गाय की हड्डी से क्या बनता है - gaay kee haddee se kya banata hai

हड्डी के कोयले का उपयोग प्रमुख रूप से रंगों और गंधों को दूर करने के लिये होता है। एक समय अनेक देशों में सफेद चीनी के प्राप्त करने के लिये इसका उपयोग होता था।

कोयला कठोर हड्डियों से बनाया जाता है। बहुत दिनों से रखी या गाड़ी हड्डियों से अच्छा कोयला नहीं बनता। कोयला बनाने में हड्डियों को टुकड़े टुकड़ेकर, भाप और विलायक से निष्कर्षितकर तथा हड्डी को भंभक में रखकर धीरे धीरे गरम करते हैं। इसमें कुछ गैसें (२० प्रतिशत), कुछ हड्डी तेल (३ से ५ प्रतिशत), कुछ अलकतरा (लगभग ६ प्रतिशत) और कुछ ऐमोनिया (प्राय: ६ प्रतिशत) प्राप्त होता है। हड्डी का लगभग ६० प्रतिशत कोयले के रूप में प्राप्त होता है। हड्डी के कोयले में निम्नलिखित पदार्थ रहते हैं :

   पदार्थ 	        प्रतिशत
   कैलसियम फास्फेट 	७०-७५
   कार्बन      	९-११
   जल       	8
   सिलिका 	    ०.५
   कैलसिमय सल्फेट 	    ०.२५
   लोहे के आक्साइड 	    ०.१५
   कैलसियम सल्फाइड 	०.१ से कम

कोयले का रंग हल्का काला और कोयले की राख सफेद या मलाई के रंग की होती है। कोयला दृढ़ और सार्ध्रां होता है। कुछ दिनों के उपयोग के बाद कोयले की सक्रियता नष्ट हो जाती है, पर उसको पुनजीर्व्ताि किया जा सकता है। पीछे यह निष्क्रिय हो जाता है और खाद के लिये प्रयुक्त होता है। इसमें कैलसियम फास्फेट रहने के कारण यह बहुमूल्य खाद है।

किसी समय में टूथपेस्‍ट में जानवरों की हड्डियों का चूरा प्रयोग होता था. इसे घोंघे के शेल, कोयले, पेड़ों की छाल, राख और हड्डियों के चूरे से तैयार किया जाता था. मगर पिछले कई दशकों से टूथपेस्‍ट ने एक नया सफर तय किया है.

टूथपेस्‍ट को लेकर अक्‍सर ये बहस होती है कि इसमें हड्डियों का चूरा होता है या इसमें ऐसे तत्‍व होते हैं जो शाकाहारी नहीं हैं. कई लोग हमेशा से यह जानना चाहते हैं कि इस बात में कितनी सच्‍चाई कि टूथपेस्‍ट में ऐसे तत्‍व होते हैं जो किसी की भावनाओं को नुकसान पहुंचा सकते हैं. दिन में दो बार ब्रश करने वाले लोग हों यार फिर एक बार, जब कभी भी किसी को पता लगता है कि टूथपेस्‍ट में हड्डियों का चूरा है तो मन खराब हो जाता है. आइए आपको बताते हैं कि क्‍या वाकई टूथपेस्‍ट में हड्डियों का चूरा होता है.

पहले होता था हड्डियों के चूरे का प्रयोग

यह बात सच है कि किसी समय में टूथपेस्‍ट में जानवरों की हड्डियों का चूरा प्रयोग होता था. इसे घोंघे के शेल, कोयले, पेड़ों की छाल, राख और हड्डियों के चूरे से तैयार किया जाता था. मगर पिछले कई दशकों से टूथपेस्‍ट ने एक नया सफर तय किया है. आज के समय में जो टूथपेस्‍ट बनते हैं, उनमें अब दूसरी चीजों का प्रयोग होता है. बाजार में इस समय कई तरह के टूथपेस्‍ट मौजूद हैं और सबकी अपनी खासियते हैं. लेकिन इसके बाद भी इन्‍हें तैयार करने का बेसिक फॉर्मूला एक ही है और बेसिक इंग्रीडेंट्स एक से ही होते हैं.

