनिकों को इस बात का गर्व था कि अंग्रेजों की कई युद्धों में जीत उन्हीं के कारण हुई। अत: वे इसके बदले में पदोन्नति और अच्छे वेतन की इच्छा करते थे, परन्तु अंग्रेजों से उन्हें ऐसा कुछ न मिला। अतः उनकी भावनाओं को ठेस पहुंची। 2. बंगाल की सेना में अधिकांश ब्राह्मण और ठाकुर थे। अवध के विलीनीकरण और अवध की सेना को भंग करने के बाद जनरल सर्विसेज एनलिस्ट एक्ट (General Sevices EnlistmentAct) पास किया गया। इसके अनुसार नये भर्ती होने वाले सैनिकों को भारत में कहीं भी तथा विदेशों में भी भेजा जा सकता था। ब्राह्मण समुद्र पार करने का अर्थ धर्मभ्रष्ट होना समझते थे। वे अंग्रेजों की धर्म-परिवर्तन करने की इसे चाल समझते थे। अतः हिन्दुओं में विशेषकर ब्राह्मण भड़क उठे। अक्ध के सैनिक पहले ही भड़के बैठे थे। 3. अफगान युद्ध तथा क्रीमिया युद्ध में अंग्रेजों की हार से उनके हौसले पस्त हो गये थे। अब भारतीयों को लगने लगा था कि अंग्रेजों को हराया जा सकता था। 4. साधारण लोगों की तरह सिपाहियों के मस्तिष्क पर भी यह मनोवैज्ञानिक कारक काम कर रहा था कि प्रत्येक राज्य प्रायः 100 वर्षों के बाद बदल जाता है। 1857 ई. में अंग्रेजी राज्य का प्लासी की लड़ाई के बाद (1757) से 100 वर्ष पूरे हो गए थे। अतः सिपाहियों को विश्वास था कि भारत से अंग्रेजी राज्य भी जाने वाला है। प्रश्न 3. 1857 के विद्रोह के समाजिक, धार्मिक और सैनिक कारणों का वर्णन करो। अथवा, 1857 की क्रांति के कारण क्या थे ?[B.M.2009A,B.Exam.2013(A)] अथवा, 1857 के विद्रोह का तात्कालिक कारण क्या था ? [B. Exam. 2010, 2011, 2012(A)] उत्तर- (i) सामाजिक कारण (Social Causes) : अंग्रेजों ने अनेक भातीय सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के लिए कानून बनाया। उन्होंने सती प्रथा को कानूनी अपराध घोषित कर दिया। उन्होंने विधवा पुनर्विवाह करने की कानूनी अनुमति दे दी। स्त्रियों को शिक्षित किया जाने लगा। रेलवे तथा यातायात के अन्य साधनों को बढ़ावा दिया गया। रूढ़िवादी लोग इन सब कामों को संदेह से देखते थे। उन्हें भय था कि अंग्रेज हमारे समाज को तोड़-मरोड़ कर हमारी सारी सामाजिक मान्यताओं को समाप्त कर देना चाहते हैं। संयुक्त परिवार, जाति व्यवस्था तथा सामाजिक रीति-रिवाज को वे नष्ट करके अपनी संस्कृति हम पर थोपना चाहते हैं। अत: उनके मन में विद्रोह ही चिंगारी सुलग रही थी। अंग्रेज भारतीयों को उच्च पद देने के लिए तैयार न थे। अपने जातीय अहंकार के कारण वे लोग समझते थे कि उनके क्लबों में काले लोग नहीं जा सकते। एक साथ वे एक ही रेल के डिब्बे में यात्रा नहीं कर सकते हैं। वे भारतीयों को निम्न कोटि का समझते थे। (ii) धार्मिक कारण (Religious Causes): ईसाई धर्म प्रचारक धर्म परिवर्तन करा देते थे। जेलों में ईसाई धर्म की शिक्षा का प्रबन्ध था। 1850 ई. में एक कानून बनाकर ईसाई बनने वाले व्यक्ति को अपनी पैतृक सम्पत्ति में बराबर का हिस्सा मिलना निश्चित किया गया। अंग्रेजों ने मंदिरों और मस्जिदों की भूमि पर कर लगा दिया। अतः पोडतों और मौलवियों ने रुष्ट होकर जनता में अंग्रेजों के विरुद्ध जागृति फैला दी। (iii) सैनिक कारण (Military Causes) : भारतीय एवं यूरोपियन सैनिकों में पद, वेतन, पदोन्नति आदि को लेकर भेदभाव किया जाता था। भारतीय सैनिकों के साथ बुरा व्यवहार किया जाता था और उन्हें कम महत्त्व दिया जाता था। उन पर कई प्रकार के प्रतिबन्ध थे, जैसे वं तिलक, चोटी, पगड़ी या दाढ़ी आदि नहीं रख सकते थे। सामूहिक रसोई होने के कारण भी उच्च वर्ग के (ब्राह्मण और ठाकुर) लोग निम्न वर्ग के लोगों के साथ खाने से प्रसन्न न थे। (iv) तात्कालिक कारण (Immediate Causes) : तात्कालिक कारण कारतूसों में लगी सूअर और गाय की चर्बी थी। नयी स्वफील्ड बन्दूकों में गोली भरने से पूर्व कारतूस को दाँत से छीलना पड़ता था। हिन्दू और मुसलमान दोनों ही गाय और सूअर की चर्बी को अपने-अपने धर्म के विरुद्ध समझते थे। अतः उनका भड़कना स्वाभाविक था। 26 फरवरी, 1857 ई. को बहरामपुर में 19वीं नेटिव एनफैण्ट्री ने नये कारतूस प्रयोग करने से मना कर दिया। 19 मार्च, 1857 ई. को चौंतीसवी नेटिव एनफैण्ट्री के सिपाही मंगल पांडे ने दो अंग्रेज अधिकारियों को मार डाला। बाद में उसे पकड़कर फाँसी दे दी गई। सिपाहियों का निर्णायक विद्रोह 10 मई, 1857 को मेरठ में शुरू हुआ। प्रश्न 4. 1857 के विद्रोह में बहादुरशाह द्वितीय की भूमिका तथा नेतृत्व पर चर्चा करें। उत्तर-1857 के विद्रोह का अंतिम पड़ाव दिल्ली था। इस विद्रोह को परोक्ष रूप से नेतृत्व अंतिम मुगल शासक बहादुरशाह द्वितीय (जफर) दे रहा था। वस्तुत: दिल्ली में बहादुरशाह 1857 के विद्रोह का प्रतीक बन गया। मुगल सम्राट को जिस स्वतः स्फूर्त ढंग से देश का नेता बना दिया गया, वह इस तथ्य का प्रमाण था कि मुगल सम्राट के लम्बे शासनकाल ने इस वंश को भारत की राजनीतिक एकता का प्रतीक बना दिया था। केवल इस एक कार्य द्वारा सिपाहियों ने एक सैनिक विद्रोह को एक क्रांतिकारी युद्ध में बदल दिया। यही कारण था कि पूरे देश के विद्रोही सैनिकों के कदम अपने आप दिल्ली की ओर चल पड़े और विद्रोह में भाग लेने वाले सभी भारतीय राजाओं ने मुगल सम्राट के प्रति अपनी वफादारी घोषित कर दी। बहादुरशाह द्वितीय ने अन्य सभी राजाओं को पत्र लिखे कि वे ब्रिटिश साम्राज्य से लड़ने और उनको हटाने के लिए भारतीय राज्यों का एक महासंघ स्थापित करें। कहने को तो नेतृत्व बहादुरशाह कर रहे थे; परंतु वास्तविक नियंत्रण एक सैनिक समिति के हाथों में था, जिसके प्रमुख बख्त खाँ थे। संभवत: विद्रोह की सबसे कमजोर कड़ी बहादुरशाह । द्वितीय ही थे। उनका कमजोर व्यक्तित्व, अधिक आयु तथा नेतृत्व के गुणों का अभाव से विद्रोह के प्रमुख केन्द्र में राजनीतिक दुर्बलता आ गयी जिससे इसको आघात लगा। प्रश्न 5. 1857 की क्रांति के प्रभावों का वर्णन कीजिए। [B.M.2009A, B.Exam.2012(A)], उत्तर-1857 की क्रांति के महत्त्वपूर्ण परिणाम (प्रभाव) निम्न हैं- (i) भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन का अंत हुआ तथा सत्ता इंगलैंड के ताज (crown) के हाथों में चली गई। (ii) अब प्रादेशिक विस्तार की नीति त्याग दी गई और आर्थिक शोषण की युग आरंभ हुआ। (iii) फूट डालो और शासन करो Divine and Rule की नीति अपनाई गई। 1857 की क्रांति में दिखी हिन्दू-मुस्लिम एकता को तोड़ने के प्रयास हुए। प्रश्न 6. 