विकासात्मक कार्य सिद्धांत का प्रतिपादन किसने किया - vikaasaatmak kaary siddhaant ka pratipaadan kisane kiya

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CT 1: Growth and Development - 1

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रॉबर्ट जेम्स हैविगर्स्ट एक प्रोफेसर, भौतिक विज्ञानी, शिक्षक और काल प्रभावन विशेषज्ञ थे। उन्होंने प्रस्तावित किया कि सभी व्यक्ति विकासात्मक चरणों की एक श्रृंखला के माध्यम से प्रगति करते हैं, प्रत्येक में विकासात्मक कार्यों की एक श्रृंखला शामिल होती है।

विकासात्मक कार्य सिद्धांत का प्रतिपादन किसने किया - vikaasaatmak kaary siddhaant ka pratipaadan kisane kiya
Key Points

विकासात्मक कार्य:

  • "विकासात्मक कार्य" शब्द की शुरुआत रॉबर्ट हैविगर्स्ट ने 1950 में की थी।
  • एक विकासात्मक कार्य वह होता है जो व्यक्ति के जीवन में एक निश्चित अवधि में या उसके आसपास अनुमानित रूप से और लगातार उत्पन्न होता है।
  • उनका मानना ​​था कि अधिगम जीवन के लिए बुनियादी है और लोग जीवन भर सीखते रहते हैं। उनके अनुसार, एक विकासात्मक कार्य एक ऐसा कार्य है जिसे एक व्यक्ति को किसी विशेष जीवन काल में हल करना होता है और वह हल करना चाहता है।
  • उदाहरण के लिए, एक पिता को परिवार चलाने और एक बच्चे को पढ़ने और विद्यालय जाने के लिए जाना जाता है। एक विशेष आयु की ऐसी सामाजिक अपेक्षाएँ जो सभी व्यक्तियों के लिए समान होती हैं, 'विकासात्मक कार्य' कहलाती हैं।

इस प्रकार, यह निष्कर्ष निकाला जाता है कि विकासात्मक कार्य की अवधारणा हैविगर्स्ट द्वारा प्रस्तावित की गई थी।

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Hint

  • लेटा स्टेटर हॉलिंगवर्थ मनोविज्ञान में शुरुआती अग्रणी थे, जो बुध्दि परीक्षण और प्रतिभाशालिता के अध्ययन में उनके योगदान के लिए सबसे अच्छी तरह से जाने जाते हैं।
  • जीन पियाजे एक स्विस मनोवैज्ञानिक थे जो बाल विकास में अपने काम के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने संज्ञानात्मक रचनावादी दृष्टिकोण के तहत संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत का प्रस्ताव रखा।
  • जी. स्टेनली हॉल एक प्रसिद्ध अमेरिकी मनोवैज्ञानिक थे जिन्होंने किशोर मनोविज्ञान विकसित किया था।

Last updated on Nov 24, 2022

The Uttar Pradesh Basic Education Board (UPBEB) has released the UPTET Final Result for the 2021 recruitment cycle. The UPTET exam was conducted on 23rd January 2022. The UPBEB going to release the official notification for the UPTET 2022 soon on its official website. The selection of the candidates depends on the scores obtained by them in the written examination. The candidates who will be qualified for the written test will receive an eligibility certificate that will be valid for a lifetime.

विकासात्मक मनोविज्ञान (डेवलपमेन्तल साइक्लोजी) एक वैज्ञानिक अध्ययन है जो मनुष्य के जीवन में हो रहे परिवर्तन के बारे में बताता है। मूल रूप से यह शिशुओं और बच्चों से संबंध रखता है पर इस क्षेत्र मे किशोरावस्था, वयस्क विकास, उम्र बढ़ने और पूरे जीवनकाल को भी लिया गया है। विकासात्मक मनोविज्ञान के तीन लक्षय हैं- विकासात्मक को वर्णन करना, समझाना और अनुकूलन करना। एरिक एरिक्सन एक प्रभाविक मनोविज्ञानी हैं जिन्होंने अपने मनोसामाजिक विकास सिद्धान्त में विकास के चरणों का प्रस्ताव दिया। विकासात्मक मनोविज्ञान, मनोविज्ञान की शाखा मानी जाती है।

मानसिक विकास के चरण[संपादित करें]

प्रसव-पूर्व विकास[संपादित करें]