अब क्‍या-क्‍या मिलाया जाता है

  • टूथपेस्‍ट में कैल्शियम कार्बोनेट और डिहाइड्रेटेड सिलिका जेल को मिलाया जाता है जो आपके दांतों पर लगे अवांछित तत्‍वों को हटाने का काम करता है.
  • इसके अलावा इसमें फ्लोराइड होता है जो दांतों के एनैमल को मजबूत बनाता है और दांतों को टूटने से बचाता है.
  • टूथपेस्‍ट में ग्लिसेरॉल और प्रोपैलिन भी होता है जो ये टूथपेस्‍ट को सूखने से बचाता है.
  • इसके अलावा इसमें स्‍वीटनर्स होते हैं जो इसे एक खास स्‍वाद देते हैं.
  • टूथपेस्‍ट में नैचुलर गम्‍स और सिंथेटिक सेल्‍यूलोस भी होते हैं जो टूथपेस्‍ट के फॉर्मूला को स्थिर रखते हैं.
  • टूथपेस्‍ट में सोडियम लॉरेल सल्‍फेट मिलाया जाता है, जिसकी वजह से टूथपेस्‍ट में झाग बनता है.
  • इसके अलावा व्‍हाइटनिंग टूथपेस्‍ट में कुछ ब्‍लीचिंग एजेंट्स होते हैं जो दांतों को सफेद बनाते हैं.

इन दावों की पुष्टि नहीं

कुछ लोग कहते हैं कि टूथपेस्ट किसी खाद्य पदार्थ से नहीं बल्कि, जानवरों के हड्डियों के चूरे से बनता है. दावा किया जाता है कि जानवरों के हड्डियों के चूरे के साथ-साथ इसमें एक और खतरनाक चीज मिलाई जाती है, वो है फ्लोराइड. फ्लोराइड नाम उस जहर का है जो शरीर में फ्लोरोसिस नाम की बीमारी करता है. तीसरी एक और खतरनाक चीज होती है उसमे, ये है सोडियम लायरयल सलफेट. अभी तक हालांकि इन दावों की पुष्टि नहीं हो सकी है.

जापान में क्‍यों बैन है कोलगेट

इजिप्‍ट में 5000 BC के दौरान जब टूथपेस्‍ट बनता था तो उसमें हड्डियों का चूरा मिलाया जाता था. इस पाउडर में अंडे के छिलके समेत कुछ ओर चीजें मिलाई जाती थीं. टूथपेस्‍ट में हड्डियों के चूरे की खबर ने इतनी ज्‍यादा विवाद पैदा किया था कि जापान को इसे बैन करना पड़ा था. जापान ने 19 अक्‍टूबर 2015 को कोलगेट को बैन कर दिया था. टोक्‍यो समेत कई और शहरों की सुपरमार्केट में ये बैन है.

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गाय की हड्डी से क्या बनता है - gaay kee haddee se kya banata hai

ऐसे बर्तन आज कल हर घर में देखे जा सकते है, इस तरह की खास क्राकरी जो सफेद, पतली और अच्छी कलाकारी से बनाई जाती है, बोन चाइना कहलाती है. इस पर लिखे शब्द बोन का वास्तव में सम्बंध बोन (हड्डी) से ही है.

इसका मतलब यह है कि आप किसी गाय या बैल की हड्डियों की सहायता से खा-पी रही हैं. बोन चाइना एक खास तरीके का पॉर्सिलेन है जिसे ब्रिटेन में विकसित किया गया और इस उत्पाद का बनाने में बैल की हड्डी का प्रयोग मुख्य तौर पर किया जाता है. इसके प्रयोग से सफेदी और पारदर्शिता मिलती है.

बोन चाइना इसलिए महंगा होता है क्योंकि इसके उत्पादन के लिए सैकड़ों टन हड्डियों की जरुरत होती है, जिन्हें कसाईखानों से जुटाया जाता है. इसके बाद इन्हें उबाला जाता है, साफ किया जाता है और खुले में जलाकर इसकी राख प्राप्त की जाती है.

बिना इस राख के चाइना कभी भी बोन चाइना नहीं कहलाता है. जानवरों की हड्डी से चिपका हुआ मांस और चिपचिपापन अलग कर दिया जाता है. इस चरण में प्राप्त चिपचिपे गोंद को अन्य इस्तेमाल के लिए सुरक्षित रख लिया जाता है. शेष बची हुई हड्डी को 1000 सेल्सियस तापमान पर गर्म किया जाता है, जिससे इसमें उपस्थित सारा कार्बनिक पदार्थ जल जाता है.