1857 के विद्रोह की असफलता के कारणों का संक्षिप्त उल्लेख करें। उत्तर-1857 के विद्रोह की असफलता के कारण (Causs of the failure of the revolt of 1857) : के विद्रोह में भारतीय जनता ने जी-तोड़ कर अंग्रजों का सामना किया, किन्तु कुछ कारणों से इस विद्रोह में भारतवासियों को असफलता मिली। इस विफलता के निम्न कारण थे- (1) यह विद्रोह निश्चित तिथि से पहले आरम्भ हो गया। इसकी तिथि 31 मई निर्धारित की गई थी, किंतु यह 10 मई, 1857 को शुरू हो गया। (2) यह स्वतंत्रता संग्राम सारे भारत में फैला गया, परिवहन तथा संचार के अभाव में भारतवासी इस पर पूर्ण नियंत्रण न रख सके। (3) भारतवासियों के पास अंग्रेजों के मुकाबले हथियारों का अभाव था। (4) भारत में कुछ वर्गों ने इस विद्रोह में सक्रिय भाग नहीं लिया। (5) भारत में अंग्रेजों के समान कुशल सेनापतियों का अभाव था। (6) अंग्रेजों को ब्रिटेन से यथासमय सहायता प्राप्त हो गई। (7) क्रांतिकारियों में किसी एक निश्चित योजना एवं निश्चित उद्देश्यों की कमी थी। प्रश्न 7. सिपाहियों में व्याप्त असंतोष ने किस तरह 1857 के विप्लव (जन विद्रोह) को प्रारंभ किया? उत्तर-(i) अंग्रेजों ने सिपाहियों के लिए एक कानून बनाया था जिसके अनुसार सैनिकों को लड़ने के लिए समुद्र पर भी भेजा जा सकता था, परंतु हिन्दू सैनिक समुद्र पार जाना अपने धर्म के विरुद्ध समझते थे। अत: वे अंग्रेजों से नाराज हो गये। (ii) भारतीय सैनिकों को परेड के समय बड़ी गंदी-गंदी गालियाँ दी जाती थीं। भारतीय सैनिक इस अपमान को अधिक देर तक सहन न कर सके। (iii) भारतीय सैनिक को अंग्रेज सैनिकों की अपेक्षा बहुत कम वेतन दिया जाता था। इस कारण उनमें असंतोष फैला हुआ था। (iv) भारतीय सैनकिों को अच्छे से अच्छा कार्य करने पर भी तरक्की नहीं दी जाती थी। उन्हें युद्ध के समय विशेष भत्ता भी नहीं मिलता था। (v) अंग्रेज अधिकारी भारतीय सैनिकों के सामने ही उनकी सभ्यता का मजाक उड़ाया करते थे। भारतीय सैनिक अंग्रेजों से इस अपमान का बदला लेना चाहते थे। (vi) सैनिकों को नये प्रकार के कारतूस प्रयोग करने के लिए दिये गये। इन कारतूसों में सूअर और गाय की चर्बी लगी हुई थी। बैरकपुर में कुछ भारतीय सैनिकों ने इनका प्रयोग करने से इंकार कर दिया। इन सैनिकों को बंदी बना लिया गया और उन्हें कठोर दंड दिया गया। यहीं से विद्रोह की आग अन्य स्थानों पर फैली। प्रश्न 8. बहुत सारे स्थानों पर विद्रोही सिपाहियों ने नेतृत्व संभालने के लिए पुराने शासकों से क्या आग्रह किया ? (NCERT T.B.Q.1) उत्तर-बहुत सारे स्थानों पर विद्रोही सिपाहियों ने नेतृत्व संभालने के लिए पुराने शासकों से आग्रह किया कि वे उन्हें आशीर्वाद दें और विद्रोह का नेतृत्व करें। उदाहरण के लिए 10 मई, 1857 को मेरठ छावनी में विद्रोह करने वाले सिपाही जब 11-12 मई को दिल्ली के लाल किले पहुँचे उन्होंने बिना शिष्टाचार का पालन किए हुए ही किले में घुसकर बहादुर शाह से माँग की थी कि उन्हें अपना आशीर्वाद दें। सिपाहियों से घिरे बहादुरशाह के पास उनकी बात मानने के अलावा और कोई चारा न था। इस तरह विद्रोह ने एक वैधता हासिल ली क्योंकि अब उसे मुगल बादशाह के नाम पर चलाया जा सकता था। अन्य स्थानों पर भी, छोटे पैमाने पर ही सही, इसी तरह के दृश्य घट चुके थे। कानपुर में सिपाहियों और शहर के लोगों ने पेशवा बाजीराव द्वितीय के उत्तराधिकारी नाना साहब के सामने बगावत की बागडोर संभालने के सिवा और कोई विकल्प ही नहीं छोड़ा था। झाँसी में रानी को आम जनता के दबाव में बगावत का नेतृत्व संभालना पड़ा। कुछ ऐसी ही स्थिति बिहार में आरा के स्थानीय जमींदार कुंवर सिंह की थी। अवध में नवाब वाजिद अली शाह जैसे लोकप्रिय शासक को गद्दी से हटा दिए जाने और उनके राज्य पर कब्जा कर लेने की यादें अवधवासियों के जहन में अभी भी ताजा थीं। लखनऊ में ब्रिटिश राज के ढहने की खबर पर लोगों ने नवाब के युवा बेटे बिरजिस कद्र को अपना नेता घोषित कर दिया था। प्रश्न 9. अंग्रेजों ने विद्रोह को कुचलने के लिए क्या कदम उठाए ? (NCERTT.B.Q.5) उत्तर-अंग्रेजों ने विद्रोह को कुचलने के लिए निम्न कदम उठाए : (i) उत्तर भारत को दोबारा जीतने के लिए टुकड़ियों को रवाना करने से पहले अंग्रेजों ने उपद्रव शांत करने के लिए फौजियों की आसानी के लिए कई कानून पारित कर दिए थे। (ii) मई और जून 1857 के पास किए गए कई कानूनों के द्वारा न केवल समूचे उत्तर भारत में मार्शल लॉ लागू कर दिया गया बल्कि फौजी अफसरों और यहाँ तक कि आम अंग्रेजों को भी ऐसे हिंदुस्तानियों पर मुकदमा चलाने और उनको सजा देने का अधिकार दे दिया गया जिन पर विद्रोह में शामिल होने का शक था। (iii) कानून और मुकदमे की सामान्य प्रक्रिया रद्द कर दी गई थी और यह स्पष्ट कर दिया गया था कि विद्रोह की केवल एक ही सजा हो सकती है सजा-ए-मौत। (iv) इन नए विशेष कानूनों और ब्रिटेन से मँगाई गई नयी टुकड़ियों से लैस अंग्रेज सरकार ने विद्रोह को कुचलने का काम शुरू कर दिया। विद्रोहियों की तरह वे भी दिल्ली के सांकेतिक महत्व को बखूबी समझते थे। लिहाजा, उन्होंने दोतरफा हमला बोल दिया। एक तरफ कलकत्ते (कोलकाता) से, दूसरी तरफ पंजाब से दिल्ली की तरफ कूच हुआ हालांकि पंजाब कमोबेश शांत था। (v) दिल्ली का कब्जे में लेने की अंग्रेजों की कोशिश जून 1857 में बड़े पैमाने पर शुरू हुई लेकिन यह मुहिम सितंबर के आखिर में जाकर पूरी हो पाई। दोनों तरफ से जमकर हमले किए गए और दोनों पक्ष को भारी नुकसान उठाना पड़ा। इसकी एक वजह यह था कि पूरे उत्तर भारत में विद्रोही राजधानी को बचाने के लिए दिल्ली में आ जमे थे। प्रश्न 10. उन साक्ष्यों के बारे में चर्चा कीजिए जिनसे पता चलता है कि विद्रोही योजनाबद्ध और समन्वित ढंग से काम कर रहे थे ? (NCERT T.B.Q.2) उत्तर-विद्रोह से संबंधित अनेक स्रोत हमें यह साक्ष्य देते हैं कि विद्रोही योजनाबद्ध और समन्वित ढंग से काम कर रहे थे। उदाहरण के लिए एक साक्ष्य से हमें पता चलता है कि कलकता (कोलकाता) के पास एक सैनिक शिविर में जब एक ब्राह्मण जाति के सिपाही से तथाकथित निम्न जाति के व्यक्ति ने पानी पीने के लिए लोटा माँगा तो उसने लौटा देने से मना कर दिया। उस व्यक्ति ने जो यह भली-भांति जानता था कि एनफील्ड राइफल में नए कारतूस जिन पर गाय और सूअर की चर्बी के कवर लगे होंगे उन्हें मुँह से काटकर राइफल में भरना अनिवार्य होगा, यह बात फैला दी। ब्राह्मण पंडित ने यह अफवाह तुरंत अपनी छावनी में और उस छावनी से अनेक सैनिक शिविरों में पहुँचाई। विद्रोह की खबर जैसे-जैसे एक शहर में पहुँचती गई वैसे-वैसे तारीख के हिसाब से सिलसिलेवार सिपाही हथियार उठाते गए। हर छावनी में विद्रोह का घटनाक्रम कमाबेश एक जैसा था। कई जगह शाम के समय तोप का गोला दागा गया और कहीं विद्रोह का बिगुल बजाकर संकेत दिया गया। सबसे पहले विद्रोहियों ने शस्त्रागार पर कब्जा किया और सरकारी खजाने को लूटा उसके बाद सरकारी संस्थाओं और इमारतों पर आक्रमण किए। सभी जगह पर हिंदू-मुस्लिम नेताओं ने