आर्य कौन थे और कहां से आए? - aary kaun the aur kahaan se aae?

आर्य – एक खोजपूर्ण लेख
आर्य कौन है ? क्या इन्होने भारत पर कब्जा किया ?
महर्षि दयानन्द सरस्वती ने कहा है – जो श्रेष्ठ स्वभाव, धर्मात्मा, परोपकारी, सत्य-विद्या आदि गुणयुक्त और आर्यावर्त (aryavart) देश में सब दिन से रहने वाले हैं उनको आर्य कहते है।

मनुष्य, पशु, पक्षी, वृक्ष आदि भिन्न-भिन्न जातियाँ है। जिन जीवों की उत्पत्ति एक समान होती है वे एक ही जाति के होते है। अत: मनुष्य एक जाति है। जाति रूप से तो मनुष्यों में कोई भेद नहीं होता है। परंतु गुण, कर्म, स्वभाव व व्यवहार आदि में भिन्नता होती है। कर्म के भेद से मनुष्यजाति (mankind) में दो भेद होते है।

1. आर्य

2. दस्यु – आर्य से विपरीत गुणों के दुष्ट व्यक्ति को दस्यु कहते है।

दो सगे भाई श्रेष्ठ और दस्यु (दुष्ट) हो सकते है। वेद(ved) में कहा है “विजानह्याय्यान्ये च दस्यव:” अर्थात आर्य और दस्युओं का विशेष ज्ञान रखना चाहिए। वेद मंत्रों में सत्य, अहिंसा, पवित्रता आदि गुणों को धारण करने वाले को आर्य कहा गया है। वेद कहता है “कृण्वन्तो विश्वमार्यम” अर्थात सारे संसार को आर्य बनावों। वेद में आर्य को ही पदार्थ दिये जाने का विधान किया गया है – “अहं भूमिमददामार्याय” अर्थात मैं आर्यों को यह भूमि देता हूँ।

इसका अर्थ यह हुआ कि आर्य परिश्रम से अपना कल्याण करता हुआ, परोपकार(philanthropy) वृत्ति से दूसरों को भी लाभ पहुंचवेगा । जबकि दस्यु दुष्ट स्वार्थी सब प्राणियों को हानि ही पहुंचाएगा। अत: दुष्ट को अपनी भूमि आदि संपत्ति नहीं दिये जाने चाहिए चाहे वह अपना पुत्र ही क्यों न हो।

हिन्दू शास्त्र

बाल्मीकी रामायण में समदृष्टि रखने वाले और सज्जनता से पूर्ण श्री रामचन्द्र (shri ram) जी को व महाभारत श्रीकृष्ण जी को स्थान-स्थान पर आर्य कहा गया है। विदुरनीति में धार्मिक को, चाणक्यनीति में गुणीजन को, महाभारत में श्रेष्ठबुद्धि वाले को तथा गीता में वीर को ‘आर्य’ कहा गया है। www.vedicpress.com

ये श्रेष्ठ व्यक्ति किसी एक स्थान अथवा समाज में नहीं होते, अपितु वे सर्वत्र पाये जाते है। सच्चा आर्य वह है जिसके व्यवहार से प्राणिमात्र को सुख मिलता है। जो इस पृथ्वी पर सत्य, अहिंसा, परोपकार, पवित्रता आदि व्रतों का विशेष रूप से धारण करता है।

आर्यों का मूल निवास स्थान

प्रश्न :- मनुष्यों की आदि सृष्टि किस स्थल में हुई ?

उत्तर :- त्रिविष्टप अर्थात जिस को ‘तिब्बत’ (Tibet) कहते है।

प्रश्न :- आदि सृष्टि में एक जाति थी वा अनेक ?

उत्तर :- एक मनुष्य जाति थी। पश्चात ‘विजानह्याय्यान्ये च दस्यव:’ यह ऋग्वेद का वचन है। श्रेष्ठों का नाम आर्य, विद्वानों का देव और दुष्टों के दस्यु अर्थात डाकू।

‘उत शूद्रे उतार्ये’ अथर्ववेद वचन। आर्यों में पूर्वोक्त कथन से ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य और शूद्र चार भेद हुए। मूर्खों का नाम शूद्र और अनार्य अर्थात अनाड़ी तथा विद्वानों का आर्य हुआ।

प्रश्न :- फिर वे यहाँ कैसे आए ?

उत्तर :- जब आर्य और दस्युओं में अर्थात विद्वान (जो देव) व अविद्वान (असुर), उन में सदा लड़ाई बखेड़ा हुआ करता। जब बहुत उपद्रव होने लगा तब आर्य लोग सब भूगोल में उत्तम इस भूमि के खण्ड को जानकार यहीं आकर बसे। इसी से इस देश का नाम ‘आर्यावर्त’ हुआ।

प्रश्न :- आर्यावर्त की अवधि कहाँ तक है ?

