देवताओं के लिए कौन सी दिशा अच्छी है? - devataon ke lie kaun see disha achchhee hai?

हालांकि मैं कोई विशेषज्ञ नहीं हूँ, पर मैं ये जानती हु की वास्तु शास्त्र के अनुसार, पूजा मंदिर आदर्श रूप से घर के उत्तर-पूर्व कोने में स्थित होना चाहिए, जिसमें देवताओं का मुख दक्षिण-पश्चिम की ओर होना चाहिए। नतीजतन, जब आप उनकी पूजा करेंगे तो आपका मुख उत्तर-पूर्व की ओर होगा। पूर्व या उत्तर को अक्सर घर के मंदिर की स्थापना के लिए उपयुक्त दिशा के रूप में देखा जाता है। अब अगर आप यह सोच रहे हैं की मैं ये कैसे जानती हूँ तोह मई आपको बता दू की मेरे दादाजी एक सम्मानित वास्तु विशेषज्ञ हैं और उन्होंने मुझे वास्तु से जुडी कई सारी बातें जैसे की मंदिर का मुख किस दिशा में होना चाहिए, बड़े विस्तार में समझायी हैं| और मुझे आपको वो सारी बाते समझने में बेहद ख़ुशी मिलेगी | 

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पूजा घर का दरवाजा किस दिशा में होना चाहिए?

घर का उत्तर-पूर्व, उत्तर या पूर्व कोना वह जगह है जहां घर की सारी ऊर्जा निकलती है, जिससे यह पूजा मंदिर और देवताओं को स्थापित करने के लिए सबसे अच्छी जगह है, शास्त्रों के अनुसार, जो कि एक कुंजी है। ईशान कोना, जो स्वयं भगवान, ईश्वर के लिए संस्कृत शब्द से उत्पन्न हुआ है, और इसलिए इसका शाब्दिक अर्थ है “भगवान का कोना”, भारत के उत्तरपूर्वी कोने का पारंपरिक नाम है।

दुकान में मंदिर का मुख किस दिशा में होना चाहिए?

सूर्य पूर्व में उगता है, और इसलिए जैसा कि हम सभी अच्छी तरह से जानते हैं, यह इस ब्रह्मांड में सभी ऊर्जा और जुनून का मूल और स्रोत है और इसलिए हिंदू धर्म में भी इसकी पूजा की जाती है। यह तथ्य ही इन दिशाओं को पूजा मंदिर या उस मामले के लिए किसी भी धार्मिक गतिविधि के लिए शुभ माना जाता है, चाहे वह जप, ध्यान या अर्चना के लिए हो। इसलिए सूर्य की दिशा को ध्यान में रखते हुए हमे दुकान के मंदिर को भी उत्तर-पूर्व दिशा में ही रखना चाहिए। 

घर में मंदिर का मुख किस दिशा में होना चाहिए?

पूजा घर का दरवाजा किधर होना चाहिए ये समझना और हर चीज के लिए लाइन में लगना हमेशा आसान नहीं होता है। हम सवाल करते हैं कि क्या कोई स्थान स्वीकार्य होना चाहिए और भय से प्रेरित एक पर विश्वास-आधारित दृष्टिकोण का पक्ष लेना चाहिए। किसी को ठेस पहुँचाने का इरादा किए बिना, हम ईमानदारी से मानते हैं कि, अगर हमारे भगवान में हमारी आस्था सच्ची है, अगर हमारे इरादे अच्छे हैं, और अगर हमारी अंतरात्मा साफ है, तो दिशा की परवाह किए बिना, घर में कोई भी जगह जहां मंदिर रखा जाता है। बस मन सच्चा होना चाहिए। 

परन् अगर आप अपने और अपने परिवार के मन की शांति के लिए ये जानना चाहते हैं की मंदिर का मुख किस दिशा में होना चाहिए, तो अब आप जानते हैं की उत्तर-पूर्व दिशा मंदिर क लिए सबसे अनुकूल है। 

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मंदिर का मुंह किस दिशा में होना चाहिए

