विद्युत क्षेत्र और चुंबकीय क्षेत्र लंबवत क्यों हैं? - vidyut kshetr aur chumbakeey kshetr lambavat kyon hain?

Solution : हम जानते है कि वैद्युतचुंबकीय तरंग में परस्पर लंबवत वैद्युत क्षेत्र वेक्टर `vec(E)` और चुंबकीय क्षेत्र वेक्टर `vec(B)` होते है। अधिकांश प्रकाशिक परिघटनाओं की व्याख्या, वैद्युत क्षेत्र वेक्टर और वह पदार्थ जिसमे से वैद्युतचुंबकीय तरंग गुजरती है, के बीच पारस्परिक क्रिया से की जा सकती है इसलिए ध्रुवण की दिशा विनिर्दिष्ट करने के लिए हम `vec(E)` का प्रयोग करते है, `vec(B)` का नहीं।

Show

Solution : समरूप चुम्बकीय क्षेत्र में गतिशील आवेशित कण पर लागने वाले बल कण के वेग के लम्बवत होता है। अतः चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा कण पर कोई कार्य नहीं किया जाता है। अतः कण की चाल नियत रहेगी और इस प्रकार कण को गतिज ऊर्जा भी अपरिवर्तित रहेगी।

Solution : वैद्युत और चुम्बकीय क्षेत्रों में समानताएं ये हैं
(i) दोनों वैद्युत आवेशों के कारण उत्पन्न होते हैं।
(ii) दोनों वैद्युत आवेशों पर बल लगाते है।
वैद्युत और चुम्बकीय क्षेत्रों में असमानताएं ये हैं
(i) सभी वैद्युत आवेशों से वैद्युत क्षेत्र पैदा होता है जबकि गतिमान आवेश से ही चुम्बकीय क्षेत्र पैदा होता है।
(ii) वैद्युत क्षेत्र सभी आवेशों पर बल लगाता है परंतु चुम्बकीय क्षेत्र केवल गतिमान आवेशों पर बल लगाता है।

चुंबकीय क्षेत्र विद्युत धाराओं और चुंबकीय सामग्री का चुंबकीय प्रभाव है। किसी भी बिन्दु पर चुंबकीय क्षेत्र दोनों, दिशा और परिमाण (या शक्ति) द्वारा निर्दिष्ट किया जाता है; इसलिये यह एक सदिश क्षेत्र है। चुम्बकीय क्षेत्र गतिमान विद्युत आवेश और मूलकणों के अंतर्भूत चुंबकीय आघूर्ण द्वारा उत्पादित होता है।

'चुम्बकीय क्षेत्र' शब्द का प्रयोग दो क्षेत्रों के लिये किया जाता है जिनका आपस में निकट सम्बन्ध है, किन्तु दोनों अलग-अलग हैं। इन दो क्षेत्रों को B तथा H, द्वारा निरूपित किया जाता है। H की ईकाई अम्पीयर प्रति मीटर (संकेत: A·m−1 or A/m) है और B की ईकाई टेस्ला (प्रतीक: T) है।

चुम्बकीय क्षेत्र दो प्रकार से उत्पन्न (स्थापित) किया जा सकता है- (१) गतिमान आवेशों के द्वारा (अर्थात, विद्युत धारा के द्वारा) तथा (२) मूलभूत कणों में निहित चुम्बकीय आघूर्ण के द्वारा[1][2] विशिष्ट आपेक्षिकता में, विद्युत क्षेत्र और चुम्बकीय क्षेत्र, एक ही वस्तु के दो पक्ष हैं जो परस्पर सम्बन्धित होते हैं।

चुम्बकीय क्षेत्र दो रूपों में देखने को मिलता है, (१) स्थायी चुम्बकों द्वारा लोहा, कोबाल्ट आदि से निर्मित वस्तुओं पर लगने वाला बल, तथा (२) मोटर आदि में उत्पन्न बलाघूर्ण जिससे मोटर घूमती है। आधुनिक प्रौद्योगिकी में चुम्बकीय क्षेत्रों का बहुतायत में उपयोग होता है (विशेषतः वैद्युत इंजीनियरी तथा विद्युतचुम्बकत्व में)। धरती का चुम्बकीय क्षेत्र, चुम्बकीय सुई के माध्यम से दिशा ज्ञान कराने में उपयोगी है। विद्युत मोटर और विद्युत जनित्र में चुम्बकीय क्षेत्र का उपयोग होता है।

हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जन्म और मृत्यु पंजीकरण (RBD) अधिनियम, 1969 में संशोधन का प्रस्ताव दिया था।

  • इस विधेयक को संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किया जाएगा।

प्रस्तावित संशोधन:

  • इसमें जीवन के लगभग हर क्षेत्र जैसे कि शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश, मतदाता सूची में नाम, केंद्र और राज्य सरकार की नौकरियों में नियुक्ति, ड्राइविंग लाइसेंस तथा पासपोर्ट जारी करने इत्यादि के लिये जन्म प्रमाण पत्र को अनिवार्य दस्तावेज़ बनाने का प्रस्ताव किया गया है।
  • अस्पतालों और चिकित्सा संस्थानों के लिये यह अनिवार्य होगा कि वे मृत्यु का कारण बताते हुए मृत्यु के प्रमाण पत्रों की एक प्रति मृतक के रिश्तेदार के अलावा स्थानीय रजिस्ट्रार को भी प्रदान करें।
    • नागरिक पंजीकरण प्रणाली (CRS) की रिपोर्ट के अनुसार, देश के लिये जन्म का पंजीकरण स्तर 2010 में 82.0% से बढ़कर 2019 में 92.7% हो गया और मृत्यु संबंधी पंजीकरण स्तर 2010 में 66.9% से बढ़कर 2019 में 92.0% हो गया।
    • CRS, RGI के परिचालन नियंत्रण के तहत जन्म और मृत्यु के पंजीकरण के लिये एक ऑनलाइन प्रणाली है।

संशोधनों की आवश्यकता:

  • प्रस्तावित संशोधन, "राष्ट्रीय स्तर पर पंजीकृत जन्म और मृत्यु का डेटाबेस बनाए रखने" में सक्षम करेगा।
  • राष्ट्रीय स्तर पर जन्म और मृत्यु डेटाबेस जो कि RGI के पास उपलब्ध होगा, का उपयोग जनसंख्या रजिस्टर, चुनावी रजिस्टर और आधार, राशन कार्ड, पासपोर्ट एवं ड्राइविंग लाइसेंस डेटाबेस को अपडेट करने के लिये किया जा सकता है।
  • यदि संशोधनों को लागू किया जाता है, तो केंद्र राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (National Population Register- NPR) को अद्यतन करने के लिये डेटा का उपयोग कर सकता है जिसे पहली बार वर्ष 2010 में तैयार किया गया था और वर्ष 2015 में डोर-टू-डोर गणना के माध्यम से संशोधित किया गया था।
    • NPR में पहले से ही 119 करोड़ निवासियों का डेटाबेस है और नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2003 के तहत, यह राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (National Register of Citizens- NRC) के निर्माण की दिशा में पहला कदम है।

जन्म और मृत्यु पंजीकरण (Registration of Birth and Death- RBD) अधिनियम, 1969:

  • भारत में जन्म और मृत्यु का पंजीकरण कराना जन्म और मृत्यु पंजीकरण अधिनियम (RBD), 1969 के अधिनियमन के साथ अनिवार्य है और इस प्रकार का पंजीकरण घटना के स्थान के अनुसार किया जाता है।
  • RBD अधिनियम के तहत जन्म और मृत्यु का पंजीकरण करना राज्यों की ज़िम्मेदारी है।
  • राज्य सरकारों ने जन्म और मृत्यु के पंजीकरण तथा उनका रिकॉर्ड सुरक्षित रखने के लिये सुविधा तंत्र स्थापित किया है।
  • प्रत्येक राज्य में नियुक्त एक मुख्य रजिस्ट्रार इस अधिनियम के कार्यान्वयन हेतु कार्यकारी प्राधिकारी होता है।
  • अधिकारियों का एक पदानुक्रम ज़िला और उससे निचले स्तर पर यह काम करता है।
  • इस अधिनियम के तहत नियुक्त महापंजीयक, RBD अधिनियम के कार्यान्वयन के समन्वय और एकीकरण के लिये ज़िम्मेदार होता है।

स्रोत: द हिंदू

विद्युत क्षेत्र और चुंबकीय क्षेत्र लंबवत क्यों हैं? - vidyut kshetr aur chumbakeey kshetr lambavat kyon hain?
विद्युत क्षेत्र और चुंबकीय क्षेत्र लंबवत क्यों हैं? - vidyut kshetr aur chumbakeey kshetr lambavat kyon hain?