शीघ्र मानसिक विकास को समझने के लिए मनोविज्ञानिको को प्रसव पूर्व विकास में चाह है। कीटाणु मंच, भ्रूण अवस्था और भ्रूण चरण प्रसव पूर्व विकास के तीन मुख्य चरण है। कीटाणु चरण की आरम्भ २ सप्ताह तक गर्भाधान में हो जाती है। भ्रूण अवस्था का मतलब है विकास २ सप्ताह से ८ सप्ताह तक और भ्रूण चरण बच्चे के जन्म तक नौ सप्ताह का प्रतिनिधित्व करता है। होश गर्भ मे ही विकसित हो जाता है। दूसरी तिमाही(१३-२४ सप्ताह) में होने तक एक भ्रूण दोनो देख और सुन भी सकता है। स्पर्श की भावना भ्रूण चरण (५-८ सप्ताह) में विकसित हो जाती है। मस्तिष्क के ज्यादा तर न्यूरॉन दूसरी तिमाही तक विकसित हो जाते है।

कुछ मौलिक सजगता भी जन्म से पहले ही पैदा हो जाती है और नवजात शिशुओ में मौजूद भी रह्ती है। अल्ट्रासाउंड मे दिखाया जाता है कि शिशु गर्भ के अंदर आंदोलन कर सकते है। जन्म के बाद शिशु अपनी माँ की आवाज को सुन और समझ भी सकता है।अवैध ड्रग्स, तंबाकू, शराब, पर्यावरण प्रदूषण लेने से माँ और शिशु दोनो को नुकसान पहुँच सकता है और कई पर्यावरणीय एजेंडा जन्म के पूर्व की अवधि के दौरान नुकसान पहुँचा सकता है।

शैशव[संपादित करें]

जन्म से पहिले वर्ष तक बच्चा शिशु माना जाता है। ज़्यादा तर सारे नवजात शिशु अपना समय सोने में निकाल देते है। शिशु दिन-रात सोते है पर कुछ महीने गुज़र जाने के बाद शिशु आमतौर पर प्रतिदिन सोता है। शैशव अनुभूति के ऊपर थोडी दृष्टि डालते है। शैशव अनुभूति का मतलब जो नवजात शिशु देख सकता, गंध, स्वाद और स्पर्श, सुन सकता हैं। ज्यादा तर शिशुओ की दृष्टि वयस्क बच्चों से खराब होती है।

शिशुओ की दृष्टि प्रारंभिक दौर मे धुँधली होती है पर समय के साथ सुधरने लगती है। छह महीने हो जाने के बाद शिशु की दृष्टि अच्छी हो जाती है। सुनवाई दृष्टि के विपरीत, जन्म से पूर्व अच्छी तरह से विकसित है। शिशु एक ध्यानि से आती दिशा को पता लगाने में काफी अच्छे है और १८ महीने से उनके सुनने की क्षमता एक वयस्क के लगभग बराबर है। नवजात शिशु गंध और स्वाद वरीयताओ के साथ जन्म लेता है। शिशु अलग अभिव्यक्ति दिखलाता है जब उसको सुखद या अप्रिय गंध और स्वाद से परिचित कराया जाता है।

स्पर्श और महसूस करना दोनो एेसी समझ है जो पहले गर्भ मे विकसित हो जाती है।भाषा विकास नवजात शिशु मानव के सभी भाषाओं की लगभग सभी धध्वनियों में भेदभाव करने की क्षमता के साथ पैदा होते है। छह महीने के आसपास के सारे शिशु अपनी भाषा में स्वनिम के बीच अंतर कर सकते है पर अलग भाषाओं मे स्वनिम के बीच अंतर नही कर सकते। इस अवस्था मे शिशु प्रलाप करना शुरू करते हुए स्वविम का उत्पादन करते है।

शिशु अनुभूति शिशु की अनुभूति को समझने के लिए 'ज़ाँ प्याज़े' एक प्रसिद्ध नामक विकासात्मक मनोविज्ञानी ने अनुभूति विकास के सिदधांत लिखे है। पियाजे के अनुसार शिशुओ को दुनिया की समझ और अनुभूति मोटर विकास के द्वारा हो सकती है और इसी के साथ वस्तु को छूने या पकडने से शिशु को वस्तु के बारे में पता चलता है। पियाजेट यह भी कहते है कि शिशुओं को १८ सप्ताह से पहले वस्तुओं की कोई समझ नही होती बल्कि शिशु उस वस्तु को बार-बार देखने और समझने की कोशिश करता है।

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Redheaded child mesmerized 2

शिशु अवस्था[संपादित करें]

जब शिशु एक या दो वर्ष के हो जाते है तो उस विकासात्मक चरण को शिशु अवस्था कहते है। कैसे चलना, बात करना और कैसे अपने बारे मे निर्णय लेना है, शिशुओ इस चरण मे सीखना शुरू करता है। इस चरण मे शिशुओ की भाषा मे विकास होता है। आसपास के लोगो से संवाद करने और अपनी भावनाओं को दिखाने के लिए मुखर आवाज़, बड्बडा और अंत में शब्दों का प्रयोग करते है।