उत्तर :- मनुस्मृति के अनुसार

उत्तर में हिमालय, दक्षिण में विन्ध्याचल, पूर्व और पश्चिम में समुद्र। हिमालय की मध्यरेखा से दक्षिण और पहाड़ों के भीतर और रामेश्वर पर्यन्त विन्ध्याचल के भीतर जितने देश है। उन सब को आर्यावर्त इसलिए कहते है कि यह आर्यावर्त देव अर्थात विद्वानों ने बसाया । आर्यजनों के निवास करने से आर्यावर्त कहाया है।

प्रश्न :- प्रथम इस देश का नाम क्या था और इस में कौन बसते थे?

उत्तर :- इस के पूर्व इस देश का कोई नाम भी न था और न कोई आर्यों के पूर्व इस देश में रहते थे। क्योंकि आर्य लोग सृष्टि की आदि में कुछ काल के पश्चात तिब्बत से सीधे इस देश में आकर बसे थे।

प्रश्न :- कोई कहता है कि ये लोग ईरान (Iran) से आए है ?
उत्तर :- किसी संस्कृत ग्रंथ में वा इतिहास (history) में नहीं लिखा कि आर्य लोग ईरान से आए। अत: विदेशियों का लेख मान्य कैसे हो सकता है। मनुस्मृति में इस आर्यावर्त से भिन्न देशों को दस्यु और मलेच्छ देश कहा है।

आर्यों के रहने के कारण भारत देश का प्राचीन नाम आर्यावर्त था । इतिहास में हमें विश्वगुरु कहा जाता है । मनुष्य को अपनी जड़ो से जुड़े रहना चाहिए । जो व्यक्ति/समाज/जाति अपने पूर्वजों का इतिहास भूल जाती है उसका विनाश हो जाता है । हिन्दू इसका जीता जागता उदहारण है । हिन्दुओं वेदों की ओर लोटो ।

Jis call ka itihas pramadit nhi usper itna samajik dweesh mudda na bnaya jaye. Agar hm is itihas ko mante hii to ha bahar se aaye. Isse Bad to islmai sasko ke hmle huwe aaj bhi hmare sath rh rhe unko bhagane ki bat nhi krta

आर्य का अर्थ : आर्य का अर्थ श्रेष्ठ होता है। कौन श्रेष्ठ? वे लोग खुद को श्रेष्ठ मानते थे जो वैदिक धर्म और नीति-नियम अनुसार जीवन यापन करते थे। इसके विपरित जो भी व्यक्ति वेद विरूद्ध जीवन यापन करता था और ब्रह्म को छोड़कर अन्य शक्तियों को मानता था उसे अनार्य मान लिया जाता था। आर्य किसी जाति का नहीं बल्कि एक विशेष विचारधारा को मानने वाले का समूह था जिसमें श्‍वेत, पित, रक्त, श्याम और अश्‍वेत रंग के सभी लोग शामिल थे।

महाकुलकुलीनार्यसभ्यसज्जनसाधव:। -अमरकोष 7।3

अर्थात : आर्य शब्द का प्रयोग महाकुल, कुलीन, सभ्य, सज्जन, साधु आदि के लिए पाया जाता है। 

आर्य कोई जाति नहीं बल्कि यह उन लोगों का समूह था जो खुद को आर्य कहते थे और जिनसे जुड़े थे भिन्न-भिन्न जाति समूह के लोग। इस प्रकार आर्य धर्म का अर्थ श्रेष्ठ समाज का धर्म ही होता है।... सायणाचार्य ने अपने ऋग्भाष्य में 'आर्य' का अर्थ विज्ञ, यज्ञ का अनुष्ठाता, विज्ञ स्तोता, विद्वान् आदरणीय अथवा सर्वत्र गंतव्य, उत्तमवर्ण, मनु, कर्मयुक्त और कर्मानुष्ठान से श्रेष्ठ आदि किया है।

आदरणीय के अर्थ में तो संस्कृत साहित्य में आर्य का बहुत प्रयोग हुआ है। पत्नी पति को आर्यपुत्र कहती थी। पितामह को आर्य (हिन्दी- आजा) और पितामही को आर्या (हिंदी- आजी, ऐया, अइया) कहने की प्रथा रही है। नैतिक रूप से प्रकृत आचरण करने वाले को आर्य कहा गया है।