हमारे शास्त्रों में वर्णित है कि कहीं भी पूजा आराधना जैसे शुभ कार्य करते समय, विशेषकर कि अपने पूजा घर में जब आप पूजा कर रहे हों तो आपका मुंह पूर्व दिशा में होना चाहिए। इस प्रकार से हम ये सहज अनुमान लगा सकते हैं कि पूजा घर में मंदिर का मुँह पश्चिम दिशा की तरफ होना चाहिए तभी आप पूजा, आराधना करते समय अपना मुँह पूरब दिशा की तरफ रख पाएंगे।

ये बात और भी खास हो जाती है जब आप इस तथ्य को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जांचते हैं तो पाते हैं कि वैज्ञानिकों ने भी पृथ्वी की चुम्बकीय शक्ति को माना है और हर कार्य के लिए उचित दिशा के महत्त्व को स्वीकार किया है। तो अपने पूजा घर में जब भी आप मंदिर की स्थापना करें तो उस मंदिर का मुँह पश्चिम दिशा की तरफ होना चाहिए।

कमाल की बात तो ये है कि हमारे देश में महान ऋषि मुनियों ने अपनी तपस्या से अर्जित ज्ञान के जरिए पृथ्वी की चुम्बकीय शक्ति के आधार पर दिशाओं के अनुरूप कार्यों को करने के बारे में यह तथ्य हज़ारों वर्षों पहले ही शास्त्रों में लिख कर बता दिया था, जबकि वैज्ञानिकों ने पृथ्वी की चुम्बकीय शक्ति के बारे में खोज कई युगों बाद की थी। इसी शास्त्र-सम्मत ज्ञान को हम आपके सामने रख रहे हैं। इसका उचित तरीके से पालन कर इसका पूरा लाभ उठायें।

देवताओं के लिए कौन सी दिशा अच्छी है? - devataon ke lie kaun see disha achchhee hai?

पूजा घर कहाँ नहीं होना चाहिए

भारतीय वास्तु शास्त्र के अनुसार, कभी भी सीढ़ियों के नीचे और पखाने या नहाने के स्थान के पास पूजा घर नहीं होना चाहिए और ना ही वहाँ पूजा करनी चाहिए। ऐसा इसलिए है क्योंकि इन जगहों पर अक्सर ही घरों में गंदगी और ख़राब गंध पायी जाती है।

वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में केवल एक ही पूजा का कमरा होना चाहिए और इसका उपयोग स्टोर रूम की तरह कभी ना करें और ना ही पूजा के कमरे में कभी सोएं, चाहे आपके घर में जगह की कितनी भी कमी क्यों ना हो। इस बात को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए।

इसके अलावा, हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि पूजाघर के मन्दिर में भगवान की मूर्तियों को एक दूसरे की तरफ मुंह करके कदापि नहीं रखना चाहिए, ऐसी मान्यता है की इससे घर में और पूजा करते समय नकारात्मकता जन्म लेती है। यद्यपि यह बहुत ही रहस्यमय विषय है, तथापि हम इसके विषय में कहीं अन्यत्र चर्चा करेंगे।

दक्षिण दिशा में मुंह करके पूजा करने से क्या होता है?

कई शोध और अध्ययनों के बाद, शास्त्रों में वर्णित इस तथ्य को सही पाया गया है कि दक्षिण की ओर मुंह करके बैठने पर मन स्थिर नहीं रहता और ऐसे में आप सही ढंग से पूजा-पाठ और ध्यान नहीं कर सकते। इसलिए ध्यान रखें कि पूजा करते समय आपका मुंह दक्षिण दिशा की ओर ना हो।

भारतीय धर्म शास्त्र हमें यह बताता है कि दक्षिण दिशा से नकारात्मक किरणें निःसृत होती हैं इसीलिए दक्षिणमुखी घर भी शुभ नहीं माने जाते। इन्ही सब कारणों से, पूजाघर में दक्षिण दिशा में मुँह कर के पूजा करने की मनाही है।