हिंदी, उर्दू और फारसी में लोगों को हिंदू-मुस्लिम एकजुटता और फिरंगियों के विरुद्ध शत्रुता की नीति अपनाने की अपील की। बाजारों में मिलने वाले आटे में गाय और सूअर की चर्बी का चूरा मिलाने वाली अफवाह को साक्ष्य के रूप में उभारा गया लेकिन सभी जगह ये अफवाहें योजनाबद्ध और संबंधित ढंग से नहीं फैलाई गई। हाँ, प्लासी की जंग के 100 साल पूरे होते ही 23 जून, 1857 को अंग्रेजी राज्य खत्म हो जाएगा, यह भविष्यवाणी जोरों से फैलाई गई। इस बारे में अनेक साक्ष्य हमें प्रमाण देते हैं। उत्तर भारत में गाँव-गाँव में चपातियाँ बाँटने की रिपोर्ट आ रही थीं। साक्ष्यों से मालूम पड़ता है कि रात में एक आदमी आकर गाँव के चौकीदार को एक चपाती दे जाता था और उसे कहा जाता है कि पाँच और चपातियाँ बनाकर वह इसी प्रकार अगले गाँव में पहुँचाए। अनेक लोगों ने अफवाहों और भविष्यवाणियों पर यकीन किया। ऐतिहासिक स्रोतों से हमें बताया जाता है कि विद्रोह के असामान्य समय में लोगों का सामान्य जीवन साग-सब्जियों के अभाव, आसमान छुती हुई कीमतें और पानी भरने वाले लोगों ने पानी भरना छोड़ दिया। अंग्रेजी सरकार की नौकरी करने वाले अनेक अधिकारियों जैसे सहारनपुर के एक तहसीलदार ने अपने एक भारतीय ईसाई के अनुयायी सिस्टन को इसलिए विद्रोही समझ लिया क्योंकि वह अवध का रहने वाला था। स्रोत नं. 3 में हमें 1857 के दो विद्रोही शाहमल और मौलवी अहमददुल्ला शाह की भूमिकाओं की चर्चा मिलती है। निसंदेह साक्ष्यों से यह पर्याप्त जानकारी मिलती है कि विद्रोही योजना बनाकर समन्वित ढंग से कार्यरत थे लेकिन इन साक्ष्यों पर पूरा भरोसा करना ठीक नहीं। साक्ष्य लिखने वाले पूर्वाग्रह या अपनी विचारधारा और अपने स्वार्थों से प्रेरित होकर लिख रहे थे। प्रश्न 11. 1857 के घटनाक्रम को निर्धारित करने में धार्मिक विश्वासों की किस हद तक भूमिका थी? (NCERT T.B.Q.3) उत्तर-1857 के घटनाक्रम को निर्धारित करने में पर्याप्त सीमा तक धार्मिक विश्वासों की भूमिका रही थी। बैरकपुर की घटना जिसका संबंध गाय और सूअर की चर्बी लिपटे कारतूसों से था ऐसी ही एक घटना थी। जब मेरठ छावनी में अंग्रेज अधिकारियों ने भारतीय सैनिकों को मजबूर किया तो मेरठ के सिपाहियों ने सभी फिरंगी अधिकारियों को मार दिया और हिंदू और मुसलमान सभी सैनिक अपने धर्म होने से भ्रष्ट को बचाने के तर्क से दिल्ली में आ गए थे। हिंदू और मुसलमानों को एकजूट होने और फिरगियों का सफाया करने के लिए अलग-अलग (हिन्दी, उर्दू, फारसी) भाषाओं में अपीलें जारी की गई।- अनेक स्थानों पर विद्रोह का संदेश आम लोगों के माध्यम के साथ-साथ कुछ स्थानों पर धार्मिक लोगों के द्वारा भी फैलाए कि वहाँ हाथी पर सवार एक फकीर को देखा गया था जिसे सिपाही बार-बार मिलते जाते थे। लखनऊ में अवध पर कब्जे के बहुत बाद सारे धार्मिक नेता और स्वयं भू-पैगम्बर प्रचारक ब्रिटिश राज को नेस्ताबूद करने का अलख जगा रहे थे। सिपाहियों ने जगह-जगह छावनियों में कहलवाया कि यदि वे गाय और सूअर की चर्बी के कारतूसों को मुँह से लगाएंँगे तो उनकी जाति और धर्म दोनों भ्रष्ट हो जाएँगे। अंग्रेजों ने सिपाहियों को बहुत समझाया लेकिन वे टस से मस नहीं हुए। 1857 के प्रारंभ में एक अफवाह यह भी जोरों पर थी कि एक अंग्रेज सरकार ने हिंदू धर्म और जाति को नष्ट करने के लिए एक साजिश रच ली है। उन्होंने यह अफवाह भी उड़ा दी कि वाजार में मिलने वाले आटे में गाय और सूअर का चूरा मिलवा दिया है। लोगों में यह डर फैल गया कि अंग्रेज हिंदुस्तानियों को ईसाई बनाना चाहते थे। लोगों में यह बेचैनी तेजी से फैल गई। कुछ योगियों ने धार्मिक स्थानों, दरगाहों और पंचायतों के मध्य से इस भविष्वाणी पर बल दिया कि प्लासी के 100 साल पूरा होते ही अंग्रेजों का राज 23 जून, 1857 को खत्म हो जाएगा। कुछ लोग गाँव में शाम के समय चपाती बँटवाकर यह धार्मिक शक फैला रहे थे कि अंग्रेजों का शासन किसी उथल पुथल का संकेत है। प्रश्न 12. विद्रोहियों के बीच एकता स्थापित करने के लिए क्या तरीके अपनाए गए? (NCERT T.B.Q.4) उत्तर-विद्रोहियों के बीच एकता स्थापित करने के लिए निम्न तरीके अपनाए गए : (i) हिंदू और मुसलमानों को चर्बी के कारतूस, आटे में सूअर और गाय की हड्डियों का मिक्चर बनाकर, प्लासी की लड़ाई के 100 साल पूरे होते ही भारत से अंग्रेजों की वापसी और मिलकर विद्रोह में अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ने की भावना पैदा करके एकता पैदा की गई। अनेक स्थानों पर विद्रोहियों ने स्त्रियों और पुरुष दोनों का सहयोग लिया ताकि समाज में लिंग भेदभाव कम हो। (ii) हिंदू और मुसलमानों ने मिलकर मुगल सम्राट बहादुर शाह का अशीर्वाद प्राप्त किया ताकि विद्रोह का वैधता हासिल (Legal sanction) प्राप्त हो सके और मुगल बादशाह के नाम से विद्रोह को चलाया जा सके। (iii) विद्रोहियों ने मिलकर एक सामान्य शत्रु फिरंगियों का सामना किया। उन्होंने दोनों समुदायों में लोकप्रिय तीन भाषाओं हिंदी, उर्दू और फारसी में अपीलें जारी की। (iv) विद्रोहियों के नाम से जारी की गई घोषणा में मुहम्मद और महावीर, दोनों की दुहाई देते हुए जनता से इस लड़ाई में शामिल होने का आह्वान किया गया। दिलचस्प बात यह है कि आंदोलन में हिंदू और मुसलमानों के बीच खाई पैदा करने की अंग्रेजों द्वारा की गई कोशिशों के बावजूद ऐसा कोई फर्क नहीं दिखाई दिया। अंग्रेज शासन ने दिसंबर 1857 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश स्थित बरेली के हिंदुओं को मुसलमानों के खिलाफ भड़काने के लिए 50,000 रुपये खर्च किए।’ उनकी यह कोशिश नाकामयाब रही। (v) विद्रोहियों को आम लोगों के विद्रोह में शामिल करने लिए सहयोग देने को कहा। अनेक नाइयों ने बाल काटने और धोबियों ने कपड़े धोने तक बंद कर दिए जिन्हें वे अंग्रेजों के पिट्ठू मानते थे। (vi) सभी लोगों ने सूदखोरों, सौदागरों और साहूकारों को इसलिए लूटा ताकि पिछड़े और गरीब लोग उनसे अपना बदला ले सकें और विद्रोहियों की संख्या आम लोगों के विद्रोह में शामिल होने से बढ़ सके। (vii) 1857 में विद्रोहियों द्वारा जारी की गई घोषणाओं में जाति और धर्म का भेद दिए बिना समाज के सभी तबकों का आह्वान किया जाता था। बहुत सारी घोषणाएँ मुस्लिम राजकुमारों या नवाबों की तरफ से या उनके नाम पर जारी की गई थीं, परंतु उनमें भी हिन्दुओं की भावनाओं का ख्याल रखा जाता था। (viii) विद्रोहियों ने कई संचार माध्यमों का प्रयोग किया। सिपाही या उनके संदेशवाहक एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा रहे थे। विद्रोहियों ने कार्यवाही की समरूपता, एक जैसी योजना और समन्वय स्थापित किया ताकि लोगों में एकता पैदा हो। (ix) अनेक स्थानों पर सिपाही अपनी लाइनों में रात के समय पंचायतें जुटाते थे जहाँ सामूहिक रूप से कई फैसले लिए जाते थे। वे अपनी-अपनी जाति और जीवन-शैली के बारे में निर्णय लेते थे। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई को अनेक मुस्लिम और हिन्दू सिपाहियों ने और कानपुर में घोषित पेशवा नाना साहब को साहस और वीरता का प्रतीक बताया गया ताकि सभी लोग एक मंच पर आकर ब्रिटिश राज्य के खिलाफ लड़ सकें। सभी लोगों ने लार्ड विलियम बैंटिंक द्वारा किए गए सामाजिक सुधार कार्य, विदेशी शिक्षा का प्रचार, सती प्रथा का उन्मूलन, हिंदू विवाह की वैधता को ही एकता स्थापन और अंग्रेजों के विरुद्ध लोगों में विचार उत्पन्न करने के लिए एक सूत्रबद्ध किया। सिपाहियों और अंग्रेज विरोधी लोगों को अफवाहों से अधिकांश स्थानों पर लोगों को लगता था कि वे अब तक जिन चीजों की कद्र करते थे, जिनको पवित्र मानते थे -चाहे राजे-रजवाड़े हों, सामाजिक-धार्मिक रीति-रिवाज हों या भू-स्वामित्व, लगान अदायगी की प्रणाली हो-उन सबको खत्म करके एक ऐसी व्यवस्था लागू की जा रही थी जो ज्यादा हदयहीन, परायी और दमनकारी थी। (x) 1857 के विद्रोह को एक ऐसे युद्ध के रूप में पेश किया जा रहा था जिसमें हिंदुओं और मुसलमानों, दोनों का नफा-नुकसान बराबर था। इश्तहारों में अंग्रेजों से पहले के हिंदू-मुस्लिम अतीत की ओर संकेत किया जाता था और मुगल साम्राज्य के तहत विभिन्न समुदायों के सहअस्तित्व का गौरवगान किया जाता था। दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions) प्रश्न 1. 1857 के विद्रोह के आरंभ और प्रसार पर एक निबन्ध लिखिए। उत्तर-विद्रोह का आरम्भ और प्रसार (Beginning and spread of the revolt) : प्लासी के युद्ध (23 जून, 1757) को हुए लगभग 100 वर्ष बीत गये थे। कुछ विद्वानों के अनुसार 1857 का विद्रोह एक सोची-समझी योजना थी। 29 मार्च, 1857 को बैरकपुर में मंगल पांडेय नामक एक सैनिक ने गाय की चर्बी से बने कारतूसों की मुँह से काटने से स्पष्ट मना कर दिया। फलस्वरूप उसे गिरफ्तार करके 8 अप्रैल, 1857 को फांँसी दे दी गई थी। दिल्ली के विद्रोह का समाचार बड़वानल की भाँति आस-पास के प्रदेशों में फैला। दिल्ली में इस विद्रोह का नाममात्र का नेतृत्व बहादुरशाह द्वितीय ने किया। वास्तविक नेतृत्व उसके सेनापति बख्त खाँ ने किया। लखनऊ में 4 जून, 1857 को अवध की बेगम हजरत महल ने अपने नाबालिग पुत्र बिरजिस काद्र को नवाब घोषित कर बगावत कर दी। कानपुर में विद्रोह 5 जून, 1857 को प्रारंभ हुआ, जिसका नेतृत्व नाना साहब ने किया। झाँसी में रानी लक्ष्मीबाई ने ब्रिटिश सेना से भयंकर टक्कर ली। रुहेलखंड में विद्रोह का नेतृत्व अहमदुल्ला ने किया। अहमदुल्ला एक देशभक्त और सैनिक प्रतिभा का व्यक्ति था। उसने खुलकर विद्रोह का प्रचार किया लेकिन उसे पंवान के राजा जगन्नाथसिंह के भाई ने 50 हजार के लालच में धोखे से मरवा दिया। 16 नवम्बर, 1857 को नारनौल के समीप एक लड़ाई हुई, जिसमें 70 ब्रिटिश सैनिक मारे गए और 45 घायल हुए। उनका कमांडर कर्नल जीरार्ड व कैप्टन वैलेस मारे गए और क्रंजे, कनेडी और पियर्स घायल हुए। पानीपत में बूऊली कलंदर के इमाम के नेतृत्व में विद्रोह हुआ। बाद में इमाम को फाँसी दे दी गई। अंबाला ने साठवीं देशी पलटन ने भी विद्रोह किया। 1856-57 और 1857-58 की पंजाब की प्रशासकीय रिपोर्टों के अनुसार 386 व्यक्तियों को फाँसी हुई। डॉ. वी. डी. दिवेकर ने 1993 में अपने प्रसिद्ध शोध ग्रंथ ‘साउथ इंडिया इन 1857 : वार ऑफ इंडिपेंडेंस’ में इसका शोधपूर्ण विवेचन किया है। 1857 का विद्रोह न केवल उत्तर भारत में अपितु दक्षिण भारत में भी दूर तक फैला। महाराष्ट्र में लगभग 20 स्थानों पर भारतीय सैनिकों और स्थानीय व्यक्तियों ने इसकी क्रांति को प्रज्वलित किया। 10 जून, 1857 को सतारा में और 13 जुलाई को पंढरपुर में विद्रोह किया गया। सोनाजी पंत की मृत्यु हो जाने से रंगाराव पांगे ने स्थान-स्थान पर घूमकर विद्रोह भावना जगाई। 1859 में उन्हें गिरफ्तार कर अंडमान निर्वासित कर दिया गया। 1858 में गोलकुंडा क्षेत्र में विद्रोह हुआ। राजामुंदरी में 11 क्रांतिकारियों को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ षड्यंत्र में गिरफ्तार किया गया। यह विद्रोह मछलीपट्टनम और गुंटूर तक फैला। कर्नाटक में मैसूर, कारवाड़, जमाखिंडी, बीजापुर, कोप्पल, सतारा और बेलगाँव प्रमुख क्षेत्र रहे। तमिलनाडु में मद्रास (चेन्नई), चिंगलपुर, उत्तरी अरकाट, सेलम, कायंबटूर और तिरुनेलवेली विद्रोह के प्रमुख केन्द्र रहे। भारत में सुदूर दक्कन का क्षेत्र, केरल भी इस विद्रोह की चिंगारियों से दूर नहीं रहा। किपलोन, कोचीन, कालीकट इसके प्रमुख स्थान थे। 1857 को विद्रोह दक्षिण के विभिन्न स्थानों में व्याप्त था। इसमें नाना साहिब की विशेष भूमिका रही। स्थानीय विद्रोही नेताओं में प्रसिद्ध-सतारा के रंगा बापूजी गुप्ते, हैदराबाद के सोनाजी पंडित, रंगाराव पांगे, मौर वी सैयद अलाउद्दीन, कर्नाटक के भीमराव मुंडी, मद्रास के गुलाम गौस और सुल्तान बख्श, कोयम्बटूर के मुलबागल स्वामी, केरल के विजय कुदरत कुंडी मामा और मुल्ला सली कोनजी सरकार थे। संक्षेप में यह विद्रोह राष्ट्रव्यापी था। प्रश्न 2. क्या 1857 का विद्रोह सैनिक विद्रोह था ? पक्ष और विपक्ष में तर्क दीजिए। उत्तर-सिपाही विद्रोह के समर्थक यूरोपियन इतिहासकारों के नाम हैं-मार्श मैन, सीले, जॉन लारेंस आदि। उनके अनुसार सिपाही विद्रोह का एकमात्र कारण था-चर्बी वाले कारतूसों का प्रयोग। इस विद्रोह में जनसाधारण ने हिस्सा नहीं लिया। जो जमींदार, शासक आदि इस विद्रोह में शामिल थे, वे केवल अपने स्वार्थ के कारण अंग्रेजों से बदला लेना चाहते थे। इस मौके से लाभ उठाकर असंतुष्ट जमींदार, वे राजा जिनका राज्य हड़प लिया गया था या जिनकी पेंशन बंद कर दी गई थी, वे सभी विद्रोह में कूद पड़े। उपरोक्त कथन के पक्ष और विरोध संबंधी तथ्यों का विश्लेषण करना आवश्यक है 1. सिपाही विद्रोह के पक्ष में तर्क (Logic in the favour of Sepoy): (i) इस विद्रोह का प्रारम्भ सैनिक छावनी से हुआ। इसका प्रभाव भी मुख्य रूप से सैनिकों पर पड़ा। जहाँ-जहाँ। भारतीय सैनिक थे, विद्रोह की आग से वे भी भड़क उठे। केवल उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों तक ही इस विद्रोह का प्रभाव रहा। उतर भारत के कुछ देशी राजा भड़क उठे जिनकी गद्दियाँ छिन गई थीं या जिनकी पेंशने बंद हो गई थीं। अन्य राजा इससे दूर ही रहे। उत्तर भारत में पंजाब पर इसका कोई प्रभाव न पड़ा। अतः इस विद्रोह में राष्ट्रीय संग्राम का रूप नहीं देखा जा सकता। (ii) चर्बी वाले कारतूस ही इस विद्रोह का मुख्य कारण बने। हिन्दू सैनिक इसलिए भड़के, क्योंकि उन्होंने