कर्तव्यमाचनरन् कार्यमकर्तव्यमनाचरन्।

तिष्ठति प्रकृताचारे स आर्य इति उच्यते।।

प्रारंभ में 'आर्य' का प्रयोग प्रजाति अथवा वर्ण के अर्थ नहीं बल्कि इसका नैतिक अर्थ ही अधिक प्रचलित था जिसके अनुसार किसी भी वर्ण अथवा जाति का व्यक्ति अपनी श्रेष्ठता अथवा सज्जनता के कारण आर्य कहे जाने का अधिकारी होता था। वाल्मीकी रामायण में समदृष्टि रखने वाले और सज्जनता से पूर्ण श्रीरामचन्द्रजी को स्थान-स्थान पर ‘आर्य’ व 'आर्यपुत्र' कहा गया है। विदुरनीति में धार्मिक को, चाणक्यनीति में गुणीजन को, महाभारत में श्रेष्ठबुद्धि वाले को तथा गीता में वीर को ‘आर्य’ कहा गया है। महर्षि दयानन्द सरस्वतीजी ने आर्य शब्द की व्याख्या में कहा है कि 'जो श्रेष्ठ स्वभाव, धर्मात्मा, परोपकारी, सत्य-विद्या आदि गुणयुक्त और आर्यावर्त देश में सब दिन से रहने वाले हैं उनको आर्य कहते हैं।'> >

आर्य कौन : पशु, पक्षी, वृक्ष आदि भिन्न-भिन्न जातियां है उसी तरह मनुष्य भी एक जाति है जिसकी उत्पत्ति का मूल एक ही है। जाति रूप से तो मनुष्यों में कोई भेद नहीं है परंतु गुण, कर्म, स्वभाव व व्यवहार आदि में भिन्नता होती है। कर्म के भेद से मनुष्य जाति में दो भेद किए जा सकते हैं:- 1.आर्य और 3.दस्यु। एक ही परिवार में यह दोनों हो सकते हैं।

वेद कहता है 'कृण्वन्तो विश्वमार्यम' अर्थात सारे संसार को आर्य बनाओं। वेद में आर्य (श्रेष्ठ मनुष्यों) को ही पदार्थ दिये जाने का विधान किया गया है:' 'अहं भूमिमददामार्याय' अर्थात मैं आर्यों को यह भूमि देता हूं। इसका अर्थ यह हुआ कि आर्य परिश्रम से अपना कल्याण करता हुआ, परोपकार वृत्ति से दूसरों को लाभ ही पहुंचाएगा जबकि दस्यु दुष्ट स्वार्थी सब प्राणियों को हानि ही पहुंचाएगा। अत: दुष्ट को अपनी भूमि आदि संपत्ति नहीं दी जानी चाहिए चाहे वह आपका पुत्र ही क्यों न हो। रावण के पिता आर्य थे लेकिन रावण एक दस्यु था।

वेद में कहा है, 'विजानह्याय्यान्ये च दस्यव:' अर्थात आर्य और दस्युओं का विशेष ज्ञान रखना चाहिए। निरुक्त आर्य को सच्चा ईश्वर पुत्र से संबोधित करता है। वेद मंत्रों में सत्य, अहिंसा, पवित्रता आदि गुणों को धारण करने वाले को आर्य कहा गया है और सारे संसार को आर्य बनाने का संदेश दिया गया है।

अगले पन्ने पर जानिए आर्यावर्त का अर्थ और आर्यावर्त कहां था, जानिए...

आर्य कौन से देश से आए थे?

स्‍वामी दयानंद सरस्‍वती ने बताया क‍ि आर्य त‍िब्‍बत से आए थे। वहीं पंड‍ित बाल गंगाधर त‍िलक उत्‍तरी ध्रुव यानी क‍ि आर्कट‍िक प्रदेश से आए थे। वहीं पश्चिमी व‍िद्वान मैक्‍स मूलर ने बताया क‍ि आर्य मध्‍य एश‍िया से आए थे

आर्य भारत में कब और कहां से आए?

राखीगढ़ी में मिले 5000 साल पुराने कंकालों के अध्ययन के बाद जारी की गई रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि आर्य यहीं के मूल निवासी थे, बाहर से नहीं आए थे। यह भी पता चला है कि भारत के लोगों के जीन में पिछले हजारों सालों में कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ है। इस रिसर्च में सामने आया है कि आर्यन्स भारत के ही मूल निवासी थे।

आर्यों का मूल देश क्या था?

स्वामी दयानन्द सरस्वती ने आज से लगभग डेढ़ शताब्दी पूर्व वैदिक साहित्य में वर्णित भूगोल के आधार पर आर्यों का मूल निवास स्थान तिब्बत देश को स्वीकार किया था

आर्य सबसे पहले कहाँ आये?

आर्य लोग भारत कहाँ से आए थे? युरेशिया से भारत में आये हे।