इसके बाद इसमें पानी और अन्य आवश्यक पदार्थ मिलाकर कप, प्लेट और अन्य क्राकरी बना ली जाती है और गर्म किया जाता है. इस तरह बोन चाइना अस्तित्व में आता है. 50 प्रतिशत हड्डियों की राख 26 प्रतिशत चीनी मिट्टी और बाकी चाइना स्टोन. खास बात यह है कि बोन चाइना जितना ज्यादा महंगा होगा, उसमें हड्डियों की राख की मात्रा भी उतनी ही अधिक होगी.

अब प्रश्न यह उठता है कि क्या शाकाहारी लोगों को बोन चाइना का इस्तेमाल करना चाहिए? या फिर सिर्फ शाकाहारी ही क्यों, क्या किसी को भी बोन चाइना का इस्तेमाल करना चाहिये. लोग इस मामले में कुछ तर्क देते हैं.

जानवरों को उनकी हड्डियों के लिए नहीं मारा जाता, हड्डियां तो उनको मारने के बाद प्राप्त हुआ एक उप-उत्पाद है. लेकिन भारत के मामले में यह कुछ अलग है. भारत में भैंस और गाय को उनके मांस के लिए नहीं मारा जाता क्योंकि उनकी मांस खाने वालों की संख्या काफी कम है. उन्हें दरअसल उनकी चमड़ी और हड्डियों के मारा जाता है.

भारत में दुनिया की सबसे बड़ी चमड़ी मंडी है और यहां ज्यादातर गाय के चमड़े का ही प्रयोग किया जाता है. हम जानवरों को उनकी हड्डियों के लिए भी मारते है. देखा जाए तो वर्क बनाने का पूरा उद्योग ही गाय को सिर्फ उसकी आंत के लिए मौत के घाट उतार देता है. आप जानवरों को नहीं मारते, लेकिन आप या आपका परिवार बोन चाइना खरीदने के साथ ही उन हत्याओं का साझीदार हो जाता है, क्योंकि बिना मांग के उत्पादन अपने आप ही खत्म हो जायेगा.

चाइना सैट की परम्परा बहुत पुरानी है और जानवर लम्बे समय से मौत के घाट उतारे जा रहे हैं. यह सच है, लेकिन आप इस बुरे काम को रोक सकते हैं. इसके लिए सिर्फ आपको यह काम करना है कि आप बोन चाइना की मांग करना बंद कर दें.

– साभार शंकर लाल ताम्रकार

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गाय की हड्डियों से क्या क्या बनता है?

कैसे बनती है ये क्रॉकरी? बोन चाइना इसलिए महंगा होता है क्योंकि इसके उत्पादन के लिए सैकड़ों टन हड्डियों की जरुरत होती है, जिन्हें कसाईखानों से जुटाया जाता है। इसके बाद इन्हें उबाला जाता है, साफ किया जाता है और खुले में जलाकर इसकी राख प्राप्त की जाती है। बिना इस राख के चाइना कभी भी बोन चाइना नहीं कहलाता है।

जानवरों की हड्डी से क्या बनाया जाता है?

एक शोध के मुताबिक कई टैबलेट और तरल दवाईयों में एक पदार्थ जेलेटिन का इस्तेमाल होता है, जो कि जानवरों की हड्डियों और खाल से बनता है. पोस्ट-ग्रेजुएट मेडिकल जरनल के एक शोध में पाया गया है कि एक-चौथाई मरीज़ों को नहीं पता कि उन्हें दी जाने वाली दवाईयों में जेलेटिन होता है.

हड्डी क्या काम आती है?

हड्डियां हमें ना केवल काम काज में सहायता करती हैं। बल्कि यह हमारे ऑर्गन्स को भी सुरक्षा प्रदान करती हैं। ऐसे में विशेषज्ञ का कहना है कि हड्डियों के कमजोर होने की वजह बहुत सी होती हैं।

क्या चीनी हड्डियों से बनती है?

जी हां । यह सच है कि चीनी को सफेद रंग का बनाने के लिए अन्य कई कैमिकल्स के साथ पशुओं की हड्डियों के चूरे का प्रयोग है किया जाता है । इसीलिए चीनी को सफेद जहर भी कहा जाता है । क्या यह आपके समय के हिसाब से उपयुक्त था?