भूगोल

Prev Next

दुर्लभ मृदा धातु

    टैग्स:
  • सामान्य अध्ययन-I
  • संसाधनों के प्रकार
  • खनिज और ऊर्जा संसाधन संसाधनों का संरक्षण
  • सामान्य अध्ययन-II
  • भारत और इसके पड़ोसी
  • भारत के हितों पर देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव
  • सामान्य अध्ययन-III

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय उद्योग परिसंघ, भारत दुर्लभ मृदा मिशन, डीप ओशन मिशन

मेन्स  के लिये:

दुर्लभ मृदा धातु और भारत में अपने उत्पादन को बढ़ाने के लिये क्षमताओं को विकसित करने की आवश्यकता

चर्चा में क्यों?

भारत की चीन पर आयात संबंधी बढ़ती निर्भरता के चलते भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) ने सरकार से इस क्षेत्र में निजी खनन को प्रोत्साहित करने और आपूर्ति स्रोतों में विविधता लाने का आग्रह किया है।

  • भारत के पास दुनिया के दुर्लभ खनिज़ भंडार का 6% है, यद्यपि यह वैश्विक उत्पादन का केवल 1% उत्पादन करता है, और चीन से ऐसे खनिजों की अपनी अधिकांश आवश्यकताओं को पूरा करता है।
  • उदाहरण के लिये, 2018-19 में, भारत ने दुर्लभ मृदा धातु आयात का 92% और मात्रा के आधार पर 97% चीन से प्राप्त किया गया था।

CII के सुझाव:

  • CII ने सुझाव दिया कि 'इंडिया रेयर अर्थ्स मिशन' को डीप ओशन मिशन के एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन की तरह पेशेवरों द्वारा संचालित किया जाना चाहिए।
  • उद्योग समूह ने चीन की 'मेड इन चाइना 2025' पहल का हवाला देते हुए दुर्लभ पृथ्वी खनिजों को 'मेक इन इंडिया' अभियान का हिस्सा बनाने का भी विचार रखा है, जो नई सामग्रियों पर केंद्रित है, जिसमें स्थायी मैग्नेट शामिल हैं जो दुर्लभ मृदा खनिजों का उपयोग करके बनाए जाते हैं।

दुर्लभ मृदा धातु:

  • यह 17 धातु तत्वों का एक समूह हैं। इनमें स्कैंडियम और यट्रियम के अलावा आवर्त सारणी में 15 लैंथेनाइड्स शामिल हैं जो लैंथेनाइड्स के समान भौतिक और रासायनिक गुणयुक्त हैं
  • 17 दुर्लभ मृदा धातुओं में सीरियम (Ce), डिस्प्रोसियम (Dy), एर्बियम (Er), यूरोपियम (Eu), गैडोलिनियम (Gd), होल्मियम (Ho), लैंथेनम (La), ल्यूटेटियम (Lu), नियोडाइमियम (Yb) और इट्रियम (Y) शामिल हैं।
  • इन खनिजों में अद्वितीय चुंबकीय, संदीप्ति व विद्युत रासायनिक गुण विद्यमान होते हैं और इस प्रकार उपभोक्ता द्वारा इनका इलेक्ट्रॉनिक्स, कंप्यूटर एवं नेटवर्क, संचार, स्वास्थ्य देखभाल, राष्ट्रीय रक्षा आदि सहित कई आधुनिक तकनीकों में उपयोग किया जाता है।
  • यहांँ तक कि भविष्य की प्रौद्योगिकियों में भी REE की बहुत आवश्यकता होती है।
    • उदाहरण के लिये उच्च तापमान सुपरकंडक्टिविटी, हाइड्रोकार्बन अर्थव्यवस्था हेतु हाइड्रोजन का सुरक्षित भंडारण और परिवहन, पर्यावरण ग्लोबल वार्मिंग एवं ऊर्जा दक्षता से संबंधित मुद्दों आदि में।
  • इन्हें 'दुर्लभ मृदा' (Rare Earth) कहा जाता है क्योंकि पहले इन्हें इनके ऑक्साइड रूपों से निकालना तकनीकी रूप से मुश्किल था।
  • यह कई खनिजों में विद्यमान होते हैं लेकिन आमतौर पर कम सांद्रता में इन्हें किफायती तरीके से परिष्कृत किया जाता है।

