In this article, we will share MP Board Class 10th Social Science Book Solutions Chapter 19 उपभोक्ता जागरूकता Pdf, These solutions are solved subject experts from the latest edition books. Show MP Board Class 10th Social Science Solutions Chapter 19 उपभोक्ता जागरूकताMP Board Class 10th Social Science Chapter 19 पाठान्त अभ्यासMP Board Class 10th Social Science Chapter 19 वैस्तुनिष्ठ प्रश्न सही विकल्प चुनकर लिखिए प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
उत्तर:
सही जोड़ी मिलाइए उत्तर:
MP Board Class 10th Social Science Chapter 19 अति लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3.
प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. MP Board Class 10th Social Science Chapter 19 लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2.
प्रश्न 3. प्रश्न 4. MP Board Class 10th Social Science Chapter 19 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. अधिकांशत उपभोक्ता को बाजार में सही वस्तुएँ एवं सेवाएँ प्राप्त नहीं होती हैं। उससे बहुत ही अधिक कीमत ले ली जाती है या मिलावटी तथा कम गुणवत्ता वाली वस्तुएँ बेच दी जाती हैं। परिणामस्वरूप यह आवश्यक है कि उसे जागरूक किया जाए। उपभोक्ता को जागरूक बनाने की आवश्यकता एवं महत्व निम्नलिखित बातों से स्पष्ट हो जाते हैं – (1) अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त करना – प्रत्येक व्यक्ति की आय सीमित होती है। वह अपनी आय से अधिक वस्तुएँ व सेवाएँ खरीदना चाहता है। इससे ही उसे पूर्ण सन्तुष्टि प्राप्त होती है। अत: यह आवश्यक है कि उसे वस्तुएँ सही माप-तोल के अनुसार प्राप्त हों और उसके साथ किसी भी प्रकार की धोखाधड़ी न हो। इसके लिए उसे जागरूक बनाना आवश्यक है। (2) उत्पादकों के शोषण से बचाव – उत्पादक एवं विक्रेता उपभोक्ताओं का कई प्रकार से शोषण करते हैं; जैसे-कम तोलना, अधिक कीमत लेना, बिल न देना, मिलावट करना, नकली वस्तु देना आदि । बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ भी अपने विज्ञापनों से उपभोक्ताओं को भ्रमित करती हैं। उपभोक्ता जागरूकता ही उन्हें उत्पादकों विक्रेताओं के शोषण से बचाती है। (3) बचत को प्रोत्साहन – जागरूकता व्यक्तियों को फिजूलखर्ची तथा अपव्यय से रोकती है और उसे सही निर्णय लेने की प्रेरणा देती है। ऐसे उपभोक्ता सेल, छूट, मुफ्त उपहार, आकर्षक पैकिंग आदि के लालच में नहीं फँसते। इससे वे अपनी आय का सही उपयोग करने एवं अधिक बचत करने में सफल रहते हैं। (4) समस्याओं को हल करने की जानकारी – अशिक्षा, अज्ञानता एवं जानकारी के अभाव में उपभोक्ता वर्ग धोखा खा जाता है। अतः आवश्यक है कि उपभोक्ताओं को अपने अधिकारों की जानकारी दी जाए जिससे वे उत्पादकों एवं विक्रेताओं द्वारा ठगे न जाएँ। उपभोक्ता जागृति के द्वारा उन्हें कानूनी प्रक्रिया से भी अवगत कराया जाता है जिससे वे अपनी समस्याओं को