इसके अलावा, यह भी महत्वपूर्ण है कि अपने आराध्य प्रभु की मूर्ति या तस्वीर आप कभी भी उत्तर दिशा में ना लगायें क्योंकि ऐसा करने पर आप जब पूजा करने बैठेंगे तो आपका मुंह दक्षिण की ओर होगा। हमारे शास्त्रों और पुराणों के आधार पर एक और मान्यता प्रचलित है कि दक्षिण दिशा मृत्यु के देवता यम के द्वारा नियंत्रित की जाती है। अर्थात यमलोक दक्षिण दिशा में ही स्थित है।

यही कारण है कि मृत शरीर को दक्षिण दिशा में सर रख कर लिटाते हैं और कोई भी शुभ कार्य दक्षिण दिशा में नहीं करते। भगवान की पूजा जैसे शुभ कार्य में भी यह बात लागू होती है। गलत दिशा में पूजा करने पर मन में मुर्दनी और नकारात्मकता ही अधिक छायी रहेगी तो आप ईश्वर से प्रार्थना और ध्यान भी सही ढंग से नहीं कर पायेंगे।

किस दिशा में मुंह करके पूजा करना सबसे अच्छा रहेगा?

पूजा करने के लिए सबसे अच्छी दिशा पूरब की मानी जाती है, चूँकि सूर्य का उदय इसी दिशा से होता है। शास्त्रों में सूर्योन्मुख हो कर पूजा करने को श्रेष्ठ बताया गया है यानी पूजा करते समय आपका मुंह पूरब दिशा की ओर होना चाहिए और इसीलिए देवताओं की मूर्तियों को पश्चिम दिशा की ओर करके रखना चाहिए।

उचित दिशा में पूजा करने से आपको अपना मन तेजोमय और प्रफुल्लित लगेगा जिससे मन में सात्विकता के प्रकाश का भी उदय होगा। प्रफुल्लित मन और सात्विकता के साथ आप निश्चित रूप से बेहतर तरीके से अपनी पूजा और ध्यान संपन्न कर पायेंगे।

यद्यपि हमें इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि पूजा कब नहीं करनी है। क्योंकि उचित समय में की गयी पूजा ही फलदायी होती है और हमें अनुचित तरीके से या अनुचित समय में पूजा नहीं करनी चाहिए।

हम आपको रूढ़िवादिताओं को मानने को बिल्कुल नहीं कहेंगे, परंतु हमने जो भगवान की पूजा के समय उचित दिशा का ध्यान रखने की जो बातें आपके सामने रखी है वो प्राचीन काल से अब तक ना केवल समय की कसौटी पर खरी उतरी हैं, बल्कि तर्क-सम्मत और शास्त्र-सम्मत भी मानी गयी हैं। इनको आप अपने विवेक के धरातल पर परखें और सही लगें तो इनका लाभ उठायें।

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देवताओं का स्थान कौन सी दिशा में होना चाहिए?

घर का उत्तर-पूर्व, उत्तर या पूर्व कोना वह जगह है जहां घर की सारी ऊर्जा निकलती है, जिससे यह पूजा मंदिर और देवताओं को स्थापित करने के लिए सबसे अच्छी जगह है, शास्त्रों के अनुसार, जो कि एक कुंजी है।

भगवान का मुंह कौनसी दिशा में होना चाहिए?

भगवान की किसी प्रतिमा या मूर्ति की पूजा करते समय मुंह पूर्व दिशा में होना चाहिए. यदि पूर्व दिशा में मुंह नहीं कर सकते तो पश्चिम दिशा में मुंह करके पूजा करना भी उचित है. वास्तु शास्त्र के हिसाब से पीले, हरे या फिर हल्के गुलाबी रंग की दीवार मंदिर के लिए शुभ होती है.

भगवान को रखने के लिए कौन सी दिशा अच्छी है?

वास्तु के हिसाब से घर में मंदिर को स्थापित करने के लिए घर का सबसे शुभ स्थान ईशान कोण यानी उत्तर पूर्व दिशा होती है। यह दिशा भगवान के मंदिर को रखने के लिए सबसे उत्तम मानी जाती है।

दक्षिण दिशा के देवता कौन है?

घर में दक्षिण दिशा के स्वामी यमराज को माना जाता है. यह मृत्यु के देवता हैं.