सुन रखा था कि इन कारतूसों पर जो चिकना पदार्थ लगा है, वह गाय की चर्बी है। मुसलमान सैनिक इसलिए भड़के क्योंकि उन्होंने भी सुन रखा था कि कारतूसों पर लगा चिकना पदार्थ सूअर की चर्बी थी। अत: गाय और सूअर की चर्बी से सने कारतूसों को प्रयोग में लाने से पहले दाँतों से छीलने का अर्थ था दोनों सम्प्रदायों का धर्मभ्रष्ट होना। अत: दोनों सम्प्रदायों में धार्मिक ठेस पहुंँचाने से भी सैनिक भड़के। (iii) अंग्रेजों से किसान, मजदूर और जनसाधारण तंग थे, परन्तु उन्होंने इस विद्रोह में भाग नहीं लिया। भारत को गाँवों का देश कहा जाता है, परन्तु आश्चर्य की बात है कि गाँव इस विद्रोह की तपिश से अछूते रहे। यह विद्रोह कुछ प्रसिद्ध नगरों तक ही सीमित रहा। (iv) इस विद्रोह को केवल मुट्ठी भर सैनिकों ने ही दबा दिया। सिक्खों और गोरखों ने अंग्रेजों का इस काम में साथ दिया। अगर यह जनसाधारण का विद्रोह होता तो हर नगर और हर गाँव इसकी चपेट में आ जाता। फिर अंग्रेजों के वश की बात न थी कि वे इसे दवा पाते। इसके विपरीत अंग्रेजों को ही भारत से अपना बिस्तर समेटना पड़ता। 2. सिपाही विद्रोह के विरुद्ध तर्क (Logic against the Sepoy Mutiny) : (i) इस विद्रोह में केवल सैनिक ही नहीं लड़े थे, बल्कि जनसाधारण भी लड़ा था। यह अलग बात है कि योजनाबद्ध तरीके से वे किसी एक स्थान से नहीं लड़े थे। (ii) झाँसी और दिल्ली के नागरिक सैनिकों के साथ मिलकर अपने-अपने नगर की रक्षा कर रहे थे। उन्होंने अंग्रेजी सेना को पीछे धकेल दिया। जो भी संभव सहायता दे सकते थे, उन्होंने सैनिकों को यथाशक्ति सहायता प्रदान की। (iii) इस विद्रोह में ग्रामवासी भी पीछे नहीं रहे। दिल्ली और मेरठ के बीच गाँवों के लोग सैनिकों के साथ आ मिले थे। इन किसानों का अंग्रेजों के प्रति भारी रोष था। अतः वे इस मौके को नहीं गवाना चाहते थे। हाँ, लड़ाई के मुख्य केन्द्र नगर ही थे। इसलिए लोग गाँवों की भूमिका का मूल्यांकन कम करते हैं। (iv) कई स्थानों पर सैनिकों की टुकड़ी अंग्रेजों के प्रति स्वामिभक्त बनी रही। अतः विद्रोह को पूरी तरह से सैनिक विद्रोह कहना ठीक नहीं। (v) अंग्रेजी सेना ने जब विद्रोह कुचला तो उन्होंने केवल विद्रोही सैनिकों को ही दण्डित नहीं किया, बल्कि स्त्री, पुरुष और बच्चों को भी वे रौंदते हुए आगे बढ़ रहे थे। इससे स्पष्ट होता है कि जनसाधारण ने भी विद्रोह में भाग लिया था, अन्यथा ऐसे नाजुक समय में अंग्रेज जनसाधारण को दंड देकर अपने विरुद्ध करने की भूल न करते। प्रश्न 3. “1857 ई. के विद्रोह ने लोकप्रिय विद्रोह का स्वरूप ले लिया।” उक्त कथन की समीक्षा कीजिए। अथवा, 1857 के विप्लव में भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों और व्यक्तियों के योगदान या भूमिका पर प्रकाश डालिए। उत्तर-उपरोक्त कथन पूर्णतः सत्य है कि 1857 ई. के विद्रोह ने लोकप्रिय विद्रोह का स्वरूप ले लिया था, जो निम्नलिखित तत्वों से स्पष्ट हो जायेगा- 1. इस विद्रोह में बड़े पैमाने पर विभिन्न वर्गों के लोग शामिल हुए जिनमें किसान, मजदूर, कारीगर, दुकानदार, जमींदार, सिपाही, शासक आदि प्रमुख थे। 2. किसानों और पुराने जमींदारों ने अपनी भावनाओं का खुलकर प्रदर्शन किया। किसानों, सूदखोर महाजनों ने नये जमींदारों तथा सैनिकों पर आक्रमण किये। उनके घरों, कागज-पत्रों आदि को जला दिया। किसानों को इन दोनों ने भूमि से बेदखल किया था। 3. महाजनों के बहीखातों और सूद आदि से संबंधित कागजों को क्रुद्ध किसानों ने जला दिया था। 4. कई स्थानीय नेतृत्व कर रहे लोगों के पीछे असंख्य लोग सिपाहियों की तरह लड़ने-कटने को तैयार खड़े थे। 5. जिन स्थानों पर विद्रोह नहीं भड़का था, वहाँ के लोगों की सहानुभूति भी विद्रोहियों के साथ थी। 6. उन स्थानों पर सिपाहियों का सामजिक बहिष्कार किया गया, जहाँ पर सिपाही अंग्रेजी सेना के प्रति वफादार थे। 7. अंग्रेजों ने अपना दमन चक्र केवल विद्रोही सैनिकों के विरुद्ध ही नहीं चलाया, बल्कि उन्होंने, अवध, उत्तर-पूर्वी प्रान्तों, मध्य भारत और पश्चिमी बिहार के लोगों पर भी अत्याचार किए। 8. विद्रोह की शक्ति हिन्दू-मुस्लिम एकता में निहित थी। 9. विद्रोह की सशक्ता एवं लोकप्रियता इसी बात से झलकती है, जब पूरी ब्रिटिश सत्ता काँप उठी और पूरे जोर-शोर से अपनी सारी शक्ति के साथ इसे दबाने में लग गई। 10. लोगों को खुलेआम फाँसी पर लटकाना या तोपों के मुँह के आगे बाँधकर उन्हें उड़ा देना, इस बात का प्रतीक है कि अंग्रेज लोगों में आतंक फैलाना चाहते थे। 11. लोगों ने ब्रिटिश सेना के साथ सक्रिय शत्रुता का व्यवहार किया। उसको किसी प्रकार की सहायता देने या सूचना देने से इंकार कर दिया तथा उन्हें गलत सपना देकर गुमराह किया। 12. विद्रोह दबाने के लिए अंग्रेजों ने पूरे के पूरे गाँव जला दिए तथा नगरों में रहने वाले लोगों का बड़े पैमाने पर संहार किया। 13. हिन्दू और मुसलमान विद्रोही और सिपाही एक-दूसरे का पूरा सम्मान करते थे। जैसे विद्रोह जहाँ भी शुरू हुआ वहाँ हिन्दुओं की भावनाओं को आदर करते हुए मुसलमानों ने गोहत्या बंद कर दी थी। हिन्दुओं ने भी बड़े सम्मान से बहादुरशाह द्वितीय को विद्रोह का नेता मान लिया था। प्रश्न 4. 1857 ई. के विद्रोह की मुख्य कमजोरियाँ क्या थी ? उत्तर-(i) यह विद्रोह पूरे देश को या भारतीय समाज के सभी अंगों तथा वर्गों को अपनी लपेट में नहीं ले सका। यह दक्षिणी भारत तथा पूर्वी और पश्चिमी भारत के अधिक भागों में नहीं फैल सका, क्योंकि इन क्षेत्रों में पहले ही कई विद्रोह हो चुके थे। भारतीय रजवाड़ों के अधिकांश शासक और जमींदार पक्के स्वार्थी थे। इसके विपरीत ग्वालियर के सिंधिया, इंदौर के होल्कर, हैदराबाद के निजाम, जोधपुर के राजा तथा अन्य राजपूत शासक, भोपाल के नवाब, पटियाला, नाभा और जींद के सिक्ख शासक तथा पंजाब के अन्य सिक्ख सरदार, कश्मीर के महाराजा, नेपाल के राणा आदि ने विद्रोह को कुचलने में अंग्रेजों की सक्रिय सहायता की। (ii) आधुनिक शिक्षा प्राप्त भारतीयों ने भी विद्रोहियों का साथ नहीं दिया। उनके मन में गलन विश्वास भरा था कि अंग्रेज आधुनिकीकरण के कार्य को पूरा करने में उनकी सहायता करेंगे जबकि जमींदारों, पुराने शासकों और सरदारों तथा दूसरे सामन्ती तत्वों के नेतृत्व में लड़ने वाले विद्रोही देश को पीछे ले जायेंगे। (iii) विद्रोही भाले, तलवार आदि प्राचीन हथियारों से ही लड़ रहे थे। उनका संगठन भी दोषपूर्ण था। सिपाहियों में अनुशासन की कमी थी। देश के विभिन्न भागों में हो रहे विद्रोहियों में कोई तालमेल नहीं था। किसी क्षेत्र विशेष से अंग्रेजी सत्ता को उखाड़ फेंकने के बाद उसके स्थान पर कौन-सी सत्ता स्थापित की जायेगी उन्हें मालूम नहीं था। (iv) भारतीय अभी तक आधुनिक राष्ट्रवाद से अपरिचित थे। देश प्रेम का अर्थ अपनी छोटी-सी बस्ती, क्षेत्र या अधिक से अधिक अपनी राजसत्ता से प्रेम था। (v) अंग्रेजों के पास हर प्रकार के स्रोत तथा आधुनिक अस्त्र-शस्त्रों से लैस विशाल सेना थी। अच्छे सेनापति भी थे जो हर परिस्थितियों में लड़ना जानते थे। उनके पास रेलवे तथा यातायात के अन्य साधन भी थे इसलिए विद्रोह कुचल दिया गया। ऐसे शक्तिशाली और दृढ़ निश्चयी शत्रु के आगे केवल साहस नहीं ठहर सकता था। प्रश्न 5. 