हल कर सकें। (5) हानिकारक वस्तुओं के उपयोग पर रोक – बाजार में अनेक ऐसी वस्तुएँ भी उपलब्ध रहती हैं जो कुछ उपभोक्ताओं को हानि पहुँचाती हैं। उदाहरण के लिए सिगरेट, शराब, तम्बाकू आदि को लिया जा सकता है। उपभोक्ता की जागरूकता एवं शिक्षा ऐसी वस्तुओं को न खरीदने की प्रेरणा देती है। इससे उन्हें बहुत लाभ होता है। प्रश्न 2. (2) अधिक मूल्य – प्रायः दुकानदार निर्धारित फुटकर कीमत से अधिक मनमानी कीमत ले लेते हैं। अक्सर देखा गया है कि जब हम एक दुकान से महँगी वस्तु खरीद लेते हैं और वही वस्तु दूसरी किसी दुकान में कम कीमत में मिल जाती है। यदि हम अंकित मूल्य दिखाते हैं तो वह कोई कारण बता देता है; जैसे – स्थानीय कर आदि। झूटी अथवा अधूरी जानकारी – उत्पादक एवं विक्रेता कई बार ग्राहकों को गलत या अधूरी जानकारी देते हैं। इससे ग्राहक गलत वस्तु खरीदकर फंस जाते हैं और उनका पैसा बेकार चला जाता है। वस्तु की कीमत, गुणवत्ता, अन्तिम तिथि, पर्यावरण पर प्रभाव, क्रय की शर्ते आदि के विषय में सम्पूर्ण जानकारी नहीं दी जाती है। वस्तु को खरीदने के बाद उपभोक्ता परेशान होता रहता है। (4) घटिया गुणवत्ता – जब कुछ वस्तुएँ बाजार में चल जाती हैं तो कुछ बेईमान उत्पादक जल्दी धन कमाने की लालसा में उनकी बिल्कुल नकल उतारकर बाजार में नकली माल चला देते हैं। ऐसे में दुकानदार भी ग्राहक को घटिया सामान दे देते हैं क्योंकि ऐसी वस्तुएँ बेचने में उन्हें अधिक लाभ रहता है। इस प्रकार उपभोक्ता ठगा जाता है और उसका शोषण होता है। (5) माप-तौल में गड़बड़ी – माप-तोल में विक्रेता कई प्रकार से गड़बड़ियाँ करते हैं; जैसे-बाँट के तले को खोखला करना, उसका वजन वांछित से कम होना, बाँट के स्थान पर पत्थर का उपयोग करना, लीटर के पैमाने का तला नीचे से मोटा या ऊपर की ओर उठा हुआ होना, तराजू के पलड़े के नीचे चुम्बक लगा देना आदि। इस प्रकार उपभोक्ता जितना भुगतान करता है उसके बदले में उसे वस्तु उचित मात्रा में प्राप्त नहीं होती है। (6) बिक्री के पश्चात् असन्तोषजनक सेवा – जब तक उपभोक्ता वस्तु खरीद नहीं लेता, उसे तरह-तरह के लालच एवं बाद में प्रदान की जाने वाली सेवाओं का आकर्षण दिया जाता है किन्तु बाद में सेवाएँ उचित समय में प्रदान नहीं की जाती हैं तथा उपभोक्ताओं की समस्याओं पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है। परिणामस्वरूप उपभोक्ता परेशान होता रहता है। (7) अनावश्यक शर्ते – बैंक, ऋण देने वाली संस्थाएँ आदि उपभोक्ता को वित्तीय सेवाएँ देती हैं परन्तु जमाकर्ताओं एवं ऋणदाताओं के साथ बैंक स्टाफ सहयोग नहीं करता। इसी प्रकार गैस कनेक्शन, नई टेलीफोन लाइन, लाइसेन्सशुदा सामान आदि प्राप्त करते समय विक्रेता अनावश्यक शर्ते लगाकर उपभोक्ताओं को परेशान करते हैं। (8) कृत्रिम अभाव – कभी-कभी त्योहार, पर्व आदि के समय व्यापारी अनुचित लाभ अर्जित करने के लिए वस्तुओं की जमाखोरी कर वस्तु का कृत्रिम अभाव उत्पन्न कर देते हैं और फिर कालाबाजारी के द्वारा अधिक कीमतें