Show
व्यंजन किसे कहते हैंजो वर्ण दूसरों की सहायता से बोले जाते हैं व्यंजन कहलाते हैं अथवा जब प्राण वायु कंठ व मुख्य अवयवो से टकराती हुई बाहर निकलती है तो जो दुनिया उत्पन्न होती है उसे व्यंजन कहते हैं जैसे -क, ख, ग आदि प्रत्येक व्यंजन का उच्चारण स्वर की सहायता से होता है इनकी संख्या 33 है कसे ह तक व्यंजन के भेद-व्यंजन के तीन भेद होते हैं 1. स्पर्श(Mutes) 2. अंतस्थ(Semi-Vowels) 3. ऊष्म(Sibilants) 4. संयुक्त व्यंजन 1. स्पर्श व्यंजनइसके निम्नलिखित 5 वर्ग है और प्रत्येक वर्ग में 5 व्यंजन है इनका नाम प्रथम वर्ण के अनुरूप रखा गया है क- वर्ग क ख ग घ च- वर्ग च छ ज झ ट- वर्ग ट ठ ड ढ ण त-वर्ग त थ द ध न प-वर्ग प फ ब भ म 2. अन्तः स्थ:यह निम्नलिखित चार व्यंजन है य ,र ,ल ,व 3. उष्म:यह निम्नलिखित चार व्यंजन है श, ष ,स ,ह 4. संयुक्त व्यंजनयह निम्नलिखित चार होते हैं क्ष, त्र, ज्ञ, श्र श्री भोलानाथ तिवारी के अनुसार: वह ध्वनि जिसके उच्चारण में हवा आबाध से नहीं निकलने पड़ती है या तो इसे पूर्ण अवरुद्ध होकर फिर आगे बढ़ना पड़ता है या फिर संकीर्ण मार्ग से घर्षण खाते हुए निकलना पड़ता है या मध्य रेखा से हटकर एक या दोनों पार्श्वों से निकलना पड़ता है या किसी भाग को कम्पित करते हुए निकलना पड़ता है इस प्रकार वायु मार्ग में पूर्ण या अपूर्ण अवरोध उपस्थिति होता है हिंदी में 5 वर्ग क, च,ट, त,प व्यंजन ध्वनियां है व्यंजनों का वर्गीकरणव्यंजन ध्वनियों का वर्गीकरण के आधारों पर किया जा सकता है 1. उच्चारण स्थान के आधार पर 2. उच्चारण प्ररयत्न के आधार पर 3. प्राणत्व के आधार पर उच्चारण स्थान के आधार पर उच्चारण स्थान के आधार पर व्यंजन दो प्रकार के होते हैंसघोष व अघोष (I) सघोष सघोष व्यंजन है, जिनमें व्यंजन का उच्चारण उस समय तक समाप्त नहीं होता, जब तक जिह्वा उस स्थान तक पहुचती हैं जहां से व्यंजन का उच्चारण होता है इसके दो भेद हैं –पूर्ण सघोष व अपूर्ण सघोष.. या प्रत्येक वर्ग का तृतीय ,चतुर्थ ,पंचम वर्ग सघोष वर्ण कहलाते हैं जैसे-ग, घ उच्चारण स्थान की दृष्टि से व्यंजन ध्वनियाँके निम्नांकित भेद हैं-(अ) द्वायोष्ठय इन अक्षरों के उच्चारण में दोनों ओष्ठों का प्रयोग होता है- प,फ, ब ,भ, म, वतथा उ, ऊ (आ) दंतयोष्ठय इन वर्णो का उच्चारण में , ऊपर के दांत व नीचे के होंठ का प्रयोग किया जाता है – व ,फ (इ) दन्त्य जिन व्यंजनों के उच्चारण में जिव्हा को दांतो पर लगाना होता है उन्हें दंत कहते हैं जैसे त वर्ग ,ल,स (ई) कंठय कंठ से बोले जाने वाले वर्णो को कंठ कहते हैं जैसे- अ, आ, क वर्ग,ह । (उ) तालव्य जिन वर्णों के उच्चारण में जिह्वा तालु को स्पर्श करती है उन्हें तालव्य कहते हैं जैसे- इ, ई,च वर्ग, र,ष (ऊ) मूर्धन्य जिन वर्णों का उच्चारण जिव्हा को मूर्द्धा पर लगाने से होता है उन्हें मूर्धन्य कहते हैं (ए) जिह्वमूलीय जिन वर्णों के उच्चारण में जिह्वा के मूल का स्पर्श होता है उन्हें जिह्वमूलीय कहते हैं (II) अघोष व्यंजन अघोष व्यंजन वह व्यंजन है जिन वर्णों के उच्चारण में नाद का प्रयोग नहीं किया जाता है अर्थात वायु को निकलने में कोई प्रत्यन नहीं करना पड़ता है। या प्रत्येक वर्ग का प्रथम ,द्वितीय वर्ण अघोष कहलाता है जैसे-क, ख, च,छ 2. उच्चारण प्रयत्न के आधार पर व्यंजनI. स्पर्श व्यंजन जिन व्यंजनों के उच्चारण में मुख्य द्वार को बंद करके इस प्रकार खोलते हैं कि हवा उच्चारण स्थानों को स्पष्ट मात्र करती रहें ।