बचपन[संपादित करें]

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बचपन मानसिक विकास का चौथा चरण माना जाता है। इसको 'खोजपूर्ण उम्र' और 'खिलौना उम्र' भी कहा जाता है। जब बच्चे बढ़ते है तो उनके अतीत अनुभवो से उनके जीवन का आकार होता है और दुनिया को समझने की क्षमता मिलती है। तीन वर्ष से ही बच्चों की भाषा का विकास होता है। बच्चे ९००-१००० अलग शब्द और हर दिन १२००० शब्दो का उपयोग करता है। छह वर्ष होने तक बच्चा २,६०० शब्द का उपयोग करता है और २०,००० शब्दो को समझते है। बच्चों की समझने की क्षमता इस वर्ष तक बढ़ जाती है और विधालय जाने से उसको बहुत कुछ सीखने को मिलता है। बच्चे इस उम्र मे आसानी से दोस्त बना लेते है। भाषा विकास होने से बच्चो को ज्ञान और कौशलता भी प्राप्त होता है और अपने लोगो से र्वातालाप करने और समझने मे आसानी होती है। ब्च्चे लोगो को पहचानने लगते है। बच्चों के अच्छे या बुरे व्यवहार मे परवरिश शैली और उसके आसपास के वातावरण का बड़ा योगदान होता है। मध्यम बचपन या बालपन : ९ वर्ष - ११ वर्ष के बच्चे मध्यम बालपन के कहलाते है। बच्चों का मोटर विकास जारी रहता है। इस चरण में बच्चो को स्थानिक अवधारणाओ, करणीय संबंध, वर्गीकरण, अधिष्ठापन और वियोजक कारणो और संरक्षण मे समझने की क्षमता बढ़ जाती है। बच्चो में लिखने की क्षमता पठन करने से ही बढ़ती है। इस चरण में बच्चो के लिए अपना आत्म स्म्मान बहुत महत्वपूर्ण लगता है। पैतृक प्रभाव और साथियों के दबाव से बच्चो के मानसिक विकास पर असर डालता है। मनुष्य के लिए महत्वपूर्ण चरण बचपन है।

किशोरावस्था[संपादित करें]

समाज में बचपन से युवावस्था का आकलन एक बहुत बडे़ समय के अतंराम मे किया जाता है। इसकी शुरुआत यौवनारंभ के साथ होती है जिससे इंसान शारीरिक रूप से यौन संबंध बनाने हेतु और प्रजनन हेतु तैयार हौ जाता है। भावनात्मक परिपक्वता इस बात पर निर्भर करती है कि मनुष्य अपनी पहचान खुद बनाले, आत्म निर्भर हो जाए तथा समाज मे उसकी प्रशंसा हो। परंतु कुछ लोग कभी भी मानसिक रूप से प्रौढ़ नही होते चाहे वे शारीरिक रूप से कितने भी बडे़ क्यो ना हो जाए। शुरआती वयस्कता बचपन से जवानी की दहलीज पर कदम रखने से शुरु होती है, जहाँ सामाजिक रूप से भी बड़ा होता है। वह संभोग एवं प्रजनन तथा अपनी देखभाल करनेवाला हो जाता है।

यौवन- इसकी शुरुआत तेजी से सेक्स हार्मोन के बनने से होती है। लड़कियाें में इसके लक्षण है- अंडाशय में एस्ट्रोजन बढ़ जाती है, जिसकी वजह से महिला जननांगों मे विकास होता है। लड़कों में इसके लक्षण है- वृषण में एण्ड्रोजन बढ़ जाती है, विशेष रूप से टेस्टोस्टेरोन, जिसकी वजह से पुरुष गुप्तांग, मांसपेशियों और शरीर के बाल में विकास होता है।

शुरुआती अवस्था- यह करीब दो वर्षों तक चलती है। इसके खत्म होते ही इंसान यौन परिपक्वता करने योग्य हो जाता है। लडकियाें में करीब ११-१३ वर्षों की उम्र में अपने उम्र के लड़कों से उम्रदराज और मोती हो जाती है। लड़कों में यह अवस्था १४-१६ वर्षों में अाती है और इस वर्षों में लड़के अपने उम्र की लड़कियाें से लंबे तथा शारीरिक रूप से मजबूत होते है। लड़कियाँ और लड़कों का अपना सारा विकास १८ वर्षों में हो जाता है। युवावस्था के प्रारंभिक लक्षण जननांग की व्रूध्दि तथा संभोग हेतु तैयार होने से जुडी होती है। व्दितीय लक्षण मानसिक रुप से संभोग हेतु तैयार होने से है। इस दौरान युवकों के गलत रास्ते पर चलने ड्रग्स इत्यादि के सेवन के खतरे बढ़ जाते है।