1857 की क्रान्ति की असफलता के कारणों का उल्लेख कीजिए। उत्तर-असफलता के निम्नलिखित कारण थे: (i) संगठन की भावना (Lack of Organisation) : यह क्रांति सारे भारत की संगठित क्रान्ति न थी। इसमें संदेह नहीं कि क्रान्ति की चिनगारियाँ दूर-दूर तक गई थीं। फिर भी संगठन के अभाव के कारण देशव्यापी क्रान्ति नहीं हुई। भारतीयों में राष्ट्रीयता का भाव नहीं था। उत्तर-पश्चिम में अफगान शान्त रहे। अफगानिस्तान के शासक दोस्त-मुहम्मद ने संकटपूर्ण स्थिति होने पर भी उससे लाभ उठाने का प्रयास नहीं किया। सिक्खों और गोरखों ने अंग्रेजों की सहायता की। भारत के देशी राजा राजभक्त बने रहे और अंग्रेजों के साथ बने रहे। सिंधिया, होल्कर, निजाम और राजपूत राजाओं ने अंग्रेजों की सहायता की। (ii) उद्देश्य का अभाव (Lack ofAim) : क्रान्तिकारियों का कोई निश्चित उद्देश्य नहीं था। सभी शासकों और जमींदारों के निजी स्वार्थ थे, जिनके लिए वे लड़े थे। मुसलमान मुगल साम्राज्य को पुनर्जीवन देना चाहते थे जबकि हिन्दू लोग हिन्दू राज्य की स्थापना के इच्छुक थे। बहादुरशाह द्वितीय दिल्ली पर अधिकार बनाये रखना चाहता था। झाँसी को रानी अपनी झाँसी को बचाना चाहती थीं, जबकि नाना साहब अपनी पेंशन बचाने के लिए जूझ रहे थे। इस समय तक जन-साधारण राष्ट्रीयता की भावना से दूर था। (iii) योग्य नेतृत्व का अभाव (Lack of Capable Commandership) : विद्रोहियों के पास योग्य सैनिक नेतृत्व का अभाव था जबकि अंग्रेजी सेनाओं का संचालन एक ही प्रधान सेनापति के अधीन नील, हैवलाक, आट्रम, ह्यूरोज, निकल्सन और लारेन्स जैसे योग्य और अनुभवी जनरलों ने किया। क्रान्तिकारियों का प्रधान सेनापति मिर्जा मुगल (बहादुर शाह द्वितीय का पुत्र) था जिसमें किसी प्रकार की सैनिक प्रतिभा न थी। विद्रोहियों में केवल झाँसी की रानी और तात्या टोपे योग्य सेनानी थे। अवध की बेगम हजरत महल और दिल्ली की सम्राज्ञी जीनत महल भी नरेशों और जागीरदारों से तालमेल न स्थापित कर सकीं। अत: विद्रोही बिना किसी निश्चित योजना के लड़ते रहे। उनकी शक्ति बिखरी हुई थी। इसको नष्ट करने में अंग्रेजों को अधिक समय नहीं लगा। (iv) अंग्रेजों के उत्तर संसाधन (Good reasources of the Englihs) : अंग्रेजों के साधन, विद्राहियों के साधनों से अधिक उत्तम थे। उनके पास अनुशासित सेना और नवीनतम हथियार थे। उनके पास यातायात और संचार व्यवस्था थी, जबकि विद्रोहियों के पास ऐसा कुछ नहीं था। अंग्रेजों को नौसैनिक शक्ति और तोपखाना अधिक उपयोगी थे। (v) अंग्रेजों को भारतीयों द्वारा सहायता (Help to the English by the Indians) : क्रान्तिकारियों में मुख्यतः सामन्तवादी तत्व ही थे, कुछ राष्ट्रवादी तत्व साथ तो थे, परन्तु नहीं के बराबर। क्रान्तिकारियों के नेता भी प्राय: सामन्त थे। पटियाला, जींद, ग्वालियर, हैदराबाद और नेपाल के देशी राजाओं ने अंग्रेजों की बड़ी सहायता की और बड़ा सहयोग दिया। देशी राजाओं के अतिरिक्त सिक्खों और गोरखों ने भी अंग्रेजों की बड़ी सहायता की थी। (vi) अंग्रेजों की क्रूरता (Cruelty of the English) : अंग्रेजों ने भारतीयों को विद्रोह में शामिल होने से रोकने के लिए अनेक यातनाएँ दी तथा बर्बरता का प्रयोग किया। हजारों निरपराध लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। उनकी लाशों को पेड़ों पर टाँग दिया गया। घरों में और खेतों-खलिहानों में आग लगा दी गई। पंजाब का पल्टन नं. 26 को भंग कर दिया गया। बाद में दस-दस की पंक्ति बनाकर उन्हें गोली से उड़ा दिया गया। इस प्रकार की क्रूरता द्वारा अंग्रेजों ने जनता में आंतक फैला दिया। (vii) समय से पूर्व क्रान्ति फैलना (Mutiny started before the scheduled time): विद्रोह की निर्धारित तिथि 31 मई, 1857 विद्रोह का नेतृत्व करने वालों ने अपने कार्यकर्ताओं को वेश बदलकर स्थान-स्थान पर भेजा। विद्रोह के दो प्रतीक चिह्न भी तैयार किए गये। कमल विद्रोही सेना का चिह्न था और चपाती विद्रोही जनता का चिह्न था। इन चिह्नों को गाँव-गाँव और सैनिक छावनियों में घुमाया कुछ जोशीले और आक्रोश से भरे लोगों ने समय से पहले ही अंग्रेज अधिकारियों को मौत के घाट उतार दिया। बैरकपुर में मंगल पांडे इसका प्रत्यक्ष उदाहरण था। प्रश्न 6. 1857 के विद्रोह की प्रमुख उपलब्धियों का वर्णन कीजिए। (M. Imp.) उत्तर-विद्रोह के उपलब्धियाँ (Achievements of the Revolt) : 1857 का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम चाहे असफल रहा, परन्तु इसकी अनेक उपलब्धियाँ एवं परिणाम बहुत ही महत्वपूर्ण थे। यह विद्रोह व्यर्थ नहीं गया। यह अपनी उपलब्धियों के कारण ही हमारे इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाओं की श्रेणियों में आ सका। इसकी उपलब्धियाँ निम्न थीं : (i) हिन्दू-मुस्लिम एकता (Hindu-Muslim unity) : इस आन्दोलन एवं संघर्ष के दौरान हिन्दू एवं मुस्लिम न केवल साम्प्रदायिकता की संकीर्ण भावनाओं से ऊपर उठकर अपने देश के बारे में एक सामान्य मंच पर आए, बल्कि लड़े और एक साथ ही यातनायें भी सहीं। अंग्रेजों को यह एकता तनिक भी नहीं भायी। इसलिए उन्होंने शीघ्र ही अपनी ‘फूट डालो एवं शासन करो’ की नीति को और तेज कर दिया। (ii) राष्ट्रीय आंदोलन की पृष्ठभूमि (The background of National Movement) : राष्ट्रीय आन्दोलन एवं स्वराज्य की प्राप्ति के लिए संघर्ष की पृष्ठभूमि को इस विद्रोह ने तैयार किया। इसी संग्राम ने देश की पूर्ण स्वतंत्रता के जो बीज बोए उसी का फल 15 अगस्त, 1947 को प्राप्त हुआ। (iii) देशभक्ति की भावना का प्रसार (Spread of Patriotic feelings) : इस संग्राम ने भारतीय जनता के मस्तिष्क पर वीरता, त्याग एवं देशभक्तिपूर्ण संघर्ष की एक ऐसी छाप छोड़ी कि वे अब प्रान्तीय एवं क्षेत्रीयता की संकीणं भावनाओं से ऊपर उठकर धीरे-धीरे राष्ट्र के बारे में एक सच्चे नागरिक की तरह सोचने लगे। विद्रोह के नायक सारे देश के लिए प्रेरणा के स्रोत एवं घर-घर में चर्चित होने वाले नायक बन गए। यह इस आन्दोलन की एक महान उपलब्धि थी। (iv) देशी राज्यों को राहत (Relief to the Princely States) : देशी राजाओं को अंग्रेजी सरकार ने यह आश्वासन दिया कि भविष्य में उनके राज्यों