स्पर्श व्यंजन कहलाते हैं जैसे- क, ख, ग,घ,ट, ठ,ड, ढ, त,थ,द,ध II. स्पर्श संघर्षी व्यंजन इस पर संघर्षी व्यंजनों के उच्चारण में हवा उच्चारण स्थानों रगडती चलती है जैसे- च, छ, ज, झ III. संघर्षी व्यंजन इन व्यंजनों के उच्चारण में हवा उच्चारण स्थानों से इतना अधिक रगड़ जाती है की चीत्कार की धुन होती है जैसे- ख, ग,ज,फ,ष,स,और ह IV. नासिक्य व्यंजन(अनुनासिक व्यंजन) म, दन, न, ण, इह क्योंकि इनके उच्चारण में हवा नासिका विवर से निकलती है V. पार्श्विक व्यंजन ल पार्श्विक व्यंजन है क्योंकि इसे उच्चारित करने में जिह्वाग्र का मसूड़े का स्पर्श होता है VI. प्रकम्पित व्यंजन(लुण्ठित व्यंजन) या र प्रकम्पित व्यंजन कहलाता है क्योंकि इसे कहने में जिह्वानाक मसूड़े के पास अंदर से आते हुए हवा के वेग के कारण दो तीन बार कंपित होती है VII. उत्क्षिप्त व्यंजन( द्विगुण व्यंजन) ड़, ढ़ उत्क्षिप्त व्यंजन कहलाते हैं क्योंकि इन्हें उच्चारित करते समय जिह्वा नाक को ताल उस से सटाकर फिर झटके के साथ नीचे फेंका जाता है VIII. अर्द्ध स्वर व्यंजन य और व अर्ध स्वर व्यंजन कहलाते हैं क्योंकि य को उच्चारित करने में जीवा का ऊपरी भाग कठोर तालु के पास आता है और व को उच्चारित करने में दोनों ओष्ठ पास आते हैं जैसे- आई- आयी हुआ- हुवा कौआ-कौवा blackboradप्राणत्व के आधार परवायु वेग के आधार पर(श्वास वायु की मात्रा के रूप में) I. अल्पप्राण(Non-aspirated) प्रत्येक वर्ग का प्रथम, तृतीय और पंचम व्यंजन अल्पप्राण व्यंजन होते हैं II. महाप्राण(Aspirated) प्रत्येक वर्ग का द्वितीय और चतुर्थ वर्ण जैसे- ख, घ, छ, झ आदि इसको भी पढ़े : स्वर किसे कहते है: हिंदी में स्वर के प्रकार-Hindi Me Swar Kise v Kitne Prakar Hote Hai उगता सूरज जिधर सामने: दिशाओ का ज्ञान-Knowledge of Direction Primary School 6 Days Prayer List – मिशन प्रेरणा के अंतर्गत सरकारी विद्यालय में होने वाली छह प्रार्थनाएं हमारे सोशल मीडिया हैंडल से आज ही जुड़ जाए हमारे youtube चैनल https://www.youtube.com/c/BasicShikshaBestShiksha हमारे फेसबुक पेज हमारे फेसबुक ग्रुप हमारे टेलीग्राम ग्रुप https://t.me/basicshikshabestshiksha हमारे watsapp ग्रुप Post navigationवर्ग किसे कहते हैं यह कितने प्रकार के होते हैं?वर्ग के गुण. वर्ग की चारों भुजाएं समान होती हैं।. चारों कोण समकोण होते हैं।. वर्ग के दोनों विकर्ण सामान होते हैं।. दोनों विकर्ण एक दूसरे को समकोण पर समद्विभाजित करते हैं।. आमने सामने की भुजाएं बराबर और समांतर होती हैं।. वर्ग एक चक्रीय चतुर्भुज होता हैं।. वर्ग एक आयत भी होता है. वर्ग एक समांतर चतुर्भुज भी होता है. कितने वर्ग होते हैं?वर्ग ( Varg ) की चारों भुजाएं समान होती हैं। वर्ग के चारों कोण समकोण अर्थात 90 डिग्री के होते हैं। वर्ग के दोनों विकर्ण समान होते हैं। वर्ग के दोनों विकर्ण एक दूसरे को समकोण पर समद्विभाजित करते हैं अर्थात एक – दूसरे को समकोण पर काटते हैं।
वर्ग का सूत्र क्या होता है?वर्ग का क्षेत्रफल = भुजा x भुजा = a x a = a2
अगर वर्ग की भुजा पता हो तो भुजा का गुणा भुजा से कर के वर्ग का क्षेत्रफल निकाल सकते हैं.
वर्ग कौन से होते हैं?जब किसी संख्या को स्वयं उसी से गुणा किया जाए तो उससे प्राप्त संख्या उस संख्या का वर्ग कहलाती है। जब किसी संख्या को स्वयं उसी से तीन बार गुणा किया जाता है, तो प्राप्त संख्या उस संख्या का घन कहलाती है। सम संख्याओं के वर्ग और घन सम संख्याएँ होती हैं।
|