जवान युवावस्था[संपादित करें]

यह युवावस्था का सही समय होता है। इस समय में शारीरिक और मानसिक रूप से काफी सबल होने है। शरीर के सारे अंग सही काम कर रहे होते है। मध्यावस्था २०-१५ वर्षों में, शरीर के अधिकतर अंग पूर्ण से विकसित होते है। २०-४० वर्षों के अंतराल में नज़र, श्वान, स्पर्श तथा कान(सुनने हेतु) पूर्ण रूप से विकदित होते है। ४५ के बाद कान के सुनने की शक्ति कम होने लगती है, खासकर ज्यादा हेज ध्वनि के प्रति।

अनुवांशिक संक्रमण तथा स्वास्थ्य बहुत सारी बिमारियाँ बहुत सारे तथ्यो पर निर्भर करती है। अनुवांशिक और प्रकृतिक दोनो का मनुष्य के जीवन पर काफी प्रभाव पडता है। 'मोटापा' इसका एक बहुत बड़ा कारण है। इसके अलावा अन्य कारण है, कसरत की कमी, धूम्रपान और कुपोषण।

माध्यामिक युवावस्था[संपादित करें]

उम्र के इस पडाव का कोई सामाजिक तथा जैविक संबंध नही है। स्वास्थ्य में सुधार तथा आपुमे बढोत्तरी हेतु यह उम्र का पडाव काफी महत्वपूर्ण है। ४०-६५ आयु अधिकतर लोगो के बीच दुरियाँ लाता है। इस उम्र में मनुष्य पर कफी जिम्मेदारियां आ जाती है तथा उसे अनेक भुमिकाएँ निभानी पडती है। मध्यमवयीन के अधिकतर लोग अपना स्थान बना चुके होते है तथा पूर्णतः स्वतंत्र रूप से जीवन व्यतीत कर रहे होते है। सफलता, काम तथा समाजिक जिम्मेदारियों के बीच समाज का बंधन स्वीकार नही कर पाते।

वृद्धावस्था[संपादित करें]

आजकल मनुष्य की आयु लंबी होती जा रही है, खासकर विकसित देशो में। आर्थिक सपंन्नता, अच्छा खाना, रोगों का अच्छी तरह से उपचार, साफ पानी तथा अच्छे चिकित्सालय इसके कारण है। प्रारंभिक आयुवोदि धिरे-धिरे होती है तथा उम्र के शुरवाती अादतो पर निर्भर रहती है। इसे आप रोक नही सकते। द्वितिय आयुवृर्ध्दि वीमारी के कारण।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • कोलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धान्त
  • प्याज़े का संज्ञानात्मक विकास सिद्धान्त
  • ऐरिक्सन का मनोसामाजिक विकास सिद्धान्त
  • सांस्कृतिक-ऐतिहासिक मनोविज्ञान ( लिव वाइगोत्सकी द्वारा)

सन्दर्भ[संपादित करें]

  • मानव विकास
  • अंग्रेज़ी विकिपीडिया

विकासात्मक कार्य के प्रतिपादक कौन हैं?

"विकासात्मक कार्य" शब्द की शुरुआत रॉबर्ट हैविगर्स्ट ने 1950 में की थी। एक विकासात्मक कार्य वह होता है जो व्यक्ति के जीवन में एक निश्चित अवधि में या उसके आसपास अनुमानित रूप से और लगातार उत्पन्न होता है। उनका मानना ​​था कि अधिगम जीवन के लिए बुनियादी है और लोग जीवन भर सीखते रहते हैं

विकासात्मक मनोविज्ञान के जनक कौन है?

एरिक एरिक्सन एक प्रभाविक मनोविज्ञानी हैं जिन्होंने अपने मनोसामाजिक विकास सिद्धान्त में विकास के चरणों का प्रस्ताव दिया। विकासात्मक मनोविज्ञान, मनोविज्ञान की शाखा मानी जाती है।

विकासात्मक सिद्धांत क्या है?

पियाजे के अनुसार, बालक द्वारा अर्जित ज्ञान के भण्डार का स्वरूप विकास की प्रत्येक अवस्था में बदलता हैं और परिमार्जित होता रहता है। पियाजे के संज्ञानात्मक सिद्धान्त को विकासात्मक सिद्धान्त भी कहा जाता है।

जीन पियाजे के कितने सिद्धांत हैं?

जीन पियाजे ने बालकों के संज्ञानात्मक विकास की व्याख्या करने के लिए चार अवस्था सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है।