वसूलते हैं। प्रश्न 3. बाजार में उपभोक्ता क्यों ठगा जाता है, क्यों वह शोषण का शिकार हो जाता है, यह एक गम्भीर प्रश्न है। हमारा शोषण न हो सके, इसके लिए यह जानना आवश्यक हो जाता है कि शोषण के कारण क्या हैं ? इन कारणों की जानकारी के बाद ही हम उनसे बचने का तरीका ढूँढ़ सकते हैं। उपभोक्ता शोषण के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं – (1) अज्ञानता – यह उपभोक्ताओं के शोषण का प्रमुख कारण है। कई उपभोक्ताओं को वस्तु की कीमत, गुणवत्ता, उससे सम्बन्धित सेवा आदि के विषय में जानकारी ही नहीं होती है और वे विक्रेताओं की बताई बातों पर विश्वास कर वस्तु खरीदकर फंस जाते हैं और शोषित होते हैं। (2) उदासीनता – उपभोक्ताओं की एक बड़ी संख्या ऐसी भी होती है जो खरीदारी के प्रति उदासीनता बरतते हैं; जैसे-क्या करना है, सब ठीक है, रसीद लेकर क्या करना है, दुकानदार ने जो दिया है वह अच्छा ही होगा, वस्तु सस्ती सुन्दर टिकाऊ होनी चाहिए, आई. एस. आई. और एगमार्क जैसे चिन्ह की क्या आवश्यकता है, आदि कुछ ऐसी बातें हैं जो उपभोक्ता की उदासीनता को प्रदर्शित करते हैं। इसका पूरा लाभ विक्रेता उठाते हैं और उपभोक्ताओं का शोषण करने में सफल हो जाते हैं। (3) टेली मार्केटिंग – वैश्वीकरण के युग में टेली मार्केटिंग और ई-कॉमर्स का चलन हो गया है। टी. वी. पर कई प्रकार के विज्ञापन आते हैं। वस्तु के विषय में जानकारी देकर कीमत भी बता दी जाती है। उपभोक्ता पैसे भेजकर पार्सल द्वारा वस्तु प्राप्त करता है परन्तु कई बार इस सौदे से उपभोक्ता स्वयं को ठगा महसूस करता है। महँगे-महँगे उत्पाद वह झाँसे में आकर मँगा लेता है परन्तु उसका उसे उचित लाभ नहीं मिल पाता है। (4) सीमित जानकारी – वैश्वीकरण के इस युग में बाजार अनेक प्रकार के उत्पादों से भरा पड़ा है। उत्पादक उत्पादन करने हेतु स्वतन्त्र है। गुणवत्ता एवं मूल्य निर्धारण के कोई निश्चित नियम नहीं हैं। वस्तु के अनेक पहलुओं; जैसे-मूल्य, गुण, संरचना, प्रयोग की शर्ते, क्रय के नियम आदि की उपयुक्त एवं पूर्ण जानकारी का अभाव होता है। अतः उपभोक्ता गलत चुनाव करके अपना आर्थिक नुकसान कर बैठते हैं। (5) एकाधिकार – एकाधिकार का आशय है किसी वस्तु के उत्पादन एवं वितरण पर किसी एक उत्पादक या एक उत्पादक समूह का अधिकार होना। एकाधिकार की स्थिति में उत्पादक कीमतों एवं वस्तु की गुणवत्ता तथा उपलब्धता के सम्बन्ध में मनमानी करते हैं। फलत: वे उपभोक्ताओं का शोषण करने में सफल हो जाते हैं। (6) अशिक्षा – जब उपभोक्ता अशिक्षित होते हैं तो उन्हें विक्रेता बहुत सरलता से ठग लेते हैं। मिलते-जुलते शब्दों को ब्राण्डेड बताकर दुकानदार हल्की वस्तुओं को बेच देते हैं, जैसे सोनी के स्थान पर सोनिवा लिखा हो तो स्थानीय उत्पादक उसे सोनी की कीमत पर बेच देते हैं। उपभोक्ता भी कई बार सन्तोषी होते हैं कि हो गया नुकसान तो हो गया या भाग्य में यही था अब कौन झगड़ा मोल ले। इस सोच से भी उपभोक्ता शोषण का शिकार बनते हैं। प्रश्न 4.