को ब्रिटिश साम्राज्य का अंग नहीं बनाया जाएगा। उनका अस्तित्व स्वतन्त्र रूप से बना रहेगा। इसलिए अधिकांश देशी राजाओं ने ब्रिटिश शासन का समर्थन करना शुरू कर दिया। भारतीय शासकों को दत्तक पुत्र लेने का अधिकार दे दिया गया। इससे अनेक शासकों ने राहत की सांँस ली। (v) भारतीयों को सरकारी नौकरियों की घोषणा (Govt. Service to the Indians): सैद्धान्तिक रूप में भारतीय सर्वोच्च पदों पर धीरे-धीरे प्रगति करके जा सकते थे। सरकारी घोषणा की गई थी कि भारतीयों के साथ जाति एवं रंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा; लेकिन अंग्रजों ने अपना वायदा पूरा नहीं किया, जिससे राष्ट्रीय आन्दोलन बराबर बढ़ता गया। (vi) धार्मिक हस्तक्षेप समाप्त कर दिया गया (The religious interference ended): सैद्धान्तिक रूप से भारतीय प्रजा को पूर्ण धार्मिक स्वतन्त्रता का विश्वास दिलाया गया, लेकिन व्यावहारिक रूप से हिन्दू और मुसलमानों में धार्मिक घृणा एवं साम्प्रदायिकता को बढ़ावा दिया गया। प्रश्न 7. अवध में विद्रोह इतना व्यापक क्यों था ? किसान, ताल्लुकदार और जमींदार उसमें क्यों शामिल हुए? (NCERTT.B.Q.6) उत्तर-अवध में विद्रोह की व्यापकता के कारण : (i) लार्ड डलहौजी ने 1851 में यह निर्णय ले लिया था कि किसी न किसी बहाने से अवध को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाया जाएगा। पाँच साल बाद (1856) उसने इस रियासत को ब्रिटिश साम्राज्य का अंग धोषित कर दिया। यद्यपि अवध अंग्रेजों का मित्र राज्य था लेकिन वहाँ की जमीन और कपास की खेती के लिए बहुत उचित थी। इस इलाके को उत्तरी भारत के बड़े बाजार के रूप में विकसित किया जा सकता था। अवध के नवाब वाजिद अली शाह को यह कहते हुए गद्दी से हटाकर कलकता (कोलकाता) भेज दिया गया कि वह शासन अच्छी तरह नहीं चला रहा था। इसके अतिरिक्त उन्होंने बिना सोचे-समझे यह भी घोषित कर दिया कि नवाब अपनी जनता में लोकप्रिय नहीं था। उनके यह दोनों आरोप सत्य से कोसों दूर थे। नवाब अपनी जनता में बहुत प्रिय था। लोग उसे दिल से चाहते थे। कहते हैं कि जब अंग्रेजों ने जबरदस्ती अवध की झूठे बहाने से हथिया कर नवाब को लखनऊ से कलकता भेजा तो अवध के लोग आँखों में आँसू भरकर रोते हुए अपने नवाब को छोड़ने के लिए कानपुर तक उसके पीछे गए। मौका आने पर 1857 में अवध की जनता ने नवाब के परिवार के प्रति अपना भाव प्रकट किया। (ii) अवध को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाने से अवध की जनता को गहरी भावनात्मक चोट पहुँची थी। इस भावनात्मक उथल-पुथल को भौतिक क्षति के अहसास से और बल मिला। नवाब को हटाए जाने से दरबार और उसकी संस्कृति भी खत्म हो गई। संगीतकारों, नर्तकों कवियों, कारीगरों, बावर्चियों, नौकरों, सरकारी कर्मचारियों और बहुत सारे लोगों की रोजी-रोटी जाती रही। (iii) अवध जैसे जिन इलाकों में 1857 के दौरान प्रतिरोध बेहद सघन और लंबा चला था वहाँ लड़ाई की बागडोर असल में ताल्लुकदारों और उनके किसानों के ही हाथों में थी। बहुत सारे ताल्लुकदार अवध के नवाब के प्रति निष्ठा रखते थे। इसलिए वे अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए लखनऊ जाकर बेगम हजरत महल (नवाब की पत्नी) के खेमे में शामिल हो गए। उनमें से कुछ तो बेगम की पराजय के बाद भी उनके साथ डटे रहे। (iv) किसानों का असंतोष अब फौजी बैरकों में भी पहुँचने लगा था क्योंकि बहुत सारे किसान अवध के गाँवों से ही भर्ती किए गए थे। दशकों से सिपाही कम वेतन और वक्त पर छुट्टी न मिलने के कारण असंतुष्ट थे। 1850 के दशक तक आते-आते उनके असंतोष के कई नए कारण पैदा हो चुके थे। (v) 1857 के जनविद्रोह से पहले के सालों में सिपाहियों के अपने गोरे अफसरों के साथ रिश्ते काफी बदल चुके थे। 1820 के दशक के अंग्रेज अफसर सिपाहियों के साथ दोस्ताना ताल्लुकात रखने पर अच्छा खासा जोर देते थे। वे उनकी मौजमस्ती में शामिल होते थे; उनके साथ मल्ल युद्ध करते थे, उनके साथ तलवारबाजी करते थे और उनके साथ शिकार पर जाते थे और यहाँ के रीजि-रिवाजों व संस्कृति से वाकिफ थे। उनमें अफसर की कड़क और अभिभावक का स्नेह, दोनों निहित थे। (vi) 1840 के दशक में स्थिति बदलने लगी। अफसरों में श्रेष्ठता का भाव पैदा होने लगा और वे सिपाहियों को कमतर नस्ल का मानने लगे। वे उनकी भावनाओं की जरा-सी भी फिक्र नहीं करते थे। गाली-गलौज और शारीरिक हिंसा सामान्य बात बन गई। सिपाहियों व अफसरों के बीच फासला बढ़ता गया। भरोसे की जगह संदेह ने ले ली। चिकनाई युक्त कारतूसों की घटना इसका एक अच्छा उदाहरण थी। प्रश्न 8. अवध में विद्रोह में किसान, ताल्लुकदार और जमींदार क्यों शामिल हुए ? उत्तर-अवध में भिन्न प्रकार की पीड़ाओं जैसे राजसत्ता का नवाब से छीना जाना, उसके राज्य भू-भाग का छीना जाना, नवाब और उसके परिवारजनों के लिए प्रतिष्ठा, प्रभाव और सम्मान के विरुद्ध था। ताल्लुकदारों से भू-भाग और भू-संपदाएँ छीन ली गईं तथा अनेक जमींदारों की जमीनें नीलाम कर दी गई। किसानों से भारी भू-राजस्व कठोरता से वसूल किया गया। बड़ी संख्या में अवध के नवाब के सैनिकों को नौकरी से अलग कर दिया गया। इन तमाम पीड़ा उत्पन्न करने वाली उथल-पुथलों और घटनाओं ने अनेक नवाबों, अवध के ताल्लुकदारों जमींदारों और सिपाहियों का परस्पर जोड़ दिया। वे फिरंगी राज के आगमन को विभिन्न अर्थों में एक प्यारी दुनिया की समाप्ति के रूप से देखने लसे थे। वे सभी चीजें उनकी आँखों के सामने देखते ही देखते बिखर रही थीं जो लोगों के लिए बहुत मूल्यवान थीं तथा जिन्हें वे प्यार करते थे। 1857 के विद्रोह के शुरू होने के बाद ताल्लुकदारों की जागीरें, उनके किले, पैतृक भू-संपदाएँ और जिस सत्ता का स्वाद वे कई पीढ़ियों से चखते आ रहे थे वे सब अंग्रेजी राज ने उनसे छीन लिया। जो पहले ताल्लुकदारों के पास हथियारबंद सिपाही होते थे वह अवध के अधिग्रहण के तुरंत बाद ताल्लुकदारों से सेनाएँ छीन ली गईं और उनके दुर्ग ध्वस्त कर दिए गए। 