आषाढ़ का पहला दिन -1 Show जीवन की आपाधापी, रोज़मर्रा की भागदौड़ और सुविधाओं की बाधादौड़ में मनुष्य तिथियों-तारीख़ों को याद करने के लिए भी मोबाइल का स्क्रीन ऑन करता है। गनीमत है कि स्मार्ट फोन के चेहरे पर मुस्कान की तरह तारीख़, समय, दिन आदि ज़रूरत की बातें पुती हुई होती हैं। इस तरह मोबाइल हमारी दैनंदिन जीवन की श्वांस प्रश्वांस बन गया है। किंतु इस पर भी हम भी हम ही हैं। अपनी ट्रस्ट व्यस्तताओं के चलते हम इसी मोबाइल को कहीं रखकर भूल जाते
हैं। भूल जाने के उस क्षण में हमारी हालत देखने लायक होती है... बेचैन, बदहवास, लुटे पीते, असहाय, निरुपाय, निराधार, उन्मत्त, आवेशित, आक्रोशित और उद्वेलित यहां से वहां चकराते रहते हैं। हमारी चिड़चिड़ाहट उन पर उतरती है जो हमारे अभिन्न और अधीन सहायक होते हैं। अजब दृश्य होता है कि विस्मृतियों का सारा ठीकरा स्मृतियों पर टूटता है। यहां कालिदास की विरहिन और कबीर की विरहिन में अंतर है। ज्ञानवादी सन्त कबीर की विरहिन है आत्मा या अस्मिता और पिया है वह जो निरंजन है और उस लोक में रहता है। जो भी हो ,कबीर भी मेघ, बादल, बदली, घटा को बराबर याद करते हैं। आचार्य क्षितिमोहन सेन ने कबीर के जिन पदों को संग्रहित किया था, उन्हें कविवर रवींद्रनाथ टैगोर ने अंग्रेजी में अनुवाद कर विश्व के समक्ष प्रस्तुत किया है। उन्हीं के घराने के आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने अपनी पुस्तक 'कबीर' में उन दोनों के चयन को कबीरवाणी के रूप में प्रस्तुत किया। कबीर बानी के पद 87 (1-71), पृ. 283 में कबीर ने कहा है.. उपर्युक्त तीनों पदों में कबीर ने 'आषाढ़' का नाम नहीं लिया। किन्तु घटा का उठना, घटा का गहराना, श्याम घटा उर छाव का बीच में आना कोई कम महत्वपूर्ण नहीं है। इससे कबीर का पहला अनुभव आभासित होता है। यानी तपन हरने की अपरिमित संभावना से भरा पहला दिन उन्हें भी बहुत आकर्षित करता था। उनके पश्चातवर्ती सूरदास ने
भी संकेत से ही काम लिया। भ्रमर-गीत में उनके उपालम्भ और उलाहने राधा और गोपिकाओं की पीठ से झांकते हुए कई रूपों में उभरकर आये हैं। जब-जब राग मलार (या मल्हार) महाकवि सूरदास ने गाया, उन्होंने घन, बदराऊ, बदरा, कारी घटा, जलधर, के नाम से बादल या मेघ को याद किया, आषाढ़ के पहले बादल से प्रारम्भ होनेवाली पावस-ऋतु को याद किया है। और तुलसीदास ने भी स्पष्ट रूप से आषाढ़ का वर्णन नहीं किया। किन्तु उनके कथन से अनुमान लगाया जा सकता है कि वर्षा ऋतु के आगमन
का अर्थ स्पष्टतः पहले ही मास आषाढ़ के पहले दिन की ही गणना हो रही है। क्रमशः२ आषाढ़ का पहला दिन कविता का लेखक कौन है?आषाढ़ का एक दिन सन १९५८ में प्रकाशित नाटककार मोहन राकेश द्वारा रचित एक हिंदी नाटक है। इसे कभी-कभी हिंदी नाटक के आधुनिक युग का प्रथम नाटक कहा जाता है। १९५९ में इसे वर्ष का सर्वश्रेष्ठ नाटक होने के लिए संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया और कईं प्रसिद्ध निर्देशक इसे मंच पर ला चुकें हैं।
आषाढ़ का एक दिन नाटक का नायक कौन है?नाटक के प्रमुख पुरूष पात्र हैं-कालिदास, विलोम, मातुल और निक्षेप और प्रमुख नारी पात्र हैं मल्लिका, अम्बिका, प्रियंगुमंजरी आदि। दन्तुल, रंगिणी, संगिणी, अनुस्वार और अनुनासिक आदि गौण पात्र हैं। आचार्य वररूचि और गुप्त-वंश सम्राट सूच्य पात्र हैं। कालिदास दुर्बल चरित्र का व्यक्ति है।
आषाढ़ का पहला दिन कौन सा है?इस कविता में मानसून के शुरु होने पर एक किसान की खुशी का वर्णन किया गया है। आषाढ़ हिंदी कैलेंडर का एक महीना होता है और इस महीने के आसपास मानसून की शुरुआत होती है। जब मानसून आता है तो हवा जोरों से चलती है जिससे झाड़ झंखार गिर जाते हैं। बादल ऐसे गरजते हैं जैसे आपके सिर के ऊपर ही गर्जना कर रहे हों।
आषाढ़ के महीने की पहली बूंद की प्रतीक्षा कौन करता है?(ग) कवि ने किसान की तुलना चातक पक्षी से की है क्योंकि जैसे चातक पक्षी स्वाति नक्षत्र की बूंद ही पीता है अन्यथा प्यासा रह जाता है, उसी प्रकार किसान अपनी धरती की प्यास बुझाने के लिए वर्षा की प्रतिक्षा करता है।
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