प्रश्न 5. (1) रसीद प्राप्त करना – किसी वस्तु को खरीदने के साथ ही उसका कैश मेमो लेना बहुत आवश्यक है। इससे वस्तु खराब निकलने या घटिया होने या निर्धारित समय के पूर्व ही खराब हो जाने की स्थिति में कानूनी कार्यवाही की जा सकती है। (2) मानकीकृत वस्तुओं का क्रय – बाजार में अनेक प्रकार की वस्तुएँ उपलब्ध रहती हैं किन्तु शोषण से बचने के लिए उपभोक्ताओं को हमेशा मानकीकृत वस्तुएँ ही खरीदनी चाहिए। आई. एस. आई., एगमार्क एवं हॉलमार्क वाले चिन्हों की वस्तुएँ मानकीकृत होती हैं। (3) उपभोक्ता शिक्षा – शोषण में निदान का सबसे महत्वपूर्ण उपाय उपभोक्ता शिक्षा एवं जागरूकता है सरकार ने उपभोक्ताओं के संरक्षण के अनेक कानून बनाये हैं। किन्तु यह देखा गया है कि जन-सामान्य को इनकी जानकारी नहीं होती है। अतः उपभोक्ताओं को इन अधिकारों की शिक्षा दी जानी चाहिए। (4) विज्ञापनों के बहकावे में न आना – बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ अपने उत्पादों का दूरदर्शन एवं अन्य माध्यमों से आकर्षक विज्ञापन करते हैं। इसका उपभोक्ता पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है और वे वस्तुएँ खरीदने के लिए तैयार हो जाते हैं, परन्तु उपभोक्ताओं को विज्ञापनों से सावधान रहना चाहिए। वस्तु खरीदने से पहले उसकी गुणवत्ता, कीमत, मात्रा आदि की जाँच कर लेनी चाहिए। (5) खराब होने की तिथि की जाँच – हमें सदैव वस्तु की निर्माण तिथि एवं खराब होने की तिथि अवश्य देख लेनी चाहिए, क्योंकि इस तिथि के बाद वह वस्तु प्रभावी नहीं रहती है और उसके बुरे प्रभाव होने की सम्भावना रहती है। उदाहरणार्थ-दवाएँ, डिब्बाबन्द पदार्थ, खाद्य-सामग्री आदि। (6) सामूहिक रूप से शिकायत करना-एक अकेला उपभोक्ता, उत्पादक या विक्रेता के विरुद्ध कुछ नहीं कर सकता है, परन्तु यदि सामूहिक रूप से शिकायत की जाती है तो वह प्रभावी होती है। संरक्षण हेतु कानूनी उपाय उपभोक्ताओं के संरक्षण हेतु सन् 1955 में आवश्यक वस्तु अधिनियम’ पारित किया गया। इसके पश्चात् सन् 1976 में नाप-तोल को व्यवस्थित करने के लिए ‘बाँट एवं माप मानक अधिनियम’ पारित किया गया। सन् 1986 में भारत सरकार द्वारा ‘उपभोक्ताओं सुरक्षा अधिनियम’ पारित किया गया। इस कानून का प्रमुख उद्देश्य उपभोक्ता की शिकायतों को तुरन्त निपटाने तथा कानूनी प्रक्रिया को सरल बनाने से है। इसके अन्तर्गत उपभोक्ता विवादों के निपटारे के लिये जिला, राज्य एवं राष्ट्रीय स्तरों पर एक त्रिस्तरीय न्यायिक तन्त्र स्थापित किया गया है। भारत सरकार ने ‘उपभोक्ता मामलों के विभाग’ ने भी उपभोक्ता को जागरूक बनाने के लिए अनेक योजनाएँ चलाई हैं। जैसे देश के प्रत्येक जिले में उपभोक्ता संगठन एवं स्कूलों में उपभोक्ता क्लबों की स्थापना करना। उपभोक्ता अधिकारों के प्रति जागरूकता लाने के लिए विभिन्न स्तरों पर जागृति शिखरों का भी आयोजन किया जाता है। 