चीन का एकाधिकार:

  • चीन ने समय के साथ दुर्लभ मृदा धातुओं पर वैश्विक प्रभुत्व हासिल कर लिया है, यहाँ तक कि एक बिंदु पर इसने दुनिया की 90% दुर्लभ मृदा धातुओं का उत्पादन किया था।
  • वर्तमान में हालाँकि यह 60% तक कम हो गया है और शेष मात्रा का उत्पादन अन्य देशों द्वारा किया जाता है, जिसमें क्वाड (ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका) देश शामिल हैं।
  • वर्ष 2010 के बाद जब चीन ने जापान, अमेरिका और यूरोप की रेयर अर्थ्स शिपमेंट पर रोक लगा दी तो एशिया, अफ्रीका व लैटिन अमेरिका में छोटी इकाइयों के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया एवं अमेरिका में उत्पादन इकाइयाँ शुरू की गई।
  • फिर भी संसाधित दुर्लभ मृदा धातुओं का प्रमुख हिस्सा चीन के पास है।

दुर्लभ मृदा धातुओं के लिये भारत की वर्तमान नीति:

  • भारत में अन्वेषण का कार्य खान ब्यूरो और परमाणु ऊर्जा विभाग द्वारा किया जाता है। खनन और प्रसंस्करण बीते समय में कुछ छोटी निजी कम्पनियों द्वारा किया गया है, लेकिन वर्तमान में यह इंडियन रेअर अर्थ्स लिमिटेड (Indian Rare Earths Limited- IREL) के अंतर्गत है ।
  • भारत ने IREL जैसे सरकारी निगमों को प्राथमिक खनिजों पर एकाधिकार प्रदान किया है जिसमें शामिल REE हैं: तटीय राज्यों में पाए जाने वाले मोनाज़ाइट।
  • इंडियन रेयर अर्थ लिमिटेड (IREL) दुर्लभ मृदा ऑक्साइड (कम लागत, कम-प्रतिफल वाली अपस्ट्रीम प्रक्रियाएँ) का उत्पादन करती है, इन्हें उन विदेशी फर्मों को बेचती है, जो धातुओं को निकालते हैं और अंतिम उत्पादों (उच्च लागत, उच्च-प्रतिफल वाली डाउनस्ट्रीम प्रक्रियाएँ) का निर्माण करते हैं।
  • IREL का फोकस मोनाज़ाइट से निकाले गए थोरियम को परमाणु ऊर्जा विभाग को उपलब्ध कराना है।

संबंधित पहल:

  • वैश्विक स्तर पर:
    • बहुपक्षीय खनिज सुरक्षा साझेदारी (Multilateral Minerals Security Partnership- MSP) की घोषणा जून 2022 में की गई थी, जिसका लक्ष्य जलवायु उद्देश्यों के लिये आवश्यक महत्त्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति शृंखलाओं का निर्माण करने हेतु  देशों को एक साथ लाना था।
    • इस साझेदारी में संयुक्त राज्य अमेरिका (United States), कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, कोरिया गणराज्य, जापान और विभिन्न यूरोपीय देश शामिल हैं।
      • भारत साझेदारी में शामिल नहीं है।
  • भारत द्वारा:
    • खान मंत्रालय ने खान और खनिज (विकास और विनियमन) (Mines and Minerals ,Development and Regulation- MDMR) अधिनियम, 1957 में खान और खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2021 के माध्यम से खनिज उत्पादन को बढ़ावा देने, देश में व्यापार करने में आसानी में सुधार लाने और सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) में खनिज उत्पादन का योगदान बढाने के लिये संशोधन किया है।
    • संशोधन अधिनियम में प्रावधान है कि किसी भी खदान को विशेष उपयोग के लिये आरक्षित नहीं किया जाएगा।