1856 में अंग्रेजों ने अवध में एकमुश्त बंदोबस्त के नाम से भू-राजस्व व्यवस्था लागू कर दी। यह बंदोबस्त इस मान्यता पर आधारित था कि ताल्लुकदार सरकार और रैयतों के बीच माध्यम थे जिनके पास जमीन का मालिकाना हक (Ownership) नहीं था। अंग्रेज कहते थे कि ताल्लुकदारों को हटाकर वे जमीन असली मालिकों के हाथ में सौंप देंगे जिससे किसानों के शोषण में कमी आएगी। जो सरकार को राजस्व वसूली के बाद मिलता है उसकी कुल रकम में बढ़ोतरी होगी। वस्तुतः ऐसा नहीं हुआ। हाँ, कम्पनी के भू-राजस्व में वृद्धि जरूर हुई, उस बढ़ी हुई रकम का बोझ किसानों के कंधों पर ही पड़ा। यह बोझ कई स्थानों पर पहले भू-राजस्व के तुलना में 30 प्रतिशत अधिक था। पहले किसानों और ताल्लुकादारों में सामाजिक जान-पहचान और संबंध होते थे, बुरे समय में वे किसानों की हर तरह मदद करते थे। अंग्रेजों के काल में वह भाईचारा और सामाजिक संपर्क समाप्त हो गए। किसानों को अब उम्मीद नहीं रही कि शादी या सामाजिक रीति-रिवाज निभाने के लिए अथवा तीज-त्यौहारों पर वह ताल्लुकदारों से बड़ी आसानी से कर्ज ले सकते थे। अंग्रेज उन्हें बिल्कुल नहीं देंगे। किसानों के रोष ताल्लुकदारों के साथ-साथ सैनिकों की छावनियों में भी पहुँच गया क्योंकि सेना में जो थे गाँव के कृषि परिवारों से ही भर्ती किए गए थे। अवध के सिपाहियों को यूरोपीय सिपाहियों की तुलना में कम वेतन और समय पर उनकी इच्छानुसार छुट्टी नहीं मिलती थीं। इससे सिपाही बड़े असंतुष्ट थे। 1857 के विद्रोह से पहले अवध के सिपाहियों के अफसरों के साथ काफी अच्छे संबंध न थे लेकिन अब वे अवध के मूल निवासी सिपाहियों से घृणा करने लगे, वे स्वयं को उनसे श्रेष्ठ मानने लगे, वे प्रायः उनसे अभद्र भाषा में बातें किया करते थे, दोनों के मध्य फासला बढ़ गया और भरोसे का स्थान संदेह ने ले लिया। चिकनाई वाले कारतूसों ने धार्मिक भावना को ठेस पहुँचाई। यही कारण था कि किसान, उनके रिश्तेश्दार, वर्षों से हमदर्दी रखने वाले ताल्लुकदार और जमींदारों ने अवध क्षेत्र में भड़के 1857 के विद्रोह में हिस्सा लिया। प्रश्न 9. विद्रोही क्या चाहते थे ? विभिन्न सामाजिक समूहों की दृष्टि से उनमें कितना फर्क था ? (NCERTT.B. Q.7) उत्तर-1857 के विद्रोह में विभिन्न वर्गों एवं सामाजिक समूहों ने भाग लिया था। उनके निहित स्वार्थ, उद्देश्य, प्रेरणातत्व अलग-अलग थे इसलिए वे अलग-अलग चाहत रखते थे। विभिन्न सामाजिक समूहों की दृष्टि से उनमें पर्याप्त अंतर भी था। इन दोनों पहलुओं पर हम निम्न तरह से विचार व्यक्त कर सकते हैं : (i) सैनिक : (क) 1857 के विद्रोह को शुरू करने वाले विभिन्न सैनिक छावनियों के सिपाही थे। सिपाही अपने धर्म और भावनाओं की रक्षा चाहते थे और इसलिए उन्होंने चर्बी वाले कारतूसों का प्रयोग करने से मना कर दिया। (ख) सिपाही चाहते थे उन्हें यूरोपीय सिपाहियों की तरह अच्छा भोजन, अच्छी वर्दी, पर्याप्त वेतन, सुविधाएँ और यथासम्भव इच्छानुसार अवकाश मिले। उन्होंने हिंदू धर्म और इस्लाम धर्म को अंग्रेजों की भ्रष्ट करने की चाल को विफल करना चाहा। वे अंग्रेजों की सत्ता को विदेशी सत्ता समझते थे और उनमें मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर की पुन:सत्ता स्थापना की चाह थी। (ग) शासक वर्गों में मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर, झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, कानपुर के भूतपूर्व मराठा पेशवा बाजीराव द्वितीय के उत्तराधिकारी नाना साहब, राजा, बड़े जागीरदार, आरा (बिहार) के कुँवरसिंह, अनेक ताल्लुकदार, आदिवासियों के मुख्यिा, जाट नेता शाहमल आदि अपने-अपने राज्य और जागीरें आदि प्राप्त करना चाहते थे। वे यह भी चाहते थे कि कम्पनी उनकी सामाजिक-धार्मिक परम्पराओं, प्रतिष्ठा, अधिकार आदि का पूरा सम्मान करे। (ii) किसान, जमींदार, ताल्लुकदार, जोतदार आदि समाज के सभी वर्गों के लोग भू-राजस्व कम कराना चाहते थे। अपनी जमीन पर अधिकतम, स्वेच्छा से स्थानीय लोगों में ताल्लुक और जोतदार भू-व्यवस्था और लगान आदि की वसूली में उदारता चाहते थे। किसान भूमि से बेदखली पसंद नहीं करते थे। वे चाहते थे कि सरकार, जमींदार या मध्यस्थ और जोतदार भूमि सुधारों में रुचि लें, कृषि उत्पादों का उचित मूल्य मिले, बाजारों में विपणन सुविधाएँ हों, ऋण की या तो उचित व्यवस्था हो या स्थानीय साहूकारों और ऋणदाताओं पर सरकार नियंत्रण रखे, ब्याज की दर कम हो और प्राकृतिक विपत्तियों के दिनों में न केवल लगान की रकम में कमी हो अपितु उन्हें सरकारी सहायता, खाने-पीने का सामान, महामारियों के समय बैल आदि यदि मर जाएँ तो उन्हें खरीदने के लिए तकावी या दीर्घ अवधि के ऋण कम ब्याज पर उदारतापूर्वक दिए जाएँ। जमींदार चाहते थे कि पुरानी जमीनें उनसे न छीनी जाएँ तथा उन्हें न्यायालय या कचहरियों में व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट मिले, क्योंकि कहचरी के चक्कर लगाना वे अपनी तौहीन (अपमान) समझते थे। ताल्लुकेदार अपनी भूसंपदा पर अपने अधिकार को चाहते थे और वे जोतदारों को जमींदारों की तरह बहुत ज्यादा पसंद नहीं करते थे। दूसरी ओर जोतदार रैयतों पर मनमाने ढंग से नियंत्रण चाहते थे और वे जमींदारी नीलामी के समय ऊँची बोली लगाना अपना अधिकार मानते थे। (iii) सामान्य लोग, व्यापारी और साहूकार : सामान्य लोग अपने पैतृक व्यवसायों को करते हुए अपनी धार्मिक, सामाजिक और शिक्षा संबंधी व्यवस्थाओं में अंग्रेजों के हस्तक्षेप को पसंद नहीं करते थे। व्यापारी और सौदागरों की तरह अपने हित के लिए समान चुंगी, भाड़े और स्वतंत्र रूप से व्यापार करने की सुरक्षा और परम्परागत लेन-देन के ढंग से किसी भी तरह के हस्तक्षेप नहीं करते थे। धनाढ्य व्यापारी, सूदखोर और साहूकार कानूनों और न्यायालय को अपने हितों के अनुकूल मुड़वाना चाहते थे या अपने पक्ष में ही देखना चाहते थे। अंग्रेजों ने विद्रोह के लिए क्या कदम उठाए?अंग्रेज़ों ने विद्रोह को कुचलने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए
कानून और मुकदमे की सामान्य प्रक्रिया रद्द कर दी गई थी और यह स्पष्ट कर दिया गया था कि विद्रोही की केवल एक सजा | हो सकती है सजा-ए-मौत।। उत्तर भारत को दोबारा जीतने के लिए सेना की कई टुकड़ियों को रवाना करने से पहले अंग्रेजों ने उपद्रव शांत करने के लिए।
अंग्रेजों ने सन 18 सो 57 के विद्रोह को कुचलने के लिए क्या कदम उठाए?40 साल के कर्नल जॉन फिनिस ने जब इन सिपाहियों को रोकने की कोशिश की तो उनके सिर पर गोली मार दी गई, रविवार और सोमवार को कई लोगों की जान गई, मरने वालों में जॉन पहले थे. बाद में सिपाही दिल्ली के लिए रवाना हो गए.
विद्रोहियों के बीच एकता स्थापित करने के लिए क्या तरीके अपनाए?विद्रोहियों के बीच एकता स्थापित करने के लिए क्या तरीके अपनाए गए? । 1. गाय और सूअर की चर्बी के कारतूस, आटे में सूअर और गाय की हड्डियों का चूरा, प्लासी की लड़ाई के 100 साल पूरे होते ही भारत से अंग्रेजों की वापसी जैसी खबरों ने हिंदू-मुसलमानों की धार्मिक भावनाओं को समान रूप से उत्तेजित करके उन्हें एकजुट किया।
अंग्रेजों के खिलाफ सबसे बड़ा विद्रोह कब हुआ?1857 का भारतीय विद्रोह भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के खिलाफ एक व्यापक लेकिन असफल विद्रोह था जिसने ब्रिटिश राज की ओर से एक संप्रभु शक्ति के रूप में कार्य किया।
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