24 दिसम्बर भारत में ‘राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। आज देश में 700 से अधिक उपभोक्ता संगठन कार्यरत् हैं। प्रश्न 6. उपभोक्ताओं को बाजार से श्रेष्ठ वस्तु एवं सेवाएँ क्रय करने का अधिकार है। उत्पादक या विक्रेता उसे किसी भी प्रकार का धोखा न दे सके, इसके लिए उसे कानून द्वारा संरक्षण दिया गया है। सामान्यतः उपभोक्ता को निम्नलिखित अधिकार प्राप्त हैं – (1) सुरक्षा का अधिकार – उत्पादकों के लिए यह आवश्यक है कि वे उपभोक्ताओं की सुरक्षा से सम्ब. न्धित नियमों का पालन करें। कारण यह है कि यदि उत्पादक इन नियमों का पालन नहीं करते हैं तो उपभोक्ता को भारी जोखिम उठाना पड़ सकता है। उदाहरण के लिए, प्रेशर कुकर में एक सेफ्टी वॉल्व होता है जो यदि खराब हों तो भयंकर दुर्घटना हो सकती है सेफ्टी वॉल्व के निर्माता को इसकी उच्च गुणवत्ता सुनिश्चित करनी चाहिए। यदि निर्माता ऐसा नहीं करते हैं तो उपभोक्ता कानून का सहारा ले सकते हैं। (2) चयन का अधिकार – जब कोई उपभोक्ता किसी वस्तु या सेवा को खरीदता है तो उसे चुनने का अधिकार होता है। उदाहरण के लिए, यदि हम गैस कनेक्शन लेते हैं और गैस डीलर साथ में चूल्हा खरीदने के लिए दबाव डालता है किन्तु हम केवल गैस कनेक्शन लेना चाहते हैं और चूल्हे की हमें आवश्यकता नहीं है। इस स्थिति में हमारे चुनने के अधिकार का उल्लंघन होता है। कारण यह है कि जो वस्तु खरीदना नहीं चाहते, उसे खरीदने के लिए विक्रेता या डीलर हमको विवश करता है। ऐसी स्थिति में हम विक्रेता के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही कर सकते हैं। (3) जानकारी का अधिकार – जब हम कोई वस्तु खरीदते हैं तब यह पाते हैं कि उसकी पैकिंग पर कुछ खास जानकारियाँ लिखी हुई होती हैं; जैसे-उस वस्तु की बैच संख्या, निर्माण की तारीख, उपयोग करने की अन्तिम तिथि और उसके निर्माण स्थल का पता आदि। जब हम कपड़े खरीदते हैं, तब हमें धुलाई से सम्ब. न्धित निर्देश उल्लेखित होने चाहिए। जब हम कोई दवा खरीदते हैं तो उस दवा के अन्य प्रभावों और खतरों से सम्बन्धित निर्देश भी प्राप्त कर सकते हैं। इस प्रकार उपभोक्ता जिन वस्तुओं को खरीदता है, उसके बारे में जानकारी पाने का अधिकार है। (4) सूचना का अधिकार – भारत सरकार ने वर्ष 2005 को सूचना प्रदान करने का अधिकार (राइट टू इनफॉरमेशन) के नाम से कानून बनाया है। यह कानूनं सरकारी विभागों के कार्य कलापों की सभी सूचनाएँ पाने का अधिकार सुनिश्चित करता है। उपभोक्ताओं को उपभोक्ता शिक्षा प्राप्त करने का भी अधिकार है। (5) क्षतिपूर्ति का अधिकार – अन्य परीक्षोपयोगी लघु उत्तरीय प्रश्न 1 का उत्तर देखें। प्रश्न 7. उपभोक्ता आन्दोलन का प्रारम्भ उपभोक्ताओं के असन्तोष के कारण हुआ है। उपभोक्ताओं में असन्तोष के अनेक कारण थे; जैसे-खाद्य पदार्थों की कमी, जमाखोरी, कालाबाजारी, मिलावट आदि। इन समस्याओं से निपटने के लिए सबसे पहले सन् 1955 में ‘आवश्यक वस्तु अधिनियम’ पारित किया गया। इस अधिनियम के द्वारा आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन, वितरण, मूल्य