आगे की राह

  • भारत को अन्य उन्नत अर्थव्यवस्थाओं से सबक लेना चाहिये कि वे अपनी खनिज ज़रूरतों को कैसे सुरक्षित करने की योजना बना रहे हैं और महत्त्वपूर्ण खनिज आपूर्ति शृंखलाओं को सुनिश्चित करने के लिये बहुराष्ट्रीय कंपनियों में शामिल होने का प्रयास कर रहे हैं या इस तरह के संवादों को बढ़ावा देने के लिये क्वाड और बिम्सटेक जैसी मौजूदा साझेदारी का उपयोग कर रहे हैं।
    • हरित प्रौद्योगिकियों के निर्माण की लंबवत एकीकृत आपूर्ति शृंखला कैसे बनाई जाए, इस पर रणनीति बनाने के लिये सरकार शीर्ष-स्तरीय निर्णय लेने की भी आवश्यकता है अन्यथा हम अपने जलवायु परिवर्तन शमन लक्ष्यों से चूक सकते हैं।
  • भारत को एक नया दुर्लभ मृदा विभाग (DRE) बनाने की ज़रूरत है जो इस क्षेत्र में व्यवसायों के लिये एक नियामक और सहायक की भूमिका निभाए।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत  वर्ष के प्रश्न (पीवाईक्यू)  

प्रश्न. हाल में तत्त्वों के एक वर्ग, जिसे ‘दुर्लभ मृदा धातु’ कहते हैं, की कम आपूर्ति पर चिंता जताई गई। क्यों? (2012)

  1. चीन, जो इन तत्त्वों का सबसे बड़ा उत्पादक है, द्वारा इनके निर्यात पर कुछ प्रतिबंध लगा दिया गया है।
  2. चीन, ऑस्ट्रेलिया कनाडा और चिली को छोड़कर अन्य किसी भी देश में ये तत्त्व नहीं पाए जाते हैं।
  3. दुर्लभ मृदा धातु विभिन्न प्रकार के इलेक्ट्रॅानिक सामानों के निर्माण में आवश्यक है, इन तत्त्वों की माँग बढती जा रही है।

उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)

स्रोत: द हिंदू

विद्युत क्षेत्र और चुंबकीय क्षेत्र लंबवत क्यों हैं? - vidyut kshetr aur chumbakeey kshetr lambavat kyon hain?
विद्युत क्षेत्र और चुंबकीय क्षेत्र लंबवत क्यों हैं? - vidyut kshetr aur chumbakeey kshetr lambavat kyon hain?

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

Prev Next

चीन-हिंद महासागर क्षेत्रीय मंच की बैठक

    टैग्स:
  • सामान्य अध्ययन-II
  • सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप
  • भारत को शामिल और/या इसके हितों को प्रभावित करने वाले समूह और समझौते
  • क्षेत्रीय समूह
  • महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान

प्रिलिम्स के लिये:

हिंद महासागर क्षेत्र, हिंद महासागर रिम एसोसिएशन, SAGAR, IONA, आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे के लिये गठबंधन।

मेन्स के लिये:

हिंद महासागर क्षेत्र में बढ़ते चीनी प्रभाव के निहितार्थ।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में चीन अंतर्राष्ट्रीय विकास सहयोग एजेंसी (China International Development Cooperation Agency- CIDCA) ने चीन-हिंद महासागर क्षेत्रीय मंच की बैठक आयोजित की जिसमें 19 देशों ने भाग लिया। भारत ने इसमें भाग नहीं लिया।

बैठक की मुख्य विशेषताएँ:

