दक्षेस का दूसरा नाम क्या है? - dakshes ka doosara naam kya hai?

हालांकि पाकिस्तान का बड़ा भाई चीन नहीं चाह रहा था कि पाकिस्तान आधारित जिहादी संगठनों का नाम लिया जाए और उनकी निंदा की जाए, जिसके कारण गोवा घोषणापत्र में उनके नामों का उल्लेख नहीं हो पाया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 16 अक्टूबर, 2016 को गोवा में ब्रिक्स-बिम्सटेक सम्मेलन को संबोधित करने के दौरान शायद अब तक का सबसे बड़ा कूटनीतिक दांव चला। उन्होंने कहा कि हम दुनिया की दो तिहाई मानवता का प्रतिनिधित्व करते हैं। हमारी चुनौतियां और चिंताएं साझा हैं। यहां ढेरों आर्थिक अवसर हैं। विकास, वाणिज्य और तकनीक के प्रति हमारी आकांक्षाएं साझी हैं। मोदी ने पाकिस्तान को आतंकवाद की जननी कहा। हालांकि पाकिस्तान का बड़ा भाई चीन नहीं चाह रहा था कि पाकिस्तान आधारित जिहादी संगठनों का नाम लिया जाए और उनकी निंदा की जाए, जिसके कारण गोवा घोषणापत्र में उनके नामों का उल्लेख नहीं हो पाया।

वहीं दूसरी ओर बिम्सटेक देशों ने बिना पाकिस्तान का नाम लिए आतंकवाद के प्रायोजक देशों की निंदा की। इस प्रकार गोवा सम्मेलन के उपरांत पाकिस्तान 1947 में अपने निर्माण के बाद पहली बार कूटनीतिक स्तर पर इतना अलग-थलग हुआ है। दरअसल पाकिस्तान की सदस्यता वाले दक्षेस यानी सार्क के अस्तित्व पर भी सवाल खड़ा हो गया है? गोवा बैठक का सबसे सकारात्मक पहलू बिम्सटेक की ताजा शुरुआत होना है, जो कि क्षेत्र में आर्थिक, राजनीतिक और सामरिक सहयोग के नए दौर का अग्रदूत बना है।

दक्षेस का गठन बांग्लादेश की पहल पर सात देशों बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल और श्रीलंका द्वारा 1985 में ढाका में किया गया था। 2007 में अफगानिस्तान इसका आठवां सदस्य बना। दक्षेस का मुख्य उद्देश्य हर व्यक्ति को गरिमा के साथ जीने का अवसर मुहैया कराकर दक्षिण एशिया के लोगों का कल्याण करना और जीवन की गुणवत्ता को ऊपर उठाना तथा आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक विकास को तीव्र करना था। इसके साथ ही एक दूसरे की समस्याओं को समझकर उनको आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, तकनीक और विज्ञान के क्षेत्र में सहयोग करना था, लेकिन दक्षेस अपने 31 साल के इतिहास में इनमें एक भी उद्देश्य पूरा नहीं कर पाया है। यह दो सबसे बड़े सदस्य भारत और पाकिस्तान के विवादों का मंच बनकर रह गया है। भारत और पाकिस्तान की सक्रिय भागीदारी के बिना दक्षेस की कोई प्रासंगिकता नहीं है। पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद द्वारा उड़ी में हमला करने के बाद भारत-पाकिस्तान रिश्ते अपने निम्नतम स्तर पर पहुंच गए हैं। इनको सामान्य स्तर पर लाने के लिए पाकिस्तान को प्रयास करने होंगे। यहां सवाल यह है कि क्या यह फोरम किसी भी तरह के उद्देश्य को पूरा कर रहा है? अब समय आ गया है कि इस निर्थक हो चुके संगठन को खत्म करने या इससे पाकिस्तान को बाहर करने के बारे में सोचा जाए।

बिम्सटेक यानी बे ऑफ बंगाल इनीशिएटिव फॉर मल्टी सेक्टोरल टेक्निकल एंड इकोनोमिक कोआपरेशन में बांग्लादेश, भारत, म्यांमार, श्रीलंका, थाईलैंड, नेपाल और मालदीव शामिल हैं। यह संगठन तेजी से आगे बढ़ रहा है, क्योंकि इसमें दो बड़े शत्रु देशों की मौजूदगी एक-साथ नहीं है। जाहिर है, यहां दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के रास्ते में कोई गतिरोध नहीं है। गोवा सम्मेलन के बाद संगठन के सदस्य देशों के बीच दक्षेस के भविष्य के संबंध में चर्चा की आवश्यकता है। एक विकल्प यह है कि दक्षेस को तोड़ दिया जाए और पाकिस्तान को इसमें से निकालकर दक्षिण एशिया में एक नया क्षेत्रीय मंच स्थापित किया जाए।

दूसरा विकल्प यह हो सकता है कि भारत खुद दक्षेस से बाहर आ जाए और एक साझा आर्थिक बाजार कायम करने का लक्ष्य लेकर अपने मित्र पड़ोसी देशों के साथ मिलकर एक नया संगठन बनाए। तीसरा विकल्प यह हो सकता है कि बिम्सटेक को ही मजबूत किया जाए और कुछ दक्षिण पूर्व एशियाई देशों जैसे लाओस, कंबोडिया, वियतनाम, मलेशिया और सिंगापुर को इसमें शामिल कर और साथ ही अफगानिस्तान को एक विशेष पर्यवेक्षक का दर्जा देकर इसका विस्तार कर दिया जाए। अंतिम विकल्प पूर्व के दो विकल्पों से बेहतर है। इस क्षेत्र के विकास के लिए यह काम शीघ्रता से शुरू करना चाहिए।