एवं आपूर्ति को नियन्त्रित करने का प्रयास किया गया। इसके बाद वस्तुओं की नाप-तौल को व्यवस्थित करने के लिए सन् 1976 में बाँट एवं माप मानक अधिनियम पारित किया गया। सन् 1986 में ‘उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम’ पारित किया गया। “उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम”1 ने भारत में उपभोक्ता आन्दोलन को व्यापक बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। ये अदालतें उपभोक्ताओं के विवादों को निपटाने के साथ-साथ उनका मार्गदर्शन भी करती हैं। भारत सरकार के उपभोक्ता मामलों के विभाग’ ने भी उपभोक्ता को जागरूक बनाने के लिए अनेक योजनाएँ चलाई हैं। भारत में उपभोक्ता आन्दोलन के परिणामस्वरूप उपभोक्ताओं में अपने अधिकारों के प्रति काफी जागृति आई है। आज राष्ट्र में 700 से अधिक उपभोक्ता संगठन कार्यरत् हैं, किन्तु उपभोक्ताओं की उदासीनता के कारण प्रभावी एवं मान्यता प्राप्त संगठनों की संख्या अपेक्षाकृत कम है। भारत जैसे विकासशील राष्ट्र में उपभोक्ताओं को शोषण से बचाने में सरकार के साथ-साथ स्वयंसेवी संगठनों का भी महत्वपूर्ण स्थान है। उपभोक्ताओं को जागरूक बनाने की दिशा में ये संस्थाएँ महत्त्वपूर्ण कार्य कर सकती हैं। इसके साथ ही यह भी आवश्यक है कि उपभोक्ता स्वयं अपने अधिकारों को समझे और उपभोक्ता आन्दोलन में अपना सक्रिय योगदान देने के लिए आगे आए। उपभोक्ता शोषण क्या है इसके मुख्य कारण क्या हैं?वह व्यक्ति जो बाजार में कोर्इ वस्तु खरीदता है अथवा उस सेवा के लिए भुगतान करता है उपभोक्ता कहलाता है। जब एक उपभोक्ता किसी तरीके से धोखा देते है, या तो दुकानदार या उत्पादक द्वारा कम गुणवत्ता अथवा घटिया वस्तुएँ उसे दी जाएँ तथा इन वस्तुओं और सेवाओं के लिए अधिक मूल्य लिया जाए, तो इसे उपभोक्ता शोषण कहते हैं।
क्या उपभोक्ता शोषण का क्या मतलब है?उत्तर- उपभोक्ता शोषण से अभिप्राय कम वज़न तौलना, अधिक कीमत वसूलना, मिलावटी एवं दोषपूर्ण वस्तुएँ बेचना, भ्रमित विज्ञापन देकर उपभोक्ता को गुमराह करना आदि है।
उपभोक्ता से आप क्या समझते हैं?उपभोक्ता उस व्यक्ति को कहते हैं, जो विभिन्न वस्तुओं एवं सेवाओं का या तो उपभोग करता है अथवा उनको उपयोग में लाता है। वस्तुओं में उपभोक्ता वस्तुएं (जैसे गेहूं, आटा, नमक, चीनी, फल आदि) एवं स्थायी वस्तुएं (जैसे टेलीविजन, रेफरीजरेटर, टोस्टर, मिक्सर, साइकिल आदि) सम्मिलित है।
उपभोक्ता शोषण से बचने के 2 उपाय क्या है?जागरुक ग्राहक को तस्करी का सामान नहीं खरीदना चाहिए, मुनाफाखोरी व कालाबाजारी करने वालों का सामाजिक बहिष्कार करना चाहिए एवं समय पड़ने पर अपनी आवश्यकता कम करनी चाहिए। ग्राहक का प्रथम अधिकार है कि खरीदे गए सामान का कैशमेमो लेना न भुलें। शोषण के खिलाफ उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज कर हर्जाना प्राप्त कर सकते हैं।
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