  • थीम: शेयर्ड डेवलपमेंट
  • भाग लेने वाले देश:
    • इंडोनेशिया, पाकिस्तान, म्याँमार, श्रीलंका, बांग्लादेश, मालदीव, नेपाल, अफगानिस्तान, ईरान, ओमान, दक्षिण अफ्रीका, केन्या, मोज़ाम्बिक, तंजानिया, सेशेल्स, मेडागास्कर, मॉरीशस, जिबूती, ऑस्ट्रेलिया और 3 अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधि।
    • कथित तौर पर भारत को आमंत्रित नहीं किया गया था।
  • समुद्री आपदा रोकथाम और शमन सहयोग तंत्र:
    • चीन ने हिंद महासागर क्षेत्र में चीन तथा अन्य देशों के बीच समुद्री आपदा रोकथाम और शमन सहयोग तंत्र स्थापित करने का प्रस्ताव रखा।
    • चीन ने ज़रूरतमंद देशों को आवश्यक वित्तीय, सामग्री और तकनीकी सहायता प्रदान करने की इच्छा व्यक्त की।

चीन की बैठक में मांग:

  • चीन कई देशों में बंदरगाहों और बुनियादी ढाँचे में पर्याप्त निवेश के साथ रणनीतिक हिंद महासागर क्षेत्र में प्रभाव के लिये प्रयास कर रहा है।
  • चीन ने पाकिस्तान और श्रीलंका सहित कई देशों में बंदरगाहों और बुनियादी ढाँचे के निवेश में पर्याप्त निवेश किया है।
  • चीन ने भारत के पश्चिमी तट के विपरीत अरब सागर में पाकिस्तान के ग्वादर में बंदरगाह बनाने और मालदीव में बुनियादी ढाँचे के निवेश के अलावा 99 साल की लीज पर श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह का अधिग्रहण किया है।

चुनौतियाँ:

  • चीन पर बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत कथित तौर पर बुनियादी ढाँचे के विकास के नाम पर इन देशों में "ऋण कूटनीति (Debt Diplomacy)" में शामिल करने का आरोप लगाया गया है।
  • वर्ष 2008 से चीन ने नियमित रूप से अदन की खाड़ी में नौसैनिक युद्धपोतों की टुकड़ी को तैनात किया है और वर्ष 2017 में जिबूती में अपना पहला विदेशी सैन्य अड्डा स्थापित किया है।
  • साथ ही भारत की अनुपस्थिति को हिंद महासागर क्षेत्र के राजनीतिकरण की आशंकाओं के बीच क्षेत्र में भारत की पारंपरिक उपस्थिति को चुनौती देने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। इसके अलावा चीनी विदेश मंत्रालय ने यह खुलासा करने से इनकार कर दिया कि अन्य देशों से कौन-कौन प्रतिभागी थे।
    • भारत हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) देशों का पारंपरिक भागीदार और समर्थक रहा है।

IORA में भारत की उपस्थिति:

  • इसके अलावा तटीय देशों में प्रमुख संकटों के दौरान पहले उत्तरदाता के रूप में कार्य करने के लिये, भारत नियमित रूप से हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (Indian Ocean Rim Association- IORA) और हिंद महासागर नौसेना संगोष्ठी (Indian Ocean Navies Symposium- IONS) जैसे तंत्रों के माध्यम से क्षेत्र में सभी के लिये सुरक्षा और विकास (Security and Growth for All in the Region- SAGAR/सागर) के दृष्टिकोण के तहत हिंद महासागर तटीय देशों के साथ संलग्न है।
  • हिंद महासागर क्षेत्र में भारत का मज़बूत प्रभाव है जहाँ IORA जैसे भारत समर्थित संगठनों ने मज़बूत जड़ें जमा ली हैं।
  • भारत ने क्षेत्रीय समुद्री क्षेत्र में "समन्वय, सहयोग और साझेदारी" की अपनी आधिकारिक नीति को बढ़ावा देना जारी रखा है।
  • आपदा जोखिम प्रबंधन पर प्राथमिकता वाले क्षेत्र के समन्वयक के रूप में, भारत ने IORA के लिये दिशा-निर्देश जारी किये हैं। इसने भागीदारों से सितंबर 2019 में संयुक्त राष्ट्र में शुरू किये गए आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे के लिये गठबंधन में शामिल होने का भी आग्रह किया है।
  • भारत IOR में सूचना के शुद्ध प्रदाता के रूप में उभरने की कोशिश कर रहा है और इस दिशा में उसने IOR के सदस्य देशों को वास्तविक समय संकट की जानकारी के साथ सहायता करने के लिये गुरुग्राम में सूचना संलयन केंद्र बनाया है। बांग्लादेश, मॉरीशस, मालदीव, श्रीलंका और सेशेल्स भारत के सूचना समर्थन ढाँचे का हिस्सा हैं।