बिम्सटेक की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि यह समूह स्वयं को राजनीति से कितना दूर रख पाता है। भारत को भी ऐसे किसी संगठन के कूटनीतिक इस्तेमाल से बचना होगा। अर्थात कूटनीतिक हथियार के रूप में इसका प्रयोग ठीक नहीं होगा। इसके बजाय भारत को क्षेत्र के आर्थिक विकास के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ बिम्सटेक का नेतृत्व करना चाहिए। इसके लिए समूह को संपर्क बहाली, ढांचागत विकास और संसाधनों के साझा इस्तेमाल पर जोर देना होगा। भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी को इससे और मजबूती मिलेगी। दक्षेस के गठन के तीन दशक बीत जाने के बावजूद इसका अंतरक्षेत्रीय व्यापार सिर्फ पांच प्रतिशत तक पहुंचा है, जबकि बिम्सटेक में अंतरक्षेत्रीय कारोबार एक दशक के अंदर ही छह प्रतिशत को पार कर गया है। यह दिखाता है कि बिम्सटेक देशों के बीच व्यापार की भारी संभावना है।

म्यांमार का अंतर-बिम्सटेक व्यापार उसके कुल व्यापार का 36.14 प्रतिशत है। इसमें नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, भारत और थाईलैंड की हिस्सेदारी क्रमश: 59.13, 18.42, 11.55, तीन और तीन प्रतिशत है। द्विपक्षीय व्यापार हिस्सेदारी पर विस्तृत नजर डालने पर पाते हैं कि भारत और थाईलैंड दूसरे सदस्य देशों के लिए कारोबार का गंतव्य बन सकते हैं। सदस्य देशों के बीच बिम्सटेक मुक्त व्यापार समझौता भी अंतर-क्षेत्रीय कारोबार में भारी इजाफा करेगा। प्रस्तावित बिम्सटेक एफटीए जब 2017 में अस्तित्व में आ जाएगा तब यह सालाना 50-60 अरब डॉलर कारोबार पैदा करने में सक्षम हो जाएगा। इस क्षेत्र में अंतर-क्षेत्रीय व्यापार करीब 60 प्रतिशत की दर से बढ़ सकता है और यदि कारोबार सुगमता प्रणाली को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक बढ़ा दिया जाए तो विश्व के साथ इस समूह का कारोबार 30 प्रतिशत की दर से बढ़ सकता है।

बिम्सटेक भारत को विभिन्न मुद्दों से निपटने के लिए संशोधित क्षेत्रीय मंच उपलब्ध कराता है। इसके साथ ही यह सीमावर्ती क्षेत्रों खासकर देश के पूवरेत्तर राज्यों के विकास की समस्याओं को दूर करने का अवसर मुहैया कराता है। असम, अरुणाचल, मेघालय, मिजोरम, मणिपुर, नागालैंड, त्रिपुरा और सिक्किम की सीमाएं म्यांमार, बांग्लादेश और भूटान से लगती हैं, ये सभी बिम्सटेक के सदस्य हैं। इस प्रकार दक्षेस की तुलना में बिम्सटेक में शक्ति संतुलन बेहतर है। भारत के पूवरेत्तर क्षेत्र की बांग्लादेश और म्यांमार से निकटता के कारण बिम्सटेक के सदस्य देशों में एक समानता का भाव पैदा होगा। बिम्सटेक दक्षिण एशिया और आसियान के बीच सेतु के रूप में भी काम करेगा। बिम्सटेक अपने सदस्य देशों की प्रतिस्पर्धा क्षमताओं की मजबूती में भी मददगार बन सकता है। यह समूह एक संयुक्त क्षेत्रीय ताकत बन सकता है।

(लेखक आर पी सिंह, रिटायर्ड ब्रिगेडियर हैं)

Edited By: Sachin Bajpai

दक्षेस को हिंदी में क्या कहते हैं?

दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (दक्षेस) दक्षिण एशिया के आठ देशों का आर्थिक और राजनीतिक संगठन है। संगठन के सदस्य देशों की जनसंख्या (लगभग 1.5 अरब) को देखा जाए तो यह किसी भी क्षेत्रीय संगठन की तुलना में ज्यादा प्रभावशाली है।

दक्षेस में कितने देश हैं?

Abhishek Mishra. दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) दक्षिण एशिया के देशो का क्षेत्रीय सरकारी संगठन है। इसके सदस्य देश अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका हैं

दक्षेस का उद्देश्य क्या है?

दक्षेस का गठन आठ दिसंबर 1985 को हुआ था. इस संगठन का उद्देश्य दक्षिण एशिया में आपसी सहयोग से शांति और प्रगति हासिल करना है. भारत और पाकिस्तान इस क्षेत्र के बड़े देश हैं. इनके अलावा बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, भूटान और मालदीव भी इस संगठन के सदस्य हैं.

दक्षेस की स्थापना कब हुआ था?

8 दिसंबर 1985, ढाका, बांग्लादेशदक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन / स्थापना की तारीख और जगहnull