हिंद महासागर रिम एसोसिएशन:

  • यह वर्ष 1997 में स्थापित एक क्षेत्रीय मंच है, इसका उद्देश्य सर्वसम्मति-आधारित विकासवादी और गैर-घुसपैठ दृष्टिकोण के माध्यम से समझ तथा पारस्परिक रूप से लाभप्रद सहयोग का निर्माण और विस्तार करना है।
  • IORA में 23 सदस्य देश और 9 संवाद भागीदार हैं।
    • सदस्य: ऑस्ट्रेलिया, बांग्लादेश, कोमोरोस, फ्राँस, भारत, इंडोनेशिया, ईरान, केन्या, मेडागास्कर, मलेशिया, मालदीव, मॉरीशस, मोज़ाम्बिक, ओमान, सेशेल्स, सिंगापुर, सोमालिया, दक्षिण अफ्रीका, श्रीलंका, तंजानिया, थाईलैंड, संयुक्त अरब अमीरात और यमन।
    • चीन IORA में एक संवाद भागीदार है।
  • IORA सचिवालय मॉरीशस में स्थित है।
  • यह एसोसिएशन महत्त्वपूर्ण है क्योंकि हिंद महासागर दुनिया के कंटेनर जहाज़ों का  लगभग आधा , दुनिया के थोक कार्गो यातायात का एक तिहाई और दुनिया के तेल शिपमेंट का दो-तिहाई अकेले वहन करता है।
  • यह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और परिवहन की एक जीवन रेखा है  यह  प्रमुख समुद्री मार्गों पर नियंत्रण रखता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)   

प्रश्न. 'क्षेत्रीय सहयोग के लिए हिन्द महासागर रिम संघ इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन फॉर रीजनल कोऑपरेशन (IOR_ARC)' के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

  1. इसकी स्थापना हाल ही में घटित समुद्री डकैती की घटनाओं और तेल अधिप्लाव (आयल स्पिल्स) की दुर्घटनाओं के प्रतिक्रियास्वरूप की गई है।
  2. यह एक ऐसी मैत्री है जो केवल समुद्री सुरक्षा हेतु है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: D

 स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

विद्युत क्षेत्र और चुंबकीय क्षेत्र लंबवत क्यों हैं? - vidyut kshetr aur chumbakeey kshetr lambavat kyon hain?
विद्युत क्षेत्र और चुंबकीय क्षेत्र लंबवत क्यों हैं? - vidyut kshetr aur chumbakeey kshetr lambavat kyon hain?

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

Prev Next

ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान -C54

    टैग्स:
  • सामान्य अध्ययन-III
  • अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी

प्रिलिम्स के लिये:

प्रक्षेपण यान, SRO, PSLV, EOS, INS-2B, भारत-भूटान उपग्रह, एस्ट्रोकास्ट, आनंद।

मेन्स के लिये:

अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, INS-2B, EOS-6 और महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation- ISRO) ने आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (Polar Satellite Launch Vehicle- PSLV) C54 का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया है।

  • यह PSLV की 56वीं उड़ान थी, जो PSLV-C54 रॉकेट के लिये वर्ष का अंतिम मिशन है।

प्रक्षेपित किये गए उपग्रह

  • भूटान हेतु नैनो उपग्रह- 2 (INS- 2B):
    • परिचय:
      • INS-2B उपग्रह दो पेलोड के साथ भारत और भूटान के बीच एक सहयोगी मिशन है।
        • NanoMx, अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र (Space Applications Centre- SAC) द्वारा विकसित एक मल्टीस्पेक्ट्रल ऑप्टिकल इमेजिंग पेलोड है।
        • APRS-डिजिपीटर जिसे DITT-भूटान और URSC द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किया गया है, सफलतापूर्वक तैनात किया गया।
    • INS-2B का महत्त्व:
      • यह देश के प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन के लिये भूटान को उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाली छवियाँ प्रदान करेगा।
      • नए उपग्रह का प्रक्षेपण भूटान के विकास के लिये ICT और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी सहित उन्नत प्रौद्योगिकी का उपयोग करने की भूटानी राजा जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक की योजनाओं का समर्थन करने के भारत के प्रयासों का हिस्सा है।
      • यह सहयोग भारत की 'पड़ोसी पहले' नीति के अनुकूल है।
  • आनंद (Anand):
    • आनंद, तीन अक्षीय स्थिर नैनो उपग्रह लघुकृत ‘इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल पेलोड’ तथा अन्य सभी उप-प्रणालियों जैसे टीटीसी, पावर, ऑनबोर्ड कंप्यूटर और पिक्ससेल से एडीसीएस के लिये एक प्रौद्योगिकी प्रदर्शक है, जो भारत से भी सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित किये गए थे।
  • एस्ट्रोकास्ट (Astrocast):
    • एस्ट्रोकास्ट, एक 3U अंतरिक्ष यान, पेलोड के रूप में इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) के लिये एक प्रौद्योगिकी प्रदर्शक उपग्रह है। इस मिशन में 4 एस्ट्रोकास्ट उपग्रह शामिल हैं। ये अंतरिक्ष यान ISISspace QuadPack डिस्पेंसर के भीतर रखे गए हैं।
    • डिस्पेंसर उपग्रह को संदूषण से बचाता है।
  • थिम्बोल्ट उपग्रह (Thymbolt Satellites):
    • थिम्बोल्ट एक 0.5U अंतरिक्ष यान बस है जिसमें ध्रुव अंतरिक्ष से कई उपयोगकर्त्ताओं के लिये तेज़ी से प्रौद्योगिकी प्रदर्शन और नक्षत्र विकास को सक्षम बनाने हेतु एक संचार पेलोड शामिल है, जो 1 वर्ष के न्यूनतम जीवनकाल के साथ अपने स्वयं के ऑर्बिटल डिप्लॉयर का उपयोग करता है।
  • पृथ्वी अवलोकन उपग्रह -06 (EOS-6) :
    • पृथ्वी अवलोकन उपग्रह -06 ओशनसैट शृंखला की तीसरी पीढ़ी का उपग्रह है जिसकी परिकल्पना समुद्र विज्ञान, जलवायु और मौसम संबंधी अनुप्रयोगों में उपयोग करने के लिये समुद्र के रंग, समुद्र की सतह के तापमान और पवन वेक्टर डेटा का निरीक्षण करने के लिये की गई है।
    • यह उपग्रह क्लोरोफिल, समुद्री सतह तापमान (SST) और हवा की गति और भूमि आधारित भूभौतिकीय मापदंडों का उपयोग करके संभावित मछली पकड़ने के क्षेत्रों जैसे मूल्य वर्धित उत्पादों का भी समर्थन करता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत  वर्ष के प्रश्न (PYQs)   

प्रश्न . भारत के उपग्रह प्रमोचित करने वाले वाहनों के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

  1. PSLV से वे उपग्रह प्रमोचित किये जाते हैं जो पृथ्वी के संसाधनों के नियंत्रण में उपयोगी हैं, जबकि GSLV को मुख्यत: संचार उपग्रहों को प्रमोचित करने के लिये अभिकल्पित किया गया है।
  2. PSLV द्वारा प्रमोचित उपग्रह आकाश में एक ही स्थिति में स्थायी रूप में स्थिर रहते प्रतीत होते हैं जैसा कि पृथ्वी के एक विशिष्ट स्थान से देखा जाता है।
  3. GSLV Mk III, एक चार-स्टेज वाला प्रमोचन वाहन है, जिसमें प्रथम और तृतीय चरणों में ठोस रॉकेट मोटरों का तथा द्वितीय और चतुर्थ चरणों में द्रव रॉकेट इंजनों का प्रयोग होता है।

उपर्युत्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 2
(d) केवल 3

उत्तर: A


प्रश्न: भारत द्वारा प्रमोचित खगोलीय वेधशाला, ‘ऐस्ट्रोसैट’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही हैं?(2016)